आज के परिप्रेक्ष्य में मानसिक स्वास्थ्य और चुनौतियां

3021
mental_health


मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ही बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि शारीरिक स्वास्थ्य भी बहुत हद तक मानसिक स्वास्थ्य पर ही निर्भर करता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जब पूरी दुनिया इस सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोनावायरस की चपेट में है तो ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस लेख में हम इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मानसिक स्वास्थ्य की क्या स्थिति है और इसके सामने जो चुनौतियां मौजूद हैं, उनका सामना किस तरीके से किया जा सकता है।

इस लेख में आपके लिए है:

  • मानसिक स्वास्थ्य क्या होता है?
  • मानसिक स्वास्थ्य के मामले में कहां है भारत?
  • किन चीजों से प्रभावित होता है मानसिक स्वास्थ्य?
  • मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति के लिए प्रयास
  • मानसिक रोगियों के अधिकार
  • कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में

मानसिक स्वास्थ्य क्या होता है?

  • मानसिक स्वास्थ्य क्या होता है, मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने के दौरान सबसे पहले इस सवाल का जवाब जानना बहुत ही जरूरी हो जाता है। ऐसा नहीं है कि केवल बीमारी के संदर्भ में ही मानसिक स्वास्थ्य या फिर शारीरिक स्वास्थ्य का इस्तेमाल किया जा सकता है। शारीरिक, मानसिक और सामाजिक इन तीनों ही तरह के स्वास्थ्य को मिलाकर मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करना अत्यधिक उचित प्रतीत होता है।
  • किसी के लिए भी पूरी तरीके से स्वस्थ रहने के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है। मानसिक स्वास्थ्य और कुछ भी नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से, सामाजिक रूप से और मानसिक रूप से संपंन्नता का यह परिचायक होता है।
  • आसान शब्दों में कहें तो यदि कोई इंसान ठीक तरीके से सोच पा रहा है, समझ पा रहा है, काम कर पा रहा है और महसूस कर पा रहा है तो यह उसकी अच्छी मानसिक स्थिति की ओर इशारा करता है। वहीं, यदि मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो जाए तो ऐसे में उसके ये सारे काम बुरी तरीके से प्रभावित होने लगते हैं।
  • इसमें कोई शक नहीं कि मानसिक स्वास्थ्य लंबे समय से दुनिया में एक बड़ी परेशानी के रूप में सामने आया है, लेकिन जिस तरीके से बेरोजगारी, नशाखोरी और गरीबी जैसी परेशानियां बढ़ी हैं, वे भी कहीं-न-कहीं इसे जन्म दे रही हैं। ऊपर से अब जब दुनिया में कोरोनावायरस जैसी महामारी फैल गई है, तो ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य के सामने और भी बड़ी चुनौतियां पैदा हो गई हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य यदि किसी व्यक्ति का प्रभावित होता है तो यह कई रूप में हमारे सामने आता है। उदाहरण के लिए डिमेंशिया, डिस्लेक्सिया, डिप्रेशन, चिंता, ऑटिज्म, कमजोर याददाश्त, नशे की लत, भ्रम और भूलने जैसी बीमारी इसकी ओर इशारा करती हैं।
  • यही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य के प्रभावित होने पर किसी व्यक्ति के व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगता है। उसे हमेशा उदासी घेरे हुए नजर आती है। उसकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित हो जाती है। उसे थकान महसूस होती रहती है। यहां तक कि नींद लेने में भी उसे कठिनाई होने लगती है।

मानसिक स्वास्थ्य के मामले में कहां है भारत?

  • जहां पूरी दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य को एक गंभीर परेशानी के रूप में स्वीकार किया गया है, वहीं भारत में देखा जाए तो इसकी पूरी तरीके से उपेक्षा होती हुई नजर आती है। तभी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक अनुमान कहता है कि वर्ष 2020 पूरा होते-होते भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक बीमारी की चपेट में आ जाएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ही एक रिपोर्ट यह बताती है कि भारत की लगभग 7.5 प्रतिशत आबादी ऐसी है, जो किसी-न-किसी रूप में मानसिक समस्याओं का सामना कर रही है।
  • ऊपर से भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से निपटने के लिए तैयारी भी पूरी नहीं कही जा सकती, क्योंकि यहां हर 10 लाख की आबादी पर मनोचिकित्सकों की संख्या केवल 3 है, जबकि राष्ट्रमंडल देशों का नियम यह कहता है कि प्रति एक लाख की आबादी पर चिकित्सकों की संख्या कम-से-कम 5 से 6 होनी ही चाहिए।
  • भारत में ऐसी स्थिति तब है, जब पूरी दुनिया में मानसिक और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की समस्या से जितने लोग इस वक्त ग्रसित हैं, उनका 15 फ़ीसदी हिस्सा केवल इस देश में मौजूद है।

किन चीजों से प्रभावित होता है मानसिक स्वास्थ्य?

  • मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने में कुछ चीजों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उदाहरण के लिए इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं।
  • कोई सामाजिक वजह इसके लिए जिम्मेवार हो सकती है। आनुवंशिकता की वजह से भी ऐसा होता है।
  • गर्भावस्था से जुड़े पहलू इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। पारिवारिक विवाद की वजह से ऐसा हो सकता है।
  • मस्तिष्क में यदि रासायनिक असंतुलन हो जाए तब भी मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
  • वहीं, जब कोई मानसिक आघात पहुंचता है तो वह स्थिति भी मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति के लिए प्रयास

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1982 में की गई थी। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को भी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में ही शामिल करना और सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल की ओर आगे बढ़ना इसे शुरू करने का मकसद था।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत ही शुरू किया गया था। इसमें मानसिक तौर पर बीमार लोगों के इलाज के साथ उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है। साथ में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने और इसकी रोकथाम के लिए भी कदम उठाए जाते हैं।
  • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस यानी कि 10 अक्टूबर के दिन वर्ष 2014 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति का भी ऐलान कर दिया गया था।
  • यही नहीं, देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती प्रदान करने के लिए भारत सरकार की तरफ से मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 से बदल भी दिया गया है।

मानसिक रोगियों के अधिकार

  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के जरिए मानसिक रोगियों को भी कई तरह के अधिकार प्रदान किए गए हैं। जो मानसिक रोगी गरीबी रेखा से नीचे की जिंदगी बिता रहे हैं, उन्हें इलाज की सुविधा निःशुल्क पाने का अधिकार है।
  • यही नहीं, यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है, तो इस बीमारी के बारे में और इसके उपचार के बारे में उसे पूरी तरीके से गोपनीयता बनाए रखने का अधिकार है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक हर मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को पहुंच का अधिकार दिया गया है। मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति पूरी गरिमा के साथ जिंदगी जी सकते हैं। साथ ही न तो उनके धर्म, लिंग, संस्कृति, निःशक्तता और न ही उनके वर्ग सामाजिक या फिर राजनीतिक मान्यताओं के आधार पर उनके साथ कोई भेदभाव किया जा सकता है।
  • जब तक मानसिक तौर पर बीमार लोगों की सहमति न हो, तब तक उनसे संबंधित किसी भी तरह की जानकारी या फिर उनकी फोटो को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।

कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में

पूरी दुनिया में अब जब कोविड-19 का खौफ फैला हुआ है तो ऐसे में लोगों के प्रभावित होते मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुए दुनिया के सभी देशों की यह जिम्मेवारी बन गई है कि वे मानसिक स्वास्थ्य को हासिल करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएं। विशेष तौर पर भारत को इस दिशा में अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

मानसिक स्वास्थ्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक गंभीर चुनौती जरूर बन गया है, लेकिन यदि संवेदनशील तरीके से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ सोशल मीडिया भी इसे उठाता है, तो इससे इन चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी। इसके अलावा आमजनों को भी अपने घर-परिवार में एवं अपने समाज में मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए परस्पर सहयोग बनाए रखने की जरूरत है।

Leave a Reply !!

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.