मध्यकालीन इतिहास में बक्सर के युद्ध का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। इतिहासकार इस बात को मानते हैं कि बक्सर के युद्ध के बाद ब्रिटिश राज कि भारत में जड़ें और मजबूत हो गईं थीं।
बक्सर युद्ध की भूमिका:
१७५७ के प्लासी के युद्ध के बाद मीरजाफ़र गद्दी पर तो बैठ गया लेकिन अंग्रेजों की हाथ की कठपुतली बन कर शासन नहीं सम्हाल पाया। उसके शासन काल में आय के सभी स्त्रोत सूख गए और खर्चों ने सीमा तोड़ दी। इधर ईस्टइंडिया कंपनी के कर्मचारी दस्तक पार पत्र का जमकर दुरुपयोग कर रहे थे जिसके कारण बंगाल का खज़ाना पूरी तरह से खाली हो गया था।
इसी बीच मिरजाफ़र के बेटे की मौत का सहारा लेकर ब्रिटिश राज ने मीरजफर के दामाद मीरकासिम को ताज पहनावा दिया। इसके साथ ही कासिम ने चालाकी से मीरजाफ़र को गद्दी से पूरी तरह हटा कर अंग्रेज़ो से एक संधि करी जिसके अंतर्गत बंगाल के कुछ जिले और ५ लाख दिये। यह संधि १७६० की क्रांति के नाम से जानी जाती है।
मीरकासिम का रुख पलट वार:
ब्रिटिश राज की उम्मीदों के विपरीत मिरकासिम एक कुशल शासक साबित हुआ। उसने एक ओर कंपनी की मांगें पूरी करके उन्हें अपनी ओर कर लिया वहीं दूसरी ओर लगान की वसूली पूरी करके रिक्त राजकोष को भी पूरा कर लिया। दूरंदेशी का उपयोग करते हुए अपनी राजधानी मुंगेर ले गया जिससे ब्रिटिश राज के दुष्प्रभाव से जनता को बचा सके। प्रशासन और सेना को आधुनिक रूप देते हुए सुदृढ़ कर लिया। इसके साथ ही व्यापारिक नीतियों में सुधार करते हुए अंग्रेजों का आधिपत्य वहाँ से समाप्त करते हुए उस क्षेत्र में भी अपना दबदबा स्थापित कर लिया। इससे अंग्रेज़ समझ गए कि जिसे वो कठपुतली समझ रहे थे वो एक समझदार शासक निकला।
अंग्रेजों की चाल:
मीरकासिम के विरुद्ध अंग्रेजों ने मीरजफर को नवाब की गद्दी वापस करने का षड्यंत्र रचा और मीरकासिम पर हमला किया। मीरकासिम ने इस युद्ध का करारा जवाब दिया और अंग्रेजों का जीता हुआ पटना अपने अधिकार में करते हुए २०० अंग्रेज़ भी बंदी बना लिए।
अंग्रेजों ने अब खुलकर सामने आते हुए मीरजाफ़र को बंगाल का नवाब घोषित कर दिया और मीरकासिम के विरुद्ध युद्ध कर दिया। यहाँ मीरकासिम अपने सैनिकों के विश्वाषघात के कारण हार गया और कटवा, मुशिरदाबाद, गिरिया और उदयनाला जिले हार गया। इसके साथ ही उसकी राजधानी मुंगेर पर भी अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया।
मीरकासिम ने अंग्रेजों को युद्ध बंद करने की धमकी दी जिसपर उन्होनें ध्यान नहीं दिया। गुस्साये मीरकासिम ने पटना में बंदी बनाए २०० अंग्रेज़ मार दिये। यह घटना पटना हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
बक्सर की निर्णायक लड़ाई:
अब मीरकासिम ने अवध के नवाब शुजाऊद्दौला और बिहार के मुगल सम्राट शाहआलम के साथ गठजोड़ करके पटना के पास बक्सर में अंग्रेजों को युद्ध के लिए ललकारा। २२ अक्तूबर १७६४ को अँग्रेजी सेना हेनरी के नेत्रत्व में इस तिकड़ी से लड़ी और जीत गई। इस जीत का कारण शाहआलम का विश्वासघात करके अंग्रेजों से मिल जाना माना जाता है। नवाब शुज़ौद्दौला वापस अवध चला गया और मीर कासिम दिल्ली आ गया।
बक्सर-युद्ध के परिणाम:
- ईस्ट इंडिया कंपनी का बंगाल पर पूरी तरह से आधिपत्य हो गया और इसके साथ ही पूरे उत्तरी भारत में अँग्रेजी शासन फ़ैल गया।
- बक्सर युद्ध से पहले अवध का नवाब शुजाउद्दौला ब्रिटिश शासन का बड़ा विरोधी माना जाता था जो इस युद्ध में पूरी तरह से समाप्त हो गया था।
- बक्सर-युद्ध में हार का मुख्य कारण शाहआलम अंग्रेजों का पिट्ठू बन कर उनके रहमोकरम पर रहने लगा।
- शाहआलम किसी भी कीमत पर अपने को ज़िंदा रखने के लिए अंग्रेजों को बंगाल और बिहार सौंपने को तैयार हो गया था।
- बंगाल के नवाब को नाममात्र के अधिकार और कुछ सिपाही रखने की इजाजत देकर उसे कठपुतली बना दिया गया।
- अंग्रेजों ने अपना एक वकील प्रतिनिधि के रूप में बंगाल के नवाब के यहाँ रख दिया जिससे फिर से कोई मीरकासिम जैसा दुःसाहस न कर सके।
- बक्सर-युद्ध में हुई हानि का खामियाजा मीरजाफ़र ने भरा।
- बक्सर-युद्ध को शुरू करने वाली तीनों राजा बंगाल का नवाब मीरजाफर, अवध का नवाब शुजाउद्दौला और दिल्ली का सम्राट शाहआलम, इसके बाद से अँग्रेजी शासन के रहमोकरम पर आ गए थे।
बक्सर युद्ध में मिली जीत ने ब्रिटिश राज के पैर मजबूत कर दिये और उन्होनें पूरे जोश के साथ मराठों को युद्ध में पराजित कर दिया। इसके साथ ही वो पूरे भारत के शासक बन गए।