नंद राजवंश प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय राजवंशों में से एक है। यह प्राचीन भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली और महान न्यायी राजवंश था। इन्होंने पांचवीं-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांग गई।
नंद वंश का इतिहास और उसके संस्थापक
नंद वंश की स्थापना प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद ने ३४४ ईसा पूर्व में किया था। महापद्मनंद का जन्म शिशुनाग वंश के अंतिम राजा महानंद की दासी के गर्भ से हुआ था। जो नाई जाति से आते थे। महापद्मनंद ने महानंद की हत्या कर उसकी गद्दी हासिल कर ली थी। एक विस्तृत राज्य की महत्वकांक्षा की वजह से चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद ने निकटवर्ती सभी राजवंशों को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, और केंद्रीय शासन की व्यवस्था लागू की। इसीलिए सम्राट महापदम नंद को केंद्रीय शासन पद्धति का जनक कहा जाता है। महाबोधि वंश में महापद्मनंद का नाम मिलता है। पुराणों में महापद्मनंद को सर्वक्षात्रान्त्रक (क्षत्रियों का नाश करने वाला) और भार्गव (दूसरे परशुराम का अवतार) कहा गया है। भारतीय (पुराण,जैन ग्रंथ, महावंश टिका आदि) और विदेशी विवरणों में नंदों को नाई कुल का बताया गया है।
- इतिहासकारों की मानें तो महापद्मनंद की सेना में दो लाख पैदल, २० हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे।
- उसने अपने समकालिक बहुत से क्षत्रिय राजवंशों को समाप्त कर अपने बल का प्रदर्शन किया, और अपने साम्राज्य का विस्तार भी किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य और पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग) और अन्य राज्य शामिल थे।
- जैन और बौद्ध ग्रंथों से ये जानकारी मिलती है कि महापद्मनंद की दो रानियों थीं। रानी अवंतिका और रानीमुरा।
- कहा जाता है कि नंद वंश में कुल नौ शासक हुए। महापद्मनंद और बारी-बारी से राज्य करने वाले उसके आठ पुत्र।
- इन दो पीढ़ियों ने ४० सालों तक राज किया।
- पुराणों में महापद्मनंद के दस पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं।
गंगन पाल
पंडुक
पंडुगति
भूतपाल
राष्ट्रपाल
गोविषाणक
दशसिद्धक
कैवर्त
धननन्द
चन्द नन्द (चन्द्रगुप्त मौर्य)
नंद वंश के उत्तराधिकारी
पंडुक या सहलिन (बंगाल का सेन वंश)
- नंदराज महापद्मनंद के पुत्र पंडुक उत्तर बिहार में स्थित वैशाली के कुमार थे, जिन्हें पुराणों में सहल्य या सहलिन कहा गया है।
- उनकी मृत्यु के बाद भी उनके वंशज मगध साम्राज्य के प्रशासक के रूप में रहकर शासन करते रहे।
पंडू गति या सुकल्प (अयोध्या का देव वंश)
- महापद्मनंद के दूसरे पुत्र को महाबोधि वंश में पंडुगति और पुराणों में संकल्प कहा गया है।
- अयोध्या में नंद राज्य का सैन्य शिविर था जहां पंडुगति एक कुशल प्रशासक एवं सेनानायक के रूप में रहकर उसकी व्यवस्था देखते थे।
भूत पाल या भूत नंदी (विदिशा का नंदी वंश)
- सम्राट महापद्मनंद के तीसरे पुत्र भूत पाल विदिशा के कुमार और प्रकाशक थे।
- नंदराज के शासनकाल में उनकी पश्चिम दक्षिण के राज्यों के शासन प्रबंध को देखते थे। विदिशा के यह शासक कालांतर में पद्मावती और मथुरा के भी शासक रहे।
राष्ट्रपाल (महाराष्ट्र का सातवाहन, कलिंग का मेघ वाहन वंश)
- राष्ट्रपाल महापद्मनंद के चौथे पुत्र थे। राष्ट्रपाल ही मैसूर के क्षेत्र, अश्मक राज्य और महाराष्ट्र के राज्यों की देखभाल किया करते थे।
- इनके कुशल प्रशासक और प्रतापी होने की वजह से राष्ट्रपाल के नाम पर महाराष्ट्र कहा जाने लगा।
- राष्ट्रपाल के पुत्र ही सातवाहन एवं मेघवाल थे, जो बाद में पूर्वी घाट उड़ीसा क्षेत्र पश्चिमी घाट महाराष्ट्र क्षेत्र के अलग-अलग शासक बन गए।
गोविशाणक(उत्तराखंड का कुलिंद वंश)
- नंदराज महापद्मनंद के पांचवे पुत्र गोविशाणक ने उत्तरापथ में विजय अर्जित किया था।
- उनके उत्तराधिकारी क्रमशः विश्वदेव,धन मुहूर्त,वृहतपाल,विश्व शिवदत्त,हरिदत्त, शिवपाल,चेतेश्वर,भानु रावण हुए, जिन्होंने लगभग २३२ ईसवी पूर्व से २९० ईसवी तक शासन किया।
दस सिद्धक
- नंद राज्य की एक राजधानी मध्य क्षेत्र के लिए वाकाटक में थी जहां चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के छठवें पुत्र दस सिद्धक ने अपनी राजधानी बनाया।
- बाद में इन्होंने सुंदर नगर नंदिवर्धन नगर को भी अपनी राजधानी के रूप में प्रयुक्त किया जो आज नागपुर के नाम से जाना जाता है।
कैवर्त
- नंदराज महापद्मनंद के सातवें पुत्र कैवर्त एक महान सेनानायक एवं कुशल प्रशासक थे।
- ये अपने दूसरे भाईयों की तरह किसी राजधानी के प्रशासक ना होकर बल्कि अपने पिता के केंद्रीय प्रशासन के मुख्य संचालक थे ।
- कैवर्त की मृत्यु सम्राट महापद्मनंद के साथ ही विषयुक्त भोजन करने से हो गई जिससे उनका कोई राजवंश आगे नहीं चल सका।
सम्राट घनानंद
- नंदराज महापद्मनंद की मृत्यु के बाद घनानंद २६ ईस्वी पूर्व में मगध का सम्राट बना।
- नंदराज एवं भाई कैवर्त की मृत्यु के बाद यह बहादुर योद्धा शोकग्रस्त रहने लगा।
- इसकी बहादुरी की चर्चा से कोई भी इसके साम्राज्य की तरफ आक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सका।
- विश्वविजेता सिकंदर ने भी नंद साम्राज्य की सैन्यशक्ति एवं समृद्धि देख कर ही भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं की, और वापस यूनान लौट जाने में ही अपनी भलाई समझी।
- बौद्ध साहित्य के अनुसार घनानंद को ही नंद वंश का आखिरी शासक माना जाता है।
- कहते हैं कि घनानंद एक लालची और धन संग्रही शासक था, जो असीम शक्ति और सम्पत्ति के बावजूद जनता के विश्वास को नहीं जीत सका। उसने महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था। जिसके बाद चाणक्य ने अपनी कूटनीति से घनानंद को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाया।
चंद्रनंद अथवा चंद्रगुप्त
- सम्राट महापदमनंद की दूसरी पत्नी से उत्पन्न पुत्र का नाम चंद्रगुप्त चंद्रनंद था। जिसे मौर्य वंश का संस्थापक कहा गया है।
निष्कर्ष
नंद वंश ने लगभग ३६४ ईसा पूर्व से ३२४ ईसा पूर्व तक शासन किया। नंदो का राजकोष धन से भरा रहता था, जिसमें ९९ करोड़ की अपार स्वर्ण मुद्राएं थी। नंद वंश के आखिरी शासक घनानंद को परास्त कर कौटिल्य की मदद से चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की नींव रखी थी। नंद वंश से संबंधित ये लेख आपको कैसा लगा। हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके ज़रूर बताएं।
Thanks
Real history ?