“जिसको गरीबी का खुद अनुभव नहीं, वो गरीबी मिटाने का काम नहीं कर सकता है. इस देश में जिन लोगों ने समाजवाद का नारा दिया और जिन्होंने सत्ता का भोग किया है. उन्होंने खुद कभी गरीबी का अनुभव नहीं किया था. उसकी पीड़ा को नहीं समझा था.”
ये वाक्त्व्य है अपने बागी और विद्रोही तेवर के लिए मशहूर भारत के आठवें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के, उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी लाल बत्ती नहीं ली. लगातार मंत्री के पद ठुकराते रहे. वो सिर्फ और सिर्फ सांसद रहे और जब बने तो सीधे इस देश के प्रधानमंत्री बने. आज इस लेख में बात होगी बागी बलिया के बाबूसाहब की यानी भारत के आठवें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की.
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बलिया के बाबूसाहब के सियासी किस्सों की शुरुआत करते हैं-
इस लेख में आपको उनके किस्से और उनकी शख्सियत की जानकारी भी मिलेगी.
- बलिया में पैदा हुए चन्द्रशेखर का जन्म 1 जुलाई 1927 को उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपत्ती गांव में एक किसान परिवार में हुआ था.
- सियासत के बाबूसाहब का जन्म उत्तरप्रदेश में तो हो गया था. लेकिन इनकी शिक्षा भी यूपी के अब के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद में हुई थी. चन्द्रशेखर ने अपने सियासी सफर में खूब पार्टियाँ बनायीं और बदली थीं.
- इसकी शुरुआत के लिए चलते हैं साल 1951 में, तब इन्होने सोशलिस्ट पार्टी से शुरुआत की थी. इसके बाद वो राम मनोहर लोहिया के साथ चले गये थे. चन्द्रशेखर को लोहिया के शागिर्द के तौर पर नहीं याद किया जाता है. बल्कि आज भी सियासी गलियारों में लोहिया और चन्द्रशेखर की लड़ाइयां प्रसिद्ध हैं.
- पहले किस्से की शुरुआत, पहले झगड़े से करते हैं. चन्द्रशेखर इलाहाबाद पहुंचे हुए थे. उनका मकसद था कि वो उस दौर के संत समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव को बलिया में होने वाले छात्रों के आन्दोलन के आमंत्रित कर सकें.
- लेकिन हुआ कुछ ऐसा था. कि आचार्य बीमार होने के कारण नहीं जा सकते थे. वहां राम मनोहर लोहिया मौजूद थे. आचार्य ने आग्रह किया कि आप लोहिया को लेकर जाइए.
- तब लोहिया ने सवाल के साथ ही जवाब भी दे दिया था कि मुझे तो पार्टी की मीटिंग के लिए कलकत्ता जाना है. मैं कैसे जा सकता हूँ?
- तब चन्द्रशेखर ने इसका हल बताते हुए कहा कि आप चलिए हम आपको जीप से बक्सर छोड़ देंगे. जहाँ से आपको कलकत्ता के लिए ट्रेन मिल जाएगी.
- लोहिया तैयार हो गये. लेकिन जैसे लोहिया और चन्द्रशेखर बलिया पहुंचे. लोहिया ने जीप की मांग कर दी. चन्द्रशेखर ने तब कहा था कि शाम तक आपको जीप मिल जायेगी. लेकिन तब लोहिया ने बड़े राजनेता होने का धौंस दिखाया.
- ये बात चन्द्रशेखर को पसंद नहीं आई. उन्होंने साफ़-साफ़ कह दिया था कि डॉक्टर साहब वो है जीप और वो रहा रास्ता. आप जा सकते हैं. हमें आपकी सभा की ज़रूरत नहीं है. तब लोहिया अवाक रह गये थे. पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी युवा नेता ने उन्हें ऐसे जवाब दिया हो.
इंदिरा के ख़ास तो थे लेकिन प्रधानमंत्री के सामने कह दिया था कि या तो कांग्रेस समाजवाद की तरफ चलेगी या फिर टूट जायेगी-
- चन्द्रशेखर के सियासी जीवन का ये किस्सा भी बेहद रोचक है. एक दौर था जब कांग्रेस पार्टी के अंदर एक टर्म चला करता था. उस टर्म को ‘युवा तुर्क’ कहा जाता था. इसका मतलब ये था कि ऐसे नेता जो युवा थे और कांग्रेस पार्टी के अंदर समाजवाद को फैलाना चाहते थे.
- इस तरह के नेताओं में चन्द्रशेखर थे, कृष्णकांत थे, मोहनलाल धारिया थे और ऐसे ही कुछ नेता और भी थे.
- तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के चन्द्रशेखर ख़ास हो चुके थे. उस दौर का ही एक वाकया है जिसे BBC ने भी अपने एडिटोरियल में जगह दी है. उस दौर में इंदिरा गांधी के आवास में शाम को सभी बड़े नेता इकट्ठा हुआ करते थे. उस सभा की अध्यक्षता इंद्र कुमार गुजराल किया करते थे.
- गुजराल के ही आग्रह में एक शाम चन्द्रशेखर भी वहां पहुंचे हुए थे. उस शाम इंदिरा गांधी भी वहां मौजूद थीं. तब देश की प्रधानमंत्री ने एक सांसद चन्द्रशेखर से ये सवाल किया था कि चन्द्रशेखर क्या तुम कांग्रेस पार्टी को समाजवादी मानते हो?
- जब देश की प्रधानमंत्री एक सामान्य सांसद कुछ ऐसा सवाल करेंगी तो वो सिर्फ उनकी हाँ में हाँ ही मिलाएगा. लेकिन चन्द्रशेखर ऐसे व्यक्तित्व के नहीं थे.
- उन्होंने जवाब दिया था कि हाँ थोड़ा सा मानता हूँ और थोड़ा सा मनवाना चाहता हूँ. इसलिए आया हूँ. तब इंदिरा ने उनसे पलटकर पूछा था कि इसके क्या मायने होते हैं. इस पर चन्द्रशेखर ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी एक बूढ़े बरगद की तरह हो गयी है. अगर मै, इसे समाजवादी रुख की तरफ नहीं मोड़ सका तो मै इस पार्टी को ही तोड़ दूंगा. ये सुनते ही इंदिरा गांधी अवाक सी हो गयी थीं. वो देश की प्रधानमंत्री थीं. कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं और उनके सामने एक सांसद ऐसी बगावती बातें कर रहा था.
साल 1977 के चुनाव के बाद-
- 1977 का समय था. देश में चुनाव हुए. विपक्षी पार्टियों ने गठजोड़ करते हुए जनता पार्टी बनाई. लेकिन प्रधानमंत्री के लिए 3 दावेदार थे. मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम.
- चन्द्रशेखर जनता पार्टी के अध्यक्ष बने थे. वो मोरार जी देसाई के नाम खुश नहीं थे. लेकिन जय प्रकाश नारायण के कहने पर वो मान गये थे. चन्द्रशेखर ने एक शर्त रखी थी कि वो मोरार जी देसाई के कैबिनेट में मंत्री पद नहीं लेंगे.
- चन्द्रशेखर जनता पार्टी के अध्यक्ष बने रहे. लेकिन ये कुनबा दो-ढाई साल के अंदर ही सियासी मनभेद के कारण टूट गया था.
11 नवंबर 1990 को उत्तरप्रदेश के बलिया जिले में पैदा हुए चन्द्रशेखर का सपना पूरा हो गया. बेबाक चन्द्रशेखर पूरी जिंदगी धारा के प्रवाह के उलट बहते रहे. बेबाकी ऐसी थी कि खुले-आम कह दिया करते थे कि जिन्हें आप माफिया कहते हैं. वो मेरे दोस्त हैं.
- ऐसे व्यक्तित्व के धनी चन्द्रशेखर जब प्रधानमंत्री बने तो अपने शुरूआती दिनों में ये साफ़ कर दिए थे. कि वो राजीव गाँधी की कठपुतली नहीं हैं. ना ही वो कांग्रेस पार्टी के इशारों में काम करेंगे.
- इसी तेवर की वजह से ही राजीव गाँधी ने खेल खेलते हुए चन्द्रशेखर की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. ठीक उसी तरह, जिस तरह इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.
राजीव गाँधी ने ऐसे लिया था चन्द्रशेखर सरकार से समर्थन वापस-
- ये वाकया भी बड़ा नाटकीय है. इसके लिए बहाना बने थे. हरियाणा पुलिस के दो सिपाही.
- दरअसल, राजीव गांधी के घर के बाहर दो सिपाही संदिग्ध हालत में पाए गये थे. तब राजनीतिक गलियारों में राजीव गाँधी ने ये हल्ला करवा दिया था कि चन्द्रशेखर उनकी जासूसी करवा रहे हैं.
- इसके बाद शाम को राजीव से चन्द्रशेखर की मुलाक़ात हुई थी. उन्हें आश्वाशन भी दिया गया था कि इस मामले की पूरी जांच की जाएगी.
- अगले दिन लोकसभा का सत्र था. हंगामेदार होने की सबको उम्मीद थी लेकिन चन्द्रशेखर ने सोचा भी नहीं था कि इस कांड के कारण कांग्रेस लोकसभा का बहिष्कार करेगी.
- फिर क्या था? चन्द्रशेखर ने संसद की पटल पर त्यागपत्र देने की घोषणा कर दी थी. उनकी सरकार मात्र 7 महीने ही चली थी.
आज के दौर में चन्द्रशेखर को क्यों याद किया जाना चाहिए?
- चन्द्रशेखर को ये यकीन था कि वो बेहद बड़ी चीज़ों के लिए बने हैं. 1991 के बाद भी कई बार उनके पास सन्देश भेजे गये थे. बकौल चन्द्रशेखर, कई बार राजीव गांधी ने उनके पास सन्देश भेजवाए थी कि आप फिर से प्रधानमंत्री बन जाइए. लेकिन इस बार कैबिनेट में कांग्रेस के नेताओं को भी शामिल करना पड़ेगा. लेकिन युवा तुर्क से लबरेज चन्द्रशेखर ने इंकार कर दिया था.
- क्या आज के दौर में आपको कोई नेता नज़र आता है? जिसके अंदर इतना विश्वास हो? उन्हें उनकी बेबाकी के लिए भी याद किया जाना चाहिए. चन्द्रशेखर का मानना था कि नेता और सरकार से जुड़ी हर बात सार्वजनिक ही होनी चाहिए.
फैक्ट्स-
- 1962 में वो उत्तरप्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गये थे.
- चन्द्रशेखर 1977 से 1988 तक जनता पार्टी के अध्यक्ष थे.
- जनवरी 1965 में चन्द्रशेखर कांग्रेस में शामिल हो गये थे.
- साल 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुन लिया गया था.
- चन्द्रशेखर साल 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक एवं संपादक थे.
- इमरजेंसी के दौरान यंग इंडियन को बंद कर दिया गया था.
- 25 जून 1975 को इस देश में इंदिरा गांधी के द्वारा आपातकाल घोषित किया गया था. उस दौरान आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत चन्द्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया गया था.
- आपको बता दें कि गिरफ्तारी के समय चन्द्रशेखर कांग्रेस के शीर्ष निकायों, केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य थे. गिरफ्तार करके उन्हें पटियाला जेल में डाल दिया गया था.
सरांश
आपातकाल के दौरान जब चन्द्रशेखर जेल में थे. तब उन्होंने एक डायरी लिखी थी. उस डायरी का नाम ‘मेरी जेल डायरी’ है. बाद में इसे एक किताब के रूप में प्रकाशित भी किया गया था. भारतीय सियासत की एक ऐसी शख्सियत जिससे प्रधानमंत्री डरा करती थीं. तमाम नेताओं के पसीने छूट जाते थे. जिसने जीवन में कभी भी अपने युवा तुर्क अंदाज़ से दगा नहीं किया था. कुछ ऐसे ही थे इस देश के आठवें प्रधानमंत्री “चन्द्रशेखर”.