महात्मा गांधी भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के एक मजबूत स्तम्भ थे और इसी कारण इन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पिता कहा जाता है। एक समाज सुधारक, विचारक, राजनैतिक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के रूप में गांधी जी ने न केवल भारत में बल्कि विश्व के मंच पर भी अपनी एक अलग पहचान बनाई । अत्याचार के प्रबल विरोधी और सविनय आंदोलन के जनक सत्य अहिंसा के मार्ग को अपनाकर एक नई सोच के साथ आगे बढ़े थे।
महात्मा गांधी जी और स्वतन्त्रता आंदोलन :
- 1915:
तत्कालीन समय में कांग्रेस केवल शहरी और संभ्रांत परिवारों की शान थी, गांधी जी ने पूरे देश का भ्रमण करके और किसान आंदोलन से इसे जोड़कर भारत के आम आदमी तक इसकी पहुँच बनाई। चंपारण आंदोलन (1917) और खेड़ा आंदोलन (1918) इसके उदाहरण हैं।
- 1921 :
कांग्रेस को जन-जन से जोड़कर असहयोग आंदोलन आरंभ किया जो पहला शांति पूर्वक विद्रोह था।
- 1922 :
चौरी चौरा आंदोलन, खादी को देश की पहचान बनाया, समाज से अछूत भावना को समूल नष्ट किया और सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया। विदेशी सरकार ने घबरा कर उन्हें जेल में बंद कर दिया।
- 1928 :
सरदार पटेल की मदद से बारडोली सत्याग्रह किया ।
- 1930 :
दांडी मार्च के माध्यम से सविनय अवज्ञा आंदोलन को नया रूप दिया और 26 जनवरी को पूर्ण स्वतन्त्रता की हुंकार भरी।
- 1942 :
ब्रिटिश शासन को भारत छोड़ने की चेतावनी, भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में दे दी। करो या मरो का नारा देकर ब्रिटिश शासन को अहिंसा को कमजोरी न समझने का संदेश दिया ।
महात्मा गांधी का सामाजिक योगदान
इसके अतिरिक्त गांधी जी ने जिन सामाजिक मुद्दों को हल करके भारतीय समाज को एक नयी दिशा देना का प्रयास किया उनमें प्रमुख हैं:
- समाज में फैली कुरीति मदिरापान को मिटाने के लिए शराब का बहिष्कार का आव्हान किया।
- हिन्द-मुस्लिम एकता को प्रथम प्राथमिकता देते हुए ब्रिटिश प्रशासन की फूट डालो और राज करो की नीति को नष्ट कर दिया।
- अहिंसा परमोधर्म के संदेश से जीव हत्या और युद्ध प्रवृति को बंद करने का प्रयास किया।
- विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन और प्रयोग पर बल देकर भारतीय मजदूर के हाथ मजबूत किए।
- आवश्यक वस्तुओं जैसे नमक और नील पर राज कर न देने का आदेश देकर अपनी अस्मिता को पहचान दिलवाई।
- ब्रिटिश शासकों द्वारा दी गयी उपाधियों का पूर्ण बहिष्कार करके विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई।
- सरकारी नौकरियों का त्याग और पूर्ण बहिष्कार करके ब्रिटिश शासन को खुली लेकिन अहिंसापूर्ण चुनौती दी।
- महिला वर्ग को आन्दोलन का हिस्सा बनाकर उनका मान सामान बढ़ाया।
- स्वच्छता आंदोलन को मुख्य धारा से जोड़ कर अस्पृश्यता जैसे विषय को महत्व देकर इस समस्या को भी हल किया।
- स्त्री शिक्षा का बिगुल बजाया और स्त्री वर्ग को समान अधिकार देने पर बल दिया ।
स्वतन्त्रता मिलने के बाद भी एक संरक्षक और एक पिता के रूप में गांधी जी ने देश में सांप्रदायिक सौहार्द बनाने का पूरा प्रयास किया जिसमें वो काफी हद तक सफल भी रहे ।