भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लाला लाजपत राय का योगदान

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Lala Lajpat Rai

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 पंजाब के फरीदकोट जिले में हुआ था, इन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की। 1880 में उन्होंने कलकत्ता तथा पंजाब विश्वविद्यालय से एंट्रेंस की परीक्षा एक वर्ष में पास की और आगे पढ़ने के लिए लाहौर आए। यहां वे गर्वमेंट कॉलेज में प्रविष्ट हुए और 1982 में एफए की परीक्षा तथा मुख्यारी की परीक्षा साथ- साथ पास की। यहीं वे आर्यसमाज के सम्पर्क में आए और उसके सदस्य बन गये। लाला लाजपत राय  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से आज भी जाना जाता है इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया। वे भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे, लाल जी को पंजाब केसरी भी कहा जाता है। उन्हें ‘पंजाब के शेर’ की उपाधि भी मिली थी।

लाला लाजपत राय ने  अपने जीवन की परवाह न करते हुए हमेशा देश की स्वाधीनता के आंदोलन में बढ़-चढ़कर ना सिर्फ हिस्सा लिया बल्कि उन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 3 फ़रवरी, 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुँचा, जिसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी। लाहौर में 30 अक्टूबर, 1928 को एक बड़ी घटना घटी, जब लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। पुलिस ने लाला लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियाँ बरसाईं। वे बुरी तरह घायल हो गए। इस समय अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा था “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।” इस घटना के 17 दिन बाद यानि 17 नवम्बर, 1928 को लाला जी ने आख़िरी सांस ली और सदा के लिए अपनी आँखें मूँद लीं।

लेकिन उनका बलिदान बेकार नहीं गया, लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से मार दिया,सांडर्स ही वो अंग्रेज था जिसने लाला जी पर लाठियाँ बरसाईं थीं। लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया और 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजो के राज से आज़ादी मिली।

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