नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (National Democratic Front of Bodoland- NDFB)

2034
what is NDFB


27 जनवरी 2020, यह कोई आम तारीख नहीं थी , बल्कि यह तारीख ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’, आंदोलन,समस्या, समाधान और समापन में एक पूर्ण विराम साबित हुई थी। इसी तारीख ने दशकों से चले आ रहे संघर्ष , उग्रवाद ,आंदोलन, आहुतियों , बलिदानो को उसकी मंजिल तक पहुंचाने का कार्य किया था, बोडोलैंड आंदोलन में 2800 से अधिक आम नागरिक, लगभग 950 बोडोलैंड आंदोलन से जुड़े लोग तथा 200 से अधिक सुरक्षा बलों के सैनिक मारे गए थे। 27 जनवरी 2020 को भारत सरकार, असम सरकार तथा ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ के मध्य एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ , जिसके पश्चात इस पूरे बोडोलैंड आंदोलन घटनाक्रम को एक नई दिशा तथा राह मिल गयी। 27 जनवरी 2021 को इस समझौते की प्रथम वर्षगांठ के अवसर पर, हम आपके साथ ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियां साझा कर रहे हैं।

इस लेख में आपके लिए है

  • क्या है ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’?
  • ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ की पृष्ठभूमि
  • पृथक “बोडोलैंड प्रदेश” की मांग के मुख्य कारक
  • नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ से जुड़े महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य
  • नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ का विभाजन
  • बोडो समझौता 2020 के महत्वपूर्ण बिंदु
  • बोडो समझौता 2020 के उद्देश्य

क्या है ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’?

‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ (National Democratic Front of Bodoland- NDFB) एक अलगाववादी, उग्रवादी, सशस्त्र , गैर-कानूनी संगठन है , जिसका उद्देश्य असम से पृथक होकर बोडो समुदाय के लिए एक अलग राज्य की स्थापना करना था। इसकी स्थापना 3 अक्टूबर 1986 में बोडो सिक्योरिटी फोर्स (Bodo Security Force) नाम से रंजन दैमारी ने की थी, साल 1994 में इसका नाम बदलकर ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ कर दिया

गया था। ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ के ऊपर अवैध तथा हिंसक गतिविधियों में शामिल रहने , उगाही करने , हत्या , आतंकवाद आदि वारदात को अंजाम देने के आरोप लगे हैं।

‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ की पृष्ठभूमि

‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ आंदोलन के उदभव की जड़ है- ‘पृथक बोडोलैंड की मांग”. ‘डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ के उदभव की पृष्ठभूमि, इतिहास और विकास सब ‘बोडोलैंड’ से ही निकलकर आया है। हमें जरुरत है ‘बोडोलैंड’ से जुड़े उन सभी तथ्यों को समझने की जो ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ से सम्बंधित हमारी जानकारी को सशक्त बनाये। तो चलिए दोस्तों ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ को समझते हैं शुरुवात से।

पृथक “बोडोलैंड प्रदेश” की मांग के मुख्य कारक

बोडोलैंड के विषय में अध्ययन करने पर हमने पाया की, अलग ‘बोडोलैंड’ प्रदेश की मांग के पीछे दो मुख्य कारक थे।

बोडो समुदाय में सांस्कृतिक असुरक्षा की भावना

‘बोडो’ भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अनुसार एक महत्वपूर्ण जनजाति है , जोकि असम राज्य की मूल जनजाति है और ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में स्थित चार ज़िलों कोकराझार, बक्सा, उदलगुरी और चिरांग में मुख्य रूप से निवास करती है। ‘बोडो’ असम की सबसे बड़ी जनजाति है और राज्य की कुल जनसँख्या में 5-6% की आबादी जोड़ती है। यहां तक तो विषय बढ़िया चल रहा था, किन्तु विषय में विषमता तब आ गयी जब स्थानीय ‘बोडो समुदाय ‘ के ऊपर बाहरी लोगो को थोपा गया, ये बाहरी लोग पृथक राज्य तथा जाति के थे।

अन्य स्थानों से आने वाले अप्रवासियों के असम में बसने से बोडो समुदाय के लोगो को अपनी संस्कृति, सभ्यता, कला की संप्रभुता के प्रति खतरा महसूस होने लगा था। इसी कारण से बोडो समुदाय कोकराझार, बक्सा , उदलगुरी और चिरांग जिलों को मिलाकर अलग “बोडो प्रादेशिक क्षेत्र” बनाने की मांग करने लगे थे।

असम राज्य में बाहरी राज्यों से लोगो का आवागमन अंग्रेजी हुकूमत के समय से ही चला आ रहा था , क्योकि उस समय अंग्रेज असम को अपना चाय उत्पादन का उपनिवेश बनाना चाहते थे और उन्हें काम करने के लिए अधिक से अधिक मजदूरों की जरुरत थी। उस समय आजादी की लड़ाई के सामने ‘बोडोलैंड ‘ की स्वायत्ता की मांग दबी रह गयी थी। किन्तु देश की आजादी के बाद साल 1960 के आस-पास से ‘बोडोलैंड ‘ की स्वायत्ता की मांग उठनी प्रारम्भ होने लगी थी।

बोडो समुदाय में आर्थिक असुरक्षा की भावना

स्वतंत्रता के पश्चात बंगाल का पूर्वी हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान के रूप में पृथक हो गया था, जिस कारण से असम क्षेत्र का बड़ा बाजार एवं बंदरगाह भी पूर्वी पाकिस्तान में चला गया था। स्थानीय उत्पादों के लिए बाजार की जरूरतों के कारण स्थानीय लोगो में एक आर्थिक असंतोष एवं असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गयी थी। प्रथम कारक के साथ आर्थिक

असंतोष स्थानीय समुदायों और अप्रवासियों की बीच हिंसा का कारण बन गया था , जिस कारण से पृथक बोडोलैंड की आवश्यकता को बल मिला था।

‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ से जुड़े महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य

• बोडो समुदाय ने सर्वप्रथम एक संगठन के रूप में ‘प्लेन्स ट्राइबल कौंसिल ऑफ़ असम”(PTCA) का गठन करके साल 1967 के आस-पास पृथक बोडोलैंड प्रदेश की मांग की गयी थी।

• साल 1979 -85 के असम आंदोलन से हुए ‘असम समझौते’ के बाद यह विवाद और भी बढ़ गया था। इसके बाद बोडो समुदाय ने अपनी संस्कृति एवं पहचान की रक्षा के लिए फिर से आंदोलन आरम्भ कर दिया था।

• 1980 के बाद बोडोलैंड आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया था तथा यह आंदोलन अब तीन हिस्सों में विभक्त हो गया था। पहला भाग ‘बोडो सिक्योरिटी फोर्स’ के रूप में पृथक हुआ जिसकी प्राथमिकता पृथक बोडोलैंड राज्य थी। जो आगे चलकर ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड'(NDFB) में परिवर्तित हो गया था।

• दूसरा भाग ‘बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स’ के रूप में पृथक हुआ जिसकी प्राथमिकता और अधिक स्वायत्तता थी।

• तीसरा भाग ‘ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन’ के रूप में पृथक हुआ जिसकी प्राथमिकता मध्यम मार्ग की अपनाते हुए राजनीतिक समाधान का प्रयास करना था।

• साल 1987 के बाद ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ का बोडोलैंड के लिए आक्रोश इतना बढ़ गया कि केंद्र सरकार ने इसकी हिंसक गतिविधियों को देखते हुए , इसे गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून 1967 के तहत गैर कानूनी ठहराया था।

• साल 1990 में केंद्रीय सुरक्षा बलों द्वारा ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ के खिलाफ सख्त अभियान चलाये, जिसके परिणाम स्वरुप इस संगठन के अधिकतर सदस्य असम-भूटान सीमा में पलायन कर गये और वहीँ से बोडो आंदोलन को समर्थन प्रदान करने लगे थे।

• साल 1993 में सरकार तथा ‘ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन’ के मध्य ‘पहला बोडो समझौत’’ हुआ, जिसके तहत ‘स्वायत्त बोडोलैंड परिषद’ का गठन किया गया , किन्तु यह समझौता ज्यादा सफल नहीं रहा और पुनः ‘ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन’ ने बोडो आंदोलन का रास्ता अपना लिया।

• साल 2000 में भारतीय सेना तथा भूटान शाही सेना के संयुक्त अभियानों के कारण भूटान सीमा में निर्वासित ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ के सदस्यों ने आत्मसमर्पण कर राजनीति कि मुख्यधारा में जुड़ने की मंशा जाहिर की थी।

• साल 2003 , फ़रवरी में सरकार तथा बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स के मध्य ‘दूसरा बोडो समझौता’ हुआ, जिसके तहत बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन किया गया।

• इस परिषद के अंतर्गत कोकराझार, चिरांग, बक्सा, और उदालगुड़ी ज़िलों को शामिल करने का फैसला किया गया। किन्तु बोडो आंदोलन का विभिन्न गुटों में विभक्त होने के कारण यह समझौता सफल नहीं हो पाया था।

• साल 2005 में ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ तथा सरकार के मध्य एक युद्ध विराम समझौता किया गया किन्तु ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ के हिंसक रूख के चलते यह समझौता असफल हो गया था।

• साल 2008 में ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ ने असम के कई क्षेत्रों में आतंकी हमलो को अंजाम दिया जिसमे 90 से अधिक लोगो की मौत हुई थी। इन सभी हमलो के लिए ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ प्रमुख रंजन दैमारी को दोषी ठहराया गया था।

• साल 2017 , मई में केंद्र सरकार ने असम तथा मेघालय के कुछ भागो को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया और 3 महीने के लिए अफस्‍पा (AFSPA) लागू कर दिया था। 2017 में असम में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया था।

• साल 2020 , 27 जनवरी को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, असम सरकार , ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ तथा अन्य बोडो संगठनों के मध्य तीसरा तथा अभी तक अंतिम समझौता हुआ सम्पन्न हुआ था।

नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ का विभाजन

• साल 2008 के बाद ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ दो भागो में विभाजित हो गया। पहला भाग NDFB(P) बना जिसकी कमान गोविंदा वसुमतारी ने संभाली तथा दूसरा भाग NDFB (RD) नाम से जाना गया जिसकी कमान रंजन दैमारी ने संभाली थी।

• साल 2009 में गोविंदा वसुमतारी के नेतृत्व वाली NDFB(P) ने केंद्र सरकार से बातचीत की पहल को आगे बढ़ाया तथा NDFB (RD) ने अपने हिंसक रूख को बनाये रखा। इसी बीच साल 2010 में बांग्लादेश सरकार ने रंजन दैमारी को गिरफ्तार कर भारत को सौप दिया था।

• साल 2012 में सरकार के साथ वार्ता के विरोध में इंगती कठार सोंगबिजित NDFB(P) से पृथक होकर ने एक अलग संगठन NDFB (S) की नीव रखी। NDFB (S) ने अपनी हिंसक गतिविधियां जारी रखी तथा साल 2014 में इस पर 60 से अधिक आदिवासियों की हत्या के आरोप लगे थे।

• साल 2013 में रंजन दैमारी के रिहा होने बाद NDFB (RD) भी भारत सरकार के साथ बातचीत के रास्ते पर आगे बढ़ने लगा था।

• साल 2014 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (सोंगबिजीत) NDFB (S) ने एक किशोरी के मुखबिर होने के संदेह में , उसके माता-पिता के सामने ही उसको गोली मारकर हत्या कर दी थी। बाद में इस घटना की क्लिप को उस समय राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर भी प्रसारित किया गया था।

• आगे चलकर इंगती कठार ने NDFB (S) पृथक होकर अपना अलग संगठन बना लिया था। इस प्रकार से मुख्य ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ में कुल चार भागो में बंट गया था। इसके अतिरिक्त ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन (एबीएसयू) और यूनाईटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाईजेशन (यूबीपीओ) जैसे अन्य संगठन भी बोडो आंदोलन के लिए सक्रीय थे।

बोडो समझौता 2020 के महत्वपूर्ण बिंदु

• बोडो समझौता 2020 , जनवरी 27 को भारत सरकार, असम सरकार , ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन (एबीएसयू) , यूनाईटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाईजेशन (यूबीपीओ) तथा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ के सभी गुटों के मध्य हुआ था।

• इस समझौते के अंतगर्त 1500 उग्र चरमपंथी लोगो को शांति तथा विकास की मुख्यधारा में जोड़ा गया था। बोडोलैंड के विकास के लिए 1500 करोड़ का पैकेज जारी किया गया तथा बोडोलैंड आंदोलन में मारे गये लोगो के परिवार 5-5 लाख रूपये के मुआवज़े की व्यवस्था की गयी।

• इस समझौते के अंतगर्त पृथक बोडोलैंड प्रदेश की मांग को सभी की सहमति से ख़ारिज कर दिया गया, इसके स्थान पर सभी बोडो संगठनो ने असम राज्य के अंदर ही स्वायत्त बोडोलैंड क्षेत्र की व्यवस्था को स्वीकार किया है।

• इस समझौते के अनुसार बोडोलैंड क्षेत्र में 4 जिलों के अरिरिक्त 3 जिले और जोड़े गये , जिससे अब कुल 7 जिले बोडोलैंड क्षेत्र के अंतगर्त आ गये हैं।

• ‘बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट’ (BTAD) के आस-पास के उन सभी इलाको को इसमें जोड़ा गया जिसमे बोडो जनजाति के लोगो की जनसख्या ज्यादा थी। बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट का नाम बदलकर ‘बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR)’ रखने की व्यवस्था भी की गयी।

• बोडो लोगों की पहचान, भाषा, शिक्षा और भूमि अधिकार से जुड़े मुद्दों का समाधान किया जाएगा। असम सरकार द्वारा बोडो भाषा को राज्य में सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में अधिसूचित किया जाएगा।

• बोडो माध्यम स्कूलों के लिये एक अलग निदेशालय की स्थापना की जाएगी। NDFB के सदस्यों के आत्मसमर्पण और पुनर्वास के लिए भी इस समझौते व्यवस्था की गयी।

• असम सरकार निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार BTAD से बाहर राज्य के अन्य बोडो गाँवों के विकास के लिये ‘बोडो कर्मचारी कल्याण परिषद’ की स्थापना करेगी।

बोडो समझौता 2020 के उद्देश्य

• इस समझौते का मुख्य उद्देश्य दशकों से चले आ रही संघर्ष को पूर्ण विराम देना था, जिसके लिए बोडोलैंड आंदोलन के सभी पक्षकारों को एक मंच पर लाने में सरकार सफल रही।

• यह समझौता बोडो जनजाति के विकास के साथ असम राज्य की आतंरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने की और एक कदम था।

• क्षेत्रीय अस्थिरता इस क्षेत्र में निवेश के लिये एक बड़ी बाधा बनी हुई थी, असम तथा इससे प्रभावित अन्य क्षेत्रों में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए यह समझौता आवश्यक था।

• हिंसा से जुड़े लोगों को मुख्यधारा में लाने तथा देश के अन्य स्थानों में चल रहे ऐसे ही चरमपंथी उग्रवाद के सामने एक सुधार का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए यह समझौता महत्वपूर्ण था।

दो शब्द

किसी भी देश या क्षेत्र की अखंडता, सम्प्रभुत्ता तथा आंतरिक शांति के लिए आतंकवाद, नक्सलवाद , मावोवाद , चरमपंथी उग्रवाद आदि बहुत ही घातक होते हैं। ये अंदर ही अंदर देश को किसी दीमक की भांति खा जाती हैं। विशेषकर उस देश के लिए जो चारो और से अपने दुश्मन देशो से घिरा हुआ हो उस देश के नागरिको लिए इस बात को समझना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। दोस्तों इस लेख के माध्यम से हमारा आपके साथ रूबरू होने का मुख्य उद्देश्य देश में चल रहे आतंकी हिंसक गतिविधियों की तस्वीर आपके सम्मुख रखना है और कैसे ये गतिविधियां देश, आम जनता तथा विकास के लिए घातक सिद्ध होती है, यह बताना है। यदि आपको हमारा यह लेस्क पसंद आया हो तो हमे जरूर बताये।

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