सम्राट अशोक के शासनकाल में मौर्य वंश उत्कर्ष के शिखर पर पहुंच गया था, लेकिन उनके बाद उनके उत्तराधिकारियों में कोई भी ऐसा नहीं हुआ, जो इस महान साम्राज्य को अक्षुण्ण रख पाता या फिर इसका विस्तार कर पाता। वैसे तो इतिहास में अशोक के उत्तराधिकारियों के बारे में जानकारी बहुत कम है, मगर मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ के बारे में बताया जाता है कि वह बेहद विलासी प्रवृत्ति का था और अकर्मण्य भी था। बाणभट्ट ने वृहद्रथ के बारे में हर्षचरित में लिखा है कि सेना के प्रदर्शन के बहाने उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उसे बुलाकर छल से सेना के सामने ही उसका वध कर दिया और इस तरह से मौर्य वंश को समाप्त करके शुंग राजवंश की स्थापना कर दी। हालांकि जब 184 ईस्वी पूर्व में शुंग राजसिंहासन पर बैठा, तब तक मगध साम्राज्य काफी हद तक सिमट चुका था। इसमें मुश्किल से मगध के आसपास के कुछ इलाके और दक्षिण में नर्मदा नदी तक कुछ राज्य शामिल थे।
शुंग के बारे में
- बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के मुताबिक पुष्यमित्र शुंग असल में मौर्य वंश से ही संबंधित था।
- कुछ विद्वानों का कहना है कि ईरान में सूर्य की पूजा होती थी, इसलिए शुंग ईरान का था। हालांकि इससे कम ही लोग सहमत दिखते हैं।
- पुष्यमित्र शुंग के गोत्र से भी उसके बारे में पता लगाने का प्रयास इतिहास में हो चुका है।
- इतिहासकार डॉ. रास चैधरी ने पुष्यमित्र शुंग के बारे में कहा है कि कालिदास के मालविकाग्निमित्रम के मुताबिक अग्निमित्त बैम्बिक और कश्यप गोत्र के थे, जबकि पाणिनी के अनुसार शुंग और ब्राह्मण कुल के भारद्वाज एक-दूसरे से जुड़े रहे थे। ऐसे में यह कहना बहुत मुश्किल हो जाता है कि पुष्यमित्र असल में भारद्वाज गोत्र वाला शुंग था या फिर कश्यप गोत्र वाला बैम्बिक।
- आश्वलायन श्रौत सूत्र को आधार मानकर मैस्डोनेल व कीथ ने शुंग को अध्यापक बताया है।
- इतिहासकार डॉ. पी.के. जायसवाल के मुताबिक अपने विचार और क्रियाकलापों से पुष्यमित्र ब्रह्मण प्रतीत होता है।
- वृहदारण्यक उपनिषद् में शुंग को आचार्य करार दिया गया है, क्योंकि इसमें आचार्य शौंगीपुत्र के बारे में जानकारी मिलती है।
- वैसे, मौर्यों के पुरोहित भी शुंग ही हुआ करते थे।
पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल
- मगध से जो राज्य अलग हो चुके थे, वे पुष्यमित्र शुंग के लिए चुनौती बने हुए थे।
- दूसरी ओर सीमांत के राज्य भी मगध से पहले ही अलग हो गये थे, जिसके कारण यवन आक्रमणकारी बार-बार उत्तर-पश्चिम की ओर से हमला करने की कोशिश कर रहे थे।
- पुष्यमित्र ने भी ठान लिया कि वह मगध का खोया गौरव फिर से हासिल करेगा।
- उसने उन राज्यों का एक करना शुरू कर दिया, जो अभी भी मगध साम्राज्य के ही अंग थे।
- पाटलिपुत्र पुष्यमित्र शुंग के साम्राज्य की राजधानी थी, लेकिन विदिशा को पुष्यमित्र शुंग ने अपनी दूसरी राजधानी बना दिया। अपने बेटे अग्निमित्र को यहां पुष्यमित्र ने राज्य के प्रतिनिधि के तौर पर तैनात कर दिया।
विदर्भ का युद्ध
- भातविकाग्निमित्रम में विदर्भ युद्ध का विवरण मिलता है, जो कि विदिशा के दक्षिण में था और यहां से नजदीक भी था।
- विदर्भ के शासक यज्ञसेन ने जब समर्पण से मना कर दिया तो विदर्भ का युद्ध हुआ और इसमें यज्ञसेन की हार हुई। इसमें अग्निमित्र ने बड़ी वीरता दिखाई।
- विदर्भ को दो हिस्सों में बांटकर एक हिस्सा यज्ञसेन को दूसरा हिस्सा राज करने के लिए उसके चचेरे भाई माधवसेन को दे दिया गया।
- विदर्भ के अपने साम्राज्य में मिल जाने के बाद पुष्यमित्र शुंग की प्रतिष्ठा पहले से और बढ़ गई।
यवनों से युद्ध
- पुष्यमित्र शुंग ने जब राजगद्दी संभाली तो यवन जो भारत के आंतरिक भागों में आतंक फैला रहे थे, उन्होंने तब पहला आक्रमण किया था। इसमें यवनों को पीछे धकेल दिया गया था।
- एक और यवनों का आक्रमण पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल के अंतिम वर्षों में हुआ, जिसका जिक्र महाकवि कालिदास के मालविकाग्निमित्रम में भी मिलता है।
- माना जाता है कि इस वक्त तक पुष्यमित्र शुंग काफी वृद्ध हो गया था और उसके पोते वसुमित्र ने इसका नेतृत्व किया था। यवनों के सरदार के पुष्यमित्र शुंग के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ने की वजह से हुए इस युद्ध में यवन बुरी तरह से हारे थे। वैसे, यवनों की अगुवाई युद्ध में किसने की, इसके बारे में स्पष्ट जानकारी इतिहास में उपलब्ध नहीं है, मगर डोमेट्रियस व मिनेंडर नामक दो यूनानी नायकों का नाम सामने आता है।
- युद्ध के प्रमाण इतिहास में मिलते हैं, क्योंकि महाभाष्य में पतंजलि ने लिखा है, अस्णाद यवनः साकेत यानी कि साकेत को यूनानियों ने घेर लिया। उन्होंने यह भी लिखा है, अस्णाद यवनों माध्यमिकां यानी कि यूनानियों ने माध्यमिका को घेर लिया।
ऐसी थी पुष्यमित्र की धार्मिक नीति
- पुष्यमित्र के बारे में बौद्ध धर्मग्रंथों में बताया गया है कि ब्राह्म्ण का कट्टर समर्थक होने की वजह से बौद्धों पर उसकी तरफ से काफी अत्याचार किये गये।
- दिव्यावदान में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हर बौद्ध भिक्षु के सिर के लिए 100 दीनार देने की घोषणा पुष्यमित्र शुंग ने कर दी थी, हालांकि इस पर भरोसा कम लोग ही करते हैं।
- कई इतिहासकार मानते हैं कि कुछ बौद्धों के पुष्यमित्र के साथ ठीक से व्यवहार न कर पाने की स्थिति में केवल कुछ बौद्धों के साथ वह सख्ती के साथ पेश आया होगा।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- पुष्यमित्र शुंग के बारे में पौराणिक साक्ष्यों के मुताबिक उसने 36 वर्षों तक शासन किया और इस तरह से उसकी मृत्यु 148 ईस्वी पूर्व में हुई होगी।
- हालांकि, वायु और ब्रह्मांड पुराण के मुताबिक पुष्यमित्र ने 60 वर्षों तक शासन किया था।
- इतिहासकार डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी ने लिखा है कि ब्राह्मण का बड़ा समर्थक होने के बावजूद जिस तरह से भरहुत से बौद्ध स्तूप मिले हैं और बंगला प्रभृति साहित्य के कुछ प्रमाण मिले हैं, वे बताते हैं कि पुष्यमित्र शुंग के मन में सांप्रदायिक विद्वेष नहीं हो सकता।
- पुष्यमित्र शुंग ने सांची स्तूप का सौंदर्यीकरण भी करवाया था। सांची के तारण द्वार इसकी याद दिलाते हैं।
ये हुए पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी
- इतिहास में उपलब्ध जानकारी के अनुसार पुष्यमित्र के बाद नौ शुंग शासक हुए थे।
- रूहेलखंड से मिले कुछ सिक्कों पर अग्निमित्र के नाम खुदे हैं। मालविकाग्निमित्र में वसुमित्र के नाम का उल्लेख मिलता है।
- हेलियोडेरस के बेस नगर के गरुड़ध्वज में जो अभिलेख मिले हैं, उनमें भागवत नामक राजा के बारे में जानकारी मिलती है।
- अंतिम शासक शुंग वंश का देवभूति को बताया जाता है। कहा जाता है कि 75 ईस्वी पूर्व के आसपास वसुदेव ने उसे मारकर काण्व वंश की स्थापना कर दी थी।
- वसुदेव, भूमिमित्र, नारायण व सुशर्मा नामक काण्व वंश में चार राजा हुए। इनके बारे में बताया जाता है कि करीब 45 वर्षों तक इन्होंने राज किया।
अंत में
पुष्यमित्र शुंग के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि वह एक कमाल का सेनानी था। सेनापति के तौर पर उसने मौके का फायदा उठाकर राज्य यदि हड़पा तो उसने कुशल शासक के तौर पर इसे संभाला भी। उसके बेटे अग्निमित्र ने भी विदर्भ युद्ध के दौरान, जबकि पोते वसुमित्र ने यवनों से युद्ध के दौरान कमाल की बहादुरी दिखाई। बताएं, इसे पढ़ने के बाद पुष्यमित्र शुंग के बारे में आपके दिमाग में उसकी कैसी तस्वीर बनकर उभरी है?
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