Taliban की जीत के साथ समाप्त हुआ था Battle of Kabul

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Battle of Kabul विश्व इतिहास में बड़ा ही महत्व रखता है, क्योंकि इस युद्ध में दुनिया की बड़ी ताकत माने जाने वाले सोवियत संघ को अफगानिस्तान के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा था। इसे अफगान युद्ध के भी नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में तालिबान की जीत हुई थी और उसकी जीत में अमेरिका की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।

इस लेख में आपके लिए है:

  • Afghan War की पृष्ठभूमि
  • Battle of Kabul के लिए तालिबान की तैयारी
  • विकराल होता गया तालिबान
  • गिर गई अफगानिस्तान की सरकार
  • शुरुआती दौर में तालिबान
  • काबुल पर तालिबान का कब्जा

Afghan War की पृष्ठभूमि

  • Afghan War वर्ष 1978 में तब शुरू हुआ था, जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ ने हमले करने शुरू कर दिए थे। अफगानिस्तान के कई इलाकों पर सोवियत संघ की सेना ने अपना अधिकार जमा लिया था।
  • अमेरिका ने इसके बाद सोवियत संघ को अफगानिस्तान से बाहर निकालने के लिए पाकिस्तान का सहारा लिया और उसे अपना मोहरा बना लिया।
  • पाकिस्तान की सरकार के लिए सोवियत सेना को अफगानिस्तान से सीधे तौर पर खदेड़ पाना मुमकिन नहीं था।
  • पाकिस्तान की सरकार सोवियत सेना से सीधे तौर पर टक्कर लेने का जोखिम नहीं ले सकती थी। यही वजह रही कि तालिबान नाम का एक संगठन उसने बना लिया।
  • पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारियों की इसमें भर्ती की गई। यही नहीं, इसमें उन लोगों को भी जिहादी शिक्षा देकर भर्ती किया गया, जो कि आर्थिक रूप से कमजोर थे।

Battle of Kabul के लिए तालिबान की तैयारी

  • Soviet-Afghan War अमेरिका के लिए भी नाक का सवाल बन गया था। सोवियत संघ से उसकी पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। ऐसे में सोवियत संघ के खिलाफ उसे तालिबान की मदद तो करनी ही थी।
  • अमेरिका की तरफ से तालिबान को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई। यही नहीं, अमेरिका ने तालिबान को हथियार भी मुहैया करवाए।
  • चीन की सेना से तालिबान को प्रशिक्षण भी दिलवाया गया। वहीं, कई अमीर देशों जैसे कि सऊदी अरब और इराक आदि ने भी तालिबान की भरपूर मदद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से की थी। उन्होंने या तो पैसे मुहैया कराए थे या फिर उन्हें मुजाहिद्दीन उपलब्ध कराए थे।
  • इस्लामिक देशों में इस तरह से सोवियत संघ के खिलाफ प्रचार किया जा रहा था कि सोवियत संघ ने सिर्फ अफगानिस्तान पर ही हमला नहीं किया है, बल्कि उसका हमला इस्लाम पर है। यही वजह रही कि सोवियत संघ के खिलाफ इस युद्ध में कई देश शामिल होने के लिए तैयार हो गए थे।

विकराल होता गया तालिबान

  • Afghan Taliban के लिए इस युद्ध में एक मजबूत गढ़ बनता चला गया, क्योंकि अमेरिका की तरफ से उसे भरपूर मदद मिल रही थी। धीरे-धीरे तालिबान ने यहां विकराल रूप धारण करना शुरू कर दिया था।
  • इसका परिणाम यह हुआ कि सोवियत संघ जो उस वक्त की एक बड़ी ताकत हुआ करता था, उसे भी तालिबान के हाथों करारी हार नसीब हुई थी। अंत में सोवियत संघ अपनी सेना को वापस बुलाने के लिए मजबूर हो गया। उसने यहां से अपनी सेना को वापस बुलाने का निर्णय ले लिया।
  • यह निर्णय हालांकि सोवियत संघ के लिए तो बड़ा घातक साबित हुआ ही, साथ ही सोवियत संघ के साथ पूरे अफगानिस्तान सहित समूचे क्षेत्र के लिए भी यह घातक ही सिद्ध हुआ।
  • तालिबान ने अमेरिका के दम पर सोवियत संघ को मात तो दे दी, मगर इसके बाद तालिबान ने धीरे-धीरे अफगानिस्तान में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दी। अफगानिस्तान में तालिबान का प्रसार शुरू हो गया।

गिर गई अफगानिस्तान की सरकार

  • Soviet-Afghan War में जब सोवियत संघ की सेना को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा तो इसके बाद तालिबान के साथ अल कायदा के भी मुजाहिद्दीनों का बड़ी ही गर्मजोशी से अफगानिस्तान में स्वागत और उनका सम्मान किया गया था।
  • तालिबान के प्रमुख मुल्लाह ओमर और अल क़ायदा के प्रमुख शेख ओसामा बिन लादेन का भी इनमें सम्मान किया गया था। सऊदी अरब के एक बड़े बिल्डर का ओसामा बिन लादेन बेटा था। उसके पास बेहिसाब दौलत थी, जिसे वह इस्तेमाल में ला रहा था।
  • Afghan War के कारण अफगानिस्तान में सरकार भी तब गिर गई थी। ऐसे में दोबारा चुनाव कराए जाने की नौबत आ गई थी। हालांकि, तालिबान ने तब देश की सत्ता अपने हाथों में ले ली थी और एक इस्लामी धार्मिक कानून शरीयत पूरे देश में लागू कर दिया था। सऊदी सरकार की तरफ से भी इसे अपना समर्थन प्रदान किया गया था।

शुरुआती दौर में तालिबान

  • सोवियत संघ जब 80 के दशक के अंत में अफगानिस्तान से पूरी तरह से चला गया था तो इसके बाद यहां कई गुट बन गए थे, जिनमें आपसी संघर्ष होने लगे थे। मुजाहिद्दीनों से भी लोग बड़े परेशान हो गए थे।
  • इन परिस्थितियों में जब तालिबान का उदय अफगानिस्तान में हुआ, तो वहां के लोगों ने उसका स्वागत जमकर किया था।
  • Afghan Taliban को इसलिए पसंद कर रहा था, क्योंकि तालिबान ने शुरुआती दौर में बहुत ही अच्छी तरह से भ्रष्टाचार पर लगाम कसा था। अव्यवस्था पर भी अंकुश लगाने में वह कामयाब हो गया था। उसके नियंत्रण में जो इलाके आ रहे थे, उन्हें उन्होंने सुरक्षित बनाया था, ताकि वहां वे अपना व्यवसाय फैला सकें।
  • बहुत जल्द दक्षिण-पश्चिम अफगानिस्तान से भी तालिबान ने अपना प्रभाव बढ़ा लिया। ईरान सीमा से लगे हुए हेरात प्रांत पर सितंबर, 1995 में तालिबान ने अपना कब्जा जमा लिया था।

काबुल पर तालिबान का कब्जा

  • तालिबान ने इसके एक वर्ष के बाद बुरहानुद्दीन रब्बानी सरकार को 25 अप्रैल को सत्ता से हटा दिया और अफगानिस्तान की राजधानी काबुल को अपने अधिकार में ले लिया।
  • अफगानिस्तान के करीब 90 फ़ीसदी इलाके पर तालिबान ने 1998 आते-आते अपना नियंत्रण जमा लिया। इसके बाद से न केवल अफगानिस्तान के लिए बुरा समय आ गया, बल्कि इसकी वजह से भारत के कश्मीर में भी आतंकवादियों की घुसपैठ बढ़ गई।
  • पाकिस्तान ने ही तालिबान को खड़ा किया था और उसने उसे आतंकवादी भी उपलब्ध करवाए थे।

निष्कर्ष

Battle of Kabul में सोवियत संघ की हार जरूर हुई और तालिबान इसमें विजयी रहा, लेकिन अफगानिस्तान के लिए यह एक बहुत ही बुरा दौर लेकर आया। तालिबान ने अफगानिस्तान की इतनी बुरी हालत करके रख दी कि वह सदियों पीछे चला गया।

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