असहयोग आंदोलन के अंत से सविनय अवज्ञा तक के महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम

[simplicity-save-for-later]
7203
ahsahyog aandolan

असहयोग आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक रहा, मगर जब इस आंदोलन को स्थगित किया गया तो इसके साथ ही खिलाफत का भी मुद्दा खामोश हो गया। ऐसे में हिंदू और मुस्लिमों के बीच की एकता में दरार पड़ी और इसने सांप्रदायिक तनाव को जन्म दे दिया।

यूं बदलने लगा माहौल

  • मोपला किसान केरल के मालाबार इलाके में हिंसक हो उठे। भू सामंतों के साथ साहूकारों के खिलाफ उन्होंने विद्रोह का बिगूल फूंक दिया। इस दौरान उनका खून भी उन्होंने खूब बहाया।
  • कांग्रेस की ताकत पहले से कहीं अधिक बढ़ गई। साथ ही इसका संगठनात्मक ढांचा भी पहले से मजबूत हुआ।
  • आजादी पाने की इच्छा इससे देश के लोगों के अंदर और प्रबल हुई। जनता ने ब्रिटिश सरकार के लिए और परेशानियां पैदा करना शुरू कर दिया।

राजनीतिक गतिविधियां

  • स्वराज पार्टी की स्थापना हुई। असहयोग आंदोलन पूरी तरह से समाप्त हो गया। ऐसे में कांग्रेस के राजनीतिक कार्यक्रम बेजान से हो गये।
  • वर्ष 1919 में मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड अधिनियम की ओर से घोषित किये गये विधान परिषदों के चुनावों में हिस्सा लिया जाए या नहीं, कांग्रेस के सामने यह एक बड़ा सवाल था।
  • दिसंबर, 1922 में चितरंजन दास की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ।
  • परिवर्तनवादियों के प्रस्ताव परिवर्तन विरोधियों द्वारा नामंजूर कर दिये। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए चितरंजन दास मजबूर हो गये।
  • अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर मोतीलाल नेहरू को भी कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी बनानी पड़ी। इसे ही दरअसल स्वराज पार्टी के नाम से जानते हैं। चितरंजन दास जहां इसके अध्यक्ष, वहीं मोतीलाल नेहरू इसके महासचिव बने।
  • चुनाव नवंबर, 1923 में हुए। स्वराज पार्टी ने केंद्रीय विधानमंडल में 101 निर्वाचित सीटों में से 42 सीटें भी अपने नाम कर ली। खासकर मध्य प्रान्त में तो पार्टी को स्पष्ट रूप से बहुमत मिल गया। सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर यह बंगाल में सामने आई।
  • स्वराज पार्टी का प्रदर्शन संयुक्त प्रांत यानी कि आधुनिक उत्तर प्रदेश के साथ बंबई में भी शानदार रहा। हालांकि, पंजाब व मद्रास में सांप्रदायिकता व जातिवाद आदि की वजह से पार्टी को खास कामयाबी नहीं मिल पाई।
  • स्वराज पार्टी ने केंद्रीय एवं प्रांतीय विधानमंडलों में कई महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया। विट्ठलभाई पटेल, जो केंद्रीय विधानमंडल के अध्यक्ष बने, वह पार्टी के लिए किसी बड़ी कामयाबी से कम नहीं थी।
  • तेजी से सेना का भारतीयकरण करना जरूरी था। इसके लिए स्क्रीन कमेटी बनी थी। मोतीलाल नेहरू ने वर्ष 1925 में इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली।
  • स्वराज पार्टी के ही सदस्यों ने मुडीमैन समिति की नियुक्ति केंद्रीय विधानमंडल में 1919 के अधिनियम की जांच के लिए करवाई।
  • देश की आर्थिक स्थिति को भी बेहतर बनाने की दिशा में स्वराज पार्टी की ओर से कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गये। पार्टी ने नमक पर लगे कर में कटौती, कपास पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को खत्म करवाने और मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए काफी काम किये।

अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियां

  • चितरंजन दास के निधन से 1925 में स्वराज पार्टी को बड़ा झटका लगा।
  • वर्ष 1926 में जो चुनाव हुए उसमें केंद्रीय विधानमंडल में स्वराज पार्टी 40 सीटें जीत पाने और मद्रास में 50 फीसदी सीटों पर कब्जा करने में सफल रही।
  • हालांकि, प्रांतों में स्वराज पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय मोर्चा तो इन्होंने विधानमंडलों में बना लिया, मगर स्थगन प्रस्ताव लाने में वे अधिकतर मौकों पर कामयाब नहीं हो सके।
  • फिर भी वर्ष 1928 में जो अंग्रेज सरकार ने सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक लाया था और जिसे स्वराज पार्टी की ओर से भारतीय गुलामी विधेयक नंबर 1 कहा जा रहा था, उस पर अंग्रेज सरकार की हार हुई।
  • कांग्रेस की ओर से लाहौर अधिवेशन में जब सविनय अवज्ञा आंदोलन की घोषणा हुई तो उएसके बाद स्वराज पार्टी ने भी विधानमंडलों का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी। इस तरह से स्वराज पार्टी का अस्तित्व समाप्त हो गया।

साइमन कमीशन

  • वर्ष 1927 में साइमन कमीशन को ब्रिटिश सरकार ने भारत इस निर्देश के साथ भेजा कि वह भारत सरकार की संरचना में सुधार के लिए सुझाव दे।
  • कोई भी सदस्य इसका भारतीय नहीं था। न ही स्वराज की मांग को स्वीकार करने की सरकार की कोई मंशा ही थी।
  • विद्रोह की ज्वाला सुलग गई। कांग्रेस ही नहीं, लाला लाजपत राय की अगुवाई में साइमन कमीशन का मुस्लिम लीग ने भी बहिष्कार करने का आह्वान कर दिया।
  • उसी दौरान भीड़ पर लाठी बरसाने के क्रम में शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर लाला लाजपत राय के सिर पर भी चोट लगी थी, जिसकी वजह से उन्हें अपनी शहादत देनी पड़ी थी।

सविनय अवज्ञा आंदोलन

  • दिसंबर, 1929 में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान महात्मा गांधी के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हुई थी।
  • लक्ष्य था इसका अंग्रेज सरकार के किसी भी फैसले को न मानना।
  • इसी दौरान 26 जनवरी के दिन देशभर में स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला भी किया गया था।
  • इस तरह से देशभर में 26 जनवरी, 1930 को तिरंगा लहराकर कांग्रेस ने बैठकें भी की।
  • आंदोलन के दमन के लिए अंग्रेज सरकार ने हजारों लोगों को गोलियों से भुनवा दिया। नेहरू और गांधी सहित हजारों लोग गिरफ्तार कर लिये गये।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.