क्यों है भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख (Lipulekh) पर विवाद?

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Lipulekh

भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख विवाद एक बार फिर से सुर्ख़ियों में आ गया है। भारत द्वारा हाल ही में लिपुलेख क्षेत्र में सड़क निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने की घोषणा की गयी बदले में नेपाल द्वारा इसके खिलाफ तीव्र विरोध प्रकट किया गया और इस कार्य को तुरंत रोकने को कहा गया, जिस वजह से भारत-नेपाल का लिपुलेख विवाद एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है। भारत और नेपाल के मध्य उत्तराखण्ड राज्य में पड़ने वाला लिपुलेख क्षेत्र पिछले 25 -30 सालों से दोनों देशों के मधुर रिश्तों में खटास का कारण रहा है। क्यों है भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख (Lipulekh) पर विवाद?,  लिपुलेख विवाद क्या है?, कालापानी विवाद क्या है?, सिंगोली/सुगौली की संधि क्या है? ऐसे ही तमाम सवालों का जवाब हम आज के लेख में लेकर आये हैं। ये सवाल भारत और नेपाल के मध्य ज्वलंत मुद्दे हैं और सामान्य ज्ञान की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। तो चलिए आरम्भ करते हैं आज का लेख क्यों है भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख (Lipulekh) पर विवाद? 

भारत नेपाल और लिपुलेख विवाद को समझने से पहले हमें सिंगोली या सुगौली की संधि को समझना होगा। क्योकि सिंगोली की संधि के आधार पर ही नेपाल की सीमाओं का भौगोलिक निर्धारण किया गया था। तो चलिए पहले जानते है, सिंगोली की संधि क्या है? 

सिंगोली/सुगौली की संधि क्या है? | What is the Treaty of Singoli/Sugauli?

भारत और नेपाल के बीच विवाद का केंद्र रहा लिपुलेख आखिर क्यों इतना महत्वपूर्ण है दोनों देशों के लिए, जिसके लिए दोनों देश अपने हजारों साल पुराने सांस्कृतिक रिश्तों की परवाह भी नहीं कर रहे हैं। इस विवाद की जड़ को समझने के लिए हमें लगभग 2 सौ साल पीछे जाना पड़ेगा। उस समय भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था और नेपाल एक स्वतंत्र गोरखा राज्य था। भारत में मुगलों की कमजोर पड़ती स्थिति का लाभ उठाकर गोरखा राजा ने पश्चिम में उत्तराखण्ड(गढ़वाल और कुमाँयू) तथा पूर्व में सिक्किम तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। उस समय नेपाल की सीमा सतलज नदी(पश्चिमी सीमा, वर्तमान-हिमाचल प्रदेश) से तिस्ता नदी(पूर्वी सीमा , वर्तमान –सिक्किम) तक बढ़ गयी थी।

तब ब्रिटिश हुकूमत द्वारा नेपाल के शक्ति संतुलन हेतु एक युद्ध लड़ा गया , जिसे आंग्ला-नेपाल युद्ध कहा जाता है। यह युद्ध 1814-16 ईस्वी तक लड़ा गया। इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत होती है और पराजित नेपाल के साथ एक संधि होती है जिसे सिंगोली या सुगौली की संधि कहा जाता है। सुगौली बिहार के चम्पारण जिले में नेपाल की सीमा से लगा हुआ एक क़स्बा है जहाँ पर इस संधि के नियम और शर्ते तय हुई थी, इसी कारण से इस संधि को सुगौली की संधि नाम से जाना गया।  उस समय अंग्रेजों ने उत्तराखण्ड राज्य को नेपाल की दासता से मुक्त करते हुए , नेपाल के गोरखा राजा को मूल स्थान नेपाल तक सीमित कर दिया था।

अंग्रेजी हुकूमत ने नेपाल को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में छोड़ते हुए, सिंगोली/सुगौली की संधि के तहत उसकी पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं का निर्धारण किया था। इस संधि के अनुसार नेपाल की पूर्वी सीमा का अंतिम बिंदु मेची नदी(सिक्किम –नेपाल) तथा पश्चिमी सीमा का अंतिम बिंदु काली नदी/महाकाली नदी /शारदा नदी (उत्तराखण्ड –नेपाल) निर्धारित किया गया। चूँकि अंग्रेजों ने जब भारत को जब आजाद किया तब भी यही सीमांकन बना हुआ था। जिसके तहत वर्तमान भारत और नेपाल की सीमाओं को अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में दोनों राष्ट्रों द्वारा स्वीकार कर लिया गया था। यहाँ तक स्थिति बिलकुल सही थी, नेपाल द्वारा इन शर्तों को निभाया भी जा रहा था , किंतु इस संधि में एक चूक रह गयी , अंग्रेजों द्वारा नेपाल की पश्चिमी सीमा निर्धारण के तहत कालीनदी को दोनों देशों की सीमा का आधार बनाया था , वही इस विवाद का कारण बन गयी। आइये जानते हैं, भारत नेपाल के बीच लिपुलेख विवाद का क्या कारण है और कैसे कालीनदी इनके बीच  विवाद का कारण बन गयी।

भारतनेपाल और लिपुलेख विवाद (Indo-Nepal and Lipulekh dispute)

भारत एक लोकतान्त्रिक देश तथा नेपाल एक राजतांत्रिक देश के रूप में एक दूसरे के साथ सांस्कृतिक एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को निभा रहे थे। लेकिन समय के साथ -साथ नेपाल में राजतंत्र का अंत होकर प्रजातंत्र स्थापित होता है।नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली बनते हैं और वो भारत के साथ अपने पहले से मजबूत सांस्कृतिक रिश्तों को दरकिनार करते हुए चीन के साथ आर्थिक रिश्तों की मजबूती को तबज्जो देते हैं। यही से नेपाल अपने पश्चिमी सीमा पर काली नदी के सीमांकन को लेकर ज्यादा उग्र हुआ है।

अब हम मुख्य मुद्दा लिपुलेख विवाद को लेकर बात करते हैं। आप सोच रहे होंगे भारत नेपाल और काली नदी के बीच में ये लिपुलेख विवाद कहाँ से आ गया, आपकी इसी शंका का समाधान हम आगे करने वाले हैं। दरअसल भारत नेपाल सीमा पर बहने वाली काली नदी का उदभव स्थान भारत नेपाल सीमा पर दो बिंदुओं से है, ये दोनों बिंदुओं का जल मिलकर काली नदी का रूप लेता है और भारत -नेपाल के बीच सीमा बनाते हुए आगे बढ़ता है। काली नदी के उद्गम के पूर्वी बिंदु  को कालापानी तथा पश्चिमी बिंदु को लिंपियाधुरा कहा जाता है। इन दोनों बिंदुओं के बीच का स्थान एक घाटी क्षेत्र है जिसका आकार लगभग 338 वर्ग किलोमीटर है। प्रसिद्ध लिपुलेख दर्रा भी इसी क्षेत्र में स्थित है, जो कैलाश मानसरोवर यात्रा और भारत-तिब्बत या भारत-चीन के बीच व्यापार का एक मुख्य मार्ग भी है।

भारत काली नदी का उद्गम बिंदु कालापानी मानकर लिपुलेख सहित लिंपियाधुरा को अपना अभिन्न अंग और कालापानी बिंदु को अंतर्राष्ट्रीय सीमांकन का आधार मानता है। नेपाल काली नदी का उद्गम स्थान लिंपियाधुरा बिंदु को मानकर लिपुलेख को अपना क्षेत्र और लिम्पियाधुरा को अंतर्राष्ट्रीय सीमांकन मानता है। बस यही क्षेत्र दोनों के बीच टकराव का कारण बना है, भारत जब भी कोई गतिविधी यहाँ पर करता है नेपाल उसका विरोध जताता है। लिपुलेख विवाद को कालीनदी के कारण कालीनदी विवाद के नाम से भी जाना जाता है।

आइये जानते हैं भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है लिपुलेख? | Why is Lipulekh important for India?

भारत किसी भी सूरत पर लिपुलेख क्षेत्र को हाथ से जाने नहीं देना चाहता है, इसका कारण है लिपुलेख की भौगोलिक स्थिति, दरअसल लिपुलेख भारत-नेपाल-चीन के ट्राई जंक्शन बॉर्डर पर स्थित है। लिपुलेख दर्रा एक हिमालयी पहाड़ी व्यापारिक रास्ता है, जहाँ से चीन कभी भी भारत की सीमा पर घुसपैठ कर सकता है। भारत के लिए यह क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है।

भारत यहाँ से चीन की हरकतों पर आसानी से नजर रखता है तथा भारतीय क्षेत्र में चीन के प्रवेश पर नियंत्रण रखता है। इसी के साथ यह मार्ग हिन्दू धार्मिक यात्रा कैलाश मानसरोवर के लिए भी उपयोग किया जाता है। लिपुलेख दर्रे से भारत -तिब्बत और भारत -चीन व्यापार भी होता है। इसी वजह से भारत की इस क्षेत्र में मजबूत स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है।

क्या नेपाल की चीन से नजदीकियों का परिणाम है लिपुलेख विवाद? | Is the Lipulekh dispute a result of Nepal’s proximity to China?

वास्तव में भारत-नेपाल और लिपुलेख विवाद कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि ये चीन की एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। एशिया में केवल भारत ही है जो चीन की शक्ति को संतुलित करने का माद्दा रखता है और चीन इस बात से भलीभांति परिचित है। वह जान-बूझकर भारत को सीमा विवादों में उलझाकर रखना चाहता है और खुद को एक शांतिप्रिय देश के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है। चीन ने पाकिस्तान को सह देकर भारत पाकिस्तान के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर काफी उछाला है, इसके अतिरिक्त वह स्वयं भी लद्दाख और अरुणांचल प्रदेश में भारत के भाग पर अवैध हक़ जताता रहा है। अब उसने नेपाल को उकसाकर भारत के साथ उसके सीमा विवाद को जान-बूझकर हवा दी है। नेपाल कभी भी अकेले इतना साहस नहीं कर सकता है, भारत जैसे शांतिप्रिय पड़ोसी को सीमा विवाद में घेरना नेपाल की राजनीति कभी भी नहीं रही, किन्तु नेपाल के कुछ राजनेता अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करके दक्षिण एशिया में चीन की गलत विस्तारवाद की नीति का नेपाल को शिकार बना रहे हैं। चीन आर्थिक मदद का लालच देकर नेपाल को निगलना चाहता है, चीन तिब्बत का किस्सा दोहराने की फ़िराक में है जिससे वह भारत को घेर सकता है। नेपाल भारत और चीन के बीच में एक बफर देश का काम करता है और चीन इसी स्थिति का फायदा उठाना चाहता है।

चीन कभी भी नहीं चाहता है की भारत उसके साथ बराबरी का अंतर्राष्ट्रीय मंच साझा करे। इसीलिए वो भारत को बदनाम करने के लिए कूटनीति का सहारा ले रहा है। वह दक्षिण एशिया में अशांति का कारण भारत को ठहराना चाहता है , जबकि सभी जानते हैं चीन की विस्तारवादी नीति पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। चीन भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को कमजोर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में हमेशा उसकी स्थायी सदस्यता के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल करता आया है। चीन उस समय को भूल गया जब संयुक्त राष्ट्र संघ चीन को एक देश होने की मान्यता भी नहीं दे रहा था, तब भारत ने आगे आकर चीन को एक देश की मान्यता देने की वकालत की थी।

चलतेचलते

नेपाल को अपनी भौगोलिक स्थिति को समझते हुए अपनी मानवता और विश्व के प्रति जिम्मेदारी को समझना चाहिए। उसे भारत के साथ सीमा और धार्मिक विषयों पर नहीं उलझना चाहिए क्योकि एशिया में शक्ति का असंतुलन कहीं तीसरे विश्व युद्ध का कारण न बन जाये। भारत और नेपाल एक ही धार्मिक संस्कृति को साझा करते हैं। मैं इस लेख के माध्यम से नेपाल की नीतियों में बदलाव की आशा करता हूँ, साथ में मैं यह भी उम्मीद करता हूँ की मेरे द्वारा लिपुलेख विवाद और बहुत से प्रश्नों के उद्देश्यपूर्ण उत्तर आपके ज्ञान में बढ़ोतरी करेंगे। यदि आपको यह जानकारी पसंद आयी हो तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ भी अवश्य शेयर करें। जय हिन्द !

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