दिवाली- खुशिओं का त्यौहार

[simplicity-save-for-later]
6740

“दिवाली”, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है , यह शब्द ही इसके महत्व को भी परिभाषित करता है। दीप जहां (दीपक, मोमबत्ती, दीये या इस तरह की रोशनी ) को दर्शाता है, वहीं “आवली” का अर्थ है- पंक्ति। संक्षेप में दोनों को मिलाकर इसका अर्थ “रोशनी की पंक्ति” है । यह एक आकर्षक और चमकदार त्यौहार है जिसे मूल रूप से हिंदू समुदाय ज्यादा उत्साह से मनाता है। इस त्यौहार का भारतीय समाज में आर्थिक एवं धार्मिक महत्त्व है ।

हिन्दुओं का मुख्य त्यौहार होने के कारण न केवल भारत में, किन्तु पाकिस्तान, श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया, मॉरीशस,फिजी आदि देशों में भी अब इस त्यौहार को मनाया जा रहा है। इस त्योहार में रोशनी का एक विशेष महत्व है। यहां इसे अँधेरे और बुराई पर प्रकाश की जीत का प्रतीक माना जाता है।

हालाँकि यह एक हिन्दू त्यौहार है लेकिन हर सम्प्रदाय के लोग इसे उत्साहपूर्ण तरीके से मनाते है । इस लिए कई कहानियां इस त्यौहार के साथ जुडी हुई है । आइये हम इस शुभ दिन के पीछे की एक मुख्य कहानी के बारे में जानते है ।

दिवाली से जुड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान राम उनकी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ रावण को हराने के बाद उनके घर अयोध्या वापस लौटे थे। भगवान राम को उनकी सौतेली माँ कैकयी द्वारा 14 साल का वनवास दिलवाया गया था। आज्ञाकारी बेटे होने के नाते, वह अपने महल, उसके सारे आराम और अपना परिवार छोड़कर वनवास के लिए जाने को तैयार हुए । लेकिन उनकी नवविवाहित पत्नी और प्यारे भाई ने भी उनके साथ महल छोड़ दिया। वनवास के अंतिम वर्ष में एक उच्च शिक्षित ब्राह्मण (लेकिन एक बुरी आत्मा वाले) रावण ने सीता का अपहरण कर लिया। अपनी पत्नी को उस जगह से छुड़ाने और रावण से मुक्त कराने के लिए भगवान राम ने रावण और अन्य क्रूर राक्षसों के साथ लड़ाई लड़ी और अंत में विजय प्राप्त की। इस से यह प्रकट होता है कि बुराई पर सदैव अच्छाई की जीत होती है। तो जिस दिन भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के साथ 14 साल के निर्वासन से वापस अपने घर अयोध्या लौटे, लोगों ने पूरे क्षेत्र में दीपक जलाकर अपने सबसे प्यारे राजकुमार के प्रति प्यार दिखाया।

जैन समुदाय भी इस दिन का कुछ अलग कारणों के लिए आनन्द लेता है। इसी दिन उनके प्रभु महावीर ने निर्वाण या ‘मोक्ष’ (जो पुनर्जन्म से रिहाई का रास्ता है ) प्राप्त किया। जैनी लोग भगवान महावीर को याद करने और उन्हें सम्मान और श्रद्धांजलि देने के लिए इस त्यौहार को मनाते हैं।

सिख समुदाय इस दिन को “बंदी छोड़” दिवस के रूप में मनाता है। आज ही के दिन, सिख गुरु – गुरु हर गोबिंद सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर के चंगुल से खुद को और दूसरों को मुक्ति दिलाई थी। गुरु हर गोबिंद सिंह जी सीधे अमृतसर में स्वर्ण मंदिर आये थे।

न केवल प्रकाश और दीपक, लेकिन आतिशबाजी, उपहार और रंगोली डिजाइन भी इस त्योहार की सुंदरता बढाते हैं। दिवाली की रात को शरद ऋतु की अंधेरी रात के रूप में माना जाता है। हिंदू संस्कृति के अनुसार, यह कहा जाता है कि दिवाली का जश्न भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा के बिना अधूरा माना जाता है। लोग विशेष रूप से इस दिन नए कपड़े पहनते हैं क्योंकि ये उनकी समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन एक दूसरे के बीच उपहार और मिठाई का आदान-प्रदान होता है ताकि समाज में शांति और सदभाव बना रहे ।

हम सभी को भी इस त्योहार के सही अर्थ को बाहर लाने और समाज में सदभाव और खुशी के प्रकाश को बाहर लाने की ज़रूरत है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.