जैव आतंकवाद (Bioterrorism): विध्वंस का नया हथियार

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जब हम मानव इतिहास पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि युद्ध इस धरती पर हमेशा से होता आया है। युद्ध की आशंका ने पूरी दुनिया में आधुनिक हथियारों के निर्माण की होड़ बढ़ा दी है और बीती एक शताब्दी में हथियारों के निर्माण में बेतहाशा बढ़ोतरी देखने को मिली है। सबसे बड़ी बात है कि जैविक हथियारों का निर्माण भी तेजी से होने लगा है। इस वक्त जिस तरह से कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ रहा है, उसे देखते हुए जैविक हथियार एवं जैव आतंक को लेकर चर्चा होने लगी है। COVID-19 नामक महामारी को जन्म देने वाले coronavirus बनाने और पूरी दुनिया में उसे फैलाने को लेकर यूएस व चीन के बीच आरोप-प्रत्यारोप खूब चल रहा है।

जैव आतंक को समझें (Bioterrorism Definition) 

उच्च तकनीक पर आधारित जैव आतंक का इस्तेमाल अब आतंक के नये हथियार के तौर पर होने लगा है। सिर्फ आतंकवादी समूह ही नहीं, बल्कि शक्ति संपन्न देशों की ओर से भी जैव आतंक का इस्तेमाल प्रत्यक्ष तौर पर युद्ध का हिस्सा न बनकर परोक्ष तरीके से जैव आतंकवाद की मदद ले रहे हैं।

वर्तमान समय में Bio Terrorism के अंतर्गत उन क्रूर गतिविधि को रखा जा सकता है, जिनमें इंटरनेशनल लेवल पर वायरस, बैक्टीरिया या विषैले तत्व इंसानों द्वारा ही प्राकृतिक या परिवर्धित रूप से तैयार कर किसी राष्ट्र को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से मध्यस्थ साधन के तौर पर इस्तेमाल में लाये जा रहे हैं।

यही नहीं, एक और समस्या आत्मघाती जैव आतंकवाद के रूप में भी देखने को मिल रही है। इसमें आतंकवादी खुद में घातक संक्रामक बीमारी विकसित कर रहे हैं और इसके बाद आमजनों के बीच जाकर उन्हें भी संक्रमित करके समूचे इलाके में विनाश फैलाने का षड्यंत्र कर रहे हैं।

इतिहास में झांकने पर

  • मेसोपोटामिया में ईसा पूर्व छठी शताब्दी में अस्सूर साम्राज्य हुआ करता था, जहां दुश्मनों के पीने वाले पानी के कुओं में लोगों द्वारा जहरीला कवक डाल दिया गया था, जिससे बड़ी संख्या में शत्रु मारे गये थे।
  • यूरोप का इतिहास देखें तो तुर्की और मंगोल भी संक्रमित जानवरों के मृत शरीर को शत्रुओं के जल स्रोतों में डलवा देते थे। प्लेग जो कि ‘ब्लैक डेथ’ (Black Death) के नाम से भी जाना गया है, यह भी कहा जाता है कि ऐसे ही फैला था।
  • जर्मनी ने प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान एंथ्रेक्स व ग्लैंडर्स के जीवाणुओं का इस्तेमाल जैविक हथियारों के तौर पर किया था।
  • आतंकवादियों के एंथ्रेक्स संक्रमित पत्र वर्ष 2001 में अमेरिकी कांग्रेस के कार्यालयों में भेजे जाने का मामला प्रकाश में आया था, जिसमें पांच लोगों की जान चली गई थी।

जैविक हथियार का मतलब

जैविक हथियार का मतलब यह है कि इसके जरिये आमतौर पर वायरस या फिर बैक्टीरिया से नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए हमला किया जाता है। ऐसे में अन्य हथियारों से यह अधिक खतरनाक साबित होता है। युद्ध में जब नरसंहार करना होता है तो कीटाणुओं, विषाणुओं या फिर फफूंद जैसे संक्रमण फैलाने वाले तत्वों का प्रयोग जैविक हथियारों के तौर पर किया जाना संभव है।

करीब 200 तरह के बैक्टीरिया, वायरस व फंगस की पर्यावरण में मौजूदगी है, जो जैव आतंकवाद के वाहक के रूप में इस्तेमाल में लाये जा सकते हैं। इनमें कई खतरनाक जीव जैसे कि प्लेग, एंथ्रेक्स, बोटूलिज्म, ग्लैन्डर और टूलेरीमिया आदि शामिल हैं।

सबसे बड़ी बात है कि बहुत से वाहक पाउडर के रूप में भी रहते हैं। आसानी से इन्हें हवा या पानी में छोड़ा जाना मुमकिन है। किसी खाद्य पदार्थ में भी इन्हें मिलाया जा सकता है। किसी प्राणी या अन्य जीवों की जान लेने के लिए इनके लिए 24 घंटे ही काफी हैं।

रासायनिक हथियार (Chemical Weapons)

  • रसायनों का इस्तेमाल करके इंसान रासायनिक हथियार बनाते हैं। इसका मतलब यह है कि इन हथियारों में घातक रसायन डाले जाते हैं, जिससे बड़ी आबादी को जान-माल का भारी नुकसान झेलना पड़ता है। जीवन को समाप्त करने के लिए ही इन हथियारों को उपयोग में लाया जाता है। संपूर्ण मानव समुदाय का अस्तित्व रासायनिक युद्ध के जरिए मिटाया जा सकता है।
  • IEDs, Mortars, मिसाइलों एवं अन्य एजेंटों के जरिये रासायनिक हथियारों में मौजूद ज़हरीले रसायन फैलाये जाते हैं। इनकी वजह से विस्फोट हो जाता है और इसमें मौजूद जहरीले रसायन हवा में फैल जाते हैं। जब इन रसायनों के संपर्क में कोई आता है तो कुछ ही सेकेंड में इनके कारण उसकी मौत भी हो जाती है।
  • जब तक हवा पूरी तरीके से साफ नहीं कर दी जाती है, तब तक इन रासायनिक हथियारों का असर बना ही रहता है। क्लोरीन, मस्टर्ड गैस, सरीन, हाइड्रोजन साइनाइड व टीयर गैस आदि रासायनिक हथियार के कुछ उदाहरण हैं।

जैविक हथियारों पर नियंत्रण की कोशिशें

  • जैविक हथियारों के निर्माण के साथ इसके इस्तेमाल पर रोक लगाए जाने के लिए दुनियाभर में कई सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं।
  • सबसे पहले तो वर्ष 1925 में जेनेवा प्रोटोकॉल के अंतर्गत कई देशों के बीच जैविक हथियारों के नियंत्रण के लिए बातचीत की शुरुआत हुई थी।
  • वर्ष 1972 में बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन (Biological weapon Convention) की स्थापना की गई थी और 1975 में 26 मार्च को 22 देशों द्वारा इस पर हस्ताक्षर किए गए थे।
  • वर्ष 1973 में बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन (BWC) का भारत भी सदस्य बन गया था और वर्तमान में 183 देश इसके सदस्य बन चुके हैं।
  • आतंकवाद की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत में नोडल एजेंसी के तौर पर गृह मंत्रालय काम करता है। साथ ही रक्षा मंत्रालय के अलावा पर्यावरण मंत्रालय और डीआरडीओ भी सक्रिय तौर पर आतंकवाद पर नियंत्रण की दिशा में काम कर रहे हैं।
  • Bioterrorism से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से दिशा-निर्देश भी तैयार किए गए हैं। इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि सरकारी एजेंसियों के साथ निजी एजेंसियों की भी इसमें सहभागिता हो।

निष्कर्ष

Bioterrorism के वाहकों को यदि रोकना है तो वाइल्ड लाइफ हेल्थ सेंटर, जुनोसिस सेंटर और फॉरेन्सिक सेंटर आदि की स्थापना सरकार की ओर से की जानी चाहिए। साथ ही टीके एवं नई औषधियों के लिए शोध व अनुसंधान को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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