खतरा हैं देश के पुराने बांध, यूएन की रिपोर्ट एक नजर में

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ageing dams of India


Dams in India को लेकर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट का शीर्षक “एजिंग वाटर इंफ्रास्ट्रक्चर: एन इमर्जिंग ग्लोबल रिस्क” है। इसमें जो बात कही गई है, उससे भारत में रहने वाले लोगों की चिंता बढ़ गई है। वह इसलिए कि रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 1000 से भी ज्यादा बड़े बांध ऐसे हैं, जो अगले 4 वर्षों में 50 साल पुराने होने जा रहे हैं। ऐसे में इन पुराने बांधों या फिर तटबंधों की वजह से न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि आमजनों के लिए भी गंभीर खतरा पैदा होने वाला है।

इस लेख में आपके लिए है:

  • रिपोर्ट से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
  • भारत की स्थिति
  • समस्याएं एक नजर में
  • सरकार द्वारा उठाये गये कदम

रिपोर्ट से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

  • United Nations की तरफ से रिपोर्ट जारी की गई है, इसे संकलित किया है इंस्टिट्यूट फॉर वाटर, एनवायरनमेंट एंड हेल्थ ने, जो कि कनाडा में स्थित है। इसमें बताया गया है कि बीसवीं सदी के मध्य में जो दुनिया में विशाल बांधों का निर्माण की जाने वाली एक क्रांति हुई थी, फिर से उसका हो पाना इस वक्त संभव नहीं दिख रहा है। हालांकि, जो बांध निर्मित हो चुके हैं, वर्ष 2025 तक इनमें से अधिकतर की उम्र काफी हो जाएगी।
  • भारत के साथ कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, जिम्बाब्वे, जाम्बिया और जापान जैसे देशों में बांधों के ध्वस्त होने की घटनाएं घटी हैं या फिर जिन बांधों की उम्र बढ़ती जा रही है, उन सभी का इसमें अध्ययन करके इनका विश्लेषण किया गया है।
  • पृथ्वी पर वर्ष 2050 तक ऐसी स्थिति आने वाली है, जब धरती पर लोग उन बड़े बांधों के अनुप्रभाव या फिर बहाव वाले इलाकों में रह रहे होंगे, जिनमें से हजारों का निर्माण बीसवीं सदी के दौरान हुआ है। बहुत से बांध इनमें से ऐसे हैं, जो अपने डिजाइन की समयसीमा से भी ज्यादा वक्त तक वर्तमान में काम कर रहे हैं।
  • दुनिया भर में इस समय जो विशाल बांध 58 हजार 700 की संख्या में हैं, इनमें से अधिकतर बांधों का निर्माण वर्ष 1930 से वर्ष 1970 के दौरान हुआ था। जब इन बांधों का निर्माण हो रहा था, तो इन्हें 50 से 100 वर्षों तक काम करने की क्षमता के अनुसार ही डिजाइन किया गया था।
  • कंक्रीट से जिन बड़े बांधों का निर्माण होता है, 50 वर्ष की उम्र पार करने के बाद इसके संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं। बांधों की बढ़ती उम्र का पता लगाने के लिए कई संकेत मौजूद हैं। उदाहरण के लिए बांध की मरम्मत और इसके रखरखाव में जो लागत आती है, वह बढ़ने लगती है। बांध की अक्षमता धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है। यही नहीं, जलाशय अवसादन में भी बढ़ोतरी देखने के लिए मिलती है।
  • कार्यक्षमता और प्रभावशीलता एक-दूसरे के पूरक होते हैं, जो बांध को दृढ़ता प्रदान करते हैं। दुनिया में जितने बांध बने हुए हैं, उनमें से 55 फ़ीसदी यानी कि 32 हजार 716 विशाल बांध केवल चार एशियाई देशों चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया में मौजूद हैं।
  • इनमें से अधिकतर बांध ऐसे हैं, जो बहुत ही जल्द 50 साल की उम्र को पार करने जा रहे हैं। दक्षिण अमेरिका के साथ अफ्रीकी और पूर्वी यूरोप के भी बहुत से बड़े बांधों की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है।

भारत की स्थिति

  • दुनिया में जितने भी विशाल बांधों का निर्माण हुआ है, उनमें भारत तीसरे स्थान पर मौजूद है। देश में विशाल बांधों की संख्या 5 हजार 200 से भी अधिक है। इनमें से करीब 1 हजार 100 बांध ऐसे हैं, जिनमें से कई 50 वर्ष की उम्र को पार कर चुके हैं। इतना ही नहीं, कई बांध तो ऐसे भी हैं, जिनकी उम्र 120 वर्ष को भी पार कर चुकी है।
  • यदि वर्ष 2050 तक देखें, तो इस तरह के बांधों की संख्या बढ़कर 4 हजार 400 तक पहुंचने वाली है। इसका यह साफ मतलब हुआ कि देश में 80 फीसदी विशाल बांध ऐसे हैं, जो कभी भी ध्वस्त हो सकते हैं। वह इसलिए कि इनकी उम्र 50 से 150 साल से भी अधिक की हो जाएगी।
  • इसके लिए कर्नाटक के मैसूर में बने कृष्णराज सागर बांध का उदाहरण लिया जा सकता है, जिसका निर्माण वर्ष 1931 में हुआ था। इस तरीके से इसकी उम्र 90 साल की हो चुकी है। यही नहीं, मेट्टूर बांध का निर्माण भी 1934 में हुआ था, जो अब 87 साल पुराना हो चुका है। ये दोनों ही जलाशय उस कावेरी नदी बेसिन में बने हुए हैं, जहां पानी की कमी है।

समस्याएं एक नजर में

  • बांधों की आयु बढ़ने की वजह से पानी की जगह मिट्टी के लेने के कारण जलाशयों की भंडारण क्षमता कम होती चली जाती है। कई बांधों के डिजाइन त्रुटिपूर्ण हैं। इसकी वजह से भी बांधों की जल भंडारण क्षमता कम होती जा रही है।
  • भूजल स्तर पर भी इसका प्रभाव पड़ने लगा है, क्योंकि जल के अभाव के कारण उनका आकार लगातार सिकुड़ता जा रहा है।
  • फसलों को उगाने के लिए फसल बीमा और क्रेडिट एवं निवेश के साथ पानी की भी बड़ी जरूरत होती है। ऐसे में पानी कम होने से किसानों की आय पर भी इसका कुप्रभाव पड़ रहा है।
  • एक अच्छी बात यह है कि नदी घाटियों में जो नई डिजाइन एवं संरचना वाले बांधों का निर्माण किया गया है, उससे बाढ़ की विभीषिका को काफी हद तक कम करने में मदद मिली है। वर्ष 2015 में चेन्नई में, वर्ष 2018 में केरल में और वर्ष 2020 में जो भरूच में बाढ़ को सीमित किया जा सका था, वह इन्हीं बांधों की नवीन संरचना एवं डिजाइनों का फल है।

सरकार द्वारा उठाये गये कदम

  • बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना के द्वितीय और तृतीय चरण को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की तरफ से मंजूरी हाल ही में प्रदान की गई है।
  • Dam Safety Bill 2019 यानी कि बांध सुरक्षा विधेयक के पूरक के तौर पर मौजूद 736 बांधों के व्यापक तरीके से पुनर्वास की परिकल्पना यह परियोजना पेश कर रही है।

चलते-चलते

United Nations की ओर से बांधों को लेकर जारी किए गए रिपोर्ट को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, ताकि पर्यावरण के साथ आमजनों के जीवन की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके। बांधों के सुचारू तरीके से क्रियान्वयन के लिए एक निवारण तंत्र का विकसित किया जाना बहुत ही जरूरी है।

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