शेर बहादुर देउबा कौन हैं?

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Sher Bahadur Deuba

नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक खूबसूरत देश है , जो अपनी हिमालयी वादियों तथा ईमानदार मेहनतकस लोगों के लिए प्रसिद्ध है। पिछले साल दिसंबर से नेपाल की राजनीति में व्याप्त हलचल ने इस देश में एक राजनैतिक संकट खड़ा कर दिया था। अब नेपाल के उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद 13 जुलाई 2021 को शेर बहादुर देउबा को पांचवी बार नेपाल का प्रधानमंत्री बनाया गया है। शेर बहादुर देउबा को 1 महीने के भीतर नेपाल के निचले सदन में विश्वास मत हासिल करना था , जो उन्होंने 18 जुलाई 2021 को हासिल कर लिया है। शेर बहादुर देउबा को 275 सदस्यों वाली निचली सदन में 165 वोट हासिल हुए। चलिए जानतें हैं कैसा रहा 75 वर्षीय शेर बहादुर देउबा का राजनैतिक सफर।

इस लेख में हम आपके लिए लायें है-

  • जानिये कौन हैं शेर बहादुर देउबा?
  • आइये जानते हैं नेपाल के राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में.
  • आइये जानते हैं नेपाल के राजनीतिक इतिहास के बारे में?
  • आइये जानते हैं कैसे हैं भारत -नेपाल सम्बन्ध?

जानिये कौन हैं शेर बहादुर देउबा?

व्यक्तिगत परिचय

  • शेर बहादुर देउबा नेपाली कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान मे नेपाल के 43वे प्रधानमंत्री हैं।
  • शेर बहादुर देउबा का जन्म 13 जून 1946 को नेपाल के दादेलधुरा जिले के आशीग्राम नामक गांव मे हुआ था।
  • देउबा नेपाली क्षत्रिय जाति से सम्बन्ध रखते हैं। देउबा ने अपनी ग्रेजुएशन कला तथा कानून की पढ़ाई से पूर्ण की है तथा राजनीतिक विज्ञान में पोस्ट-ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की है। इससे आगे की पढ़ाई उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से की है।
  • शेर बहादुर देउबा को साल 2016 मे भारत की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी ने मानद डॉक्ट्रेट की उपाधि प्रदान की है।
  • शेर बहादुर देउबा की पत्नी का नाम आरजू राणा देउबा है। ये नेपाल मे साथी संस्था की मदद से नेपाली महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के खिलाफ कार्य करती हैं।
  • श्रीमती देउबा ने भारत में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सेंट बेडस कॉलेज से बीए और पंजाब विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की डिग्री  प्राप्त की है।
  • शेर बहादुर देउबा की एक पुत्र संतान है जिनका नाम जयवीर सिंह देउबा है।  

राजनीतिक परिचय

  • शेर बहादुर देउबा पांचवी बार दादेलधुरा-1 से प्रतिनिधि सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए हैं तथा ये पांचवी बार नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवायें दे रहें हैं।
  • इन्होने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 19 वर्ष की आयु से कर दी थी। सर्वप्रथम उन्होंने साल 1965 से 1968 तक सुदूरपश्चिमी छात्र समिति, काठमांडू के अध्यक्ष के रूप मे कार्य किया था।
  • साल 1970-80 के बीच मे देउबा को विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों के तहत जेल भी जाना पड़ा था। साल 1980 के दशक में इन्होने नेपाली कांग्रेस की राजनीतिक सलाहकार समिति के समन्वयक के रूप में अपनी सेवायें दी थी।
  • साल 1990 मे नेपाली जन आंदोलन के बाद नेपाल मे हुए संसदीय चुनावों मे शेर बहादुर देउबा पहली बार दादेलधुरा-1 सीट से प्रतिनिधि बनकर नेपाली संसद में पहुंचे थे।
  • उन्होंने गिरजा प्रसाद कोईराला के नेतृत्व में कैबिनेट गृह मंत्री के रूप में जिम्मेदारी निभायी थी। कोईराला जी की सरकार के गिरने के पश्चात् साल 1994 मे देउबा को नेपाली कांग्रेस के संसदीय दल का नेता चुना गया था।
  • साल 1995 मे मनमोहन अधिकारी के नेतृत्व वाली सरकार को नेपाली उच्च न्यायलय द्वारा असंवैधानिक घोषित कर, शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया गया।
  • इस प्रकार 12 सितम्बर 1995 को शेर बहादुर देउबा नेपाली कांग्रेस तथा राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी की गठबंधन सरकार के प्रमुख के तौर देश के प्रधानमंत्री बनाया गया था। यह गठबंधन की सरकार ज्यादा चल नहीं पायी और 12 मार्च 1997 को गिर गयी।
  • 26 जुलाई 2001 को एक फिर से गिरजा प्रसाद कोईराला के इस्तीफे के बाद शेर बहादुर देउबा को दूसरी बार  नेपाल का प्रधानमंत्री बनाया गया।
  • इसी साल नेपाल में शाही परिवार में ख़ूनी संघर्ष हुआ तथा मावोवादी विचारधारा द्वारा सेना पर हमला किया गया। नेपाल की विभिन्न राजनीतिक उथल-पुथल के बीच 4 अक्टूबर 2002 को नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र के द्वारा इन्हे प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया। 
  • 3 जून 2004 को शेर बहादुर देउबा एक बार फिर से तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाये गए किन्तु इस बार भी इनका कार्यकाल ज्यादा नहीं रहा और 1 फरवरी 2005 को ये पद से हटा दिये गए। 
  • साल 2008 मे हुए संसदीय चुनावो में जीत के बाद नेपाली कांग्रेस ने उन्हें नेता के रूप में चुना और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया था। उस समय उन्हें मावोवादी नेता पुष्पकमल दहलप्रचंडसे हार का सामना करना पड़ा था।
  • साल 2017 में नेपाल में पुष्पकमल दहल की सीपीएन (माओवादी केंद्र) पार्टी के साथ गठबंधन सरकार में 7 जून 2017 को चौथी बार शेर बहादुर देउबा नेपाल के प्रधानमंत्री बनाये गए। इस बार भी उनका कार्यकाल 15 फरवरी 2018 तक ही रहा था।
  • साल 2017 मे नेपाल मे हुए आम चुनावों ने शेर बहादुर देउबा की पार्टी को कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के मुकाबले हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के के पी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली थी।
  • साल 2020 मे दिसंबर से नेपाल की राजनीति में उठा-पटक और 2 बार प्रतिनिधि सभा निलंबन के बाद आखिरकार 13 जुलाई 2021 को शेर बहादुर देउबा को पांचवी बार नेपाल का प्रधानमंत्री बनाया गया है।

आइये जानते हैं नेपाल के राजनीतिक घटनाक्रम के बारे में

  • नेपाल मे साल 2017 में 275 सीटों में आम चुनाव हुए थे, जिसमे कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) ने सबसे ज्यादा 121 सीट जीती थी।
  • कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) ने सरकार बनाने के लिए आवश्यक 138 सीट के लिए समर्थन जुटा कर अपना नेता के पी शर्मा ओली को चुना था।
  • इस प्रकार से 15 February 2018 को के पी शर्मा ओली ने नेपाल के 41वे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी।
  • साल 2020, दिसम्बर मे नेपाल की राजनीति में उस समय भूचाल आ गया जब सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) मे प्रधानमंत्री के पद को लेकर मची खलबली से  राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने नेपाली संसद के निचले सदन को भंग करके 30 अप्रैल तथा 10 मई तक चुनाव कराने का फैसला सुना दिया।
  • 23 फरवरी 2021 को नेपाली उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति के फैसले को रद्द करते हुए, नेपाल के निचले सदन को बहाल करके बहुमत प्राप्त पार्टियों  को  सरकार बनाने का आदेश दिया।
  • 22 मई 2021 को शेर बहादुर देउबा और के पी शर्मा ओली ने अपनी -अपनी पार्टी के लिए आवश्यक समर्थन जुटाकर समर्थन पत्र राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को सौंपा।
  • कुछ सांसदों के दोनों पार्टियों के समर्थन पत्र में हस्ताक्षर होने के कारण किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। इसके चलते रष्ट्रपति ने निचले सदन को पुनः भंग करके 12 नवंबर और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा कर दी।
  • राष्ट्रपति के इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 30 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी। इस मामले की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 12 जुलाई 2021 को संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया था।
  • इसी के परिणामस्वरुप निचले सदन ने शेर बहादुर देउबा को नेपाल का अगला प्रधानमंत्री चुना और 18 जुलाई 2021 को देउबा ने 165 प्रतिनिधियों का समर्थन हासिल विश्वास मत प्राप्त किया।

जानते हैं नेपाल के राजनीतिक इतिहास के बारे में?

  • नेपाल के उपलब्ध राजनीतिक इतिहास में गौर करे तो प्राप्त जानकारी के अनुसार साल 1815 मे ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा राजेंद्र बिक्रम शाह के मध्य सुगौली संधि हुई थी।
  • सुगौली संधि के अनुसार ही नेपाल की आधुनिक सीमाओं का सीमांकन भी किया गया है। इस संधि के बाद अंग्रेजों और नेपाल के मध्य सम्बन्ध अच्छे हो गए थे।
  • साल 1857 मे भारतीय स्वतंत्रता के लिए हुई क्रांति मे नेपाल ने अंग्रेजो का साथ दिया था। साल 1923 मे अंग्रेजों ने नेपाल को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया था।
  • साल 1951 मे नेपाल मे राजशाही का अंत कर लोकतांत्रिक सरकार बनाने का प्रयास किया गया था। साल 1959 मे नेपाल का अपना संविधान बनाया गया और पहली बार लोकतांत्रिक व्यवस्था के माध्यम से लोकतांत्रिक सरकार बनायीं गयी।
  • साल 1962 मे नेपाली राजा महेंद्र ने भ्रष्टाचार और अकुशलता के चलते लोकतांत्रिक संसद को भंग करके ‘राष्ट्रीय पंचायत’ का गठन किया था।
  • साल 1991 तक नेपाल में राष्ट्रीय पंचायत के माध्यम से शासन कार्य चलता रहा। साल 1991 मे नेपाल मे आम चुनाव के माध्यम से नेपाली राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार बनायी गयी। इस प्रकार से गिरजा प्रसाद कोईराला नेपाल के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने।
  • यह सरकार ज्यादा नहीं चल पायी और साल 1994 मे अविश्वास प्रस्ताव के तहत गिरजा प्रसाद कोईराला की सरकार गिर गयी।
  • साल 1996 मे नेपाल मे राजशाही तंत्र के खात्मे के लिए मावोवादियों ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू कर दिये।
  • 1 जून 2001 को नेपाल के राजमहल में हुए सामूहिक हत्या कांड में राजा, रानी, राजकुमार और राजकुमारियाँ मारी गयी. उसके बाद राजा के भाई ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह ने राजगद्दी संभाली।
  • साल 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने माओवादियों के हिंसक आंदोलन का दमन करने के लिए सत्ता अपने हाथों में ले ली और सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया था।
  • मावोवादियों के आंदोलन और नेपाल में अस्थिर सरकार का दौर साथ-साथ चलता रहा। इस दौर का अंत साल 2006 में नेपाल में राजशाही के अंत और लोकतांत्रिक सरकार के लिए नये संविधान की घोषणा के साथ हुआ।
  • साल 2008 मे मावोवादियों के नेता पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ चुनावों मे जीत के साथ नेपाल के प्रधानमंत्री बने किन्तु उनका कार्यकाल केवल 9 माह का ही रहा था।
  • नेपाल में राजनीतिक पार्टियों के आपसी मतभेदों की वजह से संविधान सभा नया संविधान नहीं बना सकी और कार्यकाल इसका कई बार विस्तार करना पड़ा. आख़िरकार 2015 में एक संविधान को स्वीकृति मिल पाई।
  • साल 2016 मे नये संविधान के अनुसार चुनाव कराये गए जिसमे कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के के पी शर्म ओली को नेपाल का प्रधानमंत्री चुना गया।
  • के पी शर्म ओली पर लोकतंत्र के दुरूपयोग के आरोप लगे उन पर आरोप थे की उन्होंने अध्यादेशों का बहुत ज्यादा और गलत इस्तेमाल किया है।  इसके आगे की नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता की चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं।

जानते हैं कैसे हैं भारतनेपाल सम्बन्ध?

  • भारत और नेपाल के सम्बन्ध पहले से ही बहुत समृद्ध रहे हैं। आजादी के बाद से ही भारत नेपाल को सदैव छोटे भाई का दर्जा देता रहा है।
  • नेपाल के राज परिवार के साथ भारत के वैवाहिक सम्बन्ध रहें हैं। नेपाल के राजा त्रिभुवन  बीर बिक्रम शाह का ससुराल  भारत में रहा था। उन्होंने अपनी सभी बेटियों को भारत में ब्याहा था।
  • सांस्कृतिक रूप से नेपाल और भारत हिन्दू धर्म को मानते हैं। माता सीता की जन्म स्थली नेपाल में हैं।
  • भगवान पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर नेपाल में है , यह करोड़ो भारतीयों की आस्था का केंद्र है।
  • भारत-नेपाल की प्रगति में योगदान के लिए वहां अनेक योजनाओं में निवेश करता आया है।
  • नेपाल के नागरिक पढ़ाई और रोजगार के लिए भारत में आते रहते हैं। भारत ने उनकी  वीजा और पासपोर्ट जैसी जरूरतों को खत्म किया है।
  • भारत हर साल राष्ट्रीय सेवा अकादमी  NDA मे नेपाल के नागरिकों को सैन्य सेवा के लिए तैयार करता है।
  • नेपाल के विद्यार्थी भारत के विभिन्न संस्थानों में वन सम्बन्धी कोर्स की शिक्षा लेते हैं। भारतीय वन्य अकादमी देहरादून में नेपाल के विद्याथियों के लिए विशेष प्रबंध किये जाते हैं।
  • भारत के नेपाल के साथ संबंध सदैव से मधुर रहें हैं किन्तु जब से नेपाल में मावोवाद से प्रेरित सरकारों का गठन हुआ है। इनके संबंधों में खटास आने लगी है।
  • नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का चीन के प्रति मोह जगजाहिर है। मावोवादी नेता पुष्पकमल दहल ने भारत -नेपाल मैत्री का प्रतीक प्रथम यात्रा प्रोटोकॉल तोड़ कर , प्रधानमंत्री के रूप में पहली यात्रा भारत के बजाय चीन मे की थी।
  • कम्युनिस्ट पार्टी के पी शर्मा ओली के कार्यकाल में भारत-नेपाल सीमा विवाद गहराया था। चीन के प्रभाव में आकर नेपाल के कम्युनिस्ट लोग उसी की भाषा और व्यवहार सीखने लगे हैं।
  • नेपाल को यह बात समझने की जरुरत है की चीन की नीति ‘व्यापार करो और राज करो’ को समझे। चीन के प्रति सचेत रहे, चीन ने जो व्यवहार तिब्बत के साथ किया। इससे नेपाल को सीख़ लेने की जरुरत है।
  • भारत और नेपाल की संस्कृति , धर्म,भाषा, खान-पान, वेशभूषा आदि सब मिलती हैं। भारत का व्यवहार शताब्दियों से नेपाल के प्रति मैत्रीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण रहा है। जबकि चीन का कभी भी अपने किसी पड़ोसी से व्यव्हार मैत्रीपूर्ण नहीं रहा है।
  • कुछ लोगों का मानना है कि भारत का नेपाल की राजनीति मे अंदरूनी हस्तक्षेप करना ठीक नहीं है। तो उन लोगों से मैं यही कहूंगा कि भारत , नेपाल को हमेशा अपना छोटा भाई मानता रहा है , अपना परिवार मानता है और ऐसी स्थिति में अगर नेपाल की राजनीति यदि किसी गलत दिशा मे जा रही हो तो भारत का हस्तक्षेप करना उसका बड़े भाई का फर्ज निभाना है। 
  • चीन भारत को घेरने की साजिश रच रहा है। ऐसे में चीन पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका को चारा बनाकर भारत के प्रति इस्तेमाल करना चाहता है। नेपाल को भारत की इस चिंता को समझना चाहिए और छोटे भाई का फ़र्ज़ निभाना चाहिए।
  • नेपाल को जरुरत है चीन की बातों में न आकर भारत के साथ किसी भी जबरदस्ती के विवादों में न पड़े। चीन विस्तारवादी मनोवृति का देश है यह केवल साम्राज्यवाद पर विश्वास रखता है।

निष्कर्ष

भारत के प्रधानमंत्री द्वारा नेपाली कांग्रेस के नेता और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को बधाई दी गयी है। नेपाली प्रधानमंत्री ने  धन्यवाद देते हुए भविष्य मे भारत के साथ फिर से पहले जैसे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बहाल करने की इच्छा व्यक्त की है। हम नेपाली प्रधानमंत्री की इस इच्छा का खुले दिल से स्वागत करते हैं। हम आशा करते हैं कि नेपाल कांग्रेस अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की नीतियों पर चलते हुए भारत के साथ मधुर सम्बन्ध बनाने की दिशा में कार्य करे, साथ मे ही उसे कम्युनिस्ट पार्टी और मावोवाद की विचार धारा से बचने की जरुरत है। नेपाल इस बात को समझे की यह समय भारत के साथ विरासतन मिले संबंधों को खराब करने का नहीं है अपितु सुधारने का है। दोस्तों इसी के साथ आज का यह लेख यही समाप्त करते हैं। धन्यवाद!

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