Pallava Dynasty of Medieval India – History, Rulers and Decline

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Pallava Dynasty of Medieval India - History, Rulers and Decline


मध्यकालीन भारत का इतिहास पल्लव वंश के बिना पूरा नहीं हो सकता। तमिल में पल्लव का अर्थ होता है डाकू। पेन्नार नदी से लेकर कावेरी नदी तक फैले Pallava Dynasty of Medieval India की स्थापना सिंह विष्णु ने की थी। नाग वंश के शासकों को पराजित करने के बाद काच्ची पर अधिकार जमाकर इन्होंने काच्ची को ही अपनी राजधानी बनाया था।

History of Pallava Dynasty

शिवस्कंद को पल्लवों का सबसे महान शासक माना जाता है। पहला पल्लव शासक विष्णुगोप था और अपराजितवर्मन Pallava Dynasty in India का अंतिम शासक था। चोल शासक जो कि इसका दोस्त था, उसी ने इसकी हत्या कर दी थी। तमिल महाभारत के लेखक पेरूनदेवनार, किरातार्जुनीय के रचयिता भारवि और काव्यादर्श एवं दशकुमाररचित के लेखक दण्डी का अस्तित्व हम इसी दौरान पाते हैं।

Rulers of Pallava Dynasty

सिंह विष्णु

Pallava Dynstay Rulers में सबसे पहले सिंह विष्णु हुआ, जिसने 575 ई0 में पल्लव वंश की स्थापना के बाद 600 ई0 तक शासन किया। वैष्णव मत के अनुयायी सिंह विष्णु ने चोल, सिंघल, कलभ्र और पांड्य शासकों को परास्त कर चोलमंडलम पर अपना अधिपत्य जमा लिया। कला को प्रोत्साहित करने वाले सिंह विष्णु के शासनकाल में ही मामल्लपुरम के वाराह मंदिर का निर्माण हुआ था।

महेंद्रवर्मन प्रथम

Pallava Dynasty in Indian History की बात हो तो महेंद्रवर्मन प्रथम का नाम जरूर लिया जाता है, क्योंकि 600 ई0 से 630 तक जैन से शैव मतानुयायी बने इस शासक ने पुलिस व न्याय विभाग में फैले भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया। पल्लव अभिलेखों के अनुसार रुद्राचार्य से संगीत की शिक्षा हासिल करने वाले महेंद्रवर्मन प्रथम ने गुफाओं में नटराज के चित्र स्वयं उकेरे थे। इसे हास्य ग्रंथ मत्तविलासप्रहसन की रचना करने का श्रेय जाता है। इस ग्रंथ में बौद्धों का मजाक उड़या गया था। चालुक्यों के साथ पल्लवों के संघर्ष की शुरुआत महेंद्रवर्मन प्रथम के शासनकाल में ही हुई थी।

नरसिंहवर्मन प्रथम

Pallava dynasty history 630 ई0 से 668 ई0 तक शासन करने वाले नरसिंहवर्मन प्रथम के बिना पूरी नहीं हो सकती। इसे महामल्ल भी कहते हैं, क्योंकि यह बहुत अच्छा पहलवान था। चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग का भारत आगमन इसी के वक्त हुआ था, जिसने इसे महाराज भी कहा था। पल्लव वंश के सबसे प्रतापी शासक के रूप में जाने जानेवाले नरसिंहवर्मन प्रथम ने नरेश पुलकेशिन द्वितीय को अपने सेनापति मानववर्मा और शिरुतोंड के जरिये हराकर उसकी राजधानी वातापी को अपने कब्जे में ले लिया था। साथ ही इस युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय की मौत भी हो गई थी। इसके बाद ही नरसिंहवर्मन प्रथम को वातापीकोंड की उपाधि मिली थी और वातापी में मल्लिकार्जुन मंदिर में इसके द्वारा अपने विजय स्तंभ की स्थापना भी की गई थी। अपने श्रीलंका अभियान के बाद काशाक्कुडि व महावंश के मुताबिक इसने मानववर्मन, जो कि श्रीलंका का अपदस्थ शासक था, उसे दोबारा सिंघल की गद्दी पर बैठा दिया था।

महेंद्रवर्मन द्वितीय एवं परमेश्वरवर्मन प्रथम

महेंद्रवर्मन द्वितीय नरसिंहवर्मन प्रथम का बेटा था, जिसने 668 ई0 से 670 ई0 तक और इसके बाद नरसिंहवर्मन प्रथम के पोते परमेश्वरवर्मन प्रथम ने 670 ई0 से 695 ई0 तक राज किया। पल्लवों और चालुक्यों का संघर्ष इस दौरान भी जारी रहा। चालुक्य अभिलेखों में लिखा है कि चालुक्य नरेश विक्रमादित्य प्रथम ने कांची पर कब्जा किया था, जबकि पल्लव अभिलेख बताते हैं कि पेरूवलनल्लुर के रण में विक्रमादित्य प्रथम को परमेश्वरवर्मन प्रथम ने हरा दिया था। इस तरह से यह कहा जा सकता है कि इस दौरान किसी को निर्णायक विजय हासिल नहीं हो पाई थी।

नरसिंहवर्मन द्वितीय एवं परमेश्वरवर्मन द्वितीय

Pallava Dynasty in India के वक्त नरसिंहवर्मन द्वितीय के 695 ई0 से 722 ई0 तक के शासनकाल में चालुक्यों व पल्लवों के बीच संघर्ष के रूक जाने से शांति बनी रही। नगापत्तनम में इसने चीनी बौद्ध यात्रियों के लिए ‘चीनी पैगोड़ा’ नामक विहार बनवाया था। कांची के कैलाश मंदिर और महाबलीपुरम के शोर मंदिर के निर्माण का श्रेय नरसिंहवर्मन द्वितीय को ही जाता है। पल्लव अभिलेखों के अनुसार शिव चूड़ामणि, वाद्यविद्याधर, राजसिंह, शंकर भक्त और आगय प्रिय जैसी उपाधियों से यह विभूषित हुआ था। इसके बेटे परमेश्वरवर्मन द्वितीय ने 722 ई0 से 730 ई0 तक शासन किया। परमेश्वरवर्मन द्वितीय की अचानक मृत्यु के बाद पल्लव वंश में उत्तराधिकारी का संकट पैदा हो गया था।

नंदीवर्मन द्वितीय

Rulers of Pallava dynasty की बात करें तो नंदीवर्मन द्वितीय, जिसने 730 ई0 में राजगद्दी संभाली थी, उसी के काल में चालुक्यों के साथ पल्लवों का संघर्ष भीषण हो गया। राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने 740 ई0 में नंदीवर्मन द्वितीय को हराकर कांची पर अधिपत्य जरूर जमा लिया था, मगर बाद में पल्लवों ने न केवल दोबारा कांची को वापस लिया, बल्कि पांड्यों और राष्ट्रकूटों से युद्ध भी किया। विजय राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग को मिलने के फलस्वरूप कांची पर उसने अधिकार जरूर जमा लिया, मगर संधि के बाद नंदीवर्मन द्वितीय से दंतिदुर्ग ने अपनी बेटी रेवा का ब्याह कर दिया। कांची में बैकुंठ पेरुमल और मुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण नंदीवर्मन द्वितीय ने ही कराया था। वैष्णव संत तिरुमंगईम अलवार इसी के शासनकाल में हुए थे।

दंतिवर्मन

Pallava dynasty history के तहत पल्लव अभिलेखों से हम पाते हैं कि नंदीवर्मन द्वितीय के करीब 65 वर्षों तक शासन करने के बाद इसका बेटा दंतिवर्मन राजा बना था, जिसकी राजधानी कांची पर उसके पिता के शासनकाल में राष्ट्रकूटों से संबंध स्थापित होने के बावजूद निरूपम, गोविंद तृतीय और ध्रुव नामक राष्ट्रकूट राजाओं ने हमला कर दिया था। गोविंद तृतीय के लगभग 804 ई0 में आक्रमण के बाद दंतिवर्मन पराजित हो गया। उसके उत्तराधिकारियों नंदी व नृपतुंगवर्मन ने भी पांड्यों और चोल राजाओं से लोहा लिया। चोल शासक आदित्य प्रथम ने लगभग 855 ई0 में अंतिम पल्लव शासक अपराजितवर्मन को परास्त करके और कांची पर अपना अधिकार जमाकर Pallava Dynasty in India को समाप्त कर दिया।

Pallava Dynstay Rulers से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • पल्लव अभिलेखों से यह जानकारी मिलती है कि पल्लव स्थापत्य कला की दो महत्वपूर्ण शैलियां मंडप और रथ का पल्लव शासकों ने विकास किया था। महाबलीपुरम में आज भी इन शैलियों के मंडपों को देखा जा सकता है।
  • ठोस चट्टानों को काटकर मंदिर बनाने की कला की शुरुआत महेंद्रवर्मन प्रथम द्वार ही महाबलीपुरम में की गई थी। वाराह मंदिर भी इन्हीं में से एक है, जिसमें स्तंभों वाला एक बरामदा है और इन स्तंभों पर सिंह विराजमान हैं।
  • गंगावतरण को पल्लव कला में अलग तरीके से दिखाया गया है, क्योंकि इसमें गंगा अकेले नहीं, बल्कि पशुओं के साथ पृथ्वी पर उतरती हुई दिखी है।

निष्कर्ष

Pallava Dynasty of Medieval India इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि स्थापत्य कला के क्षेत्र में यह खास प्रगति का काल रहा, जिस दौरान न जाने कितने ही भव्य मंदिर अस्तित्व में आए। साहित्य के साथ संस्कृत का भी इस दौरान खूब उत्थान हुआ। तो बताएं, पल्लव वंश में आपको सबसे अच्छा शासक कौन लगता है?

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