मीर जाफर – बंगाल के नबाव [Mir Jafar – The Nawab of Bengal]

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Mir Jafar


मीर जाफर एक जाना-माना नाम है जिसे पहचान कि, कोई जरुरत नहीं है क्योंकि इस नाम को धारण करने वाले व्यक्ति अर्थात् मीर जाफर ने, अपना नाम ना केवल इतिहास के पन्नो में, काली स्याही से बल्कि आने वाले भविष्य में, भी काली स्याही से अपने नाम को ’’ दगाबाज, गद्दार और विश्वास धातक ’’ के तौर पर स्थापित किया हैं जिसकी वजह से ना केवल बंगाल की जनता को बल्कि पूरे भारतवर्ष को अलग 200 सालो के लिए अंग्रेजो का गुलाम बनना पडा जिसकी हमने और पूरे भारतवर्ष ने, एक बडी कीमत चुकाई हैं।

ये एक दुखद तथ्य है कि, मीर जाफर अर्थात् Nawab of Bengal जैसे विश्वासधाती लोग आज भी हमारे देश में, समाज में, सरकार में और लोगो के दिमाग में मौजूद हैं इसलिए एहतियाती कदम के तौर पर हमारे लिये ये बेहद जरुरी हो जाता है कि, हम, आपको मीर जाफर की दगाबाज सच्चाई से अवगत करवाये। इसलिए हम, आपको अपने इस लेख में, मीर जाफर की पूरी जानकारी प्रदान करेंगे ताकि हमारे सभी पाठक इस गद्दार व्यक्तित्व के विपरित एक देशभक्त व्यक्तित्व बनकर अपना व अपने देश का सकारात्मक विकास कर सकें।

Mir Jafar से पहले बंगाल के शासनात्मक समीकरण

हम, आपको बताना चाहते है कि, मीर जाफर से पहले बंगाल के नवाब के पद पर आसीन थे मिर्जा मुहम्मद सिराजुद्दौला अर्थात् नवाब सिराजुद्दौला जो कि, अपने नाना की मृत्यु के महज 1 साल बाद ही इस पद पर आसीन हुए थे अर्थात् बंगाल की बागडोर संभाली थी लेकिन उनके पदासीन होते ही बंगाल के समीकरण बदलने लगे और बंगाल के शासन में, प्रमुख भूमिका निभाने वाले दरबारी अधिकारी ऊनकी जान के दुश्मन बन बैठे।

नवाब सिराजुद्दौला, जिन्हें सहज 24 साल की आयु में, बंगाल का नवाब बनाया गया था जिन्हें हम, आजाद भारत अर्थात् स्वतंत्र भारत के अन्तिम बंगाली नवाब के तौर पर जानते हैं के दरबारी दुश्मनो की संख्या अचानक बढ गई थी और उनके दुश्मनो की इस सूची में, सबसे पहले स्थान पर उनकी अपनी खाला ’’´घसीटी बेगम ’’ का नाम उल्लेखनीय हैं।

अंत, नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ साजिशें की गई और उन्हें बंदी बनाकर कारागाह में, डाल दिया गया।

मीर जाफर किस वजह से नाराज था सिराजुद्दौला से?

जैसा कि, हम, सभी जानते हैं कि, मीर जाफर बंगाल ने, बंगाल के नवाब अर्थात् Nawab of Bengal सिराजुद्दौला को धोखा दिया था और उसी दगाबाजी के इनाम स्वरुप उसे बंगाल का नाम नवाब बनने का मौका मिला था लेकिन क्या आप उस वजह को जानते हैं जिस वजह से मीर जाफर ने, सिराजुद्दौला को धोखा दिया था यदि नहीं जानते हैं तो हम, आपको बताने के लिए कुछ बिंदुओ की मदद ले रहे हैं जो कि, इस प्रकार से हैं-

  1. सिराजुद्दौला के खिलाफ पहले ही दरबारी साजिशें शुरु हो चुकी थी,
  2. उनकी खाला ’’ घसीटी बेगम ’’ खुले तौर पर उनका विरोध करने लगी थी,
  3. सिराजुद्दौला के खिलाफ चारो तरफ अंसतोष का माहौल बन गया था,
  4. सिराजुद्दौला ने, सालो से बंगाल के सेनापति रह चुके मीर जाफर के बजाय मीर मदान को प्राथमिकता दी थी जिससे मीर जाफर का मन उनकी तरफ से बेहद खट्टा हो गया और
  5. मीर जाफर एक ऐसा व्यक्ति था जिसके आठो पहर का एक ही सपना था और वो था बंगाल का नवाब बनना अर्थता Nawab of Bengal।

ऊपर बताये गये कारणो के आधार पर हम, मीर जाफर द्धारा की गई गद्दारी और दगाबाजी के मूल अर्थ को समझ सकते हैं और साथ ही साथ मीर जाफर की मौकापरस्ती की पहचान कर सकते है।

क्या हैं मीर जाफर की गद्दारी भरी दास्तान?

हमने आपको ऊपर ही उन कारणो के बारे में, बता दिया हैं जिनके आधार पर मीर जाफर खुद बंगाल का नवाब बनाना चाहता था इसलिए यदि आप अभी नहीं जानते हैं कि, मीर जाफर कौन हैं अर्थात् Who was Mir Jafar। तो हम, आपको उसकी गद्दारी भरी दास्तान बता रहे हैं जिसे पढकर आप अवश्य जान जायेंगे कि, Mir Jafar कौन हैं जिसके लिए हम, कुछ बिंदुओ की मदद लेंगे जो कि, इस प्रकार से हैं –

  • रॉबर्ड क्लाइव के साथ मिलकर पूरी योजना तैयार की

बंगाल पर शासन का सपना मीर जाफर देख रहा था और पूरे भारतवर्ष पर शासन का सपना अंग्रेज देख रहे थे जिसे वास्तविकता में, बदलने के लिए अंग्रेजी सेनापति के तौर पर रॉबर्ड क्लाइव को नियुक्त किया जिन्होने अपने जासूसो की मदद से ऐसे सिराजुद्दौला के दरबार में, ऐसे लोगो की खोज कि, जो उसके खिलाफ हैं और उनकी ये खोज मीर जाफर पर जाकर खत्म हुई जिसने अंग्रेजो के साथ मिलकर बंगाल पर आक्रमण की पूरी योजना तैयार की।

  • मीर मदान की मौत के बाद मीर जाफर की गद्दारी

नियोजित नीति के अनुसार अंग्रेजो ने, बंगाल पर आक्रमण कर दिया और सिराजुद्दौला की स्थिति ये थी कि, वो अपनी पूरी सेना को प्रयोग नहीं कर सकते हैं क्योंकि उन्हें उत्तर दिशा से अहमद शाह दुर्रानी और पश्चिम दिशा से मराठो से खतरा था।

इसके बाद वो अपने सेना के साथ प्लासी के मैदान में, पहुंचे जो कि, मुर्शिदाबाद से 27 मील दूर था। 23 जून को अंग्रेजो ने, आक्रमण की शुरुआत की जिसमें सिराजुद्दौला का विश्वासी सेनापति मीर मदान मारा गया और इसीसे से मीर जाफर को गद्दारी करने का मौका मिला।

  • मीर जाफर ने, दर्ज की इतिहास में, अपनी गद्दारी

मीर मदान के बाद सिराजुद्दौला ने, मीर जाफर को सलाह के लिए बुलाया और उसकी सलाह मानकर मीर जाफर सुस्त होकर वापस सैन्य अड्डे पर पहंचने लगी और समय की इस नजाकत को देखते हुए मीर जाफर ने, अंग्रेजो की सिराजुद्दौला की कमजोर स्थिति की सूचना दी और अंग्रेजो ने, सिराजुद्दौला पर आक्रमण कर दिया जिसकी कीमत 2 जुलाई, 1957 को सिराजुद्दौला को अपनी जान देकर चुकानी पडी।

ऊपर बताई गई गद्दारी की दास्तान को हम, केवल शब्दो में, पिरो पाये हैं जबकि वास्तविक स्थिति इसके शाब्दिक वर्णन से बहुत अधिक खतरनाक हैं जिसकी वजह से बंगाल के माध्यम से अंग्रजो ने, भारत में, कदम रखा और अगले 200 सालो के लिए भारत व सभी भारतवासियो को अपना गुलाम बना लिया और इस पूरी परिघटना के केंद्र में, सिर्फ एक व्यक्ति की गद्दारी महक रही थी और वो था मीर जाफर।

मीर जाफर की हवेली ’’ नमक हराम की ड्योढी ’’ के नाम से बदनाम है

मीर जाफर जो कि, इतिहास के पन्नो में, एक दगाबाज और गद्दार के नाम से सदा के लिए दर्ज हो गया साथ ही साथ दर्ज हुई उसकी हवेली जिसे आज कल ’’ नमक हराम की ड्योढी ’’ के नाम से जाना जाता हैं जिसे मीर जाफर की गद्दारी को प्रमाणित करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं

सारांश

अंत, उपरोक्त विवरण को पढने के बाद आप जान ही गये होंगे की मीर जाफर कौन था और क्या था उसका व्यक्तित्व। हमने अपने लेख मे, मीर जाफर जैसे गद्दार का वर्णन क्यूं किया ये आपका प्रश्न हो सकता है जिसके जबाव में, हम, कहना चाहते है कि, इस तरह के दगाबाज और गद्दार आज भी हमारे समाज में, मौजूद हैं और धीरे-धीरे हमारे समाज को दीमक की तरफ खोखला बना रहे हैं इसलिए हमें, अपने समाज में, मीर जाफर से इन लोगो की पहचान करनी होगी और उन्हें जल्द से जल्द से रोकना होगा ताकि वे मीर जाफर जैसी गद्दारी ना कर सकें जिसकी कीमत सदियो तक भारतवर्ष को चुकानी पडे।

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