भारत के कृषि उत्सव

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agriculture festivals of India

भारत एक कृषि प्रधान देश है, देश की अधिकांश जनसंख्या गांवों में रहती है तथा कृषि सम्बन्धी कार्यों पर निर्भर है। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि कार्यों पर सबसे ज्यादा निर्भर है। इसके साथ -साथ भारत सांस्कृतिक रूप से भी बहुत सम्पन्न देश है , यहाँ पर विभिन्न संस्कृतियों से जुड़े लोग आपस में मिलजुल कर अपनी-अपनी संस्कृतियों के रंगों को भारत मे घोलते हैं। विशेषकर भारत की ग्रामीण जनसंख्या अपने पर्वों ,त्योहारों, शुभ -अवसरों,उत्सवों, समारोहों आदि को काफी हर्षों-उल्लास के साथ मनाती है। हम भारतीयों की यह प्रवृति रही है कि हम जीवन के हर छोटे-बड़े अवसर को आपस मे मिलजुल कर धूम-धाम से मनाते हैं। हम भारतीयों की सबसे बड़ी विशेषता है कि हम लोग प्रकृति के विभिन्न रूपों को भी उत्सव के रूप मे ख़ुशी के साथ मनाते हैं , जैसे – सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर “मकर संक्रान्ति“, बसंत ऋतु के आगमन पर ‘बसंत पंचमी‘, अनाज की बुआई, कटाई पर बिहू और यही कारण है कि भारत को ‘त्योहारों का देश‘ कहा जाता है। तो चलिए दोस्तों आज आपको भारत के कृषि उत्सवों के बारे में जानकारी देते हैं। आइये जानते हैं भारत के कृषि उत्सवों के बारे में विस्तार से।

भारत के कृषि उत्सव

  • बसंत पंचमी /श्री पंचमी
  • बैसाखी
  • पोंगल
  • ओणम
  • चैती पर्व
  • बिहू पर्व
  • मकर संक्रांति
  • लोहड़ी
  • अन्य कृषि उत्सव

बसंत पंचमी /श्री पंचमी

  • बसंत पंचमी नाम से ही पता चलता है की ये बसंत ऋतु का त्यौहार है। वास्तव में यह त्यौहार बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।
  • बसंत पंचमी का त्यौहार उत्तरभारत में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार माघ महीने की पांचवी तिथि या पांचवे दिन मनाया जाता है।
  • इस समय प्रकृति धरती को रंग-बिरंगे फूलों से सजा देती है, विशेषकर पीले रंग के फूलों से धरती खिल उठती है। इस समय भारत में गेंहू, चना ,जौ आदि की फसल पक जाती है, कृषक लोग फसल के पककर  तैयार होने की ख़ुशी में बसंत पंचमी का त्यौहार मनाते हैं।
  • बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती ने ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित सृष्टि में ज्ञान का प्रसार किया था। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है तथा वस्त्रों को पीले रंग से रंगाया जाता है और पीले वस्त्रों को धारण किया जाता है।

बैशाखी / मेष संक्रान्ति

  • भारतीय लोगो की सरलता देखिये, जो उत्सव जिस मास में मनाया जाता है वही उसका नाम भी रख दिया जाता है। बैशाखी पर्व उत्तर भारत का प्रमुख पर्व है, विशेषकर यह पर्व पंजाब और हरियाणा में प्रमुखता से मनाया जाता है।
  • यह पर्व बैशाख मास के पहले दिन यानि 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। इस पर्व को रबी की फसल जैसे गेंहू, चना, तिल, जौ, गन्ना आदि की कटाई की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है।
  • यह एक प्रकार का आभार व्यक्त करने का त्यौहार है , इस दिन सभी कृषक बंधू ईश्वर या प्रकृति का फसल पकने पर आभार या धन्यवाद प्रकट करते हैं।
  • बैशाखी के दिन से सूर्य मेष राशि मे प्रवेश कर जाता है। इस अवसर पर गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व रहता है। इस पर्व को मेष संक्रान्ति के रूप में भी जाना जाता है।
  • बैशाखी के पवित्र दिन 13 अप्रैल 1699 को सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस कारण से यह दिन सिक्ख समुदाय के लिए बहुत ही विशेष दिवस है। इस दिन से खालसा समुदाय का नया वर्ष प्रारम्भ होता है।
  • बैशाखी को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूप मे मनाया जाता है। उत्तराखण्ड में बैशाखी के दिन ब्राह्मण को “बैकर”(चावल, फल-फूल, दही, भेंट) देने की प्रथा है।
  • केरल मे बैसाख के प्रथम दिन को विशु पर्व, असम में बोहाग बिहू या रंगली बिहू, ओडिशा में महाविषुव संक्रांति, बंगाल में ‘पाहेला बेषाख‘, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और बांग्लादेश में एक उत्सव ‘मंगल शोभाजात्रा’, तमिल में पुत्थांडु पर्व, बिहार और नेपाल मे जुरशीतल पर्व के रूप मे मनाया जाता है।

पोंगल

  • पोंगल दक्षिण भारत का कृषि पर्व है , यह विशेष रूप से तमिलनाडु मे मनाया जाता है। पोंगल  त्यौहार मकर संक्रान्ति पर्व का दक्षिण भारतीय रूप है। यह पर्व सूर्य देवता की आराधना का पर्व है , इस दिन सूर्य मकर राशि मे प्रवेश करते हैं तथा उनकी दिशा उत्तरायण हो जाती है।
  • इस दिन तमिल कृषक सूर्य देवता से फसलों के लिए अच्छी धूप की कामना करते हैं तथा साथ मे प्रकृति से अच्छी पैदावार के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • पोंगल पर्व चार दिनों तक चलने वाला त्यौहार है, इन दोनों को क्रमशः  भोगी पोंगल, थाई पोंगल, मत्तू पोंगल, कन्नूम पोंगल कहा जाता है।
  • पोंगल पर्व का महीना चावल, हल्दी, गन्ना आदि की कटाई का भी होता है। अतः इस दिन नए चावल से बनी हुवी खीर का भोग सूर्य देवता को लगाया जाता है। पोंगल का शाब्दिक मतलब अच्छी तरह से पका हुआ या उबला हुआ होता है

ओणम

  • दक्षिण भारतीय राज्य केरल मे ओणम पर्व की काफी धूम रहती है। प्रत्येक वर्ष अगस्तसितम्बर माह में ओणम का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व 10 दिनों तक चलता है।
  • ओणम पर्व का खेती और किसानों से गहरा संबंध है इस पर्व को खासतौर पर खेतों में फसल की अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है। किसान अपने फसलों की सुरक्षा और अच्छी उपज के लिए श्रावण देवता और पुष्पदेवी की आराधना करते हैं।
  • ओणम पर्व में केरल मे घरों में स्वादिष्ट पकवानो के साथ पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर, केले और पापड़ के चिप्स आदि बनाये जाते हैं।
  • ओणम पर्व के अवसर पर केरल में सर्प नौका दौड़ , कथकली नृत्य का आयोजन आदि परियोगितायें आयोजित की जाती है।

चैती पर्व

  • उत्तराखण्ड राज्य के उधमसिंह नगर जनपद में निवास करने वाली बोक्सा जनजाति के लोगो के द्वारा चैती पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। चैती पर्व हिन्दू नववर्ष के प्रथम मास चैत्र में मनाया जाता है।
  • बोक्सा जनजाति के लोग इस पर्व में कृषि से सम्बंधित उत्पादों का पूजन करते हैं तथा फल, नयी फसल आदि का उपयोग तब तक नहीं करते हैं।  जब तक इन्हे वे अपने देवता को अर्पित न कर दे।
  • चैती पर्व के अवसर पर काशीपुर(उत्तराखण्ड) मे चैती मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला पूरे 1 महीने तक लगा लगता है।
  • रबी की फसल की कटाई से सम्बंधित एक पर्व थारू जनजाति के लोगो के द्वारा भी मनाया जाता है। जिसे भूमिया उत्सव कहते हैं। इस पर्व में थारू लोग अपनी फसल को कटाई के बाद अपने कुल देवता भूमिया को अर्पित करते हैं। 

बिहू पर्व

  • बिहू भारत के प्रमुख कृषि पर्वों में से एक है। बिहू पर्व असम राज्य मे बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। बिहू भारत का एकलौता ऐसा पर्व है जो साल मे तीन बार बैशाख, माघ, कार्तिक में मनाया जाता है।
  • सबसे पहले आता है, बोहाग बिहू इसे रोंगाली बिहू या हतबिहू भी कहा जाता है। रोंगाली बिहू को बैशाख माह मे मनाया जाता है। रोंगाली बिहू से किसान खेतों मे हल चलाकर खेती की शुरुवात करते हैं।
  • उसके बाद मनाया जाता है, काति बिहू/कंगाली बिहू। इस बिहू को कार्तिक मास की संक्रांति को मनाया जाता है। इस समय खेत में धन की फसल उगी रहती है , उसमे धान की बालियाँ अभी लगी नहीं रहती है। ऐसे समय में फसल में कीट आदि के लगने से नुकसान का भय रहता है। इस नुकसान से बचाव के लिए काति बिहू/कंगाली बिहू पर्व मनाया जाता है।
  • तीसरा बिहू होता है भोगाली बिहू , इसे माघ माह की संक्रांति को मनाया जाता है। इस दिन जो भी फसल तैयार होती है उसके व्यंजन बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है।

मकर संक्रांति

  • उत्तर भारत मे मकर संक्रांति के पर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस समय उत्तर भारत में शीत ऋतु का समय रहता है।
  • मकर संक्रांति के समय सूर्य मकर राशि में प्रविष्ट होते हैं तथा उनकी दिशा उत्तरायण यानि मकर  रेखा से कर्क रेखा की तरफ होने लगती है।
  • मकर संक्रांति के पर्व के समय रबी की फसल के कटाई का समय होने लगता है। अतः इस पर्व मे नये अन्न से बने पकवान बनाकर देवता को भोग लगाया जाता है।
  • घरों में गुड़, तिल, मूंगफली आदि के पकवान बनाये जाते हैं। उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र इस इस पर्व के दौरान घुघुते और खजूरे बनाये जाते हैं। यह दोनों पकवान आटा, गुड़ , घी, ड्राई फ्रूट की मदद से बनाये जाते हैं। 
  • मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र मे यह मान्यता है कि मकर संक्राति के दिन हमारे पूर्वज कौए के रूप में हरिद्वार स्नान करने जाते हैं तथा संक्रातिं के अगले दिन हमारे घरो मे आते हैं। अतः उस दिन कौओं को घर में बने पकवान खिलाये जाते है तथा उनसे फसल तथा जीवन में समृद्धि की कामना की जाती है।

लोहड़ी

  • सिक्ख समुदाय में लोहड़ी बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाने वाला कृषि पर्व है। यह पर्व उत्तर भारत मे मनाया जाता है किन्तु पंजाब और हरियाणा में इसकी रौनक देखते ही बनती है।
  • लोहड़ी प्रतिवर्ष 13 जनवरी को मनाई जाती है। इस दिन रात को लकड़ियों के चठ्ठे को सामूहिक रूप से आग लगाकर उसमे गेहूं की नयी फसल की बालियाँ डाली जाती है।
  • पंजाबो समुदाय के लोग  ढोल-नगाड़ों के साथ घेरा बनाकर भंगड़ा , गिद्दा आदि नृत्यों का आयोजन करते हैं। इस अवसर पर रेवड़ी, मूंगफली, पिन्नी ,गजक, पॉपकॉर्न आदि का खूब आनंद लिया जाता है।

अन्य कृषि उत्सव

  • पश्चिम बंगाल के कृषको के द्वारा धान की नयी फसल की कटाई के बाद नबना पर्व मनाया जाता है। इसमें ये कृषक सबसे पहले धान की नयी फसल को घर मे एकत्रित करके रखते हैं तथा माता लक्ष्मी को यह फसल अर्पित करते हैं।
  • छत्तीसगढ़ के कृषकों के द्वारा श्रावण पक्ष की अमावस्या को “हरेली” नामक पर्व मनाया जाता है। जिसमे वे अपने कृषि कार्यों के साधनो की पूजा अर्चना करते हैं।
  • उत्तराखण्ड राज्य के कृषकों के द्वारा प्रतिवर्ष  जुलाई माह की 16 तारीख को “हरेला’ पर्व मनाया जाता है। यह पर्व वर्षा ऋतु के आगमन, हरियाली और खुशहाली का प्रतीक है। इस दिन बरसाती सब्जियों की बुआई की जाती है तथा देवी-देवताओं को सप्त अनाजों की फसल चढ़ाई जाती है। 
  • उड़ीसा के कृषकों के द्वारा अच्छी फसल की पैदावार के लिए धरती माता को धन्यवाद हेतु राज पर्व मनाया जाता है।  यह पर्व 3-4 दिनों तक चलता है इस दौरान सभी कृषि यंत्रों की पूजा की जाती है तथा धरती को विश्राम अवस्था में छोड़ा जाता है।

चलतेचलते

भारतीय संस्कृति में “कृषि संस्कृति” का विशेष स्थान है, जैसे की हम सब हे जानते हैं की भारत एक कृषि प्रधान देश है और किस प्रकार से हमारे पर्व और त्यौहार सीधे हमारी कृषि से जुड़े हुए हैं। ऐसा अनुमान है कि भारत कि 73% जनसँख्या कृषि पर आधारित है, जब देश आजाद हुआ था उस समय कृषि का देश की जीडीपी में 50% की भागीदारी थी, अब यह घटकर 23.9% रह गयी है। वास्तव में गंभीरता से देखा जाये तो यह आंकड़े चौकाने वाले हैं। कृषि के बजट को भी वर्ष प्रति वर्ष कम किया जा रहा है, जबकि यह सेक्टर प्रतिवर्ष लगभग 63% रोजगार उत्पन्न करता है। सरकार द्वारा जो योजनायें चलायी जाती है उसका लाभ बड़े किसान उठाते हैं तथा छोटे किसान केवल प्रतिवर्ष 6 हजार रूपये का लाभ ले रहे हैं। दुनिया में केवल चीन ही एक ऐसा देश है जिसने पिछले 20 सालों में कृषि में सबसे ज्यादा निवेश किया है तथा अपनी पर-कैपिटा इनकम को दोगुना कर दिया है। बेशक भारत के चीन के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे हैं किन्तु भारत को चीन से कृषि आधारित प्रौद्योगिकी सीखने और उसको अपनाने की जरुरत है।

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