हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले त्यौहारों में गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। दस दिन चलने वाला यह त्यौहार पूरे भारत में पूरी धूम-धाम से मनाया जाता है। कुछ लोग इसे गणेश चतुर्थी के स्थान पर विनायक चतुर्थी के नाम से भी इसे जानते हैं। दस दिन तक चलने वाले गणेश पूजन का महत्व और इतिहास क्या है, आइये देखते हैं:
गणेश चतुर्थी की कथा:
पुराणों में कही जाने वाली कथा के अनुसार एक बार पार्वती माँ ने अपने शरीर के चन्दन लेप से एक बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण दे दिये। उस बालक को सबसे पहले काम के रूप में उन्होनें उस बालक को अपनी द्वार पर एक रक्षक के रूप में नियुक्त करके आदेश दिया की वो किसी को भी अंदर न आने दे। कुछ समय पश्चात भगवान शिव अपने गणों के साथ वहाँ आ जाते हैं और अंदर प्रवेश करना चाहते हैं। उनके इस प्रयास को माता-भक्त गणेश विफल कर देते हैं। गणेश शिव और उनके गणों को विनम्र शब्दों में सूचित करते हैं की बिना उनकी माता की आज्ञा के बिना वो किसी को अंदर प्रवेश नहीं करने दे सकते । शिव, गणेश को बार-बार समझाने का प्रयास करते हैं लेकिन गणेश अपनी बात पर अटल रहते हुए, शिव और उनके साथियों को युद्ध के लिए ललकार देते हैं। इस युद्ध में शिव, गणेश का सिर काटकर उन्हें पराजित कर देते हैं। जब देवी पार्वती को शिव-गणेश युद्ध के बारे में पता लगता है तो वो चिंतित होकर बाहर आतीं हैं। इस युद्ध के परिणामस्वरूप अपने मानस पुत्र का कटा सिर देखकर वो अत्यंत दुखी और क्रोधित हो जातीं हैं। शिवजी को सारी बात का पता चलता है तो वो भी दुखी हो जाते हैं और पार्वती जी को गणेश की पुनर्जन्म का आश्वासन देते हैं। तब वे अपने गणों को आदेश देते हैं की किसी ऐसे पुत्र का सिर लेकर आओ जिसकी माता उसकी ओर पीठ करके सो रही हो। शिव गणों को एक हाथी का बच्चा ऐसा मिलता है और वो उसका सिर शिव जी के पास ले आते हैं । तब भगवान शिव ने उस सिर को धड़ के साथ जोड़कर नया जीवन दे देते हैं। इस प्रकार गज का मुख होने के कारण उन्हें गजानन कहकर पुकारा जाने लगा।
गणेश चतुर्थी कैसे मनाते हैं:
गणेश उत्सव को महाराष्ट्र, गोवा, केरल और तमिलनाडु में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। इस उत्सव के पूजन के लिए महीनों पहले से कारीगर गणेश की मूर्तियाँ बनाना शुरू कर देते स्थापना करने के बाद गणपती की पूजा की जाती है और उसके बाद इस मूरत का विसर्जन कर दिया जाता है। यह पूजन 1, 3, 5, 7 या 11 दिन तक किया जाता है। इस पूजन में पूजा सामग्री के अतिरिक्त मोदक का भोग लगता है। इस उत्सव को लोग सामूहिक रूप से पंडाल में गणेश स्थापना करके या फिर घर में स्थापना करके मनाते हैं। सामुदायिक उत्सव का आरंभ पहले शिवाजी महाराज ने और बाद में लोकमान्य तिलक ने सामुदायिक एकता को बढ़ावा देने के लिए किया था।