शरद पूर्णिमा क्या है और क्यों रखता है ये महत्व?

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शरद पूर्णिमा क्या है, शरद पूर्णिमा का महत्व क्या है और शरद पूर्णिमा की विशेषता क्या है, इन सबके बारे में इस लेख में आप यहां विस्तार से समझने जा रहे हैं।

हिंदू धर्म में पर्व-त्योहारों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इन सभी पर्व-त्योहारों में कुछ त्योहार ऐसे होते हैं, जो कुछ विशेष महत्व रखते हैं। इसी तरह का एक त्योहार शरद पूर्णिमा भी है, जो रास पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

शरद पूर्णिमा का महत्व क्या है? यह सवाल आपके मन में उस वक्त जरूर आता होगा, जब यह दिन साल में एक बार आपके सामने आ जाता हो और इस दिन खीर बनाने और खाने की बात आप सुनते हों। इसलिए हम आपको यहां शरद पूर्णिमा से जुड़ी सभी तरह की महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं।

शरद पूर्णिमा क्या है? | What is Sharad Purnima?

  • – शरद पूर्णिमा हिंदुओं का वह त्योहार है, जो कि आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि के दौरान मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि पूरे वर्ष भर में सिर्फ यही दिन होता है, जब चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।
  • – धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था। साथ ही इस दिन को लेकर यह भी मान्यता है कि रात्रि के दौरान चंद्रमा से जो किरणें निकलती हैं, उनसे अमृत की बारिश होती है।
  • – यही कारण है कि देश में और विशेषकर उत्तरी हिस्से में इस दिन लोग चांदनी रात में खीर बनाकर रात भर रख देते हैं। इस दिन हिंदू धर्म में कोजागर व्रत भी किया जाता है, जो कि कुमौदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

शरद पूर्णिमा का महत्व क्या है? | The Significance of Sharad Purnima

  • धार्मिक रूप से शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी।
  • मां लक्ष्मी धन प्रदान करने वाली हैं। शरद पूर्णिमा वह दिन है, जिस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और वे यहां विचरण करती हैं। इस दिन रात के वक्त जो लोग माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उन पर मां विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं और अपनी कृपा बरसाती हैं।
  • इस दिन न केवल लोग मंदिरों में जाकर मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं, बल्कि अपने घरों में भी वे लक्ष्मी पूजा की विशेष व्यवस्था करते हैं।

शरद पूर्णिमा की विशेषता क्या है? 

  • शरद पूर्णिमा की विशेषताओं की बात करें तो वास्तव में यह दिन किसी भी तरह के मरीजों के लिए बड़ा ही लाभप्रद होता है। वह इसलिए कि शरद पूर्णिमा ऐसा दिन होता है, जिस दिन और दवाइयों में स्पंदन क्षमता बढ़ जाती है।
  • अध्ययन यह भी बताते हैं कि दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व की मौजूदगी होती है। जब चंद्रमा की किरणों के नीचे दूध को रखा जाता है, तो उससे यह ज्यादा मात्रा में ताकत को अवशोषित कर लेता है। चावल में स्टार्च भरा हुआ होता है। इसकी वजह से यह प्रक्रिया और भी आसान तरीके से होती है।
  • यही वजह है कि शरद पूर्णिमा की रात को ऋषि-मुनियों द्वारा खुले आसमान के नीचे खीर बनाकर रखने की परंपरा शुरू की गई थी। भले ही लोग इसे एक धार्मिक परंपरा के रूप में देखते हैं, मगर वास्तव में इस परंपरा का वैज्ञानिक आधार है।
  • रावण, जो कि लंका का राजा था और जिसका भगवान राम ने वध किया था, शरद पूर्णिमा के दिन रात में आईने के जरिए वह चंद्रमा की किरणों को अपनी नाभि पर ले लेता था। इससे एक बार फिर से उसकी यौवन शक्ति बढ़ जाती थी।
  • शरद पूर्णिमा को लेकर जो कई शोध हुए हैं, उनमें यह बताया गया है कि चांदी प्रतिरोधक क्षमता के मामले में बहुत ही उत्तम धातु होती है। ऐसे में विषाणुओं का इस पर असर नहीं होता है। यही वजह है कि चांदी के बर्तन में यदि खीर बनाई जाए, तो इसका सेवन बड़ा ही लाभप्रद होता है। इसमें हल्दी का इस्तेमाल करने की मनाही है।
  • शरद पूर्णिमा के दिन नक्षत्रीय चक्र, सोम चक्र और आश्विन का त्रिकोण बनता है, जिस वजह से शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह हो पाता है।
  • शरद पूर्णिमा के दिन यदि रात में 10 से 12 के दौरान कम-से-कम आधा घंटा तक कोई व्यक्ति करे तो इससे उसकी बीमारियों के दूर होने की संभावना बढ़ जाती है।

शरद पूर्णिमा के पीछे की कथा | Stories Linked to Sharad Purnima

शरद पूर्णिमा को लेकर एक प्रचलित कथा यह है कि एक साहूकार की दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन जहां बड़ी बेटी पूर्णिमा के व्रत को पूरा करती थी, वहीं छोटी बेटी इसे अधूरा ही छोड़ देती थी। इस वजह से छोटी बेटी के जितने भी बच्चे हुए, पैदा होने के बाद वे मर जाते थे।

पंडितों से पता करने पर उन्होंने छोटी बेटी को बताया कि पूर्णिमा का अधूरा व्रत करने की वजह से ऐसा हुआ है। इसके बाद छोटी बेटी ने पूरे विधि-विधान के साथ जब पूर्णिमा का व्रत पूरा किया, तो उसे एक लड़का तो हुआ, लेकिन बहुत जल्द वह भी मर गया। ऐसे में छोटी बेटी ने अपने मरे हुए बच्चे को एक पीढ़े पर बांध दिया और उस पर कपड़ा रख दिया। उसकी बड़ी बहन आई तो उसने उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया।

बड़ी बहन के कपड़े के एक हिस्से ने जैसे ही उस बच्चे को स्पर्श किया, उस बच्चे ने रोना शुरू कर दिया। इस पर बड़ी बहन ने छोटी बहन से कहा कि आज तुम मुझे पाप लगवाने वाली थी। तब छोटी बहन ने कहा कि तुम्हारे व्रत के फलों की वजह से यह मरा हुआ मेरा बच्चा जीवित हो गया है। इस तरह से तब से पूर्णिमा का यह व्रत किया जाने लगा।

चलते-चलते

शरद पूर्णिमा क्या है और इसका क्या महत्व है, आपने अब इसे अच्छी तरह से जान लिया है। इसका धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी खूब है। ऐसा माना जाता है कि पूरे तन-मन से और विधि-विधान के साथ यदि इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाए, तो भक्तों को मनचाहे फल की प्राप्ति भी होती है।

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