क्यों पड़ी Climate Emergency की जरूरत?

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दुनियाभर में जलवायु पर मंडरा रहे संकट के मद्देनजर यूरोपीय संघ की ओर से हाल ही में जलवायु आपातकाल यानी कि Climate Emergency की घोषणा की गई है। इस तरह से यह कदम उठाने वाला दुनिया का यह पहला बहुपक्षीय गुट भी बन गया है। कार्बन उत्सर्जन की वजह से दुनियाभर में इस वक्त जलवायु खतरे में है। ऐसे में जलवायु आपातकाल किस तरह से स्थिति में सुधार लाने में मददगार हो सकता है, इसके बारे में यहां हम आपको बता रहे हैं।

Climate Emergency के प्रमुख बिंदु

  • यूरोपीय संघ की ओर से वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 55 फीसदी तक की कटौती करने के साथ वर्ष 2050 तक ‘कार्बन न्यूट्रल’ बनने का आह्वान किया गया है। इसके पक्ष में यूरोपीय संघ के 429 सांसदों की ओर से मतदान किया गया है। हालांकि, 225 सांसदों ने संकल्प के खिलाफ भी वोट डाले, जबकि 19 सदस्यों ने इसके लिए हुए मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया।
  • यूरोपीय संघ के सांसदों द्वारा यूरोपीय आयोग से यह आग्रह किया गया है कि सभी संबंधित कानूनी एवं वित्तीय व बजटीय प्रस्तावों को अच्छी तरह से सुनिश्चित करके वैश्विक तापन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही सीमित कर दिया जाए।
  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की ओर से पर्यावरण की वार्षिक उत्सर्जन गैप रिपोर्ट (Emission Gap Report) पेश किया गया है। इस रिपोर्ट में 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिए वर्ष 2030 तक वार्षिक उत्सर्जन में 7.6 प्रतिशत तक की कटौती किये जाने की अनुशंसा की गई है। यूरोपीय संघ की घोषणा इसी रिपोर्ट के आने के बाद की गई है।
  • संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी रिपोर्ट में यह जानकारी भी दी गई है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2017 के लिए 54 गीगाटन ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन की सीमा निर्धारित की गई थी, जिसकी तुलना में वर्ष 2018 में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 55.3 गीगाटन रहा है।
  • केवल यूरोपीय संघ ही नहीं, बल्कि अर्जेंटीना और कनाडा जैसे देश एवं न्यूयॉर्क और सिडनी आदि शहरों ने भी Climate Emergency की घोषणा अपने यहां कर दी है।

Paris Agreement & European Union

  • पेरिस समझौता, जो कि 4 नवंबर, 2016 से अस्तित्व में आया है, उसके अंतर्गत मौजूदा लक्ष्य यूरोपीय संघ ने कार्बन के उत्सर्जन में वर्ष 2030 तक 40 फीसदी की कटौती रखा है। इस तरह से कार्बन का स्तर वर्ष 1990 के स्तर पर पहुंच जायेगा।
  • पेरिस समझौता, जो कि 4 नवंबर, 2016 से अस्तित्व में आया है, उसके अंतर्गत मौजूदा लक्ष्य यूरोपीय संघ ने कार्बन के उत्सर्जन में वर्ष 2030 तक 40 फीसदी की कटौती करना है। इस तरह से कार्बन का स्तर वर्ष 1990 के स्तर पर पहुंच जायेगा।
  • हाल ही में जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Program- UNEP) की इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ‘Emissions Gap Report’ जारी की गई है, उसमें यूरोपीय संघ के वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 45 फीसदी की कटौती किये जाने का अनुमान लगाया जा रहा है।

UNEP के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी कि UNEP वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान स्थापित संयुक्त राष्ट्र संघ की एक एजेंसी है, जिसका लक्ष्य उन सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने के साथ पर्यावरण से जुड़ी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन व पारस्परिक सहयोग विकसित करना है, जो इंसानों के पर्यावरण को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित कर रहे हैं।
  • UNEP पर्यावरण से संबंधित सभी तरह की समस्याओं के समाधान के लिए तकनीकी एवं सामान्य तौर पर प्रेरणा देने का काम करता है। अब तक संयुक्त राष्ट्र निकायों की मदद करते हुए UNEP की ओर से दुनियाभर में सैकड़ों परियोजनाओं का संचालन सफलतापूर्वक किया जा चुका है। केन्या की राजधानी नैरोबी में इसका मुख्यालय स्थित है।

European Union के कदम का प्रभाव

  • यूरोपीय संघ ने जो जलवायु आपातकाल की घोषणा की इसका प्रभाव स्पेन की राजधानी मेड्रिड में बीते दिनों संपन्न हुए यूएन क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस कॉप-25 में भी देखने को मिला। हालांकि, मुख्य मुद्दा कि सभी देश कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के इच्छुक है और कम समृद्ध देशों इससे किस तरह से मदद मिल पायेगी, इसे लेकर वार्ता सफल नहीं हो सकी।
  • सम्मेलन में मौसम में तीव्र गति से हो रहे बदलावों, यूरोप में आई बाढ़ और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग को लेकर भी चर्चा हुई, जो जलवायु में परिवर्तन से ही संबंधित हैं।

Oxford Dictionary में Climate Emergency

Climate Emergency को तो ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी वर्ष 2019 का वर्ड ऑफ ईयर चुन लिया है। पत्रिका Bio Science में 69 भारतीयों सहित 11 हजार 258 वैज्ञानिकों ने वैश्विक जलवायु आपातकाल को लेकर हस्ताक्षर किये हैं। ‘World Scientists’ के नाम से यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। वैज्ञानिकों ने जो पिछले 40 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है, रिपोर्ट उसी पर आधारित है। सबसे पहले UK ने अपने यहां जलवायु आपातकाल को पारित किया। 16 साल की स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने पूरी दुनिया का ध्यान पर्यावरण संरक्षण के लिए कानून बनाने के प्रति आकृष्ट किया है।

UN Climate Change Conference COP 25 की रिपोर्ट

UN Climate Change Conference COP-25 के दौरान पेश किये गये प्रकृति के संरक्षण के लिए बने अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से महासागर के गर्म होने से पानी में ऑक्सीजन का स्तर घटता जा रहा है, जिस वजह से ट्यूना, मार्लिन और शार्क जैसी मछलियों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। ऑक्सीजन की कमी से प्रभावित समुद्री स्थानों की संख्या दुनियाभर में 1960 के दशक के 45 के मुकाबले अब 700 तक पहुंच गई है। महासागरों में ऑक्सीजन के घटने से वातावरण में ऑक्सीजन में 3 से 4 प्रतिशत तक की कमी आएगी।

निष्कर्ष

आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों की जद में आ चुकी है तो ऐसे में कार्बन उत्सर्जन को कम करके वैश्विक तापन को घटाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रयास किये जाने बहुत ही जरूरी बन गये हैं और इसलिए Climate Emergency भी वक्त की मांग ही है।

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