आखिर कैसा था चोल वंश का इतिहास, किन-किन शासकों ने किया शासन

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Chola Dynasty History

भारत का इतिहास काफ़ी पुराना है। हमारे देश में एक नहीं बल्कि कई वंशों और उनके शासकों ने कई वर्षों तक शासन किया, उन्हीं में से एक वंश था चोल राजवंश। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में, तमिल चोल शासकों ने ९वीं शताब्दी से १३वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। चोल साम्राज्य के २० राजाओं ने दक्षिण एशिया के एक बड़े हिस्से पर लगभग ४०० साल तक शासन किया। मेगस्थनीज की इंडिका और अशोक के अभिलेख में भी, चोलों का उल्लेख किया गया है। तो चलिए ज़रा विस्तार से जानते हैं चोल वंश के बारे में।

चोल वंश के संस्थापक और उनका इतिहास

चोल पल्लव के सामंत हुआ करते थे। चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय चोल ने की, जो पल्लवों के एक सामंती सरदार थे। विजयालय ने ९वीं शताब्दी (८५० – ८७१ ईस्वी) में चोल वंश की स्थापना की थी। उसने ८५० ईस्वी में तंजौर को अपने अधिकार में कर लिया और पाण्ड्य राज्य पर चढ़ाई कर दी। ८९७ में विजयालय चोल ने पल्लव शासक को हराकर उसकी हत्या कर दी और सारे टौंड मंडल पर अपना अधिकार कर लिया। नौवीं शताब्दी के अंत तक चोलों ने पूरे पल्लव साम्राज्य को हराकर, पूरी तरह से तमिल राज्य पर अपना कब्जा कर लिया। ९८५ ईस्वी में शक्तिशाली चोल राजा अरुमोलीवर्मन ने अपने आपको राजराजा प्रथम घोषित किया, जो आगे चलकर चोल शक्ति को चरमोत्कर्ष पर ले गया। चोल वंश के पहले प्रतापी राजा राजराजा ने अपने ३० साल के शासन में चोल साम्राज्य को काफी विस्तृत कर लिया था। लेकिन चोल शासकों को राष्ट्रकूटों के विरुद्ध भयानक संघर्ष करना पड़ा। राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने ९४९ ईस्वी में चोल सम्राट परान्तक प्रथम को पराजित किया और चोल साम्राज्य के उत्तरी क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इससे चोल वंश को धक्का लगा, लेकिन ९६५ ईस्वी में कृष्ण तृतीय की मृत्यु और राष्ट्रकूटों के पतन के बाद, वे एक बार फिर उठ खड़े हुए।

चोल वंश के प्रमुख शासक

विजयालय (८५०-८७१ ईस्वी)
• चोल वंश का संस्थापक विजयालय एक शक्तिशाली और प्रभावी शासक था।
• उसने पल्लवों और पाण्डयों को हराकर तंजौर को अपनी राजधानी बनाया था।
• वहां उसने निशुम्भसूदनी का मंदिर भी बनवाया।
• विजयालय ने नरकेसरी की उपाधि भी धारण की थी।

आदित्य प्रथम (८७१ – ९०७ ईस्वी)
• विजयालय की मृत्यु के बाद उनका पुत्र आदित्य प्रथम राजा बना।
• आदित्य प्रथम एक शूरवीर राजा था। उसने अपने शासन काल में पल्लवों और पाण्डयों से अनेक युद्ध लड़े और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
• आदित्य प्रथम ने उनकी राजधानी मदुरा पर कब्ज़ा कर लिया था।

परातंक प्रथम (९०७ – ९५५ ईस्वी)
• परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अलावे राष्ट्रकूट कृष्ण दि्वतीय को भी पराजित किया।
• चोल शक्ति एवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (९४५ -५३) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया।
• परांतक अपने अंतमि दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा ९४९ ईस्वी में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के बाद चोल साम्राज्य की नींव हिल गई।
परांतक प्रथम के बाद गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परांतक दि्वतीय प्रमुख राजा रहे। इन ३० वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया।

राजराज प्रथम (९८५ – १०१४ ईस्वी)
• चोल साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक राजराज प्रथम था।
• राजा राजराज प्रथम परांतक द्वितीय का पुत्र था। उसने वेगी के पूर्वी चालुक्य राजा, मदुरा के पाण्ड्य राजा और मालाबार तट के सामंतों को हराकर अपने अधीन किया। उसने लंका का उत्तरी भाग जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।
• राजराज ने समुद्री जहाजों का शक्तिशाली बेड़ा तैयार किया और उसकी सहायता से कई टापूओं पर जीत हासिल की।
• राजराज के राज्यकाल में चोल साम्राज्य समस्त सुदूर दक्षिण में फैल गया।
• उसने तंजौर में राजराजेश्वर शिव मन्दिर का निर्माण कराया।

राजेंद्र प्रथम ( १०१४ – १०४४ ईस्वी)
• राजराज प्रथम के बाद उनके बेटे राजेंद्र प्रथम ने सत्ता संभाली और चेर, पांड्य एवं सिंहल जीतकर उन्हें अपने राज्य में मिला लिया।
• उसने श्रीलंका पर भी पूर्ण विजय प्राप्त की और एक युद्ध में श्रीलंका के राजा और रानी के मुकुटों और राज चिह्नों को अपने अधिकार में ले लिया।
• राजेंद्र प्रथम ने पाल शासक महिपाल को परास्त किया और गंगा घाटी तक आधिपत्य होने के कारण गंगैकोंडचोल की उपाधि धारण किया।
• राजेन्द्र प्रथम ने तंजौर के समीप चोलगंगम नामक तालाब बनवाया।

राजाधिराज प्रथम (१०४४ -१०५२ ईस्वी)
• राजेंद्र प्रथम के बाद राजाधिराज प्रथम उनका उत्तराधिकारी बना।
• उसने अनेक छोटे छोटे राज्यों, चेर, पांड्य और सिंहल के विद्रोहों का दमन किया।
• उसने अश्वमेध यज्ञ किया जो प्राचीन भारत में यज्ञ का अंतिम उदाहरण है।
• १०५२ ईस्वी में राजाधिराज और सोमेश्वर चालुक्य नरेश सोमेश्वर की सेनाओं से कोप्पम में भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें राजाधिराज वीरगति को प्राप्त हुए।

राजेंद्र द्वितीय (१०५२ – १०६३ ईस्वी)
• राजाधिराज के अनुज राजेन्द्र द्वितीय ने चालुक्यों के साथ युद्ध जारी रखा और अन्त में सोमेश्वर को परास्त करने में सफल हुआ।
• राजेन्द्र द्वितीय अपने साम्राज्य की सीमाओं की रक्षा करने में सफल रहा।

वीर राजेंद्र (१०६३ – १०६९ ईस्वी)
• राजेंद्र द्वितीय के उत्तराधिकारी वीर राजेंद्र ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। उसने चालुक्य नरेश सोमेश्वर प्रथम को पराजित किया।
• उसने चालुक्यों पर विजय के उपलक्ष्य में आइवभल्लकुलकाल की उपाधि धारण की।

अधिराजेंद्र (१०६७ – १०७० ईस्वी)
• वीर राजेंद्र का उत्तराधिकारी अधिराजेंद्र ने सत्ता संभाली, लेकिन कुछ महीनों के शासन के बाद ही राजराज प्रथम के प्रपौत्र कुलोत्तुंग प्रथम ने उसकी हत्या कर दी और उससे चोल राज्यश्री छीन ली।

कुलोत्तुंग प्रथम (१०७० – १११८ ईस्वी)
• कुलोत्तुंग प्रथम ने पाण्ड्य राज्य और केरल के नरेश को पराजित किया। इसके साथ ही उसने कन्नौज, कम्बोज, चीन और वर्मा से अपने कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित किए।
• उसके शासन में चोल साम्राज्य की समृद्धि को नए आयाम मिले।

कुलोत्तुंग के बाद उसका पुत्र विक्रम चोल (१११८ – ११३३ ईस्वी) उत्तराधिकारी बना। लेकिन १११८ ईस्वी में विक्रमादित्य छठे ने वेंगी चोलों से छीन ली। होयसलों ने भी चोलों को कावेरी के पार भगा दिया और मैसूर प्रदेश को अधिकृत कर लिया। इसके बाद कुलोत्तुंग द्वितीय (११३३ – ११५० ईस्वी), राजराज द्वितीय (११५० – ११७३ ईस्वी), राजाधिराज द्वितीय (११७३ – ११७९ ईस्वी), कुलोत्तुंग तृतीय (११७९ – १२१८ ईस्वी) और राजराज तृतीय (१२१८ – १२४६ ईस्वी) ने सत्ता संभाली। लेकिन चोल साम्राज्य पतन के गर्त्त में गिरता गया। इनका शासनकाल लगभग सौ वर्षों तक रहा।

राजेन्द्र तृतीय (१२४६ – १२७९ ईस्वी)
• राजेन्द्र तृतीय चोल वंश के अंतिम शासक रहे।
• १२५८ ईस्वी में पाण्ड्य शासक सुन्दर ने चोल नरेश राजेन्द्र तृतीय को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
• उनकी यह स्थिति भी १३१० में मलिक काफूर के आक्रमण से खत्म हो गई।

चोल वंश से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
• चोल राज्य आधुनिक कावेरी नदी घाटी, कोरोमण्डल, त्रिचनापली और तंजौर तक विस्तृत था।
• इस राज्य की कोई एक स्थाई राजधानी नहीं थी।
• यह क्षेत्र उसके राजा की शक्ति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था।
• वर्तमान पंचायती राज्य व्यवस्था चोल की ही देन है।
• चोल काल में सोने के सिक्कों को काशु कहते थे।
• चोल कालीन सभी मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण नटराज शिव मंदिर है। मंदिर के प्रवेश द्वार को गोपुरम कहा जाता था।
• चोल की भाषा संस्कृत और तमिल थी।

निष्कर्ष
इसमें कोई संदेह नहीं है कि चोल साम्राज्य दक्षिण भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्य था। कुछ इतिहासकारों का मत है कि चोल काल दक्षिण भारत का ‘स्वर्ण युग’ था। चोल वंश से जुड़ा ये लेख आपको कैसा लगा, बताने के लिए नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करें।

7 COMMENTS

  1. मैं तो पोनिसेल्वन movie south की देखने के बाद आया था चोल राजवंश के बारे में जानने बहुत अच्छा लगा

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