निराशा को आशा में बदलती : दयाशंकर मिश्र की किताब “जीवन संवाद”

[simplicity-save-for-later]
1890
jeevan-samvad-dayashankar-mishra

जिंदगी में सबसे कीमती आप हैं। सबसे! आपसे मूल्यवान कुछ नहीं, कोई सपना नहीं, कोई वादा नहीं, इरादा नहीं। इसीलिए अपनी चिंता सबसे पहले कीजिए।

सीनियर जर्नलिस्ट दयाशंकर मिश्र की बहुत ही चर्चित वेब सीरीज़ “डियर ज़िंदगी” जब “जीवन संवाद” किताब के रूप में आई तो इसने ज़िंदगी के हार मान चुके हजारों लोगों को जीने की नई राह दिखा दी। यह किताब “अवसाद और आत्महत्या” के खिलाफ मानसिक संघर्ष का निचोड़ है। “जीवन संवाद”  किताब की शक्ल में आने से पहले वेब सीरीज़ के रूप में एक करोड़ से अधिक बार डिजिटल माध्यम से पढ़ा जा चुका है। 2017 से दयाशंकर मिश्र ने “डिप्रेशन और सुसाइड” के विरुद्ध अपना कॉलम “जीवन संवाद” लिखना शुरू किया। उनकी ये मुहिम लगातार जारी है और जो अपनी ज़िंदगी से निराश हो चुके लोगों को सही राह दिखाती है और उन्हें जीवन की अहमियत समझाती है।

‘ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जीया करते हैं’। ये कहावत दयाशंकर मिश्र की सोच पर बिल्कुल फिट बैठती है जिन्होंने अपने विचारों से हज़ारों लोगों को प्रेरित किया है। उन्हें समझाया है कि जीवन कितना अनमोल है। अपनी किताब के जरिए वो बताते हैं कि जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष है। संघर्ष से पीछे हटकर अपनी जीवनलीला को समाप्त कर देना किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है।

लेखक ने जब इस किताब से जुड़े अपने अनुभव साझा किए तो उन्होंने बताया कि वेब सीरीज़ के रूप में लिखे गए 650 से ज्यादा आलेखों में से उन्होंने चुनिंदा 64 लेखों को इस किताब में शामिल किया है। उन्होंने ये भी बताया कि कम से कम 8 लोगों ने माना कि वो अपनी जीवनलीला को खत्म करने वाले थे लेकिन उनके लेखों को पढ़ने से उन्होंने अपना विचार बदल दिया।

बाज़ार में हौसले की कोई दवा नहीं। यह कहीं नहीं मिलता। यह केवल संघर्ष की धूप में पकता है, ज़िदगी के प्रति आस्था, स्नेह, विश्वास के मिश्रण से बनता है।” – दयाशंकर मिश्र

2008  में दयाशंकर मिश्र को मैला ढोने वाले समाज पर, उनकी रिसर्च और स्टडी के लिए ‘यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड’ की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही उन्हें साल 2009 में एनएफआई की ओर से इसी विषय पर फेलोशिप भी मिल चुकी है। इन्हें डिजिटल इनोवेशन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। दयाशंकर मिश्र को यह अवार्ड “डियर ज़िंदगी” के लिए दिया गया है, जो कि “डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध” “जीवन संवाद” की एक सीरीज़ है। इस सीरीज़ में अब तक 650 से अधिक लेख लिखे जा चुके हैं। अभी भी “जीवन संवाद” के नाम से “डिप्रेशन और आत्महत्या के खिलाफ” मुद्दे पर दयाशंकर मिश्र का लेखन जारी है।

जीवन में छाए निराशा रूपी अंधेरे को नई रोशनी देती है – जीवन संवाद

ज़िंदगी की कला, सारे सूत्र केवल वर्तमान में सिमटे हैं। अगर हम आज को सघन प्रसन्नता से जीना सीख सकें तो अतीत, भविष्य दोनों स्वतः सुखद हो जाएंगे।

 “जीवन संवाद” एक ऐसी पुस्तक है, जो जीने के लिए प्रेरित करती है। यह जीने की अहमियत तो बताती  है साथ ही निराशा को आशा में बदलने के लिए भरपूर प्रयास करना भी सिखाती है। हर मनुष्य के जीवन में एक ना एक बार ऐसा क्षण आता है, जब उसे यह अहसास होने लगता है कि उसका यह जीवन निरर्थक है, बेकार है… उसके पास जीने की कोई वजह नहीं है। उसे आत्हत्या कर लेना चाहिए, लेकिन ऐसा सोचना किसी भी इंसान के लिए सही नहीं होता। जो मनुष्य इस क्षण पर विजय हासिल कर लेता है, वही जीवन के उद्देश्य को समझ पाता है।

जीवन से हार मान लेना कभी भी सही नहीं होता। जीवन को खत्म कर लेना, किसी भी समस्या का हल नहीं होता। आपको जो जीवन मिला है, उसका जरूर कोई ना कोई उद्देश्य है… बिना उद्देश्य के किसी की उत्पत्ति नहीं होती। चाहे वे पेड़-पौधे हो या कोई भी जीव-जंतु… सबका जीवन किसी ना किसी उद्देश्य के लिए निर्धारित है। आपको सिर्फ उस उद्देश्य को ढूंढ़ना है और उसे पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करना है। इससे इतर जीवन में कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। यही आपका कर्म है और यही जीवन का लक्ष्य भी है।

2019 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के अनुसार 1.39 लाख से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में आत्महत्या की जितनी वारदात हुई, उनमें 67% युवा थे जो 18 से 45 आयु वर्ग के थे। इन लोगों ने निराशा, हताशा में आकर अपनी जान दे दी। “जीवन संवाद” किताब लोगों को आत्महत्या जैसे नकारात्मक विचारों से बाहर लाने में मदद करती है।

“डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध” यह किताब हमें प्रेम का पाठ पढ़ाती है। यह किताब हमें हमारे अंतर्मन को समझने में हमारी मदद करती हैं। एक शब्द में कहा जाए तो “जीवन संवाद” मनुष्य में जीने की ललक को पैदा करती है।

“जीवन संवाद” किताब पांच अध्यायों में विभाजित है। “जीवन संवाद” पुस्तक में कुल 64 टिप्पणियां हैं। हर टिप्पणी के पहले 4 से 5 पंक्तियों में संक्षिप्त भूमिका दी गई है। इस पुस्तक की भाषा बहुत ही सहज और सरल है, जिस वजह से हर वर्ग का पाठक इसे बहुत ही आसानी से समझ सकता है और अपने जीवन में उतार सकता है।

“अतीत का डर मन में आशा की कोपलें फूटने नहीं देता। जब भी दिमाग किसी नई राह पर चलने की कोशिश करता है, अतीत का डर उसके पांव खींच लेता है। यह डर ज़िंदगी में कभी आपको आगे बढ़कर निर्णय नहीं लेने देता।”

“जीवन संवाद” के प्रथम अध्याय “जीने की राह”

“जीवन संवाद” के प्रथम अध्याय का नाम “जीने की राह” है। जिसमें कुल 13 टिप्पणियां है। प्रत्येक टिप्पणियां जीवन के प्रति उम्मीद को जगाती है। पहले खंड में सुदर्शन की कहानी “हार की जीत” की भी चर्चा की गई है। अक्सर हमारा अतीत कुछ ऐसे नकारात्मक अनुभवों से जुड़ा होता है, जो हमें भविष्य में आगे बढ़ने से रोकता है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें अपने अतीत को पीछे छोड़कर ही आगे बढ़ना होता है… अगर हम अपने अतीत से जकड़े रहे तो कभी अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकेंगे। “जीवन संवाद” पुस्तक हमें अपने अतीत के नकारात्मक अनुभवों से बाहर निकलना सिखाती है… साथ ही नई राह पर चलने का हौसला देती है… प्रत्येक वर्ग के लोगों को “जीवन संवाद” पुस्तक कम से कम एक बार तो ज़रूर पढ़नी चाहिए।

संवाद, स्नेह और आत्मीयता की कमी से उपजी दीवारों को तोड़ना बहुत ज़रूरी है। जब तक यह नहीं टूटेंगी, सुख के फूल भला कैसे मुस्कुराएंगे।

“जीवन संवाद” का दूसरा अध्याय “स्नेह” है…

इस अध्याय में अपनेपन की कमी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों और वितृष्णाओं की चर्चा की गई है।  इसी अध्याय में “मन की काई” के नाम से एक टिप्पणी भी है। इस अध्याय में बताया गया है कि ज्यादा से ज्यादा आत्महत्या अपनेपन की कमी की वजह से होती है। मनुष्य अपने बुरे वक्त में अकेला पड़ जाता है… अपने मन की बात किसी से कह नहीं पाता है… और यही वजह उसे आत्महत्या की ओर ले जाती है।

“जीवन संवाद” का दूसरा अध्याय “स्नेह” है… इस अध्याय में अपनेपन की कमी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों और वितृष्णाओं की चर्चा की गई है।  इसी अध्याय में “मन की काई” के नाम से एक टिप्पणी भी है। इस अध्याय में बताया गया है कि ज्यादा से ज्यादा आत्महत्या अपनेपन की कमी की वजह से होती है। मनुष्य अपने बुरे वक्त में अकेला पड़ जाता है… अपने मन की बात किसी से कह नहीं पाता है… और यही वजह उसे आत्महत्या की ओर ले जाती है।

आजकल की भागदौड़ वाली ज़िंदगी में सच में किसी के पास किसी के लिए बिना वजह समय नहीं होता है… लोग सोशल मीडिया पर तो अपने हज़ारों दोस्त दिखाएंगे… लेकिन असल ज़िंदगी में पास बैठकर बात करने वाला एक भी करीबी दोस्त नहीं ढ़ूंढ़ पाएंगे। “जीवन संवाद” पुस्तक हमें सिखाती है कि अपनों के साथ नज़दीकियां कैसे बढ़ाएं… अपने मन की बात को बाहर कैसे निकालें… जो बात मन को परेशान कर रही है, उससे निजात कैसे पाएं…। इस तरह के अनगिनत सवालों के हल हमें सिर्फ “जीवन संवाद” पुस्तक में ही मिलती है। पुस्तक हमें स्वंय से प्रेम करना सिखाती है। साथ ही ज़िंदगी को गले लगाना भी सिखाती है।

रिश्तो में एक दूसरे को बांधना नहीं है, स्वतंत्र करना है ! स्वतंत्रता जितनी भीतर होगी, प्रेम भी उतना ही गहरा होगा। मोह के धागे से आगे निकलकर ही प्रेम मिलता है।

“जीवन संवाद” का तीसरा अध्याय है “रिश्ते”…

कहते हैं कि रिश्ते बहुत ही नाज़ुक होते हैं। इन्हें बड़े प्यार से ही सींचना चाहिए। रिश्ते ना ही बंदिशें मांगती है… ना ही आवारगी मांगती है… ये तो सिर्फ मोह का एक धागा मांगती है। रिश्ता कोई सा भी क्यों ना हो… उसे जकड़ने की कोशिश की गई तो एक ना एक दिन वो अपने सब्र का पिंजरा तोड़ ही देगी। अगर हर रिश्ते को सिर्फ प्रेम के धागों में पिरोया जाए तो वो कभी रिश्तों की अहमियत को नहीं भूलेगा। “जीवन संवाद” पुस्तक रिश्तों में प्रेम, स्नेह, अपनापन, ममता, करूणा घोलना भी सिखाती है।

जब मन उदास हो, खालीपन घेर ले, जी भरके चांद, सूरज, समंदर को देखिए। इनका सफ़र, मिजाज और रवैया सब कुछ सरल कर देगा। ज़िंदगी से बड़ा रंगरेज़ कोई नहीं, बस उसे मौका तो दीजिए।

“जीवन संवाद” का चौथा और पांचवा अध्याय है “दूसरों को धैर्य से सुनने की कला”

हर कोई बोलना तो चाहता है लेकिन सुनना कोई नहीं चाहता। मन की शांति के लिए बोलना जितना जरूरी है… उतना ही ज़रूरी सुनना भी है। “जीवन संवाद” किताब में एक-दूसरे के विचारों को सुनने के लिए प्रेरित किया गया है। आप किसी को जितने धैर्य से सुन पाएंगे… उतने ही धैर्य से उसके मन की व्यथा को समझ सकेंगे। आपने किसी के मन की व्यथा को समझ लिया तो समझिए कि आपने उस व्यक्ति की परेशानी को हल कर दिया।  

जहां “जीवन संवाद” “डिप्रेशन और आत्महत्या” के विरुद्ध लड़ना सिखाती है… वहीं ये पुस्तक जीने की कला भी सिखाती है…

जीवन, अपने मूल्य को समझिए, तुलना के मोह से बाहर आइए। अपने मन की सुगंध को महसूस कीजिए। अपने सपनों की कीमत पर जीवन को गिरवी मत रखिए।

                                                दयाशंकर मिश्र  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.