13th ASEM Summit: बहुपक्षवाद पर हुआ मंथन

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13th ASEM summit यानी कि Asia Europe Meeting summit, जिसका हाल ही में आयोजन हुआ था, यह कई कारणों से काफी चर्चा में रहा है। साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से भी यह बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इससे परीक्षाओं में तरह-तरह के सवाल पूछे जा सकते हैं। इसकी महत्ता को देखते हुए हम आपको इस लेख में 13वें एएसईएम शिखर सम्मेलन के बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं।

13th ASEM summit highlights इस लेख में आपको पढ़ने को मिलेंगे, लेकिन उससे पहले आपका यह जान लेना बहुत ही जरूरी है कि आखिर यह ASEM है क्या। तो चलिए, सबसे पहले हम शुरुआत करते हैं एएसईएम के परिचय से।

क्या है ASEM?

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एशिया और यूरोप ये दोनों ही महाद्वीप इस दुनिया में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और ये दोनों महाद्वीप एक-दूसरे के पड़ोसी भी हैं। दोनों महाद्वीपों में हमेशा राजनीति से लेकर आर्थिक एवं अन्य कई क्षेत्रों में व्यापक गतिविधियां होती रहती हैं। वर्तमान परिस्थितियों में जब पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज में तब्दील होती जा रही है, तो ऐसे में एशियाई और यूरोपीय देशों के बीच निकटता को बढ़ावा देना कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
  • इसलिए एएसईएम को एक एशियाई यूरोपीय राजनीतिक संवाद मंच के रूप में विकसित किया गया है, जहां पर कि एशियाई और यूरोपीय देश मिलकर शिखर सम्मेलन में भाग लेते हैं और यहां वे न केवल अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाने, बल्कि आपसी सहयोग को कई तरीके से बढ़ाने के लिए भी काम करते हैं।
  • थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में पहली बार ASEM शिखर सम्मेलन की शुरुआत 1 मार्च, 1996 को हुई थी। इसके बाद से इसके आयोजन की परंपरा शुरू हो गई।
  • इसकी स्थापना में जापान, दक्षिण कोरिया एवं चीन के अलावा यूरोपीय संघ, यूरोपीय आयोग के 15 देशों एवं आसियान के भी 7 देशों का विशेष योगदान रहा है।

कौन हैं ASEM के सदस्य?

  • ASEM के सदस्य देशों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। वर्ष 2008 में यूरोपीय संघ के सदस्य देश ASEM में शामिल हुए थे। इसके अलावा भारत, मंगोलिया और पाकिस्तान भी इसमें शामिल हो गए थे। आसियान देशों का भी इसमें प्रवेश हुआ था।
  • वर्ष 2010 में इसमें रुस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हुए थे।
  • इसके बाद वर्ष 2012 में बांग्लादेश भी इसमें शामिल हो गया। इसके अलावा स्विट्जरलैंड और नॉर्वे भी इसमें शामिल हो गए।
  • क्रोएशिया और कजाकिस्तान वर्ष 2000 में ASEM का हिस्सा बने।
  • इसके बाद इसी साल यानी कि 2021 में तुर्की ASEM का सदस्य बना है और यह इसका सबसे नया सदस्य है।

क्या है ASEM Summit?

  • ASEM Summit जो कि एएसईएम शिखर सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है, इसका आयोजन हर 2 वर्ष पर किया जाता है। एशियाई एवं यूरोपीय देशों के बीच इस सम्मेलन का आयोजन होता है।
  • ASEM शिखर सम्मेलन में न केवल राजनीति से जुड़े विषयों पर चर्चा होती है, बल्कि अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दों पर भी इसमें गहनता से विचार-विमर्श किया जाता है।
  • इसके अलावा सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी पारस्परिक हितों एवं सहयोग को बढ़ाने वाले मुद्दों पर इसमें चर्चा होती है।
  • इन सबके अलावा ASEM शिखर सम्मेलन में वित्तीय मामलों के बारे में चर्चा होती है। साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी पारस्परिक हितों को बढ़ाने के बारे में सदस्य विचार-विमर्श करते हैं।
  • ASEM शिखर सम्मेलन में एशिया एवं यूरोप के बीच संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास तो किया ही जाता है, साथ में पारस्परिक सहयोग को और प्रोत्साहित करने के लिए प्राथमिकताओं का निर्धारण होता है। इसे ASEM summit की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भी कहा जा सकता है।

13वां ASEM शिखर सम्मेलन एक नजर में | 13th ASEM Summit Highlights

कोरोना महामारी का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा है। इसकी वजह से वर्चुअल मोड में ही ज्यादातर कार्यक्रमों एवं सम्मेलनों का आयोजन हो रहा है। कोरोना संकट को देखते हुए 13वें ASEM शिखर सम्मेलन का आयोजन भी वर्चुअल मोड में ही किया गया। इसका आयोजन बीते 25 और 26 नवंबर को हुआ है। इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी कंबोडिया ने की। शिखर सम्मेलन का शीर्षक “पारस्परिक विकास के लिए बहुपक्षवाद को मजबूत करना” रखा गया था। इसमें सभी देशों के प्रतिनिधिमंडल ने हिस्सा लिया। भारत की ओर से जो प्रतिनिधिमंडल इसमें शामिल हुआ, उसका नेतृत्व देश के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू कर रहे थे। एक नजर डालते हैं 13th ASEM summit highlights पर:-

  • 13वें ASEM शिखर सम्मेलन में इस बात पर गहनता से विचार किया गया कि बहुपक्षवाद यूरोपीय एवं एशियाई देशों के विकास के लिए कितना महत्वपूर्ण है। साथ ही सम्मेलन में बहुपक्षवाद के फायदे एवं नुकसान के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई। सभी देशों ने बहुपक्षवाद का समर्थन किया और कोरोना महामारी के फलस्वरूप पैदा हुए वैश्विक संकट के दौरान सभी पक्षों को लेकर पारस्परिक सहयोग बढ़ाए जाने की उन्होंने वकालत भी की। शिखर सम्मेलन में बहुपक्षवाद को बेहद सुदृढ़ बनाने का सभी सदस्य देशों ने संकल्प लिया।
  • कोविड महामारी की वजह से जिस तरह से यूरोपीय एवं एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है, उसके बारे में 13वें एएसईएम शिखर सम्मेलन में विस्तार से चर्चा हुई। सदस्य देशों ने कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुईं सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं के बारे में पूरी गंभीरता से चर्चा की। साथ ही उन्होंने सामाजिक एवं आर्थिक सुधारों को गति देने का भी संकल्प लिया।
  • शिखर सम्मेलन के दौरान इस बात को लेकर विचार-विमर्श हुआ कि किस तरीके से एशिया और यूरोप एक-दूसरे को सहयोग प्रदान करके कोविड महामारी के बाद एक बार फिर से अपने यहां सामाजिक और आर्थिक ढांचे को मजबूती से खड़ा कर सकते हैं। इस दौरान उन सभी विकल्पों पर चर्चा हुई, जो कोरोना महामारी के बाद एशियाई एवं यूरोपीय मुल्कों को फिर से संभालने और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने में मददगार साबित हो सकते हैं।
  • शिखर सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में यूरोपीय संघ के प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेये ने कहा कि साझा विकास के लिए बहुपक्षवाद को मजबूत करना बहुत ही जरूरी है। साथ ही राजनीतिक विभाजन से आगे जाकर पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

13th ASEM Summit में भारत

भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू जिन्होंने कि 13वें ASEM शिखर सम्मेलन के दूसरे सत्र को गत 25 नवंबर को संबोधित किया, उन्होंने जो बातें कहीं, उनका विवरण निम्नवत है:-

  • भारत के उपराष्ट्रपति ने अपने भाषण में जलवायु न्याय के महत्व को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर यूरोपीय संघ और भारत के विचार एवं रुचि अलग-अलग नहीं हैं। दोनों ही इसे लेकर बेहद गंभीर हैं और दोनों की तरफ से इस दिशा में प्रभावशाली कदम उठाए जा रहे हैं।
  • नायडू ने यह भी कहा कि जलवायु न्याय के जरिए ही जलवायु में हो रहे बदलाव से लड़ा जा सकता है। इसके लिए यह बहुत ही जरूरी है कि सभी देश एकसाथ आएं और मिलकर इस दिशा में प्रयास करें।

चलते-चलते

13th ASEM Summit Highlights का यह एक महत्वपूर्ण पहलू है कि भारत की ओर से उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कोविड-19 के कारण पैदा हुईं समस्याओं पर प्रकाश डाला और इन्हें दूर करने के लिए उन्होंने बहुपक्षीय एवं सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता जताई। इसे प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने सभी देशों से आह्वान भी किया।

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