लाहौर अधिवेशन 1929 [Historic Lahore Session 1929]

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Lahore Session 1929


क्या आप जानते हैं कि, पहला भारतीय स्वतंत्रता दिवस कब मनाया गया, पूर्ण स्वराज्य की घोषणा किसने की या फिर लाहौर अधिवेशन 1929 का क्या महत्व हैं भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संघर्ष में, यदि आपका जबाव ना में हैं या फिर आप हल्की-फुल्की जानकारी रखते हैं पूरी नही तो आपको हमारा आज का लेख अवश्य पढना चाहिए क्योंकि हम, आपको अपने आज के भारतीय स्वतंत्रता व भारतीय राजनीति को समर्पित लेख में, Lahore Session of 1929 व ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन 1929 की पूरी जानकारी प्रदान करेंगे ताकि हमारे सभी पाठक व विद्यार्थी इस पूरी घटना को विस्तार से समझ सकें और वर्तमान में, मिली स्वतंत्रता के पीछे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को समझ और उनका सम्मान कर सकें।

लाहौर अधिवेशन 1929 के लिए भूमि तैयार करने वाले तत्व

हम, सभी जानते हैं कि, Lahore Session of 1929 एक ऐतिहासिक अधिवेशन था जो कि, कोई आकास्मिक घटना नहीं बल्कि लाहौर अधिवेशन 1929 के लिए पिछले कई महिनो से भूमि तैयार की जा रही थी जिसे हम, सरल भाषा में, राजनीतिक समीकरण कह सकते हैं जिसके अन्तिम परिणाम के तौर पर हमारे सामने आया historic Lahore Session of 1929।

इसलिए हम, आपको उन कुछ राजनीतिक समीकरणो व तत्वो की जानकारी देना चाहते हैं जिन्होने जमीनी स्तर पर लाहौर अधिवेशन के लिए राजनीतिक भूमि तैयार की उनकी एक संक्षिप्त उपलब्ध सूची इस प्रकार से हैं-

  1. लाहौर, जो कि, उन दिनो अंग्रेजी शासन के अधीन भारत के पंजाब प्रान्त की राजनधानी हुआ करती थी का राजनीतिक आक्रोश अपने विस्तार के पथ पर था,
  2. पूरे भारतवर्ष में, आज़ादी को लेकर आर या पार होने की स्थिति थी,
  3. 1919 के जलियावाला बाग में, जनरल डायर द्धारा की गई हत्याकांड का बदला लेने के लिए भारतवासियों का खून खौल रहा था,
  4. राष्ट्रपिता महात्मा गांघी ने, जलियावाला बाग हत्याकांड के प्रति आक्रोश दर्ज करते हुए भारतवर्ष में, पैदल यात्रायें की जो कि, साल 1929 में, जाकर पंजाब प्रान्त की राजधानी लाहौर में, समाप्त हुई आदि।

अंत, हम कह सकते हैं कि, उपरोक्त सभी बिंदुओ, तत्वों या फिर राजनीतिक समीकरणो ने मिलकर Lahore Session of 1929 के लिए भूमि तैयार की जिसने भारतीय राजनीति को एक नया मोड दिया और साथ ही साथ भारतवासियो को पूर्ण-स्वराज्य की सौगात दी।

1929 का लाहौर अधिवेशन (Lahore Session of 1929) क्या है?

भारतीय राजनीति मे, 19 दिसम्बर, 1929 से लेकर 31 दिसम्बर, 1929 की पूरी समयावधि को ऐतिहासिक करार दिया गया हैं क्योंकि इसी कालावधि के दौरार 1929 का लाहौर अधिवेशन अर्थात् Lahore Session of 1929 का आयोजन किया गया था जिसमें भारतीय राजनीति को नई पहचान देने वाली तपिश को महसूस किया जा सकता हैं।

1929 के लाहौर अधिवेशन के लिए मूलत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था जब वे जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध-स्वरुप भारतवर्ष की पैदल यात्रा करके लाहौर वापस आये थे लेकिन महात्मा गांधी जी ने, खुद लाहौर अधिवेश की अध्यक्षता करने के बजाय मोतीलाल नेहरु के सुपुत्र श्री. पंडित. जवाहर लाल नेहरु को अपनी जगह अध्यक्ष नामित व नियुक्त किया।

इस प्रकार पंडित जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में, ही लाहौर अधिवेशन 1929 का शुभारम्भ किया गया था जिसमें अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त श्री. नेहरु जी ने, अपने अध्यक्षीय भाषण कुछ मूलभुत बातो का उल्लेख किया जिन्हें हम, आपके समक्ष कुछ बिंदुओ की मदद से प्रस्तुत करना चाहते हैं जो कि, इस प्रकार से हैं –

  1. श्री. नेहरु जी ने, सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए ’’ पूर्ण स्वराज्य ’’ की मांग की,
  2. विदेशी हुकुमत अर्थात् ब्रिटिश राज को जड समेत उखाड फेंकने के लिए सम्पूर्ण भारतवासियों का आह्वान किया,
  3. नेहरु जी ने कहा कि, हमारे लिए जितना जरुरी ब्रिटिश राज को भारत से उखाड फेंकना हैं उससे भी अधिक जरुरी हैं भारतवासियो के आत्मनिर्भर चरित्र व स्वावलम्बी स्वाभिमान का निर्माण करना होगा जिसके लिए हमें, ’’ राज-प्रथा ’’ को समाप्त करना होगा ताकि हमारे भारतवासी आत्मनिर्भर बनकर अपना व अपने भारत का निर्माण कर सकें आदि।

उपरोक्त मूलभुत तत्वो की मदद से हमने आपके सामने लाहौर अधिवेशन 1929 की जानकारी प्रदान की ताकि आप लाहौर अधिवेशन को लेकर अपनी मौजूदा जानकारी में, विस्तार कर सके।

नेहरु को कैसे मिला लाहौर अधिवेशन 1929 की अध्यक्षता करने का मौका?

जैसा कि, हमने आपको बताया कि, लाहौर अधिवेशन की अध्य़क्षता के लिए पहले ही राष्ट्रपिता महात्मा गांघी को नियुक्त किया गया था लेकिन दो मौजूदा कारणो की वजह से नेहरु को लाहौर अधिवेशन 1929 की अध्यक्षता करने का मौका मिलेगा जिनकी सूची इस प्रकार से हैं –

  1. पूर्ण स्वराज्य की मांग सबसे पहले पं. नेहरु के द्धारा की गई थी जिसे कांग्रेस पार्टी में, अपना मौलिक लक्ष्य बना लिया था और
  2. दूसरा कारण ये था कि, महात्मा गांधी ने, स्वयं पं. नेहरु के नाम की सिफारिश की थी और नेहरु को गांधी का पूर्ण समर्थम प्रप्त था आदि।

इस प्रकार उपरोक्त कारणो के आधार पर ही नेहरु को लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता करने का मौका मिला।

Historic Lahore Session 1929 – प्रस्ताव की प्रमुख मांगे

पंडित. श्री, नेहरु जी ने, जहां एक तरफ लाहौर अधिवेशन 1929 की अध्यक्षता की वही दूसरी ओर उन्होने कांग्रेस पार्टी की भविष्य की रणनीतिओ अर्थात् प्रस्ताव की प्रमुख मांगो को भी उजागर किया जिसे हम, आपके सामने कुछ बिंदुओ की मदद से प्रस्तुत करना चाहते हैं जो कि, इस प्रकार से हैं –

  1. कांग्रेस की आगे की रणनीति को स्पष्ट करते हुए नेहरु में, अपने अध्यक्षीय भाषण में, कहा कि, ’’ विदेशी शासन से अपने देश को मुक्त कराने के लिए अब हमें, खुला विद्रोह करना हैं और कामरेड आप लोग व राष्ट्र के सभी नागरिक इसके हाथ बटाने के लिए सादर आमंत्रित हैं।’’,
  2. कांग्रेस पार्टी गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार करेगी,
  3. पूरे भारतवर्ष में, सविनय अवज्ञा आंदोलन का शुभारम्भ किया जायेगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी कांग्रेस कार्य-समिति को सौंपी गई हैं,
  4. भविष्य में, होने वाले कौंशिल चुनावो में, कांग्रेस सदस्यो द्धारा भागीदारी नहीं की जायेगी जिसके लिए वर्तमान में, कांग्रेस के जो सदस्य कौंशिल मे, हैं उन्हें अपना त्यागपत्र देने का आदेश दिया जा चुका हैं,
  5. Historic Lahore Session 1929 में, कांग्रेस की आगे की रणनीति बताते हुए ही नेहरु जी ने, सबसे बडी रणनीति का ऐलान भी किया जिसके तहत आगामी 26 जनवरी, 1930 पूरे भारतवर्ष में, पहला स्वतंत्रता दिवस का आयोजन किया जायेगा आदि।

इस प्रकार कांग्रेस ने, 1929 में, आयोजित अपने लाहौर अधिवेशन को छुप-पुट बदलावो को पूर्ण करते हुए अधिवेशन के अन्तिम दिन अर्थात् 31 दिसम्बर, 1929 को रावी नदी के तट पर अधिवेशन के अध्यक्ष श्री. नेहरु द्धारा पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कर दी गई और इंकलाब जिन्दाबाद के उत्साहवर्धक नारो के बीच नेहरु ने, भारत का तिरंगा झंडा पहली बार औपचारिक तौर पर लहरा दिया जिसके फलस्वरुप सम्पूर्ण भारतवर्ष में, खुशी और उत्साह का माहौल देखा गया।

26 जनवरी, 1930 को मनाया गया पहला स्वतंत्रता दिवस

लाहौर अधिवेशन 1929 में जारी योजना के अनुसार आगामी 26 जनवरी, 1930 को पहले स्वतंत्रता दिवस का आयोजन किया जायेगा जिसके तहत सभी लोगो व नागरिको को सांक्षा व सामूहिक तौर पर स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रतिज्ञा अर्थात् शपथ दिलाई गई। इस प्रकार हम, कह सकते हैं कि, 1929 का लाहौर अधिवेशन वास्तव में, एक ऐतिहासिक अधिवेशन था जिसने भारतीय स्वतंत्रता व भारतीय राजनीति के निर्माण में, अह्म योगदान दिया।

सारांश

अंत, हमने आपको अपने इस लेख में, Historic Lahore Session 1929 की पूरी जानकारी प्रदान ताकि आप भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को और साथ ही साथ नये भारतीय उत्कर्ष के संघर्षमय पडावो की जानकारी प्राप्त कर सकें क्योंकि आज का हमारा स्वंतत्र जीवन इतिहास के हमारे स्वतंत्रता सेनानियो व समर्पित राजनेताओ की ही देन हैं जिनके योगदान को हम, भुला नहीं सकते हैं और ना ही भूला सकता हैं हमारा भारतवर्ष।

Historic Lahore Session 1929 को लेकर आपके सवाल और हमारे जबाव

सवाल 1 – लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए किसे नियुक्त किया गया था?

जबाव 1 – लाहौर अधिवेशन की अध्य़क्षता के लिए सबसे पहले महात्मा गांधी को नियुक्त किया गया था।

सवाल 2 – लाहौर अधिवेशन कब से कब तक चला?

जबाव 2 – लाहौर अधिवेशन 19 दिसम्बर, 1929 से लेकर 31 दिसम्बर, 1929 तक चला।

सवाल 3 – लाहौर अधिवेशन 1929 के पूर्ण स्वराज्य किस नेता का मौलिक विचार था?

जबाव 3 – पं. नेहरु।

सवाल 4 – लाहौर अधिवेशन 1929 में, प्रस्तावित किस दिन को पहला भारतीय स्वतंत्रता दिवस मनाया गया?

जबाव 4 – 26 जनवरी, 1930 को।

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