कुछ समय पहले तक विश्व के किसी भी कोने में खेलों में पुरुषों का आधिपत्य रहा था। लेकिन अंधेरे की परते चीर कर विश्व भर में महिलाओं ने खेलों में मेडल जीतकर अपना लोहा मनवा ही लिया। भारत की महिलाएं भी इस काम में पीछे नहीं रहीं और खेलों के कुम्भ माने जाने वाले ओलंपिक में मेडल जीत कर दिखा दिया। 1924 के वर्ष जब भारत की ओर से दो महिलाओं ने ओलंपिक में भाग लिया से लेकर 2021 तक के वर्षों में भारतीय महिलाओं ने ओलंपिक के विभिन्न पदकों पर अपना कब्जा किया है।
ओलंपिक के बारे मे
फर्स्ट मॉडर्न ओलंपिक की सिरूवात 125 साल पहले की गई थी, जो की ग्रीस के एथेंस शहर में किया गया था, साल 1896 में हुआ था और जो दूसरा ओलिंपिक हुआ था वो 1900 में हुआ था जिसमे इंडिया अपना एक रिप्रेजेंटेटिव बेजता हैं जैसे की हम सब जानते हैं और जो नहीं भी जानते है उन्हें भी बता दे ओलिंपिक दो तरह के होते हैं पहला समर और दूसरा विंटर और समर में जो ओलिंपिक होता है, वो सबसे बड़ा ओलिंपिक होता है जिसमें दुनिया के सारे लोग हिस्सा लेते हैं और वही विंटर में सभी देशों के लोग हिस्सा नहीं लेते है।
जैसे की हम सब जानते हैं इंडिया को जीतने के लिए महिलाओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी फिर चाहे वो मैरी कॉम हो, सैखोक मीराबाई चानू या पी वी सिंधु, हर कोई दढ़के सामना किया हैं। अब तक इंडिया में कुल 35 मेडल जीते जा चुके हैं जिसमें की गोल्ड 10, स्लिवर 9 ओर ब्रोंज 16। ओलिंपिक की तैयारी के लिए खिलाड़ी साल साल भर नहीं पूरी जिंदगी लगा देते है, जैसें कितनी महिलाओं ने लगाया कितनी चोटे खाई कितना दर्द सहा पर वो रुकी नहीं।
ओलंपिक मेडल जीतने वाली भारतीय महिलाएं
कर्णम मल्लेश्वरी (Karnam Malleswari)
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम की कर्णम मल्लेश्वरी ने 2000 के सिडनी ओलंपिक में पहली बार वेट लिफ्टिंग में कांस्य मेडल जीतकर भारतीय महिलाओं की उपस्थिती दर्ज कर दी थी। 240 किलो के वर्ग में ओलंपिक पदक जीतने वाली कर्णम पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं थीं। हालांकि वो इस खेल में गोल्ड मेडल जीतना चाहतीं थीं लेकिन किसी कारण से ऐसा हो न सका। लौह महिला के नाम से प्रसिद्ध मल्लेश्वरी ने 2004 एथेंस ओलंपिक में हिस्सा लेने के बाद खेलों से रिटायरमेंट ले ली है। 12 वर्ष की छोटी उम्र से ही भारोत्तोलन का अभ्यास करने वाली करणं को अर्जुन पुरस्कार के साथ ही खेल रत्न पुरस्कार और पद्म श्री मिल चुका है।
साइना नेहवाल (Saina Nehwal)
बैडमिंटन की नंबर एक खिलाड़ी साइना नेहवाल का खेल का सफर कोई आसान नहीं था। फिर भी सभी मुश्किलों को पार करते हुए 2012 के ओलंपिक में बैडमिंटन में कांस्य पदक जीतकर साइना ने भारत को गौरव प्रदान किया था। इससे पहले 2008 में बीजिंग ओलंपिक्स में साइना भारत की ओर से ओलंपिक के क्वाटर फाइनल में प्रवेश करने वाली अकेली भारतीय खिलाड़ी थीं। बैडमिंटन में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला साइना ने लगातार ओलंपिक के अपने प्रदर्शन में सुधार किया है। इसी के साथ साइना अकेली वो खिलाड़ी हैं जो एक महीने में तीन बार शीर्ष वरीयता की सीढ़ी चड़ चुकीं हैं।
इसी के चलते 2015 में उन्होनें बैडमिंटन की नंबर एक खिलाड़ी का खिताब भी अपने नाम कर लिया।
मैरी कॉम (Mary Kom)
विवाह और बच्चे किसी नारी के लिए बढ़ा नहीं होते, इस बात को मैरी कॉम से सिद्ध कर दिया है। 2012 के बीजिंग ओलंपिक में पदक जीतकर अपने विभिन्न पदकों को जीतने की कड़ी को जारी रखा। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीतकर मैरी कॉम “सुपर मॉम” का खिताब भी जीत चुकीं हैं। 2000 वर्ष में अपना बोक्सिंग का कैरियर शुरू करने वाली मैरी ने पाँच बार ओलंपिक पदक जीतकर विश्व चैंपियन का खिताब भी हासिल किया है। यहीं नहीं मैरी कॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज़ हैं जिन्होनें अपनी सभी 6 विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीता है।
साक्षी मलिक (Sakshi Malik)
हरियाणा के छोटे से जिले रोहतक की साक्षी मलिक ने कुश्ती में अपनी जगह बनाते हुए रियो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर महिला शक्ति का लोहा मनवा लिया। 2004 में जब 12 वर्ष की कच्ची उम्र में उन्होनें कुश्ती सीखने के लिए अखाड़ा जॉइन किया तब उन्हें और उनके परिवार को सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन 2010 में ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर उन्होनें सभी विरोधियों का मुंह बंद कर दिया। इसके ठीक चार वर्ष बाद साक्षी ने सीनियर लेवल की अंतर्राष्ट्रीय रेस्लिंग प्रतियोगिता जीत कर स्वर्ण पदक भी जीत लिया।
2018 में पी वी सिंधु को फोर्ब्स में कमाई आधार पर हाईएस्ट पेड फीमेल एथलीट 2018 में सातवां स्थान मिला। 2020 के टोक्यो ओलिंपिक में पी वी सिंधु ने ब्रोंज (कांस्य) पदक जीता का एक बार फिर इतिहास लिख दिया। पी वी सिंधु ओलिंपिक में दो बार मेडल जीत कर पहली दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला और दूसरी भारतीय एथलीट बन गई हैं।
पी वी सिंधु (P V Sindhu)
2016 के रियो ओलंपिक में बैडमिंटन में रजत पदक जीतकर पीवी सिंधु ने न केवल अपने परिवार को बल्कि देश को भी चौंका दिया था। 21 वर्ष की सिंधु सबसे कम उम्र की भारतीय ओलंपिक पदक जीतने वाली महिला बन गई थीं। अपनी पिता को कोच बनाने वाली सिंधु ने 2013 में पहली भारतीय महिला के रूप में वर्ल्ड चैम्पियनशिप भी जीती थी। उन्हें अपने खेल के योगदान के लिए पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
साईखोम मीराबाई चानू (Saikhom Mirabai Chanu)
भारतीय वेटलिफ्टर साईखोम मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलिंपिक में स्लिवर मेडल जीत कर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है। मीराबाई चानू की लंबाई से इनकी काबिलियत को नजरंदाज करने वाले इनके प्रतिनिधियों को हर बार बहुत भारी पढ़ता है, क्योंकि मीराबाई चानू वेटलिफ्टिंग में कोई आम महिला नहीं हैं जब भी वो मैदान में उतरती हैं, वह एक इतिहास लिखने के लिए होता है। मिराबाई चानू ने अपनी इतनी सी उम्र में इतना सबकुछ पा लिया है, जो की कुछ खिलाड़ियों के किसी सपने से कम नहीं।
साईखोम मिराबाई चानू ने टोक्यो ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीत कर भारत का नाम गर्व से और भी ऊंचा कर दिया है। मिराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 के मणिपुर में एक हिंदू परिवार में हुआ।
2014 में राष्ट्रीमण्डल खेलो में 48 किलोग्राम वर्ग में 170 किलो वजन उठाकर उन्होंने रतन पदक जीता, जिसमें 75 स्रैच और 95 क्लीन एण्ड जर्क था। 2017 में महिला 48 किग्रा श्रेणी में 194 किग्रा 85 किग्रा स्रैच और 109 किग्रा क्लीन एण्ड जर्क वजन उठा कर 2017 विश्व भारतोलन चैंपियनशिप, अनाहाइम कैलिफोर्निया, सयुक्त राज्य अमेरिका में जीत हासिल की। और फिर रिकॉर्ड तोड़ते हुए 2018 में उन्होंने 196 किग्रा और जिसमें 86 केजी स्रैच और 110 किग्रा क्लीन एण्ड जर्क में वजन उठा कर 2018 के राष्ट्रीमण्डल खेल का पहला स्वर्ण भारत को दिलाया। इसी के साथ उन्होंने राष्ट्रीमण्डल के खेल का भी रिकॉर्ड तोड़ा। मणिपुर के मुखमंत्री एन बिरेन सिंह ने गोल्ड कोस्ट राष्ट्रीमण्डल खेल में स्वर्ण जीतने की खुशी में मिराबाई चानू को 15 लाख रुपए नगद ईनाम दिया।
लवलिना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain)
लवलिना बोरगोहेन बॉक्सिंग में मेडल जीतने वाली तीसरी भारतीय बॉक्सर बन गई हैं। लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) ने देश के लिए टोक्यो ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता। उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक में 4 अगस्त, 2021 को 69 किग्रा वेल्टरवेट सेमीफाइनल में तुर्की की बुसेनाज सुरमेनेली को 0-5 से हारने के बाद पदक अपने नाम किया। अब तक भारत की दो महिला बॉक्सर और तीसरी बॉक्सर बन गयी हैं जिन्होंने ओलिंपिक में देश के लिए मेडल जीता है। सबसे पहले 2009 बीजिंग ओलिंपिक में विजेंद्र सिंह ने ब्रोंज मैडल जीता था फिर 2012 लंदन ओलिंपिक में मेरीकॉम भारत के नाम ब्रॉन्ज मेडल किया था।
लवलीना बोरगोहेन असम के गोलाघाट जिले की रहने वाली हैं। उसके पिता एक छोटे व्यवसायी हैं। उन्होंने किकबॉक्सर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी और बाद में बॉक्सिंग की ओर रुख कर लिया। उन्होंने अपने स्कूल बारपाथर गर्ल्स हाई स्कूल में भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित ट्रायल में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन भी किया। उनके हुनर को देखते हुआ प्रसिद्ध कोच पदुम बोरो (Padum Boro) द्वारा उनका चयन किया गया था। उन्होंने 2012 में लवलीना को प्रशिक्षण देना शुरू किया था जिसके बाद 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में वेल्टरवेट मुक्केबाजी वर्ग में लवलीना को भाग लेने के लिए चुना भी गया था। हालांकि, वह भी पदक नहीं जीत पाईं थीं और क्वार्टर फाइनल में बहार हो गई थीं।
आपको बता दें की लवलिना ने 2018 और 2019 में हुए वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किये हैं । उन्होंने 2017 में एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था । वह 2018 कॉमनेवल्थ गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व भी कर चुकी हैं इसके साथ -साथ लवलिना अर्जुन अवॉर्ड प्राप्त करने वाली असम की छठी खिलाड़ी रहीं हैं।
चलते-चलते
इन महिला खिलाड़ियों ने यह सिद्ध कर दिया कि प्रतिभा किसी लिंग, आय स्तर और इलाके के मोहताज नहीं होते हैं। मैरी कॉम ने विवाह और बच्चों के जन्म के बाद भी अपने शौक को खत्म नहीं किया उसी प्रकार रोहतक जैसे छोटे इलाके की साक्षी ने पुरुषों के वर्चस्व वाली कुश्ती में अपना नाम कमा लिया।