भारत का इतिहास विभिन्न राजवंशों के उत्थान और पतन का साक्षी रहा है। अधिकतम राजवंश जिन्होनें इतिहास को प्रभावित किया है प्राचीन भारत युगकालीन में रहे हैं। इनमें से कुछ राजवंश और उनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:
-
हर्यक राजवंश:
५४४-४९२ई पू तक राज करने वाले इस राजवंश में बिम्बीसार, अजातशत्रु और उदायीन, अनिरुद्ध, मंडक और नागदशक राजा हुए थे। इस राजवंश में बिम्बिसार और अजातशत्रु ने मगध राज का सुचारु रूप से विस्तार करते हुए ३२ वर्ष तक शासन किया। अजातशत्रु के तीनों पुत्र उदायीन, मंडक और नागदशक अपने पिता से भी अधिक कमजोर साबित हुए। नागदशक की विलासिता और अकर्मण्यता से लाभ उसके अमात्य शिशुनाग ने उठाया और राजा की हत्या करके नाग वंश की स्थापना कर दी।
-
मौर्य राजवंश:
चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य द्वारा स्थापित मौर्य वंश ने १३७ वर्ष तक राज्य किया था। चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के आक्रमण के बाद बंटे भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम किया था। इसी विकास के क्रम को चन्द्रगुप्त के पुत्र अशोक सम्राट ने आगे बढ़ाया और पूरे उत्तर-पश्चमी भारत पर अधिकार कर लिया था। बौद्ध धर्म का अनुयायी बन कर अशोक ने राज्य अपने पुत्रों को सौप दिया जिसे वो अधिक समय तक नहीं सम्हाल पाये।
-
सूर वंश:
शेरशाह सूरी द्वारा स्थापित सूर वंश एक अफगानी राजवंश था जिसने भारत पर पूरे उत्तर भारत पर १५४०-१५५५ तक राज्य किया था। इसने मालवा और राजपूत राजाओं को हराकर अपने सिंहासन के नीचे ले आया था। एक युद्ध में मृत्यु होने के बाद शेरशाह के पुत्र इस्लाम शाह एक कुशल शासक था और उसने पाँच वर्ष तक शासन किया था। लेकिन इसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र यह कुशलता जारी नहीं रख सके और हुमायूँ से पानीपत की लड़ाई में हारकर सूरी वंश का पतन निश्चित कर दिया।
-
गुलाम वंश:
मोहम्मद गोरी के तुर्क दास कुटुबुद्दीन ऐबक द्वरा स्थापित गुलाम वंश की स्थापना १२०६ई गई थी। ११९२ई में मोहम्मद गोरी की सहायता तराइन के युद्ध में करने पर उसने इनाम स्वरूप दिल्ली पर अधिकार करके अपना राज्य शुरू कर दिया था। उसके गुणों से प्रभावित होकर गोरी ने उसे दासता से मुक्त कर दिया था। विश्वप्रसिद्ध कुतुबमिनार का निर्माण इसी के द्वारा करवाया गया था। इसके बाद इलतुमिश था जिसने बड़ी कुशलता से १२११ई से १२१६ तक राज्य किया। इस समय में गुलाम वंश का शासन उत्तर में काश्मीर से लेकर मध्य भारत नर्मदा तक और बंगाल से सिंधु तक फ़ैल गया था। इल्तुमिश के बेटों की विलासिता के कारण उसकी बेटी रज़िया सुल्तान ने दिल्ली का तख्त उसके बाद सम्हाला था। १२४० में उसकी हत्या के बाद गायसुद्दीन बलबन जो स्वयं इल्तुमिश का गुलाम था ने शासन की बागडोर सम्हाली। इसने कुशलता से शासन करते हुए देश की आंतरिक और बाहरी सीमाओं को मजबूत किया था। लेकिन इसके बेटे नाकारा सिद्ध हुए और १२९० में इसके अंतिम पुत्र की हत्या के साथ ही गुलाम वंश का समापन हो गया।
-
बहमनी वंश:
दक्षिणी भारत में १३४७ई में बहमनी वंश की स्थापना करी गई। इस वंश के संस्थापक जफर खाँ ने नसीरुद्दीन शाह जो स्वयं बूढ़ा और आरामतलब बादशाह साबित हुआ, को हटाकर दक्कन का राजा घोषित कर दिया। जफर खान को अलाउद्दीन बहमनशाह के नाम से सुल्तान बनाया गया। जफर वास्तव में एक ब्राह्मण का नौकर गंगू था इसलिए अपने मालिक के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए उसने बहमनशाह की उपाधि रख ली। एक कुशल शासक की भांति उसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया और उसे चार भागों गुलबर्ग, दौलताबाद, बरार और बीदर में बाँट लिया। १३५८ में उसकी मृत्यु के बाद १५३८ तक यह वंश चला लेकिन केवल फिरोज बहमनी जिसने १३९७-१४२२ई तक शासन किया,एकमात्र कुशल शासक सिद्ध हुआ।
-
पाल वंश:
बंगाल के एक स्थानीय प्रमुख गोपाल ने ७५०ई में चारों ओर फैली अराजकता का फायदा उठाकर पाल वंश की स्थापना करी। इस वंश का शासनकाल बहुत उतार चढ़ाव से भरा था। गोपाल के पुत्र धर्मपाल ने राज्य को सुदृढ़ किया लेकिन उसका पुत्र देवपाल इस परमपरा को आगे नहीं बढ़ा पाया। इसके शासनकाल में शुरू हुआ पतन का सिलसिला ९७८ई में महेन्द्र्पाल के शासन तक चला। लेकिन इसी समय महिपाल ने फिर से सत्ता की बागडोर समहालते हुए पाल वंश को जीवित किया और अपना शासन बनारस तक फैला लिया। इसकी मृत्यु के बाद पाल वंश फिर कमजोर हो गया और इस वंश के अंतिम शासक रामपाल ने १०७५-११२० तक शासन किया जो एक मजबूत समय सिद्ध हुआ। इस समय बौद्ध धर्म को पूरी तरह से संरक्षण मिला था।
-
चोल वंश:
दो शताब्दियों तक न केवल दक्षिण भारत बल्कि श्रीलंका और मालदीव में भी शासन करने वाला चोल वंश सबसे सफल राजवंश माना जाता है। यह समय दक्षिण भारत का स्वर्ण युग कहलाता है। इस वंश के संस्थापक विजयालय जो पल्लव वंश का एक सामंत था, ने नौवीं शताब्दी में करी थी। ८५०ई में तंजौर पर अधिकार करते हुए चोल वंशजों ने राष्ट्रकूटों से विरोध करते हुए ९४९ई में खुद को हार बैठे। लेकिन ९६५ई में राष्ट्रकूटों की कमजोरी का फायदा उठाकर चोल वंश ने पुनः स्वयं को स्थापित कर लिया। चोल वंश का सबसे अच्छा समय ९८५-१०१४ई का था जब इसके शासक राजा राजराज ने कुशल प्रशासक और योद्धा के रूप में शासन को सुदृढ़ कर लिया था। उसने अपनी सीमाएं श्रीलंका और मालदीव तक फैला ली थीं। इसके अतिरिक्त व्यापार की दृष्टि से राजराज के दूत चीन तक गए। सुदृढ़ प्रशासन, राजकोष में कारों को आय का मुख्य स्त्रोत बनाया और सेना को पैदल, पशु और नौ सेना के रूप में संगठित किया। धर्म और समाज के नियमों को सरल बनाते हुए बारहवीं शताब्दी तक चोल वंश का शासन चला था।
-
सिंधिया वंश:
१८वीं शताब्ब्दी में उत्तरी भारत में स्थापित सिंधिया वंश की स्थापना राणोंजी सिंधिया ने करी थी। अपनी मृत्यु से पूर्व राणोजी ने उज्जैन में अपनी राजधानी स्थापित कर ली थी। इनके बाद इनके पुत्र महादजी सिंधिया सबसे शक्तिशाली उत्तराधिकारी सिद्ध हुए। १७७५-१८८२ई तक सिंधिया, ईस्टइंडिया कंपनी को हराकर पश्चमी भारत के सबसे मजबूत शासन के रूप में सिद्ध हो चुके थे। फ्रांसीसी सेना की मदद से इनहोनें राजपूत और मुगल भी अपने अधीन कर लिए थे। इस प्रकार १२ वर्ष तक पूरे उत्तरी भारत को नियंत्रित करते रहे। लेकिन इनकी मृत्यु के बाद इनके वंशज यह परंपरा नहीं चला सके और १८१८ में अँग्रेजी दासता कबूल कर ली।
-
तुगलक वंश:
तुगलक वंश की स्थापना गयासुद्दीन ने १३२० करी थी और इस वंश ने १४१२ तक शासन किया था। वीरता की दृष्टि से सबसे वीर शासक सिद्ध हुआ जिसने मंगोल शासकों को २९ बार युद्ध में हराया था। इसकी मृत्यु के बाद मुहम्मद बिन तुगलक एक कुशल लेकिन सनकी शासक मशहूर था। इसके बेटे फिरोज़शाह तुगलक ने आंशिक रूप से सफल शासक की भूमिका निभाई। १३९९ में तैमूर के द्वारा आक्रमण के साथ ही तुगलक वंश का पतन हो गया।
-
खिलजी वंश:
दिल्ली पर राज करने वाले दूसरे मुस्लिम वंश के रूप में खिलजी वंश को जाना जाता है। जलालूद्दीन खिलजी द्वारा स्थापित वंश मूल रूप से कबीले के रूप में अफगानिस्तान से आया था। गुलाम वंश को गिराकर जलालूद्दीन ने स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया लेकिन उसके भतीजे जूना खान ने दक्षिण विजय के बाद उसकी हत्या करके खुद बादशाह बन गया। यही जूना खान बाद में आलौद्दीन खिलजी के नाम से जाना गया। इसनें २० साल तक शासन करते हुए राजस्थान के बड़े इलाके पर कब्जा किया और इसी बीच में मंगोल आक्रमणों को भी विफल किया। इसके साथ ही उसने दक्षिण भारत के भी बड़े इलाके अपने अधीन कर लिए थे। १३१६ में अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद उसके सबसे वफादार सेनापति मालिक कफूर ने सिंहासन सम्हाल लिया। हालांकि खिलजी वंश के शासकों ने फिर से गद्दी को हासिल करके १५०९ई तक शासन किया था। लेकिन अलाउद्दीन के मुक़ाबले कोई शासक फिर नहीं उठ पाया और अंत में गयासुद्दीन खिलजी इस वंश का अंतिम शासक बन गया।