Aurangzeb जिसका पूरा नाम अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर था‚ भारत पर शासन करने वाला वह छठा मुगल शासक था। आलमगीर या औरंगजेब का शाब्दिक अर्थ विश्व विजेता होता है। ये दोनों ही शाही नाम हैं‚ जिसे जनता द्वारा प्रदत्त माना जाता है। वर्ष 1659 में औरंगजेब ने अपनी ताजपोशी करवाई थी और 1707 तक मृत्युपर्यंत उसने राज किया।
इस लेख में आप जानेंगे
- औरंगजेब का लक्ष्य
- बना दक्कन का सूबेदार
- फारस के सफवियों से संघर्ष
- औरंगजेब का सत्ता के लिए संघर्ष
- Mughal Emperor के तौर पर औरंगजेब की ताजपोशी
- युद्ध‚ विद्रोह और दमन
- संघर्षों में यूं उलझा रहा Mughal Emperor Aurangzeb
- औरंगजेब की धार्मिक नीतियां
- Aurangzeb की death
औरंगजेब का लक्ष्य
- Aurangzeb का birth date 3 नवंबर‚ 1618 है। अकबर के बाद भारत पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला औरंगजेब दूसरा मुगल शासक बना। मुगल साम्राज्य का अधिकाधिक विस्तार करना उसका लक्ष्य था और अपने इस उद्देश्य में वह बहुत दूर तक कामयाब भी हुआ‚ क्योंकि दक्षिण भारत में भी उसने काफी हद तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था।
- Aurangzeb की death के बाद मुगल साम्राज्य सिमटने लगा था। इस्लामी कानून पर आधारित फ़तवा-ए-आलमगीरी को औरंगजेब ने अपने पूरे साम्राज्य पर लागू कर दिया था। साथ ही औरंगजेब वह पहला इस्लामी शासक भी था‚ जिसने गैर–मुस्लिमों पर शरियत लगाया था।
बना दक्कन का सूबेदार
- शहजादा औरंगजेब को Mughal Emperor शाहजहां ने 1634 में दक्कन के सूबेदार की जिम्मेवारी सौंपी थी। औरंगजेब किरकी चला गया और उसका नाम बदलकर उसने औरंगाबाद कर दिया। इधर दरबार के कामकाज की जिम्मेवारी शाहजहां ने अपने बेटे दारा शिकोह को सौंपना शुरू कर दिया। जब 1644 में जलने की वजह से औरंगजेब की बहन की मौत हो गई तो इसके तीन हफ्ते के बाद औरंगजेब के आने की वजह से शाहजहां नाराज हो गया और उसने दक्कन के सूबेदार का पद उससे छीन लिया।
- इस वजह से सात महीने तक औरंगजेब को दरबार में आने की अनुमति नहीं थी। बाद में गुजरात के सूबेदार की जिम्मेवारी मिलने पर कुशलता से अपने इस दायित्व को निभाने की वजह से औरंगजेब को उत्तरी अफगानिस्तान में स्थित बदख्शान और अफगान–उज्बेक में स्थित बाल्ख क्षेत्रों के भी सूबेदार की जिम्मेवारी इनाम स्वरूप मिल गई। यही नहीं‚ कुछ समय के बाद मुल्तान और सिंध का भी गर्वनर उसे बना दिया गया।
फारस के सफवियों से संघर्ष
Aurangzeb ने कंधार पर नियंत्रण पाने की चाहत में फारस के सफवियों से कई बार लोहा लिया‚ मगर हर बार उसे हार ही नसीब हुई। साथ ही अपने पिता शाहजहां की उपेक्षा का भी औरंगजेब शिकार हो गया था। दक्कन के सूबेदार की जिम्मेवारी एक बार फिर से औरंगजेब को 1652 में मिली और इस बार वह बीजापुर व गोलकोंडा को जीतने के बिल्कुल करीब पहुंच गया‚ लेकिन ऐन वक्त पर सेना को शाहजहां ने वापस बुला लिया।
औरंगजेब का सत्ता के लिए संघर्ष
औरंगजेब को मालूम था कि दारा शिकोह के कहने पर शाहजहां ने ऐसा किया है। अंदर–ही–अंदर वह गुस्से से उबल रहा था। फिर जब 1652 में गंभीर रूप से शाहजहां बीमार हुआ‚ तो दारा शिकोह‚ शाह भुजा व औरंगजेब के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष की शुरुआत हो गई। जहां खुद को बंगाल का राज्यपाल घोषित करने वाले शाह भुजा ने बर्मा के अरकन में अपने बचाव के लिए शरण ले लिया‚ वहीं गद्दारी का आरोप लगाते हुए दारा शिकोह को फांसी पर लटका दिय गया।
Mughal Emperor के तौर पर औरंगजेब की ताजपोशी
- NCERT की पाठ्यपुस्तक के मुताबिक शाहजहां को 1659 में बंदी बनाने के बाद औरंगजेब ने खुद की ताजपोशी करवा ली थी। ताजमहल में उसने शाहजहां को कैद कर लिया था। अकबर ने अपने शासनकाल में जितने कदम गैर–मुस्लिमों के कल्याण के लिए भी उठाये‚ औरंगजेब ने ठीक इसके उलट काम करना शुरू किया। जिस जाजिया कर का उन्मूलन अकबर ने कर दिया था‚ उसे फिर से औरंगजेब ने शुरू कर दिया।
- औरंगजेब के शासनकाल में Mughal Empire में कश्मीरी ब्राह्मणों को इस्लाम क़बूलने के लिए विवश किया गया। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर ने जब हस्तक्षेप किया‚ तो औरंगजेब ने उन्हें सूली पर लटका दिया। गुरु तेग बहादुर के बलिदान दिवस के तौर पर सिख समुदाय इसे आज भी मनाता है।
युद्ध‚ विद्रोह और दमन
- औरंगजेब के Mughal Empire की जिम्मेवारी संभालने के बाद अलग–अलग दिशाओं में युद्ध और विद्रोह की नौबत आने लगी। सिख पश्चिम में लगातार अपनी ताकत में इजाफा करते जा रहे थे। बीजापुर और गोलकुंडा पर औरंगजेब ने अंततः विजय जरूर हासिल कर ली थी‚ मगर छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में मराठा सेना के आगे उसकी एक नहीं चल रही थी।
- किसी तरह से शिवाजी को हिरासत में लेने में औरंगजेब कामयाब तो हुआ‚ लेकिन जब शिवाजी और संभाजी उसकी कैद से भाग निकले तो औरंगजेब की चिंता गहराने लगी। शिवाजी के हाथों औरंगजेब की हार भी हुई। शिवाजी की मृत्यु भी हो गई तो उसके बाद भी मराठा सेना ने औरंगजेब की नाक में दम करना जारी रखा।
- औरंगजेब हिंदुओं को इस्लाम धर्म कबूलने पर मजबूर रहा था और इस वजह से राजपूत उसके विरुद्ध हो गये थे। यही कारण था कि Aurangzeb की death जब 1707 में हुई तो इसके बाद राजपूतों ने विशाल विद्रोह शुरू कर दिया था।
संघर्षों में यूं उलझा रहा Mughal Emperor Aurangzeb
- Mughal Emperor औरंगजेब ने विस्तारवादी नीति अपनाई हुई थी। NCERT की किताब के मुताबिक उत्तर पूर्व में अहोमों को उसने 1663 में पराजित कर दिया था‚ मगर अहोमों ने 1680 में पूरी ताकत से एक बार फिर से विदाेह कर दिया था। यूसफजई एवं सिखों के खिलाफ भी औरंगजेब को जो पश्चिम में कामयाबी मिली थी‚ वह दरअसल आंशिक और अस्थाई थी।
- राजपूतों की आंतरिक राजनीति एवं उनके उत्तराधिकार के मामलों में औरंगजेब ने इतना अधिक हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था कि राजपूतों ने भी औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। औरंगजेब के खिलाफ जब राजकुमार अकबर ने विद्रोह किया था तो मराठों और दक्कन की सल्तनत का भी सहयोग उसे मिल गया था। मराठे छापामार पद्धति से युद्ध करते थे। ऐसे में मराठों के खिलाफ युद्ध की रणनीति औरंगजेब ने खुद तैयार की थी।
- Mughal Empire की जिम्मेवारी लेने के बाद उत्तर भारत में तो औरंगजेब बिल्कुल भी चैन से नहीं बैठ सका। कभी सिखों ने उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो कभी जाटों और सतनामियों ने उसकी नाक में दम कर दिया। उत्तर–पूर्व में अहोम भी हार मानने के लिए तैयार नहीं थे। यही हाल दक्षिण में भी होने लगा‚ जब मराठों के बार–बार विद्रोह का सामना औरंगजेब को दक्कन में करना पड़ा।
औरंगजेब की धार्मिक नीतियां
कुरान के आधार पर औरंगजेब अपना शासन चला रहा था और यह इस बात की पुष्टि करता है कि इस्लाम धर्म के महत्व को उसने स्वीकारा था। गाना–बजाना पर उसने रोक लगा दी थी। नौरोज के त्योहार के साथ कलमा खुदवाने और भांग की खेती को भी उसने प्रतिबंधित कर दिया था। दोबारा तीर्थ कर उसने लगाना शुरू कर दिया था। औरंगजेब ने जहां अपने शासनकाल के 11वें साल में झरोखा दर्शन को प्रतिबंधित कर दिया था‚ वहीं 12वें साल में तुलादान प्रथा को भी रोक दिया था।
Aurangzeb की death
अपने शासनकाल के अंतिम 25 वर्षों के दौरान औरंगजेब प्रायः अपनी राजधानी से दूर ही रहा था। लगभग 50 वर्षों तक शासन करने वाले औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च‚ 1707 को अहमदनगर में हो गई थी। उसे दौलताबाद में फ़कीर बुरुहानुद्दीन की क़ब्र के अहाते में दफनाया गया था।
चलते–चलते
Aurangzeb की नीतियां ही ऐसी थीं‚ जिनकी वजह से उसने बहुत से विरोधी पैदा कर लिये थे। इसी वजह से औरंगजेब की वजह से Mughal Empire के पतन की शुरुआत हो गई। उसकी मौत के बाद मुगल सल्तनत को सिमटने में ज्यादा देर नहीं लगी।