सुधार के पहियों पर भारत में यूं बढ़ती गई शिक्षा की गाड़ी

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Evolution of education system


शिक्षा ही इंसान को इंसान बनाती है। यही वजह है कि प्राचीन काल से भारत में शिक्षा का विशेष महत्व रहा है। हिंदू धर्म में भी जिन 16 संस्कारों का जिक्र किया गया है, उनमें भी शिक्षा से संबंधित विद्यारंभ संस्कार, वेदारंभ संस्कार, केशांत संस्कार और समावर्तन संस्कार का उल्लेख है। भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति वक्त के साथ हमेशा बदलती गई है। तब से आज तक के काल में इसमें व्यापाक बदलाव आये हैं।

भारत में शिक्षा का उदय

  • प्राचीन काल में तो भारत में शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यार्थी गुरुकुल जाते थे। गुरु के ही आश्रम में रहते थे। वहीं विद्या अर्जित करते थे। गुरु की सेवा करते थे। शिक्षा पूरी करने के बाद गुरु को दक्षिणा भी देते थे। रामायण और महाभारत में भी गुरुकुल शिक्षा पद्धति का उल्लेख मिलता है।
  • बौद्ध मठों में भी भारत में शिक्षा प्राप्त करने का दौर रहा है। यहां के मठों में शिक्षा ग्रहण के लिए दुनिया के कई देशों से विद्यार्थी खिंचे चले आते थे।
  • नालन्दा, तक्षशिला और विक्रमशिला विश्वविद्यालय जो कभी भारत का गौरव रहे हैं, उनमें दुनियाभर के विद्यार्थियों ने अध्ययन किया है। तभी तो भारत को विश्वगुरु कहा जाता रहा है, क्योंकि इसने पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश बिखरने का काम किया है।

भारत में शिक्षा का विकास

वक्त के साथ भारत में शिक्षा का विकास अलग-अलग चरणों में होता चला गया। मध्यकालीन भारत में शिक्षा के प्रचार-प्रचार के लिए मदरसे खोले गये थे। अजमेर, दिल्ली, लखनऊ एवं आगरा आदि जगहों पर मुगल शासकों की ओर से मदरसे खुलवाये गये। बाद में आधुनिक शिक्षा प्रणाली की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल से कही जा सकती है।

ब्रिटिश शासनकाल के आरंभिक दिनों में

  • तत्कालीन कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) में वारेन हेस्टिंग्स की ओर से मुस्लिम कानून से संबंधित शिक्षा प्रदान करने के लिए वर्ष 1781 में मदरसे खुलवाये गये।
  • हिंदू कानून व दर्शन के अध्ययन के लिए भारत में ब्रिटेन के निवासी जोनाथन डंकन की कोशिशों के फलस्वरुप वर्ष 1791 में वाराणसी में संस्कृत कॉलेज की स्थापना हो गई।
  • कलकत्ता के फोर्ट विलियम काॅम्पलेक्स में वर्ष 1800 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के असैन्य अधिकारियों को शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से लॉर्ड वैलेजली की ओर से फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की गई, जिसमें भारतीय भाषाओं और रीति-रिवाजों की भी शिक्षा शामिल थी, मगर 1802 में ही यह बंद हो गया।
  • चाहे शास्त्रीय व स्थानीय भाषाओं की बात हो या फिर संस्कृत व अंग्रेजी की, इन सभी भाषाओं में भारतीयों को शिक्षा देने के लिए अंग्रेजों की ओर से कदम इसलिए उठाये गये, ताकि कंपनी के कानूनी प्रशासन व न्याय विभाग आदि में वे न्यायाधीशों के साथ बैठ सकें और कानूनों की व्याख्या कर पाएं।

वर्ष 1813 का चार्टर एक्ट

  • भारत में विज्ञान की शिक्षा को लोकप्रिय बनाने और स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से वर्ष 1813 के चार्टर एक्ट में कंपनी की ओर से हर साल एक लाख रुपये की राशि खर्च करने की अनुमति दे दी गई।
  • हालांकि इसे कैसे खर्च किया जाए, इस पर विवाद के कारण वर्ष 1823 तक यह राशि नहीं दी गई थी।
  • इसी बीच समाज सुधारक राजा राममोहन राय के प्रयासों की बदौलत 1817 में कलकत्ता हिंदू काॅलेज शुरू हो गया, जहां विज्ञान और मानविकी की शिक्षा अंग्रेजी में शिक्षित बंगालियों द्वारा दी जाने लगी।
  • कलकत्ता, आगरा और बनारस में तीन संस्कृत कॉलेज भी सरकार की ओर से खोले गये।

आमने-सामने हुए आंग्ल और प्राच्य समर्थक

  • लोक शिक्षा के लिए जो सामान्य समिति बनी, उसमें दो दल बन गये।
  • एचटी प्रिंसेप के नेतृत्व में प्राच्य विद्या का समर्थक दल संस्कृत व अरबी भाषाओं में विज्ञान का अध्ययन कराने के पक्ष में था।
  • दूसरी ओर मुनरो एवं एलफिंस्टन की अगुवाई में आंग्ल दल अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारत में पश्चिमी शिक्षा देने और औद्योगिक क्रांति के लाभों को बताने का पक्षधर था।

वर्ष 1835 में आई लॉर्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली

  • सबसे पहले तो इसमें उच्च वर्ग के लोगों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान किये जाने की बात कही गई।
  • पहले अदालतों की भाषा फारसी हुआ करती थी, जिसे अब बदलकर अंग्रेजी कर दिया गया।
  • एक तो अंग्रेजी किताबें मुफ्त में छपने लगीं और साथ ही सस्ते दामों पर इनकी बिक्री भी शुरू कर दी गई।
  • लड़कियों की शिक्षा के लिए वर्ष 1849 में बेथुन द्वारा बेथुन स्कूल की शुरुआत की गई।
  • कलकत्ता , मद्रास और बंबई में वर्ष 1857 में यूनिवर्सिटी खोली गई।
  • इसके अलावा एक कृषि संस्थान बिहार के पूसा में शुरू हुआ।
  • रुड़की में भी एक इंजीनियरिंग संस्थान की स्थापना हुई।

वर्ष 1854 का वुड डिस्पैच या वुड घोषणापत्र

  • भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार कैसे होगा, इसमें पूरी योजना विस्तार से बनाई गई।
  • भारत में अंग्रेजी शिक्षा का मैग्नाकार्टा के नाम से भी इसे जाना जाता है।
  • इस योजना को 19 जुलाई, 1854 को बोर्ड आॅफ कंट्रोल के प्रमुख चाल्र्स वुड ने पेश किया था।
  • इसका सुझाव राज्य को जनता के बीच शिक्षा के प्रचार-प्रसार की जिम्मेवारी सौंपने का था।
  • इसमें कहा गया कि उच्च शिक्षा भले ही अंग्रेजी भाषा में दी जाए, मगर स्कूल की शिक्षा तो अपनी मातृभाषा में ही होनी चाहिए।
  • तीन स्तरों पर शिक्षा को इसी योजना में बांटने का प्रस्ताव आया। वर्नाकुलर प्राथमिक स्कूल सबसे निचले स्तर पर, वर्नाकुलर हाईस्कूल व संबद्ध कॉलेज जिला स्तर पर और सबसे उच्च स्तर पर कलकत्ता, बंबई प्रेसिडेंसी एवं मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों को रखा गया।

वर्ष 1882-83 में हंटर शिक्षा आयोग

  • वुड डिस्पैच के तहत कितनी प्रगति हुई, इसकी समीक्षा के लिए डब्ल्यूडब्ल्यू हंटर की अध्यक्षता में हंटर आयोग गठित किया गया था।
  • प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा में सुधार और विकास के लिए इसमें सरकार की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया गया।
  • नगर और जिला बोर्डों को प्राथमिक स्कूलों का नियंत्रण देने की सिफारिश इस आयोग ने की।
  • माध्यमिक शिक्षा को दो खंडों साहित्यिक व व्यावहारिक में विभाजित करने का इसमें सुझाव दिया गया। साहित्यिक में विश्वविद्यालय, जबकि व्यावहारिक में रोजगारपरक शिक्षा को रखने की बात की गई।
  • इसने स्त्री शिक्षा को भी प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया।

वर्ष 1917 में सैडलर आयोग

  • डॉ. एम.ई. सैडलर की अगुवाई में कलकत्ता यूनिवर्सिटी की समस्याओं को हल करने के लिए सैडलर आयोग का गठन किया गया।
  • इसने स्कूल की शिक्षा 12 वर्ष का करने का सुझाव दिया।
  • इंटरमीडिएट के बाद इसमें 3 साल का डिग्री पाठ्यक्रम शुरू करने की सलाह दी गई।
  • ढाका, अलीगढ़, बनारस, पटना, लखनऊ, उस्मानिया और मैसूर विश्वविद्यालय वर्ष 1916 से 1921 के दौरान खुले।

वर्ष 1929 में हर्टोग समिति

  • सर फिलिफ हर्टोग की अध्यक्षता में इस समिति में विश्वविद्यालयों में दाखिला पाने के नियमों को सख्त बनाने का सुझाव दिया।
  • जो पढ़ने वाले स्टूडेंट्स हों, केवल उन्हें ही इंटरमीडिएट और उच्च शिक्षा के संस्थानों में दाखिला दिया जाए, जबकि बाकी के स्टूडेंट्स को आठवीं के बाद रोजगारपरक पाठ्यक्रमों में लगा दिया जाए।

वर्ष 1944 की सार्जेन्ट योजना

  • भारत सरकार के शिक्षा सलाहकार सर जॉन सार्जेन्ट के नाम पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रणा मंडल की ओर से तैयार की गई योजना को सार्जेन्ट योजना के नाम से जानते हैं।
  • इसने तकनीकी, वाणिज्यिक और कला शिक्षा की वकालत की।
  • इसने 20 साल तक व्यस्कों को साक्षर बनाने का सुझाव दिया।
  • उच्चतर माध्यमिक पाठ्यक्रमों को खत्म करने की भी इसने सलाह दी।

वर्ष 1948-49 का राधाकृष्णन आयोग

  • आजादी के बाद नवंबर, 1948 में विश्वविद्यालय की शिक्षा के बारे में रिपोर्ट देने के लिए राधाकृष्णन आयोग का गठन किया गया।
  • इसमें विश्वविद्यालय स्तर से पहले 12 साल की पढ़ाई का प्रावधान किया गया।
  • उच्चतर शिक्षा के तीन उद्देश्य साधारण शिक्षा, सरकारी शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा होने चाहिए।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के गठन का भी सुझाव इसी में दिया गया।
  • जल्दबाजी में उच्चतर शिक्षा में अंग्रेजी माध्यम को नहीं हटाने की इस आयोग ने सिफारिश की।
  • स्नातक उपाधि की अनिवार्यता प्रशासनिक सेवाओं के लिए समाप्त किये जाने की वकालत इस आयोग ने की।
  • ग्रामीण विश्वविद्यालय स्थापित करने की सिफारिश राधाकृष्णन आयोग ने की बिल्कुल शांति निकेतन और जामिया मिलिया इस्लामिया की तरह।
  • कॉलेजों में स्टूडेंट्स की संख्या सीमित रखने और प्रति कॉलेज अधिकतम एक हजार स्टूडेंट्स को प्रवेश देने की सलाह इस आयोग दी।

वर्ष 1964-1966 का कोठारी आयोग

  • डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में जुलाई, 1964 में यह समिति गठित की गई।
  • इसकी सिफारिशों के आधार पर ही वर्ष 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई, जिसमें 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा, शिक्षा पर राष्ट्रीय आय का 6 फीसदी खर्च करने की बात कही।
  • – सस्ती किताबें उपलब्ध कराने के साथ कृषि और औद्योगिक शिक्षा के विकास का भी कोठारी आयोग ने सुझाव दिया।
  • शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए भी पैमाना तय करने का सुझाव इस आयोग ने दिया।
  • विज्ञान की शिक्षा पर बल दिया गया और अनुसंधान की पैरवी की गई।
  • मातृभाषा, हिंदी और अंग्रेजी में शिक्षा के विकास का फॉर्मूला दिया गया।
  • आयोग ने शिक्षा नीति को लचीला बनाने की सलाह दी।

निष्कर्ष

एक चीज तो साफ हो जाती है कि भारत में जिस शिक्षा प्रणाली की शुरुआत अंग्रेजों के शासनकाल में हुई, उसका उद्देश्य केवल उसी तरीके से भारतीयों को शिक्षित करने का था, जिससे कि अंग्रेजों के हितों की पूर्ति हो सके। मतलब साफ था, भारतीयों को शिक्षित ऐसे बनाओ कि अपना उल्लू सीधा होता रहे, मगर इसने कहीं-न-कहीं शैक्षणिक सुधार की नींव रख दी, जो कि आजादी के बाद और मजबूत होती चली गई। फिर भी, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अभी भारत की शिक्षा प्रणाली में और विकास की जरूरत है?

2 COMMENTS

  1. Siksha vyavastha ke bare me ye info ekdam notes ki tarah di hai aapne… thanks bahhut kaam ki hai ye.

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