मालदीव का ‘इंडिया आउट’ कैंपेन क्या है?

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India Out Campaign

दोस्तों आजकल भारत के समुद्री पड़ोसी देश मालदीव में ‘इंडिया आउट’ नाम का एक भारत विरोधी कैंपेन ट्रेंड पर है। मालदीव की सोशल मीडिया और कुछ भारत विरोधी विचार धाराओं वाले लोगों के द्वारा इस ‘इंडिया आउट’ कैंपेन को हवा दी जा रही है। मालदीव एक चारो तरफ से समुद्र से घिरा छोटे-छोटे समुद्री द्वीपों का समूह देश है, जो अपनी रक्षा सम्बन्धी जरूरतों के लिए भी भारत पर निर्भर करता है। इस तरह के आपसी मधुर संबंधों के बावजूद भी वहां पर भारत विरोधी कैंपेन क्यों चल रहे हैं? क्यों वहां के लोग भारत की मालदीव में उपस्थिति का विरोध कर रहे हैं, जबकि मालदीव की सरकार भी ‘इंडिया आउट’ कैंपेन को सत्ता विरोधी तत्वों की राष्ट्र विरोधी हरकत बता रही है। इन सभी प्रश्नो का उत्तर आपको हमारे आज के इस लेख में मिलने वाला है। तो बने रहिये हमारे इस लेख के साथ जिसका शीर्षक है, मालदीव का ‘इंडिया आउट’ कैंपेन क्या है?

इंडिया आउटकैंपेन

  • मालदीव का ‘इंडिया आउट’ कैंपेन रातो-रात तैयार प्रोपेगेंडा नहीं है, बल्कि यह एक मालदीव में भारत विरोधी एवं चीन समर्थक ताकतों द्वारा लगभग पिछले 10 वर्षों से चलाया जा रहा अभियान है।
  • मालदीव में ‘इंडिया आउट’ कैंपेन के सूत्रधार हैं, पूर्व राष्ट्रपति और प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव के नेता अब्दुल्ला यामीन। यही वो शख्स है जो पिछले 10 वर्षों से मालदीव में चीन की गतिविधियों का समर्थक रहा है और भारत विरोधी नीति का पक्षधर रहा है।
  • अब्दुल्ला यामीन ने और उनकी प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) पार्टी के लोगों ने मालदीव की जनता को भारत के विरोध में गलत सूचनायें तथा जानकारियां प्रचारित की हैं , जिसका यह परिणाम है कि वहां के कुछ लोग भारत विरोधी टीशर्ट पहनकर ‘इंडिया आउट’ कैंपेन का समर्थन कर रहे हैं।
  • मालदीव की सरकार भी विभिन्न समाचार पत्रों तथा दूतावास की मदद से ‘इंडिया आउट’ कैंपेन का खंडन कर चुकी है तथा इसे सत्ता विरोधी दल का सरकार विरोधी कैम्पेन बता कर दुःख प्रकट कर रही है।
  • ‘इंडिया आउट’ कैंपेन का मकसद सोशल मीडिया पर इसका हव्वा बनाकर इसे मालदीव तथा देश -दुनिया के सामने अधिक से अधिक प्रचारित करना है।

जानिएमालदीव के लोगइंडिया आउटकैंपेन क्यों चला रहे हैं ?

दोस्तों मालदीव में भारत विरोधी गतिविधियों का इतिहास एक दशक पुराना है, और यह वर्तमान में सत्ता के विपक्ष की पार्टी प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव का राजनीतिक मुद्दा भी है। साल 2013 से 2018 तक प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव सत्ता में रही , तात्कालिक राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का चीन के प्रति झुकाव और भारत का विरोध जग-जाहिर है। चलिए उन वजहों को आपके सामने रखते हैं जिनके कारण काफी हद तक अब्दुल्ला यामीन और मालदीव का भारत के प्रति अलगाव बढ़ा है।

  • राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा हेलीकॉप्टर जरूरतों का दुष्प्रचार

भारत सरकार द्वारा साल 2010 और 2015 में समुद्र खोज और बचाव कार्यों, समुद्री मौसम निगरानी और सैनिक कार्यों के लिए मालदीव को दो उन्नत हल्के ध्रुव हेलीकॉप्टर दिए गए थे। चूँकि मालदीव अपनी रक्षा सम्बन्धी जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर है, इन हेलिकॉप्टर्स का उपयोग रक्षा प्रशिक्षण, बचाव और चिकित्सा सम्बन्धी जरूरतों हेतु एयरलिफ्ट करने में किया जाता था।

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और उनकी पार्टी प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव ने सत्ता में आते ही यह प्रचारित करना प्रारम्भ कर दिया कि भारत ने मालदीव को यह ध्रुव हेलीकॉप्टर उपहार में दिए हैं, अतः वह मालदीव को इनका उपयोग स्वतंत्र रूप से यहाँ की जरूरतों के लिए करने दे। उन्होंने भारत से इन हेलिकॉप्टर्स को वापस ले जाने और मालदीव से भारतीय सैनिक हटाने की बात कही। जबकि वास्तविकता यह थी, कि मालदीव एवं भारत के बीच एक द्विपक्षीय सैन्य समझौते के अनुसार यह हेलीकॉप्टर मालदीव के अड्डू एटोल और हनीमाधू में तैनात थे। भारत द्वारा इन्हे वापस लेने से इंकार कर दिया गया, तब राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने भारत-मालदीव द्विपक्षीय समझौते को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया था। अतः  ‘इंडिया आउट’ अभियान के पीछे मुख्य कारणों में से एक एएलएफ हेलिकॉप्टरों के आसपास के विवाद को भी माना जाता है।

  • घरेलू राजनीतिक शिकायतें

‘इंडिया आउट’ अभियान के प्रमुख सदस्यों द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट में कई शिकायतों के बीच, एक बारबार दर्ज की गयी शिकायत वर्तमान मालदीव सरकार और भारत के बीच किए जा रहे समझौतों में पारदर्शिता की कमी है। “एक समझौता या व्यवस्था जो एक विकास भागीदार के साथ की जाती है, उसे संसद के साथ साझा किया जाना चाहिए और अनुमोदित किया जाना चाहिए। यह एक कानून है, वास्तव में यह संविधान का एक हिस्सा है। विपक्ष का आरोप है सरकार किसी भी दस्तावेज को साझा करने से इनकार करती है, और एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है बताकर विवरण देने से इंकार कर देती है।

मालदीव के हालातों पर नजर रखने वाले विश्लेषकों के अनुसार यह एक बहुत बड़ा शून्य है जो यहां चिंता और आलोचना से भरा है, जो मालदीव के विपक्ष और ‘इंडिया आउट’ अभियान की उत्पत्ति का कारण बना है। इसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आलोचना, भड़काऊ बयानबाजी और असत्यापित आरोपों की लहर का रूप ले लिया है।

  • मालदीव द्वारा भारतीय सैनिकों का विरोध

भारत और मालदीव आपस में द्विपक्षीय संबंधों द्वारा जुड़ें हैं, इसमें इनके भू-राजनीतिक हित और आर्थिक व्यवस्था शामिल है। भारत मालदीव को सैन्य सुरक्षा देता है और हिन्द महासागर पर अपनी स्थिति मजबूत करने हेतु मालदीव के तटों का समुद्री खोजी और मौसम गतिविधियों के लिए उपयोग करता है। इस बात को लेकर पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और उनकी पार्टी में असंतोष है उनका मानना है कि भारत उनकी ज़मीन का सैन्य कार्यवाही के लिए उपयोग कर रहा है। जबकि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा सत्ता में रहते हुए चीन की मालदीव में उपस्थिति के पक्ष में थे।

प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव से  पूर्व मंत्री ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘मैं भारतीय व्यंजनों, उत्पादों, दवाइयों को बेहद पसंद करता हूं लेकिन अपनी जमीन पर भारतीय सैनिकों को नहीं।’ अब ये लोग अपनी निजी पसंद को लोगों की पसंद बनाकर सोशल मीडिया पर इस कैंपेन को चला रहे हैं।

मालदीव का इतिहास

  • मालदीव हिंदमहासागर में स्थित एक द्वीपीय देश है, जो 26 प्रवाल द्वीपों से बना है। इसका फैलाव लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर में है तथा इसके अंतगर्त कुल 1,192 टापू हैं, जिसमें से 200 बस्ती है।
  • मालद्वीप की समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 5 मीटर है , यह विश्व में समुद्र तल से सबसे कम ऊंचाई पर स्थित देश है। माले मालद्वीप का सबसे बड़ा शहर और राजधानी है।
  • मालदीव का आधिकारिक धर्म सुन्नी इस्लाम है, और मालदीव संविधान के अनुसार, केवल मुसलमान ही देश के नागरिक हो सकते हैं। अन्य धर्मों का खुला अभ्यास कानून द्वारा दंडनीय है।
  • यहाँ की आधिकारिक भाषा धिवेही है तथा अंग्रेजी यहाँ पर दूसरे नंबर पर बोली जाने वाली भाषा है। मालदीव की मुद्रा मालदीव रुफिया है।
  • प्राप्त इतिहास के अनुसार सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के प्रसार के समय मालदीव में आया और 12 वीं शताब्दी AD तक मालदीव के लोगों का प्रमुख धर्म बौद्ध बना रहा।
  • प्राचीन मालदीव के लोग थेरावदा बौद्ध धर्म मानते थे, स्थानीय बौद्धधर्मी के कई पुरातात्त्विक अवशेष जो अब माले संग्रहालय में हैं। आगे चलकर ये तमिल सम्राट, राजा राजा चोला 1 के राज्य का हिस्सा रहा था।
  • वर्ष 1153 के आसपास मालदीव का इस्लामीकरण हो गया और यहाँ पर राजा का स्थान सुल्तान ने ले लिया था। सुल्तानों के द्वारा साल 1558 तक मालदीव में शासन किया गया।
  • 1600 के दशक के मध्य में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने मालदीव में अपना व्यापार केंद्र बनाया, साल 1796 में अंग्रेजों ने  डचों को बाहर कर दिया और मालदीव को एक ब्रिटिश रक्षक का हिस्सा बना दिया था।
  • साल 1887 में एक संधि के बाद ब्रिटिश सरकार को मालदीव के राजनयिक और विदेशी मामलों को चलाने का एकमात्र अधिकार दिया गया।
  • सीलोन (श्रीलंका) के ब्रिटिश गवर्नर ने मालदीव के आधिकारिक प्रभारी के रूप में भी काम किया। यह रक्षात्मक स्थिति 1953 तक चली थी।
  • मालदीव को ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति 26 जुलाई 1965 को प्राप्त हुई थी। इसका वर्तमान संविधान 7 अगस्त 2008 को लागू किया गया था।
  • 2004 हिंद महासागर में भूकंप के कारण, हिंद महासागर में सूनामी आई जिसकी की वजह से सामाजिक आर्थिक बुनियादी ढांचे में गंभीर क्षति पहुंची, जिसने कई लोगों को बेघर बना दिया और पर्यावरण को अपरिवर्तनीय नुकसान पहुँचाया।
  • राष्ट्रपति नशीद ने मालदीवज जैसे नीचले देशों को जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, 17 अक्टूबर 2009 को दुनिया की पहली अन्तर्जलीय कैबिनेट बैठक आयोजित की थी।
  • नवम्बर 2008 में, राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया में नई जमीनें खरीदने के योजना की घोषणा की, ग्लोबल वार्मिंग और ज्यादा द्वीपों के जल स्तर बढ़ने से बाढ़ की संभावना के बारे में अपनी चिंता के कारण उन्होंने यह योजना बनाई थी।

सारसंक्षेप

विगत कुछ वर्षों के दौरान देखा जा रहा है, कि भारत के पड़ोसी देश भारत से किसी न किसी राजनैतिक कारणों से अलगाव जता रहे हैं। नेपाल, श्रीलंका और मालदीव इसका उदाहरण हैं। इन सभी देशों की परिस्थितियों की समीक्षा करने पर इसके पीछे कहीं न कहीं चीन की विदेश नीति का हाथ पाएंगे। चीन विस्तारवाद के अपने उद्देश्य में अन्य देशों को रंगीन सपने दिखाकर उनकी सम्पत्ति एवं स्वतंत्रता पर सेंध लगा रहा है और अन्य देशों की सत्ता पर भी राजनैतिक हस्तक्षेप कर रहा है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का चीन के प्रति आकर्षण और चीन का मालदीव पर अत्यधिक निवेश कहीं मालदीव की राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए खतरा न बन जाये, मालदीव के शुभचिंतकों को इस बात पर गौर करना चाहिए। मालदीव के एक सांसद अहमद शियाम ने पूर्व सीएम अखिलेश यादव के एक वीडियो पर ट्वीट करते हुए , भारत पर अल्पसंख्यकों को अपने देश में कानून और उनकी नागरिकता का सम्मान कराने में फेल रहने का आरोप लगाया है, इनके अनुसार मालदीव, भारत के हाथों अपनी आजादी नहीं खोना चाहता है, मालदीव के मुसलमान, भारतीय मुसलमानो की स्थिति से प्रभावित होते हैं। सांसद अहमद शियाम जैसी मानसिकता वाले लोगों से मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ, कि वे चीन की किस मुसलमान नीति से प्रभावित होकर उनकी गोद में बैठने के लिए तैयार बैठे हैं। जबकि चीन द्वारा अपने प्रान्त में वीगर मुसलमानों की स्थिति से सम्पूर्ण दुनिया वाकिफ़ हैं। अब यह मालदीव पर निर्भर करता है कि वह भारत जैसे सुख-दुःख के साथी के साथ रहता है या चीन जैसे साम्राज्यवादी देश के साथ रहता है। भारत और चीन की वैश्विक छवि दुनिया के सामने पहले से है। इस उम्मीद के साथ की मालदीव के लोग जल्द ही भारत विरोधी कैंपेन को छोड़कर “इंडिया फर्स्ट ” नीति पर फिर से लौटेंगे, हम यह लेख यही समाप्त करते हैं, जय हिन्द!

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