असहयोग आंदोलन में महिलाओं ने किस प्रकार अपना योगदान दिया था

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Non-cooperation Movement

भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। यह वह समय था जब समाज में नारी-मुक्ति जैसे शब्द अपराध समझे जाते थे और महिलाओं को दोयम दर्जा प्राप्त था। उस समय समाज के हर वर्ग की नारी ने चेहरे पर पड़े घूँघट को हटा कर और देहरी लांघ कर स्वतत्रता यज्ञ में अपना सक्रिय योगदान दिया था। भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में गांधी जी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन ने शांति प्रिय आंदोलन होते हुए भी ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला दीं थीं। महात्मा गांधी के निर्देशन में शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में भी पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का सबसे अधिक योगदान माना जाता है।  महात्मा गांधी का मानना था कि जब तक इस कार्य में महिलाएं पूरी तरह से सहयोग नहीं करतीं हैं तब तक स्वराज्य की आशा रखना व्यर्थ है।

असहयोग आंदोलन में क्या था:

इतिहासकार बताते हैं कि प्रथम विश्व-युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने इस शर्त पर ब्रिटिश राज्य को योगदान दिया था कि इसके बाद ब्रिटिश राज्य भारत की जनता को कुछ राजनैतिक अधिकार सौंप देंगे। लेकिन कूटनीति का सहारा लेते हुए ब्रिटिश शासकों ने भारत के सहयोग का जवाब रोलेक्ट एक्ट, जलियाँवाला कांड, हंटर रिपोर्ट आदि के रूप में दिया। अंग्रेजों द्वारा भारतीय जनमानस की पीठ में छुरा भोंके जाने पर गांधी जी ने क्षुब्ध होकर 1920 में एक ओर तो “कैसरे-ए-हिन्द” की उपाधि लौटा दी और साथ ही सत्याग्रह आंदोलन के जरिये असहयोग आंदोलन का सूत्रपात कर दिया। इस आंदोलन में उन्होनें भारतीय जनता से निम्न प्रकार से सहयोग और ब्रितानी सरकार के प्रति असहयोग की मांग की:

  1. सभी सरकारी शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार;
  2. सरकारी नौकरी से त्यागपत्र;
  3. अँग्रेजी सरकार द्वारा करवाए जाने वाले चुनाव का बहिष्कार;
  4. सरकारी अदालतों का त्याग;
  5. विदेशी वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार;
  6. सरकारी उत्सवों से इंकार;
  7. भारतीय मजदूरों का मेसोपोटामिया जाने से इंकार

असहयोग आन्दोलन और महिलाएं:

1920 में गांधी जी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आन्दोलन को उस समय की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रिय नेशनल कांग्रेस ने पूरा समर्थन दिया। इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए उस समय की बड़ी महिला राजनेताओं ने आगे बढ़कर शांति पूर्वक इस आंदोलन में अपना सक्रिय योगदान दिया था। देश के विभिन्न हर छोटे-बड़े राज्यों की और समाज की हर वर्ग की महिलाओं ने इस असहयोग आंदोलन को अपने जीवन का ध्येय बना लिया था।

बंगाल में महिला योगदान:

बंगाली समाज में असहयोग आंदोलन की ज्वाला जलाने में सरोजनी नायडू, बंगाली कांग्रेसी नेता, सी आर दास की विधवा बहन उर्मिला देवी ने बहुत बड़ा योगदान दिया था। समाज के धनी-मानी वर्ग से संबन्धित इन महिलाओं ने सभी माताओं-बहनों को घर में रहकर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में सहयोग देने का आग्रह किया। सरोजनी नायडू ने महिला समाज को लेकर राष्ट्रिय स्त्री संघ की स्थापना की जिसका उद्देश्य समाज के हर वर्ग की महिला को इस आंदोलन से जोड़ना था।

बंगाल में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार प्रदर्शित करने के लिए सड़कों पर खादी बेचने का निर्णय लिया गया। सरकार द्वारा प्रदर्शनों पर प्रतिबंध के बावजूद उर्मिला देवी, उनकी भतीजी सुनीति देवी ने इस प्रदर्शन में भाग लिया और अपनी गिरफ्तारी दी। इन महिलाओं के सहयोग ने बंगाल के हर वर्ग की महिला समाज में उत्साह की लहर दौड़ गई और उन्होनें बड़ी संख्या में इन विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना शुरू कर दिया। गांधी जी ने देश की समस्त महिलाओं को इसी प्रकार के योगदान की अपील करी जिसे पूरे देश के महिला वर्ग ने प्यार से अपना लिया।

छत्तीसगढ़ में नारी सहयोग:

छत्तीसगढ़ जैसे छोटे और कम विकसित राज्य की महिलाओं ने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में अभूतपूर्व सहयोग दिया। इसकी बानगी उस सार्वजनिक सभा से मिलती है जिसका आयोजन रायपुर में गांधी जी ने  20 दिसंबर 1920 में किया था। इस सभा में गांधी जी के विचारों के परिणामस्वरूप रायपुर की धमतरी तहसील की महिलाओं ने पहली बार घर से निकल कर इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर अपना योगदान दिया।

गांधी जी महिलाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि इस देश की महिलाएं सदियों से सूत कातती आ रहीं हैं और इसे फिर से शुरू करना चाहिए। इससे देश स्वावलंबी सरलता से बन सकेगा। इस कथन से प्रेरणा लेकर जालंधर के कन्या महाविध्यालय की छात्राओं ने नियमित रूप से चरखा कातना शुरू कर दिया।

छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार को प्राथमिकता दी और इसके लिए सबसे पहले उच्चतम वर्ग की महिलाओं ने अपने कीमती वस्त्र होली लगाने के लिए सहर्ष दे दिये। इसी क्रम में 2-8 अक्तूबर 1921 में रायपुर के रावणभांटा में खादी प्रदर्शनी का आयोजन किया जिसका श्रेय प्रसिद्ध समाजसेवी श्रीमति अंजुम को जाता है। रायपुर में श्रीमति भागीरथी देवी और श्रीमति रुक्मणी देवी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन के समर्थन में जलूस निकाले और धरने दिये।

अहमदाबाद में नारी संग्राम:

अहमदाबाद में अखिल-भारतीय खिलाफत समिति के नेता शौकत अली और मोहम्मद की माता श्रीमति अली बी अम्मा ने अपने राजनीतिक दलों से पुरुष वर्ग के हिरासत में जाने के बाद मोर्चा सम्हाल लिया। उन्होनें सभी महिलाओं के पुरुषों के जेल जाने के बाद धरनों और प्रदर्शनों में आगे बढ़ कर हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

दक्षिणी भारत:

इस पुकार के जवाब में भारत के दक्षिणी भाग के गोदावरी जिले की दुव्व्युरी सुब्बामाम जो समाज के देवदासी समाज का प्रतिनिधित्व करतीं थीं, उन्होनें “देवसेविकास” नाम का एक गुट बना लिया। अप्रैल 1921 में गांधी जी के काकीनाड़ा जिले में सभा का आयोजन करने पर इसी गुट की एक बारह वर्षीय बालिका दुर्गा बाई जो बाद में दुर्गा बाई देशमुख के नाम से भी जानी गईं, ने सभी देवदासियों को इस सभा में शामिल होने के लिए भी एकत्रित कर लिया था। गांधी जी ने इस बालिका के प्रोत्साहन से एकत्रित हुई 1000 देवदासियों की सभा को संबोथित किया और लगभग 20.000 रुपए के गहनों का दान भी असहयोग आंदोलन के लिए उन्हें उस सभा से मिला।

इस प्रकार सम्पूर्ण भारत में राजनीतिक दलों में पढ़ी लिखी और उच्च समाज का प्रतिनिध्तिव करने वाली महिलाएं भी इस आंदोलन में सक्रिय सहयोग दे रहीं थीं। मोतीलाल नेहरू की पत्नी और जवाहर लाल नेहरू की माँ श्रीमति स्वरूप रानी, राजकुमारी अमृत कौर और श्रीमति विजय लक्ष्मी पंडित ऐसी ही महिला समाज की शिरोमणि थीं। कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण भारत में हर वर्ग की महिला ने अपने कीमती वस्त्रों की होली जलाकर, हर आयु की कन्या ने विदेशी शिक्षा का बहिष्ककार करके, धरनों और प्रदर्शनों में आगे बढ़कर हिस्सा लेकर और पुरुष समाज के कंधे से कंधा मिलकर जेल जाकर, गांधी जी के असहयोग आंदोलन को सफल बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया था।

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