हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना

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14 जून 2021 को बेंगलुरु मे वन  विभाग ने एक नोटिस जारी करके हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना के तहत सिंगनायकनहल्ली झील निर्माण हेतु  लगभग 6,316 पेड़ों को काटने का प्रस्ताव दिया है। इस नोटिस के बाद स्थानीय पर्यावरण प्रेमियों में गुस्से का माहौल है तथा उन्होंने इस सम्बन्ध में अपनी आपत्ति भी दर्ज की है। हालाँकि वन विभाग द्वारा आपत्तियों और सुझाव के सम्बन्ध में 10 दिनों का समय दिया है, लेकिन प्राकृतिक प्रेमी बड़ी मात्रा में पेड़ों के कटान के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के समझौते और सुझाव के पक्ष में नहीं हैं। आइये हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना के विषय में सभी जरुरी बातें विस्तार से जानते हैं।

इस लेख मे हम जानेंगे –

  • हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना क्या है?
  • क्यों है मामला सुर्खियों मे?
  • देश में चर्चित अन्य नदी घाटी आंदोलन
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन
  • टिहरी डैम आंदोलन

हेब्बलनागवाड़ा घाटी परियोजना क्या है?

  • हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना का उद्देश्य सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से 210 एमएलडी सेकेंडरी ट्रीटेड पानी उठाना है और  बेंगलुरु शहरी, ग्रामीण और चिकबल्लापुर में 65 टैंकों को भरना है।
  • इसके अतिरिक्त हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना इस क्षेत्र मे 11 अन्य झीलों में पानी की आपूर्ति के लिए एक संरक्षित जलाशय के रूप में भी कार्य करेगी।
  • इस परियोजना का अनुमानित व्यय 948 करोड़ रूपये है। परियोजना का सेकेंडरी उद्देश्य  सूखे और घटते भूजल से प्रभावित क्षेत्रों में किसानों की मदद करना है।
  • यह परियोजना केंद्र सरकार के निर्धारित मानकों और डब्ल्यूएचओ द्वारा समर्थित मानदंडों के अनुसार, एसटीपी में पानी का उपचार किया जाता है और झीलों में छोड़ा गया है। नमूना परीक्षण और निगरानी नियमित रूप से की जाती है।
  • हेब्बल झील इस परियोजना का प्रारंभिक हिस्सा है। वर्तमान में ये  75 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है और इसे 143 हेक्टेयर तक विस्तारित करने की योजना है।
  • बगलुरु झील हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना से उपचारित जल प्राप्त करने वाली पहली झील थी।

क्यों है मामला सुर्खियों मे?

  • हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना को विस्तारित करने और सिंगनायकनहल्ली झील, येलहंका होबली बनाने की राह मेंआ रहे 6,316 पेड़ों के जंगल के कटान को लेकर विरोध उत्पन्न हो गया है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) का हवाला देते हुए पर्यावरण प्रेमी बताते है यह स्थान मोर, लोमड़ी , सांप, हिरन , तितलियों तथा बहुत सी जैव विविधताओं का निवास स्थान है।
  • इसके अतिरिक्त ये जंगल स्थानीय पशु चारको का चरागाह तथा वन विभाग के द्वारा लगाए गए पेड़ों -पौधों की भूमि भी है।
  • पर्यावरण प्रेमी संस्थान एवं स्थानीय लोगो का मानना है की परियोजना के लिए झील का कायाकल्प होना चाहिए लेकिन पर्यावरण को ताक में रखकर ऐसा किया जाना हमे स्वीकार्य नही है।
  • पर्यावरण संस्थाओं का कहना है की इस झील का विकास एवं कायाकल्प जंगलो को काटे बिना भी किया जा सकता है। उनका कहना है की इस प्रकार की परियोजनाएं काफी सोच-विचार के क्रियान्वित की जाती है।
  • वन विभाग द्वारा परियोजना के सम्बन्ध में आवश्यक सुझाव और आपत्ति का समय भी केवल 10 दिन ही दिया गया है जोकि नाकाफी है।  कोरोना लॉक डाउन के कारण अभी सभी क्षेत्र पूर्ण रूप से कार्यकारी नहीं है।अतः  इस समय सीमा को बढ़ाकर पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।

देश में चर्चित अन्य नदी घाटी आंदोलन

हमारे देश में हेब्बल-नागवाड़ा घाटी परियोजना पहली परियोजना नहीं है जिसका विरोध हो रहा है। इससे पहले भी कई ऐसी परियोजनायें रही है जिन्होंने जनता के विरोध का सामना किया है। आइये आपको ऐसे ही कुछ प्रमुख उदाहरणों से रूबरू कराते हैं।

नर्मदा बचाओ आंदोलन

  • नर्मदा बचाओ आंदोलन भारत में चल रहे पर्यावरण आंदोलनों की परिपक्वता का उदाहरण है। इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे मेघा पाटकर,अनिल पटेल,अरुणधती रॉय, बाबा आम्टे आदि हैं।
  • इसने पहली बार पर्यावरण तथा विकास के संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाया जिसमें न केवल विस्थापित लोगों बल्कि वैज्ञानिकों, गैर सरकारी संगठनों तथा आम जनता की भी भागीदारी रही।
  • नर्मदा घाटी परियोजना साल 1979 में अस्तित्व में आयी थी। किन्तु इसके जन्म के साथ ही इसके कारण होने वाले विस्थापन, पुनर्वास, पर्यावरण दोहन, वन्यजीव संरक्षण की समस्या सामने आने लगी। साल 1988 -89  में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने एक संगठन का रूप ले लिया था।
  • नर्मदा घाटी परियोजना के लिए विश्व बैंक ने 450 करोड़ डॉलर का लोन देने की घोषणा की थी। इस परियोजना के अनुसार नर्मदा नदी तथा उसकी 41 नदियों पर दो विशाल बांधों – गुजरात में सरदार सरोवर बांध तथा मध्य प्रदेश में नर्मदा सागर बांध, 28 मध्यम बांध तथा 3000 जल परियोजनाओं का निर्माण शामिल था।
  • इस परियोजना से मध्य प्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान के सूखा ग्रस्त क्षेत्रों की 2.27 करोड़ हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए जल , बिजली का निर्माण  पीने के लिए जल तथा क्षेत्र में बाढ़ को रोका जाना निश्चित किया गया था।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन नर्मदा घाटी परियोजना के विरोध में था। नर्मदा घाटी परियोजना के बनाये जाने से तीन राज्यों (गुजरात,महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश) की 37000 हेक्टेयर भूमि जलमग्न होने का अनुमान था जिसमें 13000 हेक्टेयर वन भूमि है। यह भी अनुमान है कि इससे 248 गांव के एक लाख से अधिक लोग विस्थापित होंगे। जिनमें 58 प्रतिशत लोग आदिवासी क्षेत्र के हैं।
  • साल 2017 में नर्मदा घाटी परियोजना के तहत बना सरदार सरोवर बांध राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया है। किन्तु विस्थापितों के पुर्नवास का आंदोलन अभी भी चल रहा है। मेघा पाटकर अभी भी इस मुद्दे पर संधर्ष कर रही हैं।

टिहरी डैम आंदोलन

  • टिहरी डैम परियोजना उत्तराखण्ड के टिहरी जिले मे बनायीं गयी है। इसकी ऊंचाई लगभग 260 मीटर है। यह एशिया का सबसे बड़ा तथा विश्व का पांचवे नंबर का बड़ा डैम है।
  • टिहरी डैम भागीरथी एवं भिलंगना नदी के संगम पर बना है। इसे रामतीर्थ सागर बांध के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान मे यह डैम बिजली, जल, मत्स्य पालन, जल से सम्बंधित साहसिक खेल आदि अनेक सुविधाएँ प्रदान कर रहा है।
  • टिहरी डैम के निरीक्षण का कार्य साल 1961 मे पूर्ण हुआ तथा साल 1972 मे योजना आयोग ने इसे स्वीकृति प्रदान की थी। इसका निर्माण कार्य साल 1978 मे प्रारम्भ होकर साल 2006 मे पूर्ण हुआ था।
  • इस डैम के निर्माण से राज्य के 23 गांवों को पूर्ण रूप से तथा 72 अन्य गांव को आंशिक रूप से जलमग्न हो गए हैं। जिससे  85600 लोग विस्थापित हुए हैं।
  • इस परियोजना से 5200 हेक्टेयर भूमि, जिसमें से 1600 हैक्टेयर कृषि भूमि होगी जो जलाशय की भेंट चढ़ गयी ।
  • अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि टिहरी बांध ‘गहन भूकम्पीय सक्रियता’ के क्षेत्र में आता है और अगर रियेक्टर पैमाने पर 8 की तीव्रता से भूकंप आया तो टिहरी बांध के टूटने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। अगर ऐसा हुआ तो उत्तराखंड सहित अनेक मैदानी इलाके डूब जाएंगे।
  • इसके अलावा, आपत्ति का एक अन्य कारण हिमालयी सीस्मिक गैप से इसकी निकटता थी क्योंकि यदि कभी भूकंप आया तो इससे 5,00,000 से अधिक लोगों का  जीवन खतरे में पड़ सकता था।
  • साल 1990 में, टिहरी बंधु विरोधी संघर्ष समिति ने इसके निर्माण पर रोक लगाने के लिए एक आधिकारिक याचिका दायर की और इसे सुप्रीम कोर्ट में भेज दिया। यह मामला अदालत में लगभग दस साल तक चला था।
  • सुन्दर लाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के निर्माण के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए और 1995 में भूख हड़ताल की। इनके अलावा भी अनेको बार स्थानीय लोगो द्वारा हड़ताल और विरोध प्रदर्शन किये गये।
  • टिहरी डैम के जलाशय मे ऐतिहासिक टिहरी रियासत का किला, घंटाघर, गांव, प्राचीन मंदिर आदि जलमग्न हो गए हैं।  राज्य के गीतकारो ने भी गीतों के माध्यम से इसका विरोध जताया था। 

चलतेचलते

दोस्तों, समय की मांग है ज्यादा से ज्यादा विकास, और विकास की मांग है, अधिक से अधिक ऊर्जा संसाधनों का उपयोग। जल-विद्युत ऊर्जा सबसे ज्यादा प्रदूषण रहित ऊर्जा है , किन्तु इसके निर्माण,विकास और प्रचालन का खर्च अधिक है। इसके साथ ही सबसे ज्यादा विरोध का सामना इसे ही करना पड़ता है, क्योकि इसका कार्यकारी क्षेत्र बहुत बड़ा होता है जो पर्यावरण और जैव-पारिस्थिकी को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदायें इसके प्रचालन को अवरुद्ध भी करती हैं। इन्ही सभी कारणों से नदी घाटी परियोजनाओं को विरोध का सामना करना पड़ता है। सरकार को सभी पक्षों को ध्यान मे रखकर ही नदी घाटी परियोजनाओं के विकास की नींव रखनी चाहिए। अन्यथा परियोजना की घोषणा, निर्माण, आरम्भ और प्रचालन मे काफी लम्बा समय खिंच जाता है, जो पैसे, समय , विकास सभी चीजों के लिए नुकसानदेहक ही साबित होता है।

दोस्तों,आज का यह लेख यहीं समाप्त करते हैं , आपको छोड़े जा रहें हैं इस प्रश्न के साथ, क्या नदी-घाटी परियोजनाओं के विकास मे जन-जीवन, जैव-पारिस्थिकी, पर्यावरण, विस्थापन, पुनर्स्थापन आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए या घोषणा के बाद विरोध और समय की हानि वाला रास्ता सही है? आप अपने विचार हमे कमेंट करके बता सकते हैं।

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