वक्त की मांग है One Nation One Election

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One Nation One Election in India


जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने One nation one election का समर्थन किया है, तब से इसे लेकर बहस तेज हो गई है। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ में कराये जाएं या नहीं, इसे लेकर अलग-अलग मत सामने आ रहे हैं। यहां हम आपको one nation one election article में विस्तार से समझा रहे हैं।

तो आईए पढ़ते हैं one nation one election in Hindi.

Background of One Nation One Election

One nation one election in India पहली बार नहीं, बल्कि वर्ष 1952, 1957, 1962 और 1967 में भी दिख चुका है, जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ में हुए थे। यह सिलसिला वर्ष 1968-69 के दौरान टूटा, जब कुछ राज्यों में समय से पहले ही विधानसभाएं भंग हो गईं। साथ ही वर्ष 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले ही हुए थे। Background of one nation one election को ही आधार बनाकर यह बहस शुरू हुई है कि जब पहले भी ऐसा हो चुका है तो अब क्यों नहीं हो सकता?

One Nation One Election in India

  • दुनिया में चाहे कोई भी लोकतंत्र हो, वह बिना चुनाव प्रक्रिया के सफल हो ही नहीं सकता। लोकतंत्र की तो आधारशिला ही स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव होते हैं। भारत इतना बड़ा देश है कि यहां बिना किसी बाधा के निष्पक्ष चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं है। यहां हमेशा कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई चुनाव होते ही रहते हैं। कभी लोकसभा तो कभी राज्यसभा, कभी विधानसभा तो कभी पंचायत और नगर निगम एवं वार्ड पार्षद आदि के चुनाव। उपचुनाव भी होते हैं। इस तरह से यह देश चुनावी मोड में तो हमेशा ही रहता है।
  • प्रशासनिक और नीतिगत निर्णयों पर प्रभाव डालने के अतिरिक्त ये चुनाव देश के खजाने को भी खाली करते हैं। यही वजह है कि नीति निर्माताओं की ओर से लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को साथ में कराने का विचार सामने आया है। एक जानकारी आपको दे दें कि पंचायत व नगरपालिकाओं के चुनाव one nation one election in India में शामिल नहीं हैं। यह केवल One nation one election के लिए एक वैचारिक उपक्रम है। One nation one election insights में जाकर हम देख सकते हैं कि इससे कितने लाभ हैं और कितने नुकसान। यहां आप इसकी विशेषताओं के बारे भी आगे पढ़ने जा रहे हैं।

One Nation One Election Pros and Cons

One nation one election in India को लेकर जहां कुछ लोग के background of one nation one election आधार पर इसके समर्थन में अपने तर्क दे रहे हैं, तो कुछ लोग जो इसका विरोध कर रहे हैं, वे भी इसके पीछे के कारणों को गिना रहे हैं।

One Nation One Election के समर्थन में तर्क

  • लगातार चुनाव होते रहने से बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होने से जरूरी नीतिगत निर्णय सरकारों के नहीं ले पाने की वजह से विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा आती है और इससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं।
  • One nation one election insights है कि बार-बार चुनाव होने की वजह से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ता है, जो कि देश की आर्थिक सेहत के लिए किसी भी तरीके से उचित प्रतीत नहीं होता है।
  • इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित होने के बावजूद चुनावों के दौरान कई राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी काले धन का खूब इस्तेमाल करते हैं। लगातार चुनाव के कारण कई राजनेताओं और पार्टियों को सामजिक समरसता से खेलने का भी मौका मिलता है, जिससे अनावश्यक तनाव भी कई बार पैदा हो जाते हैं। One nation one election in India से इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
  • One nation one election pros and cons के तहत एक बड़ा लाभ ये है कि इससे सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों को बार-बार चुनाव में लगाये जाने की वजह से इनका कार्य प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि देश के विकास में इनकी अहम भूमिका होती है।

One Nation One Election के विपक्ष में तर्क

  • कई विश्लेषक one nation one election in India की धारणा को संविधान के विपरीत मानते हैं, क्योंकि उनके अनुसार इस विषय पर हमारा संविधान मौन है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 2 के तहत यदि कोई नया राज्य भारतीय संघ में शामिल होता है या फिर अनुच्छेद 3 के तहत संसद कोई नया राज्य बनाती है, तो वहां अलगे से चुनाव की जरूरत पड़ सकती है। इसी तरह से अनुच्छेद 85(2)(ख), अनुच्छेद 174(2)(ख) आदि भी विभिन्न परिस्थितियों के तहत मध्यावधि चुनाव से संबंधित प्रावधान देते हैं।
  • यह देश के संघीय ढांचे के भी विपरीत होगा, ऐसा कई लोग मानते हैं, क्योंकि एक साथ चुनाव होने से कुछ विधानसभाओं की इच्छा के विरुद्ध उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
  • One nation one election in Hindi में आपको यह भी बता दें कि इसकी वजह से राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दों के गौण होने का भय बना रहेगा। साथ ही जनप्रतिनिधियों के भी जनता के प्रति निरंकुश होने की आशंका बढ़ जायेगी, क्योंकि वे अपने चयन को एक निश्चित अवधि के लिए मान लेंगे।

One Nation One Election Insights

One nation one election article के तहत हमने पाया कि में कोई बहुत बड़ी खामी तो नहीं है, मगर जिस तरह से राजनीतिक दलों और कई राजनेताओं द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है, वैसे में निकट भविष्य में इस व्यवस्था को अपनाये जाने के आसार बेहद कम ही नजर आ रहे हैं। इस वजह से दुनिया का सबसे बड़ा हमारा लोकतंत्र हमेशा किसी-न-किसी में व्यस्त ही दिखता है। इस स्थिति में सुधार के लिए कालेधन पर रोक, जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार, लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना और राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर अंकुश लगाना बहुत ही जरूरी है। कहा जा सकता है कि जब देश में ‘एक देश एक कर’ यानी कि जीएसटी लागू किया जा सकता है तो फिर ‘एक देश एक चुनाव’ आखिर क्यों नहीं?

निष्कर्ष

कुल मिलाकर One nation one election के लाभ इससे नुकसान की तुलना में अधिक वजन वाले और राष्ट्रहित में भी हैं। ऐसे में इसे अपनाना दुनिया के इस लोकतंत्र के लिए वक्त की सबसे बड़ी मांग है।

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