शक वंश का इतिहास एवं शासक

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भारत एक प्राचीन देश है, इसकी प्रामणिकता पुराणों, महाकाव्यों में मिलती है। यदि हम भारत के आधुनिक इतिहास की बात करें तब भारत देश सिंधुघाटी, वैदिक , मौर्या, गुप्त आदि संस्कृतियों का गवाह रहा है। इसके साथ भारत  यवनों, शको, कुषाणों, हूणों, अरबों, ईरानियों, गुलामो, खिलजी, तुगलक, सैय्यद, लोदी, मुग़लों, अंग्रेजों जैसी विदेशी संस्कृतियों का भी केंद्र रहा था। भारत पर लगभग 11 से ज्यादा विदेशी जातियों ने शासन किया है। इसके अलावा बहुत से विदेशी आक्रांता भारत में लूट-पाट करके भी गए थे। इन विदेशी ताकतों का भारत की संस्कृति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति मूल रूप में न रहकर समय के साथ-साथ विभिन्न संस्कृतियों के मेल से परिवर्तित होती चली गयी। आज के इस अंक में हम आपको ऐसी ही एक विदेशी संस्कृति शक वंश के बारे मे बताने जा रहें है जिसने भारत में लगभग 400 वर्षों तक शासन किया था। तो चलिए दोस्तों आज का लेख प्रारम्भ करते है जिसका नाम है शक वंश का इतिहास और शासक

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इस लेख में आप जानेंगे –

  • शक वंश के ऐतिहासिक स्रोत.
  • शक वंश की उत्पत्ति. 
  • शकों का प्रारंभिक इतिहास.
  • शकों का भारत में आगमन.
  • शककालीन भारतीय स्रोत. 
  • शक कालीन शासक. 
  • शक कालीन शासन व्यवस्था.
  • शकों का भारतीय संस्कृति मे योगदान एवं महत्व.

शक वंश के ऐतिहासिक स्रोत

  • शकों की उत्पत्ति एवं इतिहास के बारे मे प्रारंभिक जानकारी  चीन के साहित्य पान-कू कृत सिएन-हान-शू या प्रथम हान वंश का इतिहास तथा फान-कृत हाऊ-हान – शू  या परवर्ती हान वंश का इतिहास से प्राप्त होती है।
  • चीनी साहित्यों से शकों के यू-ची, हूण तथा पार्थियन जाति के साथ संघर्षों तथा उनके पलायन की जानकारी मिलती है।
  • चीनी साहित्यों मे शकों को सई या सईवांग’ कहा गया है। ईरानी, यूनानी साहित्यों में शकों को सीथियन’ कहा गया है तथा भारतीय इतिहास में इन्हे शक नाम से वर्णित किया गया है।

शक वंश की उत्पत्ति 

  • शकों के उत्पत्ति के विषय में ईरानी, यूनानी, चीनी इतिहासकारों में मतभेद हैं। शकों का मूल निवास मध्य एशिया वर्तमान में सीरिया के उत्तर का  क्षेत्र माना गया है।
  • शकों का सम्बन्ध स्किथी जनजाति के समुदाय से माना गया है। इनका निवास स्थान सीरनदी या सीरदरिया के पास का क्षेत्र था। वर्तमान में सीरनदी  मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, उज़बेकिस्तान और काज़ाख़स्तान आदि देशों से बहती हुई अरल सागर मे गिरती है।
  • स्किथी जनजाति एक खानबदोश एवं बर्बर जनजाति थी। इसके सम्बन्ध में इतिहासकारो में मतभेद हैं उनका कहना है कि सभी शक स्किथी थे यह तो ज्ञात है किन्तु सभी स्किथी शक थे या शक केवल स्किथी समुदाय की किसी विशेष जनजाति को कहा गया है यह विवाद का विषय है।
  • इसके अतिरिक्त रामायण ,महाभारत, पुराणों में भी शकों का वर्णन मिलता है। इनके अनुसार शकों का सम्बन्ध सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से रहा है, राजा सगर ने नरिष्यंत को उनके स्वेच्छाचारी आचरण के चलते राज्य से निष्कासित कर दिया था।

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  • राजा नरिष्यंत ब्राह्मणो तथा वर्णाश्रम व्यवस्था का त्याग करके म्लेच्छ बन गए, आगे चलकर उनके वंशज शक कहलाये थे।

शकों का प्रारंभिक इतिहास

  • शक जाति के लोग मूल रूप से सीरनदी के पास में रहते थे। यहाँ पर उनके ऊपर चीन की युइशि’ जाति ने आक्रमण करके उन्हें पलायन करने पर मजबूर कर दिया था।
  • कुछ इतिहासकारो का मत है कि  165 ईसा पूर्व चीन की यू-ची नामक जाति ने शको के ऊपर आक्रमण करके उन्हें सीरनदी क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।
  • शकों ने यूनानियों पर आक्रमण करके बैक्ट्रिया पर अपना अधिकार कर लिया था। यू-ची जाति ने शकों को बैक्ट्रिया में भी पराजित करके उन्हें पलायन करने पर मजबूर कर दिया।
  • शकों ने इसके बाद पार्थिया पर आक्रमण करके दो पार्थियन शासकों फ्रात द्वितीय (128ईपू ) तथा आर्तेबानस (123ईपू ) को पराजित किया। इसके बाद तीसरे पार्थियन शासक मिथिदातस द्वितीय (123-88 ईपू) ने शकों को पराजित करके उन्हें सीस्तान’ की ओर खदेड़ दिया था।
  • शक सीस्तान से होते हुए गांधार, गांधार से होते हुए सिंध प्रदेश के निचले भाग में पहुंचे।
  • शकों ने सिंध प्रदेश को अपना निवास एवं राजधानी बनाया यह प्रदेश शक द्वीप’ के नाम से जाना गया। इसके बाद शकों ने इस स्थान को केंद्र में रखकर भारतवर्ष पर सिलसिलेवार आक्रमण किये थे।

शककालीन भारतीय स्रोत 

  • शक साम्राज्य से संबंधित तथ्यों की जानकारी मथुरा के राजकीय संग्रहालय में मूर्ती, स्तंभ, सिंह शीर्ष स्तंभ, मुद्रा आदि कई वस्तुए,रुद्रदामन का गिरनार (जूनागढ) का शिलालेख, रुद्रदामन का अंधौ (कच्छ की खाङी) का शिलालेख, नासिक एवं जुन्नार गुहालेख आदि से प्राप्त होती है।
  • भारत के पुराणों, महाकाव्यों, स्मृतियों तथा गार्गी संहिता, विशाखादत्त कृत देवीचंद्रगुप्तम, बाणभट्ट कृत हर्षचरित, राजशेखर कृत काव्यमीमांसा, जैन ग्रंथ कालकाचार्य कथानक में भी शकों का उल्लेख मिलता है।

शकों का भारत में आगमन

  • जैन साहित्यों के अनुसार भारत में शकों के आगमन का कारण जैन आचर्य कालक का आमंत्रण था। आचर्य कालक ने उज्जयिनी के शासक गर्दभिल्ल के प्रतिकार के रूप में शक शासको को भारत में आक्रमण का न्यौता दे डाला था।
  • उज्जयिनी का शासक गर्दभिल्ल शैव मतावलंबी था। जैन संप्रदाय के साथ मतभेदों के कारण जैन आचर्य कालक ने शकों को 78 ईसा पूर्व उज्जैयनी में आक्रमण को प्रेरित किया था।
  • शकों ने उज्जैयनी पर अधिकार तो कर लिया किन्तु उनका उज्जैयनी पर अधिकार ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाया था।
  • 57 ईसा पूर्व गर्दभिल्ल के पुत्र ने शकों को पराजित करके विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी। उसने 57 ईसा पूर्व मे विक्रम सम्वत की शुरुआत की थी।

शक कालीन शासक

  • शकों के भारत पर प्रथम आक्रमण की विफलता के बाद शकों ने अपनी शक्ति को संगठित करने पर ध्यान दिया था। उन्होंने अपनी शक्ति का केंद्र तक्षशिला बनाकर राजकाज किया था।
  • सबसे पहला शक शासक माओस था, जिसका शासन कल 20 ईस्वी पूर्व से 20 ईस्वी पश्चात तक माना जाता है। इसका साम्राज्य पुष्कलावती, कपिशा तथा मथुरा तक विस्तृत था।
  • माओस के बाद उसका पुत्र एजेज तक्षशिला का राजा बना था। उसेक बाद क्रमशः एजिलीसेज तथा एजेज द्वितीय ने शासन किया था।
  • इसके पश्चात में शक दो भागों में विभाजित हो गए। इनका पहला भाग उत्तरी छत्रप तथा दूसरा भाग पश्चिमी छत्रप कहलाया।
  • उत्तरी छत्रप के अंतगर्त तक्षशिला तथा मथुरा के क्षेत्र आते थे। तक्षशिला उस समय शकों के अधिकार क्षेत्र पंजाब की राजधानी थी।
  • तक्षशिला का तात्कालिक शक शासक लियाक कुसुलक था। उसने अपने नाम के यूनानी कला की छाप वाले सिक्के चलाये थे। इसके पश्चात तक्षशिला का शासक कुसुलक का पुत्र पाटिक बना।
  • उत्तरी छत्रप क्षेत्र मथुरा का शासन हमामश और हगाम नामक दो शासकों के हाथ मे था। आगे चलकर इनके उत्तराधिकारी राजुल ने मथुरा का शासन संभाला था।
  • पश्चिमी छत्रप क्षेत्र का शासक मुमक था उसके बाद उसके उत्तराधिकारी नहपान यहाँ का शासक बना। नहपान एक योग्य और पराक्रमी शासक था। इसके काल के बहुत से सिक्के और अभिलेख प्राप्त हुवे हैं जो इसके कार्यों का वर्णन करते हैं।
  • नहपान का शासन 125 ईस्वी के आसपास समाप्त  हुआ था। नहपान ने अपने शासनकाल मे काठियाबाड़, भड़ौच, सुपार दशपुर, अजमेर एवं पुष्कर मे राज किया था। इसने मालवों से युद्ध करके भद्रों को संकट मुक्त किया था।
  • 78 ईसवी में  चष्टन ने उज्जैन में शक वंश की स्थापना की थी। इसके बाद इसका पुत्र जयदमन उज्जैन का शासक बना।
  • 130 ईस्वी मे जयदमन का पुत्र रुद्रदमन (130-150 ई०) उज्जैन का शासक बना। रुद्रदमन शक शासकों मे सबसे प्रतापी था। जूनागढ़ से प्राप्त गिरनार लेख रुद्रदमन के शासन कार्यों पर प्रकाश डालता है।
  • रुद्रदमन द्वारा मौर्य कालीन सुदर्शन झील का पुनः निर्माण कराया था। इस झील के जीर्णोद्धार के लिए रुद्रदमन ने अपने मंत्रीमंडल से धन व्यय करने की अनुमति मांगी थी। किन्तु अनुमति न मिलने पर रुद्रदमन ने अपने व्यक्तिगत कोष से इस झील का जीर्णोद्धार कराया था।
  • रुद्रदमन के बाद भी कई शक शासक हुए किन्तु वे अपनी योग्यता सिद्ध नहीं कर पाए जिस कारण से शक वंश पतन की और अग्रसर हो गया।
  • चौथी शताब्दी के चतुर्थांश मे रुद्रदेव तृतीय शक वंश का अंतिम शासक हुआ। गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय ने रुद्रदेव तृतीय को पराजित करके शक वंश का पतन कर दिया था।

शक कालीन शासन व्यवस्था

  • शक शासन प्रणाली में सर्वोच्च स्थान राजा का होता था। राजा को देवतुल्य माना जाता था। राजा के पास वाले प्रशासनिक अधिकार सुरक्षित थे।
  • राज्य की शासन व्यवस्था के संचालन हेतु एक अमात्य मण्डल की नियुक्ति की जाती थी। अमात्य मण्डल के अंतगर्त विभिन्न विभाग होते थे , प्रत्येक विभाग की कार्यप्रणाली तथा दायित्वों के लिए अमात्य मण्डल सीधे उत्तरदायी होते थे।
  • साम्राज्य को प्रांतो या छत्रपों में विभाजित किया गया था। इन प्रांतो का संचालक महाछत्रप कहलाता था। प्रांतो को अधिष्ठान, आहार, जनपद तथा विषय मे विभाजित किया गया था। इन सभी के प्रशासकों का दायित्य लोगों के साथ उदारतापूर्ण और जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार करना होता था।
  • शक प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी, ग्रामप्रधान को उत्तरी भारत में ग्रामीण  तथा दक्षिणी भारत में मुलुक कहा जाता था। नगर निकायों को निगम कहा जाता था।
  • ऐसे नगर या निगम जिन में प्रशासक, छत्रप आदि निवास करते थे , उन्हें अधिष्ठान कहा जाता था।
  • शक शासन व्यवस्था में राज्यकोष में आवश्यक धनपूर्ति के लिए राजस्व कर की व्यवस्था थी। राजा द्वारा जनता पर विभिन्न कर लगाए गए थे। किन्तु करो की दरों को सुविधानुसार और आसान रखा गया था।
  • इतिहासकारों के अनुसार शकों का शासन एक स्वस्थ शासन था , उनकी नीतियां उदार थी, कर-प्रणाली आसान थी। शक स्वेच्छाचारी न होकर उदार और सहिष्णु थे।

शकों का भारतीय संस्कृति मे योगदान एवं महत्व

  • शक मूल रूप में जनजाति, खानाबदोस और बर्बर थे, किन्तु भारतवर्ष मे आने के बाद वे यहाँ की संस्कृति में घुल-मिल गए। इतिहासकारो के अनुसार शकों ने भारतवर्ष में आकर शैव, वैदिक, बौद्ध आदि मत स्वीकार कर लिए थे।
  • शकों ने 78 ईस्वी में शक संम्वत की शुरुआत की थी।वर्तमान में शक संम्वत कैलेंडर का उपयोग  हिन्दू वर्षों की गणना हेतु किया जाता है।
  • शकों ने भारतवर्ष की संस्कृत भाषा को प्रचार-प्रसार की भाषा बनाया था। रुद्रदामन का गिरनार लेख संस्कृत में लिखा गया है। अतः शकों ने भारत की सांस्कृतिक भाषा संस्कृत के विकास में योगदान दिया था।
  • रुद्रदमन वैदिक धर्म का अनुयायी था , उसे संस्कृत साहित्य तथा भाषा से अत्यधिक प्रेम था। संस्कृत भाषा के प्रथम नाटक की रचना रद्रदमन की राजसभा में हुई थी।
  • शकों ने अपने कार्यों तथा क्रियाकलापों को मौर्य युगीन शिलालेखों के भांति गुहलेखो ,ताम्रपत्रों, शिलालेखों आदि के द्वारा सुरक्षित किया था। इसी के साथ ही शकों ने कभी भी किसी ऐतिहासिक शिलालेख तथा तथ्यों को नष्ट नहीं किया था।
  • शक रुद्रदमन के मौर्यकालीन सुदर्शन झील के जीर्णोद्धार का कार्य किया गया था। इससे इस बात की पुष्टि होती है की शक शासक जनता और अपने पूर्ववर्ती शासकों के कार्यों के प्रति उदार रहे थे।
  • ऐसा माना जाता है कि मध्य भारत में छठपूजा को प्रारम्भ करने वाले शक ही थे। ऐसा माना जाता है कि भारत में सूर्य पूजा शकद्वीप (पूर्वी ईरान,बलोचिस्तान और सीस्तान का क्षेत्र ) के मागी पुरोहितो द्वारा आरम्भ की गयी थी।

चलतेचलते

किसी भी देश का इतिहास उस देश की प्रगति, संस्कृति तथा प्राचीनता पर बहुत प्रभाव डालता है। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि किसी भी देश क इतिहास प्रामाणिक हो, उसके साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न की गयी हो। भारत में राज करने वाली विदेशी आक्रांता जातियों ने भारत की प्राचीनता, समृद्धता तथा महानता के बहुत से स्रोतों को नष्ट कर दिया, नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। किन्तु शक, कुषाण आदि बहुत सी विदेशी जातियों ने भारत को तथा उसके इतिहास को सँजो कर रखा इसके लिए हमें इनका ऋणी होना चाहिए। ये जातियां हमारे भारतीय इतिहास में एक अमित छाप छोड़कर चली गयी हैं। इन्होने भारत के कला, संगीत, शिक्षा, इतिहास आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व वृद्धि की है। आज के इस लेख में हमारे द्वारा शक वंश के विषय में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर जानकारी दी गयी है। यदि आपको यह जानकारी पसंद आयी हो, तो कृपया अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें। धन्यवाद!

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