आखिर क्यों मनाई जाती है लोहड़ी, क्या है इसका महत्व?

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पर्व-त्योहार भारत की शान है। यहां अलग-अलग जातियों और सम्प्रदायों के लोग रहते हैं, जो कई तरह के त्योहार मनाते हैं। इन सभी त्योहारों का अपना अलग ही अंदाज और महत्व होता है। भारत के प्रमुख त्यौहार आप सभी जानते होंगे और उनमे से ही एक है लोहड़ी।। लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। लोहड़ी पर्व पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद मनाया जाता है। इसके बाद से ही माघ मास की शुरुआत हो जाती है और दिन बड़े होने लगते हैं। इस साल यानी २०१९ को लोहड़ी का पर्व १४ जनवरी को मनाया जा रहा है। यह त्योहार खास तौर पर सिखों का है, जिसे पूरे विश्व में मनाया जाता है। हालांकि पंजाब और हरियाणा में इसकी काफी धूम देखने को मिलती है।

लोहड़ी से जुड़ा इतिहास

भारत में लोहड़ी पर्व मनाए जाने को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं।

दुल्ला भट्टी की कहानी

लोहड़ी के पर्व के पीछे एक ऐतिहासिक कथा है जिसे दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता है। लोहड़ी के कई गीतों में भी इनके नाम का ज़िक्र होता है। मुगल राजा अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी नाम का एक लुटेरा पंजाब में रहता था। उस समय संदलबार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बलपूर्वक अमीर लोगों को बेच दिया जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लडकों से करवाई। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इसलिए इस दिन दुल्ला भट्टी को गीतों के जरिए याद किया जाता है और जश्न मनाया जाता है।

कृष्ण ने लोहिता का वध किया

एक दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है कि इसी दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना के बाद से लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।

भगवान श‍ंकर और सती

पुराणों के अनुसार इस दिन को सती के त्याग के रूप में याद किया जाता है। कहा जाता है कि जब राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति भगवान शिव का तिरस्कार किया था। तब सती ने तिरस्कार से क्षुब्ध होकर खुद को अग्नि के हवाले कर दिया था। इसकी याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है और इस दिन बेटियों, बहनों को घर बुलाकर सम्मान दिया जाता है।

लोहड़ी पर्व का महत्व

पंजाबियों के लिए लोहड़ी का पर्व खास महत्व रखता है। इस दिन लोग रात के समय खुले जगह में परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों के साथ मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खा कर नाचते- गाते हैं। लोहड़ी पर्व के इतिहास की तरह ही इसका अपना अलग- अलग महत्व भी है।

नई फसल का त्योहार

उत्तर भारत में लोहड़ी का त्योहार नई फसल के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वक्त रबी की फसल कट कर घरों में आती है। इसी का जश्न मनाया जाता है। इस दिन रेवड़ी, मक्का, तिल अग्नि देवता को समर्पित कर अच्छी फसल की कामना की जाती है। लोग रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं, गीत गाते हैं, ढोल- नगाड़े बजाते और नाचते हैं। पंजाब में महिलाएं गिद्दा डांस करती हैं। इन दिन लोग रिश्तों में नई गरमाहट का अहसास महसूस करते हैं।

नई दुल्हन, बेटी, बहन और बच्चों का पर्व

जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो, उनके यहां लोहड़ी का त्योहार विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन बड़े प्रेम से विवाहित बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है।

निष्कर्ष

इस वक्त देश के अलग- अलग हिस्से में अलग- अलग नाम से पर्व मनाए जाते हैं। लोहड़ी के एक दिन बाद देश के कई हिस्सों में मकर संक्रांति मनाई जाती है। आंध्र प्रदेश में लोहड़ी वाले दिन भोगी पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग पुरानी वस्तुओं को बदलते हैं। सिंधी समुदाय के लोग लाल लोही का उत्सव मनाते हैं। दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इस वक्त पोंगल का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी की धूम अब न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी देखने को मिलती है।

हमारी ओर से आप सभी को लोहड़ी पर्व की ढेर सारी शुभकामनाएं ।

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