स्वतंत्रता संग्राम में विनोबा भावे का योगदान

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Vinoba bhave in freedom struggle


भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के जीवन व व्यक्तित्व से प्रभावित होकर असंख्य युवक-युवतियों ने अपने जीवन की धारा का मुख मोड दिया था। ऐसा ही एक बालक अपने इंटर की परीक्षा देने के लिए मुंबई जा रहा था। लेकिन रास्ते में ही इस बालक का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने गांधी जी से मिलने के लिए उन्हें पत्र लिख दिया। महात्मा गांधी उस बालक की भाषा व विचारों से प्रभावित हो गए और उन्होने तुरंत उस बालक को अहमदाबाद के कोचरब आश्रम में मिलने के लिए बुला लिया। कौन था यह बालक और गांधी जी से मिलने के बाद इस बालक ने क्या किया, आइये जानते हैं:

प्रारम्भिक जीवन:

11 सितंबर 1895 को गगोड़े, महराष्ट्र में नरहरी शंभुराव और रुक्मणी देवी के घर जिस संतान ने जन्म लिया उसका नाम विनायक राव भावे रखा गया। पाँच भाई-बहनों के सबसे बड़े भाई के रूप में विनायक का पालन-पोषण अपने दादा के पास हुआ था। माता और दादा के प्रभाव के कारण नन्हें विनायक ने गीता को पढ़ा ही नहीं बल्कि उसे आत्मसात करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

गांधी जी का बुलावा:

1916 वर्ष का यह वह समय था जब बनारस हिन्दू विश्वविध्यालय का निर्माण हुआ था और इस अवसर पर गांधी जी को छात्रों को संबोधित करने के लिए निमंत्रित किया गया था। अगले दिन उनके भाषण के कुछ अंश समाचार पत्र में छपे जिन्हें रेल में बैठे विनायक ने पढ़ लिया। इंटर की परीक्षा के लिए जा रहे विनायक को भाषण ने उन्हें  महात्मा गांधी से मिलने के लिए प्रेरित किया। उन्होनें तुरंत अपने रेल का ही नहीं बल्कि जिंदगी का भी मार्ग बदल लिया। गांधी जी को मिलने का निवेदन किया और उनके बुलावे पर अहमदाबाद पहुँच गए। 7 जून 1916 को बालक  विनायक ने जब आज़ादी के मसीहा को अपने सामने पाया तो उन्हें महसूस हो गया कि उस बालक का जीवन भी इस मसीहा का अनुकरण करने के लिए ही है। तभी विनायक राव भावे ने आगे की पढ़ाई को तिलांजलि दे दी और अपने जीवन को देश सेवा यज्ञ में होम करने का निश्चय कर लिया।

विनायक से विनोबा का रूपान्तरण:

विनायक ने गांधी जी से मिलने के बाद उनके साथ ही आश्रम में रहकर देश सेवा का प्रण लिया और विनायक को गांधी से प्यार से विनोबा कहते थे। गांधी जी के आश्रम में विनायक ने एक “विनोबा कुटीर” बनाई और वहाँ रहते हुए वे गांधी जी के साथ गीता के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने लगे। संस्कृत की गीता को सरल मराठी में समझाते हुए वे आश्रमवासियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए।

विनोबा का स्वतन्त्रता यज्ञ:

गांधी जी के साथ रहते हुए विनोबा ने किशोर काल में ही ब्रह्मचर्य का प्रण लिया और आजीवन गांधी जी के पदचिन्हों पर चलने का निश्चय कर लिया।

1925 में विनोबा ने गांधी जी के हरिजन आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और हमेशा की तरह ब्रिटिश शासकों ने उन्हें जेल में डाल दिया।

विनोबा और असहयोग आंदोलन:

देश में ब्रिटिश दासता से स्वयं को आजाद करने के लिए जूझते भारत देश में गांधी जी जनता में जागरूकता का संचार कर रहे थे। इस कार्य में युवा विनोबा का सक्रिय सहयोग गांधी जी के पास उपलब्ध था। इस समय देश में ब्रिटिश शासकों ने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को निषेध किया हुआ था लेकिन गांधी जी और विनोबा ने इस निषेध को अहिंसात्मक रूप में न मानने का फैसला किया था। गांधी जी के असहयोग आंदोलन के चलते विनोबा ने 1920 से 1930 तक अनेकों बार जेल यात्रा की।

विनोबा की जेल प्रवास:

विनोबा भावे को ब्रिटिश हकूमत ने हर वर्ष एक बार जेल प्रवास करवाया और विनोबा ने हर बार उसका किसी न किसी प्रकार से लाभ उठाया। 1922 में विनोबा ने नागपूर में झण्डा सत्याग्रह किया और ब्रिटिश शासकों ने अविलंब उन्हें जेल में डाल दिया। इस समय उनपर धारा 103 के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया था जिसमें समाज के असामाजिक और गुंडागर्दी फैलाने वाले लोग जेल जाते हैं। जेल प्रशासन ने उन्हें इस समय पत्थर तोड़ने का काम दिया जिसे उन्होनें सहर्ष स्वीकार किया।

इसके कुछ समय बाद विनोबा को स्थानतरित करके अकोला जेल भेज दिया गया। जिसका लाभ उठाते हुए विनोबा ने तपोयज्ञ शुरू कर दिया।

इस जेल यात्रा के बाद उनकी अगली जेलयात्रा 1925 में गांधी जी द्वारा शुरू किए गए हरिजन आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण हुई थी।

1930 में गांधी जी के नमक आंदोलन में भाग लेना ही विनोबा की जेल यात्रा का कारण बनी थी। ब्रिटिश शासन के पास शायद उन्हें कैद करने की वजह खत्म हो रहीं थीं लेकिन अँग्रेजी दासता से उनके जनून में कोई कमी नहीं आई और ब्रिटिश सरकार ने तब तंग आकर 1940 में 5 साल के लिए सख्त कैद की सजा दे दी।

युवा विनोबा ने इस जेल यात्रा को अपने लिए पढ़ाई पूरी करने का अवसर समझा और उसका पूरा लाभ उठाया। इस जेल प्रवास में विनोबा ने ‘ईशावास्यवृत्ति’ और ‘स्थितप्रज्ञ दर्शन’ नाम से दो पुस्तकें लिख दीं। इसके अतिरिक्त वील्लोरी जेल में जब उन्हें रखा गया तब विनोबा ने इस अवसर का पुनः लाभ उठाया और दक्षिण भारत की चार भाषाओं को सीख कर आत्मसात कर लिया। इसके अतिरिक्त इसी समय उन्होनें ‘लोकनागरी’ नाम की लिपि की भी रचना कर ली। इसी जेल प्रवास में विनोबा जी ने भगवत गीता को मराठी भाषा में रूपांतरित कर दिया। यही नहीं कैदी विनोबा ने इस अनूदित गीता को उन्होनें जेल के अन्य कैदियों में भी बांटना शुरू कर दिया।

विनोबा और सविनय अवज्ञा आंदोलन:

पाँच वर्ष की जेल यात्रा ने आंदोलनकारी विनोबा को और अधिक दृढ़ निश्चय वाला अहिंसक आंदोलनकारी बना दिया। 1940 में गांधी जी ने उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन की बागडोर थमा दी जिसका उन्होनें पूरे मन से पालन किया।

अहिंसक आंदोलनकारी:

विनोबा भावे की पहचान एक अहिंसक आंदोलनकारी के रूप में है जिसका धर्म मानवाधिकार की रक्षा व अहिंसा था। महात्मा गांधी के शिष्यों में सबसे आगे रहने वाले विनोबा को लोग महात्मा और आचार्य के नाम से जानते हैं। लेकिन प्रसिद्धि की डगर पर अपने को सबसे पीछे खड़ा करने में दक्ष विनोबा ने महतमा गांधी के आदर्शों और सिद्धांतों का मृत्युपर्यंत अक्षरक्षः पालन किया था।

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