शिक्षकों की समाज में क्या भूमिका रही है, प्राचीन काल से ही भारत में इसके उदाहरण देखने को मिलते रहे हैं। यही वजह है कि इस देश में कई अवसरों पर गुरु पूजा भी देखने को मिल जाती है। ऐसा इसलिए रहा है, क्योंकि शिक्षकों की भूमिका समाज को सही सांचे में ढालने में बड़ी ही महत्वपूर्ण रही है। हालांकि, वर्तमान समय में बदलती परिस्थितियों के अनुसार शिक्षकों की भूमिका को एक बार फिर से परिभाषित किए जाने की जरूरत पैदा हो गई है। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कि शिक्षकों की भूमिका किस तरह से हमारे समाज में विकसित हुई और कैसे इसमें बदलाव आते चले गए।
सामाजिक जीवन में शिक्षकों का योगदान
लोगों को शिक्षा मिलती रहे। लोगों के ज्ञान का स्तर समृद्ध होता रहे। वे सद्गुण बनते रहे, इसके लिए इस देश में शिक्षकों ने बहुत सी कुर्बानियां भी दी हैं। इस देश में भगवान कृष्ण, भगवान बुद्ध, शंकराचार्य और चाणक्य जैसे गुरुओं की कहानियां सुनने को मिलती रहती हैं। सिख धर्म में भी कहा गया है कि हितकर मनसुख होना नहीं, बल्कि गुरुमुख होना है। सामाजिक जीवन में हमेशा से शिक्षकों ने केंद्रीय भूमिका निभाई है।
शिक्षक से अपेक्षाएं
शिक्षकों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे अपने छात्रों का मार्गदर्शन उचित तरीके से करें। जब उन्हें शिक्षक कहा जाता है तो इसका तात्पर्य यह होता है कि ज्ञान के मूल स्रोत वही हैं और ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन पर निर्भर हो जाना है। एक तरह से जो विचार हम प्राप्त करते हैं, उसका प्रतिनिधित्व शिक्षक ही करते हैं। शिक्षकों को हमेशा से यह आजादी मिली हुई है कि उन्हें जो ज्ञान सही लगता है, उसे ही वे अपने छात्रों को बताएं। शिक्षकों के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि उनके छात्र समाज की सोच को सही दिशा दे पाने में सक्षम हों।
शिक्षा में अंग्रेजों की भूमिका
प्राचीन काल से जो शिक्षा प्राप्त करने की परंपरा चली आ रही थी, उसमें धीरे-धीरे काफी बदलाव हुए। न केवल शिक्षा का स्वरूप बदला, बल्कि शिक्षकों की संकल्पना भी बदलती रही। नालंदा विश्वविद्यालय जो कि दुनियाभर से आने वाले छात्रों का केंद्र था, इसे नष्ट किया गया। उसी तरह से अंग्रेजों ने भी शिक्षा को नए सांचे में ढालने का काम किया। वैश्वीकरण का भी दौर चला है। इसमें भी सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए हैं। तकनीकी बदलाव हुए हैं। शिक्षा का स्वरूप बदला है तो जाहिर सी बात है कि शिक्षकों की भूमिका में भी बदलाव आए हैं।
शिक्षा के विभिन्न आयाम
पहले जब लोग कम पढ़े-लिखे थे तो पढ़े-लिखे लोग ही शिक्षक के तौर पर उनका मार्गदर्शन करते थे, लेकिन आज के दौर में जब मीडिया व सूचना तकनीकों का इतना विस्तार हो गया है तो दूरस्थ शिक्षा के कारण शिक्षकों के स्वरूप में भी बदलाव आए हैं। एक तरह से मानव संबंधों की महत्ता घटी है। तकनीकी कुछ ऐसी हावी हुई हैं कि अब तो डिजिटल मीडिया को अपने शिक्षक के तौर पर छोटे बच्चे भी अपना रहे हैं।
पुनरावलोकन की जरूरत क्यों?
समय के साथ बदलती परिस्थितियों के मुताबिक शिक्षा को ढालना भी जरूरी है। ऐसे में शिक्षा और शिक्षक, इन दोनों का पुनरावलोकन जरूरी है। तकनीकी शिक्षक उभर कर सामने आ रहे हैं। शिक्षकों की परंपरागत भूमिका पर इसका सीधा प्रभाव भी पड़ा है। प्रासंगिकता तक उनकी प्रभावित हुई है। यूट्यूब, फेसबुक, गूगल स्कॉलर आदि के जरिए पाठ्य सामग्री की भरमार हो गई है। ऐसे में जरूरी है कि शिक्षा और शिक्षकों के बदलते स्वरूप के अनुसार इन्हें सांस लेने का पर्याप्त मौका दिया जाए।
एक व्यवसाय के रूप में अध्यापन
शहरों से लेकर गांव तक सूचना और संचार तकनीकों का विस्तार हो गया है। इंटरनेट पर पाठ्य सामग्री उपलब्ध है और इन्हें प्रस्तुत भी इस तरह से किया जा रहा है कि ये बड़ी लोकप्रिय हो गई हैं। शिक्षकों की भूमिका जो मानवीय आधार पर चली आ रही थी, इन तकनीकों के उपयोग के कारण विस्थापित हुई है। जिस तरह से दूसरे व्यवसाय रहे हैं, वर्तमान परिस्थितियों में अध्यापन ने भी अब व्यवसाय का ही रूप ले लिया है।
शिक्षकों की अन्य जिम्मेवारियां
वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षक बनने की बात हो तो युवाओं की पसंद में यह बहुत नीचे चला जाता है। आर्थिक दृष्टि से भी इसके आकर्षक नहीं होने से इसके प्रति युवाओं का मोहभंग हुआ है। कई बार शिक्षकों के आचरण को लेकर भी कई तरह की ऐसी खबरें सामने आती हैं, जो कि इनकी मर्यादा को प्रभावित करती हैं। शिक्षक के तौर पर अपने मूल दायित्व से हटकर पैसे कमाने की चाह भी शिक्षकों पर हावी हुई है, जिसकी वजह से उनकी भूमिका पहले से कहीं अधिक बदल गई है।
शिक्षकों की कमी
शिक्षकों की कमी भी आज एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक दखलंदाजी से भी शिक्षकों के स्तर में गिरावट आने लगी है। शिक्षकों को मिलने वाली सुविधाओं में कमी की वजह से भी शिक्षक समाज में अपनी बदलती भूमिका को स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो पा रहे हैं। इसका सीधा असर शिक्षा व्यवस्था पर पड़ रहा है।
यहां सुधार की आवश्यकता
दौर बदल गया है तो निश्चित तौर पर शिक्षकों की भूमिका भी बदली है। नई चीजों के साथ तालमेल बैठाकर चलना जरूरी है। आज जब इंटरनेट और सोशल मीडिया भी ज्ञान प्राप्त करने का केंद्र बनते जा रहे हैं और ये भी शिक्षकों की तरह पेश आ रहे हैं तो ऐसे में शिक्षकों को भी अपने परंपरागत तरीकों के साथ नए तरीकों को भी शामिल करते हुए और सामंजस्य बैठाते हुए शैक्षणिक कार्य को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। शिक्षकों के समान शिक्षकों की गरिमा को आगे भी बरकरार रखने के लिए शिक्षकों का अपनी बदलती भूमिका को समझना जरूरी है।
निष्कर्ष
समाज में शिक्षकों की भूमिका कैसे विकसित होती गयी और वर्तमान समय के मुताबिक शिक्षकों की भूमिका को किस तरह से परिभाषित किए जाने की जरूरत है, इस लेख में आपने पढ़ा है। निश्चित तौर पर शिक्षकों की भूमिका ही निर्धारित करती है कि समाज किस दिशा में आगे बढ़ेगा और उसका भविष्य कैसा होगा।
 
             
		









































