Ram Vilas Paswan: बिहार राजनीति से भारतीय सियासत का ‘क्षितिज’ बनने तक का सफर

2220
Ram Vilas Paswan life


क्या आपने कभी सुना है? कि किसी राजनेता ने अपने विरोधी को इतने ज्यादा मतों से हराया हो कि उसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो जाए। ऐसा कारनामा किया था दिवंगत नेता रामविलास पासवान ने चुनाव था साल 1977 का और सीट थी हाजीपुर बिहार की, तब रामविलास पासवान ने जनता पार्टी के टिकट से कांग्रेस के उम्मीदवार को सवा चार लाख से ज्यादा मतों से हराया था।

आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने गुरुवार को दिल्ली में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। इस बात की जानकारी उनके बेटे चिराग पासवान ने देश वासियों से साझा की थी। हालांकि 1977 के 8 साल पहले ही पासवान विद्यायक का चुनाव जीत चुके थे। लेकिन साल 1977 का वो चुनाव और जीत राम विलास पासवान को राष्ट्रीय नेता के रूप में पहचान दिलाने के लिए काफी थी।

सियासत में राम विलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता था। कहा तो ये भी जाता था कि सियासी ऊंट किस तरफ बैठेगा इसका पता सबसे पहले राम विलास पासवान को चल जाता था। अपने राजनीतिक सफर में रामविलास पासवान 9 बार सांसद रहे, 50 साल से लंबे राजनीतिक सफर में पासवान को केवल दो मर्तबा 1984 और 2009 में का मुंह देखना पड़ा था।

इस लेख के मुख्य बिंदु

  • एक नज़र में रामविलास पासवान का जीवन परिचय
  • 1960 के दशक में रामविलास पासवान ने की थी पहली शादी
  • साल 1983 में रामविलास पासवान ने दूसरी शादी की थी
  • डीएसपी बनते-बनते राजनेता बन गये
  • कब पहली बार लड़े थे विधानसभा चुनाव?
  • राम विलास पासवान की पार्टी
  • सूट-बूट वाले दलित नेता राम विलास पासवान के राजनीतिक फैक्ट्स
  • आइये एक नज़र डालते हैं कुछ तारीखों के फेर पर
  • सरांश

एक नज़र में रामविलास पासवान का जीवन परिचय

आपको बता दें कि रामविलास पासवान का जन्म बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गाँव में हुआ था। अगर आपको राम विलास पासवान की कहानी में दिलचस्पी है तो आपको पता होगा कि बचपन से ही पासवान पढ़ने लिखने में काफी अच्छे हुआ करते थे। रामविलास पासवान ने कोसी कॉलेज, पिल्खी और पटना विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक और मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की पढ़ाई की थी।

1960 के दशक में रामविलास पासवान ने की थी पहली शादी

दशक था 1960, तब राम विलास ने राजकुमारी देवी से पहली शादी की थी। उनकी पहली पत्नी से उनकी दो बेटियां हैं।

साल 1983 में रामविलास पासवान ने दूसरी शादी की थी

साल 1983 में राम विलास पासवान एयर होस्टेस रीना शर्मा से दूसरी शादी की थी। उनसे उनके एक बेटा और बेटी हैं।

  • बेटे का नाम (राम विलास पासवान Son) चिराग पासवान है। जो मौजूदा समय में नेता के तौर पर सक्रीय हैं।

डीएसपी बनते-बनते राजनेता बन गये

अगर कभी किसी ने सवाल किया कि ऐसे राजनेता का नाम बताइए जिसका प्रशासनिक सेवा और एमएलए के तौर पर एक साथ चयन हुआ था। तो वो नाम है राम विलास पासवान का, इस बारे में खुद राम विलास पासवान ने जानकारी देते हुए कहा था कि

“1969 मे मेरा DSP मे और MLA दोनो मे एक साथ चयन हुआ। तब मेरे एक मित्र ने पूछा कि बताओ Govt बनना है या Servant? बस तभी मैंने राजनीति ज्वाइन कर ली थी।”

  • पासवान के राजनीति में आने की एक कहानी है। वो ये है कि 1969 के दौर में बिहार की राजनीति में काफी ज्यादा उथल-पुथल मची हुई थी।
  • तभी पासवान की मुलाक़ात समाजवादी नेता से हुई उन्ही ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया था।

कब पहली बार लड़े थे विधानसभा चुनाव?

साल 1969 में पासवान को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से टिकट मिला था। सीट थी अलौली सुरक्षित विधानसभा सीट। यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।

इस बारे में बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन BBC से बात करते हुए बताते हैं कि “छात्र आंदोलन और जेपी आंदोलन के समय लालू यादव, नीतीश कुमार, जैसे नेताओं का नाम ज़रूर सुना जाता था, लेकिन राम विलास पासवान का नाम लोगों ने पहली बार साल 1977 में सुना। जब उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड मतों से विजयी भी हुए।”

राम विलास पासवान मौजूदा समय में इस मंत्रालय के थे कैबिनेट मंत्री-

आपको बता दें कि मौजूदा दौर की केंद्र सरकार में राम विलास पासवान उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री थे।

राम विलास पासवान की पार्टी

राम विलास पासवान पहले जनता दल में हुआ करते थे। लेकिन साल 2000 में उन्होंने जनता दल से अलग होने का फैसला किया था। तभी उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) का गठन किया था।

  • मौजूदा समय में भी राम विलास पासवान लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे।
  • इस पार्टी के गठन के बाद वो 2004 में सत्ताधारी केंद्र सरकार में शामिल हो गये और रसायन मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री बने थे।

सूट-बूट वाले दलित नेता राम विलास पासवान के राजनीतिक फैक्ट्स

कई ने इन्हें सूट-बूट वाला दलित नेता कहता था तो कोई सबसे सटीक मौसम वैज्ञानिक। कुछ भी हो लेकिन राम विलास पासवान ने अपने राजनीतिक सफर से एक अमिट पहचान तो छोड़ी ही है।

आइये एक नज़र डालते हैं कुछ तारीखों के फेर पर

  • साल 1974 की बात करते हैं। यही वो साल था जब राम विलास पासवान राज नारायण और जय प्रकाश नारायण के प्रबल अनुयायी बने थे। इसी दौर में उन्हें लोकदल का महासचिव भी बनाया गया था।
  • राम विलास पासवान, राज नारायण, जय प्रकाश नारायण और तमाम ऐसे नेताओं के जिन्होंने आपातकाल के दौरान संघर्ष किया था। उनके काफी करीबी रहे थे।
  •   साल 1975 में जब भारत में इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल की घोषणा की थी। उस दौर में राम विलास पासवान को गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • साल 1977 आया, राम विलास पासवान जेल से रिहा हुए। रिहा होने के बाद ही उन्होंने जनता पार्टी को ज्वाइन कर लिया था। फिर उन्होंने जनता पार्टी के ही टिकट से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था।
  • फिर 1980 और 1984 में भी उन्होंने हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी।
  • साल 1983 में राम विलास पासवान ने दलितों के कल्याण के लिए के दलित सेना की स्थापना भी की थी।
  • साल 1989 का चुनाव आया और 9वीं लोकसभा के लिए पासवान का फिर से चयन हो गया। इस दौरान उन्होंने विश्व नाथ प्रताप सिंह की सरकार में केन्द्रीय श्रम और कल्याण मंत्री का पदभार संभाला था।
  • साल 1996 में राम विलास पासवान पहली बार केन्द्रीय रेल मंत्री बने थे।
  • साल 1999 से 2001 तक पासवान संचार मंत्री के पद पर थे। 2001 में ही उन्हें कोयला मंत्रालय में ट्रान्सफर किया गया था।
  • साल 2010 से 2014 तक राम विलास पासवान राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे।

सरांश

रामविलास पासवान ने भले ही दलितों के लिए कोई बड़ा आन्दोलन ना किया हो, लेकिन जब भी संविधान में दलितों के हक की बात होती थी। तो काफी प्रखर तरीके से अपनी बात  सबके सामने रखते थे। राम विलास पासवान इस बात से वाकिफ थे कि संविधान में जो पक्ष दलितों के हक लिए है। उसे बनाए रखना भी बहुत ज़रूरी है। इसलिए शायद वो हमेशा दलितों के हक की बात करते थे।

रामविलास पासवान को कैसे याद किया जाएगा? इस बात का जवाब आपको उनकी राजनीति को देखकर पता चल जायेगा। भले ही पासवान ने बहुत आदर्श वाली राजनीति ना की हो,लेकिन फिर भी बिहार की जिस पृष्ठभूमि से वो आते थे। वहां से आकर इस मुकाम तक पहुंचना किसी आम इंसान के बस की बात तो नहीं है। हर बार मंत्री पद में बने रहने की उनकी कला बताती है कि उनके अंदर राजनीति की आपार संभावनाएं थीं। फिलहाल अब वो इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन अपने पीछे सियासत की एक विरासत को छोड़कर गए हैं।

Leave a Reply !!

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.