पाठकों, अगर जिक्र चांद का हो और चर्चा होने लगे चांद में लगे दाग की, या फिर बात करें चकाचौंध की लेकिन मुद्दा उठने लगे उस चकाचौंध के पीछे अंधियारे का, तो मतलब साफ़ होता है कि मुद्दा और मुसीबत गंभीर थी। वो विपदा इतनी बड़ी थी कि उसने राजधानी दिल्ली के राजपथ पर बैठी सरकार को भी हिला दिया था। ‘केदारनाथ त्रासदी’ जिसका नाम सुनकर आज भी लोग सिहर जाते हैं।
16 जून साल 2013 की रात और 17 जून की सुबह देवभूमि उत्तराखंड के केदारनाथ ने कैसा मंजर देखा और उसके बाद क्या हुआ जानने के लिए, आपको ले चलते हैं राजधानी दिल्ली के राजपथ, जहां राष्ट्रपति, केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री के साथ मंत्रियों का पूरा काफिला, वो पूरी व्यवस्था जिससे ये देश चलता है, सभी मौजूद थे लेकिन उसी दिल्ली से 400 किलोमीटर की दूरी में जब कुदरत ने अपना खेल दिखाया था, तो सरकार के हांथ-पांव भी फूल गए थे। आज से 7 साल पहले देश ने तबाही की ऐसी तस्वीरें देखीं थी, टीवी के विजुअल्स में ऐसी चीखें सुनी थी कि जैसे ‘केदारनाथ’ से खुद भोलेनाथ नाराज हो गए हों।
इस आर्टिकल में आपके काम की बातें-
- एक नजर में पूरा वाकया
- ‘मंदाकनी’ नदी का उफान
- केदारनाथ त्रासदी पुननिर्माण ‘आफ्टर इफेक्ट्स’
- जनहित याचिका
- चश्मदीद की नजर
- सरांश
एक नजर में पूरा मंजर ‘वाकया’
हिमालय की गोद में आसमान चूमती पहाड़ियों से घिरा हुआ हिंदू धर्म का प्रतिमान माने जाने वाली जगह केदारनाथ स्थित है। यहां सिर्फ पहाड़ों की चोटी नहीं है बल्कि भक्ति की ऐसी उचाइयां है जहां लोग शिवशंकर के दर्शन करते हैं। इंडियन एक्सप्रेस, इंडिया टुडे सहित डिजास्टर मैनेजमेंट की रिपोर्ट के अनुसार-
- 16 और 17 जून 2013 की बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने बहुत बड़ी तबाही मचाई थी ।
- उत्तराखंड में आई उस बाढ़ में 4400 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
- उस तबाही में 4200 से ज्यादा गांव प्रभावित हुए थे।
- 991 लोगों की लाशें अलग-अलग जगह मिली थीं।
- जानवरों के मरने की संख्या भी 11091 थी।
- किसानों की 1309 हेक्टेयर भूमि त्रासदी की भेंट चढ़ गई।
- घरों की संख्या 2141 थी जिनका नामों निशान मिट गया।
- 100 से ज्यादा होटल खत्म हो गए थे।
- 172 बड़े पुल बह गए थे।
- 9 नेशनल हाईवे, 35 स्टेट हाईवे खत्म हो गए थे।
- 90 हजार यात्रियों को सेना की मदद से बाहर निकाला गया था।
- 30 हजार लोगों को पुलिस बल ने निकाला था।
- रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा जिले में भीषण तबाही का मंजर देखने को मिला था।
‘मंदाकनी’ नदी का उफान
गौरीकुंड से केदारनाथ का सफर अगर आप पैदल तय करिए तो रामबाड़ा और गरूरचट्टी के ईलाके से होकर वो रास्ता गुजरता है। मंदाकिनी नदी जिसे इतिहास उसकी शीतलता के लिए याद रखता है, उसकी उफनती हुई लहरों ने ऐसी तबाही लायी कि रामबाड़ा का अस्तित्व ही खत्म कर दिया था। अमर उजाला प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार वो पूरा रास्ता भी उस तबाही में ही खत्म हो गया था।
- साल 2014 में यात्रा का रास्ता बदल दिया गया था।
- साल 2017 में गरूरचट्टी को संवारने का काम शुरू हुआ था।
- अक्टूबर 2018 में ये रास्ता फिर से तैयार कर लिया गया था।
केदारनाथ त्रासदी पुननिर्माण ‘आफ्टर इफेक्ट्स’
डिजास्टर मैनेजमेंट, अमर उजाला, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के अनुसार अगर सरकारी आंकड़े पर नजर डाली जाए तो विश्व बैंक और एशियन डेवेलपमेंट बैंक ने आपदा रिकवरी प्रोजेक्ट के तहत 2700 करोड़ रूपए सेंक्शन किए थे। इस प्रोजेक्ट के फंड्स से 2382 घरों को फिर से बनाया गया था।
- पुननिर्माण के कार्य के दौरान प्रदेश में मौजूद सरकार ने केदारघाटी पर ज्यादा फोकस किया है।
- नेहरु पर्वता रोहण संस्थान के अनुसार केदारनाथ मन्दिर और उसके आस-पास के ईलाके को फिर से वैसा ही करने की पूरी कोशिश की गई है।
- अक्टूबर 2017 में केदारनाथ में पुननिर्माण कार्यों का शिलान्यास PM नरेंद्र मोदी ने किया था।
- इंडिया टुडे की रिपोर्ट्स के अनुसार इस शिलान्यास के दौरान PM नरेंद्र मोदी ने चट्टी को फिर से आबाद करने की इच्छा भी जताई थी।
- पी.एम.ओ की वेबसाईट पर आप नजर डालिए तो आपको पता चलेगा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पी.एम.ओ ने बराबर केदारनाथ पुननिर्माण कार्य में नजर बनाकर रखी है।
जनहित याचिका
‘द वायर’ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार साल 2013 में आई इस तबाही को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई थी। जिसमें ये दावा किया गया था कि बाढ़ और भूस्खलन में लापता हुए लोगों को तलाश करने के लिए सरकार ने कुछ ख़ास काम नहीं किया है।
- इस याचिका की सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकार से सवाल भी किया था कि साल 2013 में लापता 3322 लोगों की तलाश के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
- टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जस्टिस रमेश रंगनाथन और जस्टिस नारायण शाह धनिक इस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
सरांश
एनडीटीवी ने उस तबाही के चश्मदीद रहे रघुबीर सिंह बिष्ट से बात की जिन्होंने बताया कि ‘आज भी जब मैं वो समय याद करता हूं तो सिहर जाता हूं, मुझे विश्वास नहीं होता है कि मैं उस तबाही से बच कैसे गया। ऐसा लग रहा था जैसे भोलेनाथ बहुत क्रोधित हो गए हों, 16 जून की शाम ने तबाही ला दी थी, मन्दिर के पीछे की सारी ईमारतें खत्म हो गई थी, मैंने जितने शव देखे थे, उसमें से ज्यादातर लोगों के तन में कपड़ा तक नहीं बचा था। ’
आज 16 जून 2020 है, आज ये देश कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से लड़ रहा है, उस समय प्राक्रतिक संकट से जिस तरह उत्तराखंड लड़ा और आज जीतकर खड़ा है, आज देश को उस मंजर से सीखने की जरुरत है। 16 जून 2013 के बाद लोग अपनों की तलाश कर रहे थे, आज अपनों के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। लेकिन उम्मीद की सुखद किरण तब भी आई थी और फिर से आएगी।