सिकंदर ने भारत पर आक्रमण क्यूँ किया था

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Alexander's Invasion

मेसीडोनिया में ५५६ ई॰पू. जन्में एलेक्ज़ेंडर को भारत में सिकंदर या सिकंदर महान के नाम से जाना जाता है। लेकिन क्या वास्तव में सिकंदर महान था या यह केवल एक किवदंती है? क्या सिकंदर-पुरू युद्ध में सिकंदर की जीत हुई थी? सिकंदर विश्व विजेता बनने से क्यूँ रह गया है। ऐसे ही अनेक सवाल इतिहास की गर्द में दबे हुए हैं जिन्हें इतिहासकार समय-समय पर ढूँढने की कोशिश करते रहते हैं। आइये हम भी इन्हीं सवालों में से कुछ सवालों के जवाब देने की कोशिश करें:

सिकंदर भारत कैसे आया:

३३६ ई॰पू॰ में सिकंदर जब अपने पिता फिलिप द्वितीय की मृत्यु के बाद यूनान के सिंहासन पर बैठा तब उसकी आयु मात्र २३ वर्ष की थी। उस समय वो अपने पिता की युद्ध कौशल से बहुत प्रभावित था और उनसे प्रेरित होकर उसने विश्व विजेता बनने की ठानी। अपने सपने को पूरा करने के लिए वो अपनी विशाल सेना को लेकर विभिन्न देशों और राज्यों को जीतने के लिए निकल पड़ा। इस क्रम में उसने  इरान, सीरिया, मिस्र, मसोपोटेमिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया आदि देशों को अपने अधीन कर लिया। इसी तरह देशों को जीतता हुआ सिकंदर ३२६ ई.पू. में वह काबुल होता हुआ हिंदुकुश पर्वत को पार करके सिंधु नदी के तट पर पहुँच गया।

सिकंदर का स्वागत और विरोध:

सिकंदर के आक्रमण के समय भारत का पश्च्मिओत्तर भाग २८ छोटे-छोटे राज्यों जैसे पुरु, अभिसार, पूर्वी और पश्चिमी गांधार, कंठ, सौभती, मालव, क्षुद्रक, अंबष्ट, भद्र, ग्लौगनिकाय आदि में बंटा हुआ था। भारत की सीमा में सिकंदर के घुसते ही पहाड़ी सीमा कुनात, स्वात, बुनेर, पेशावर (आजका) के वीर राजाओं ने उसे जमकर टक्कर दी थी। इसी प्रकार मत्स्यराज में तो वीर महिलाओं ने भी सिकंदर की सेना के पाँव उखाड़ने की कोशिश करी थी।

सिकंदर की चाल और भारतीय धोखा:

भारत की सीमा में जब सिकंदर का सामना वीर राजाओं से हुआ तब उसने धोखा देने की चाल चली। वह युद्धरत राजाओं के पास संधि प्रस्ताव भेजकर युद्ध रोकता था और रात में हमला करके उन्हें मार देता था। इस प्रकार विभिन्न राज्य जीतता हुआ सिकंदर आगे बढ़ रहा था तब तक्षशिला राज्य के राजा आम्भी ने सिकंदर का स्वागत करते हुए आत्मसमर्पण कर दिया। यही नहीं उसने अपनी सेना भी सिकंदर की सेना में मिला कर उसकी सेना का बल बढ़ा दिया था। आम्भी, सिकंदर के साथ मिलकर पंजाब के शासक पुरू को हराना चाहता था।

पुरू कौन थे

भारत की पश्चमी सीमा पर सिंधु नदी के पार  झेलम और चनाब नदियों के बीच में एक हिस्सा था जिसका शासन राजा पुरू के हाथ में था। यह हिस्सा पंजाब-सिंध के बड़े भाग में था। इतिहासकार राजा पुरू का शासन काल ३४० ई॰ से ३१५ ई.पू॰ तक मानते हैं।

पुरू जिसे ग्रीक इतिहासकार पोरस के नाम से पुकारते हैं, एक वीर एवं दूरंदेशी मगर नियमों पर चलने वाला राजा था। उस समय राजा पुरू को उस समय की वीर जाती खुखरायन का समर्थन प्राप्त था। दरअसल राजा पुरू स्वयम इसी जाती की एक उपजाती सभरवाल से संबन्धित थे। इस प्रकार पुरू उस समय के एक शक्तिशाली राजा थे।

सिकंदर-पुरू युद्ध :

राजा आम्भी ने विश्वासघात करते हुए सिकंदर को अपने सैन्य बल के बूते सिंधु और झेलम नदी पार करवा दी। राजा पुरू उस समय सिकंदर को झेलम पार करने न रोक पाये और अपनी सेना के साथ सिकंदर से युद्ध करने चल दिये।

उस समय सिकंदर की ताकत उसके ७ हज़ार अश्वबल, और ५० हज़ार पैदल सिपाही थे। इसके अतिरिक्त उसके पास राजा आम्भी के ११ हज़ार भारतीय सैनिक भी थे। जबकि राजा पुरू के पास १३० हाथी ४ हजार घुड़सवार, २० हजार पैदल सैनिक और ४ हजार रथ सवार सैनिक थे।

राजा पुरू के जाबांज सिपाहियों और मस्त हाथी सेना ने सिकंदर की यवनी सेना के हौंसले पस्त कर दिये थे। यवनी सेना ने इससे पहले हाथी सेना का सामना नहीं किया था इसलिए उनके घोड़े हाथियों से डरकर अपनी ही सेना का नुकसान कर रहे थे। एक बार राजा पुरू ने सिकंदर को निहत्था करके नीचे गिरा दिया, लेकिन अपने नियम का पालन करते हुए न तो उन्होनें सिकंदर को मारा और न ही कैद किया। सिकंदर ने इस मौके का फायदा उठाया और इसके बाद दोनों योद्धा लगभग 8 घंटे तक लड़ते रहे, लेकिन इस युद्ध का कोई नतीजा नहीं निकल सका।

सिकंदर-पुरू संधि:

इस युद्ध में राजा पुरू के पुत्र की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। दोनों ओर के सैनिक पस्त हो चुके थे। तब सिकंदर के मित्र जिन्हें पुरू भी मानते थे, ने संधि का प्रस्ताव रखा जिसे दोनों ने मान लिया। इस प्रकार सिकंदर-पुरू युद्ध बिना किसी परिणति के समाप्त हो गया था। लेकिन इस युद्ध में सिकंदर ने राजा पुरू की बहादुरी से प्रभावित होकर उन्हें उनका राज्य वापस कर दिया। इस प्रकार इस विश्व प्रसिद्ध युद्ध जिसे इतिहासकर ‘हाइडेस्पेस का युद्ध’ भी कहते हैं, समाप्त हुआ।

सिकंदर का भारत पर प्रभाव:

राजा पुरू से लड़ने के बाद सिकंदर के सैनिक थक चुके थे और उन्होनें विद्रोह करके और कोई भी युद्ध लड़ने से मना कर दिया। इसके अलावा भारत का गरम मौसम भी उन्हें रास नहीं आ रहा था। इस विद्रोह के सामने सिकंदर ने वापस लौटने का निर्णय लिया और अपने जीते हुए राज्य अपने सेनापति फिलिप को देते हुए, १९ महीने भारत में बिताकर वापस लौट चला।

सिकंदर द्वारा भारत विजय के उपलक्ष्य में दो राज्यों की स्थापना करी जिससे भारत में यवन संस्कृति का विकास हुआ। भारतीय संस्कृति में यवन संस्कृति का प्रभाव निम्न तथ्यों से देखा जा सकता है:

  1. भारतीय कला और स्थापत्य में गांधार शैली ने जगह बनाई और परवान चढ़ी।
  2. मुद्रा के लिए साँचे बनने शुरू हो गए।
  3. मुद्रा पर लेखन का प्रारम्भ हुआ।
  4. संस्कृत शब्दावली में ‘यवनिका’ शब्द जुड़ गया।
  5. लिखने के लिए स्याही और कलम का प्रयोग शुरू हो गया।
  6. गणित में “पैथागोरस” प्रमेय को स्थान मिला।
  7. ज्योतिष और खगोल विद्या में यूनानी पद्धति ने भी स्थान लिया।
  8. भारत की छोटी-छोटी रियासतें बड़े राज्यों में बदल गईं।
  9. पश्चमी देशों के साथ व्यापारिक समुद्री मार्ग खुल गया।
  10. भारत में सिकंदर द्वारा दो राज्य, निकैया (विजयनगर) और झेलम नदी के किनारे दूसरा नगर बुकफेला की स्थापना हुई।

सिकंदर को महान कहना या न कहना वाद-विवाद का विषय हो सकता है, लेकिन उसकी महानता बिना पुरू की वीरता के संभव नहीं थी। इस बात को स्वयं सिकंदर भी समझता था इसीलिए उसने राजा पुरू को अपने अधीन होने के लिए मजबूर नहीं किया था।

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