Human Rights in India की जरूरत क्यों?

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Human Rights in India
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इस दुनिया में जितने भी मानव हैं, सभी के कुछ मूलभूत अधिकार हैं। वर्तमान समय में मानवाधिकारों को लेकर दुनियाभर में बहस हो रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। यहां हम आपको Human Rights in India के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

क्या है मानवाधिकार

हर मानव को जिंदगी जीने, आजादी से रहने, अवसरों में समानता हासिल करने और सम्मान पाने का अधिकार है। राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और गरिमामय जीवन का अधिकार मानवाधिकार में शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जो मानवाधिकार के संबंध में घोषणा पत्र को अपनाया है, उसमें यही कहा गया है कि मानव के जो बुनियादी अधिकार हैं, वे किसी भी जाति, धर्म, समुदाय, भाषा, लिंग और समाज आदि से अलग होते हैं। मौलिक अधिकारों के कुछ तत्व जैसे कि जिंदगी जीने और व्यक्ति की आजादी का अधिकार मानवाधिकार के तहत भी आते हैं।

Violation of Human Rights in India

वर्तमान में Violation of human rights in India एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, क्योंकि देशभर में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं एवं बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के देवरिया में शेल्टर होम की बच्चियों के साथ हुई शर्मनाक वारदातों आदि ने बड़े पैमाने पर Violation of human rights को सबके सामने लाकर रख दिया है। इसी तरीके से शाहबानो मामले के बाद जो मौलानाओं में विरोध की चिंगारी पनपी, बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने के बाद जिस तरीके से देश भर में दंगे हुए, गुजरात में जो दो समुदायों के बीच दंगे हुए, कश्मीर में जो लंबे समय से हिंसक वारदातें होती आ रही हैं, ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद जिस तरीके से दंगे हुए, इन सबमें कैसे basic Human Rights in India का हनन हुआ है, इससे कोई अनभिज्ञ नहीं है।

भारतीय संविधान में जो मौलिक अधिकार मिले हैं और जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी शामिल है, उसकी आड़ में जो कुछ सांप्रदायिक दंगे भड़का दिए जाते हैं, उसमें किसी धर्म या जाति विशेष के लोगों के अधिकारों का हनन नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का हनन होता है, क्योंकि इसका शिकार गरीब, मासूम बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग आदि होते हैं।

Evolution of Human Rights in India

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान violation of human rights के बहुत सारे मामले सामने आए। वर्ष 1948 में मानव जाति के मूलभूत अधिकारों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए एक चार्टर बनाया गया, जिस पर 48 देशों के समूह ने अपने हस्ताक्षर किए थे। इसमें सभी ने यह माना कि हर व्यक्ति के मानवाधिकार की किसी भी कीमत पर रक्षा करनी जरूरी है। भारत भी इससे पूरी तरह से सहमत था और इसने भी संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर अपने हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद भी evolution of human rights in India में 45 साल लग गए और वर्ष 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया जा सका। Violation of human rights in India की घटनाएं जहां से भी सामने आती हैं, उसमें मानवाधिकार आयोग की ओर से केंद्र एवं राज्यों को अपनी अनुशंसाएं भेजी जाती हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और उसके कार्य

  • जब हम evolution of human rights in India की बात करते हैं तो ऐसे में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 हमारे जेहन ने सबसे पहले आता है, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया था। हमारे देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन के जरिए मानवाधिकारों के उल्लंघन संबंधी शिकायतों के निवारण के लिए एक मंच प्रदान किया गया है।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक तरीके से मानवाधिकारों का लोकपाल भी कह सकते हैं। उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को इसका अध्यक्ष बनाया जाता है। इसके पास मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन का अधिकार है। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 12 (ज) में इस बात की परिकल्पना की गई है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारों के बारे में लोगों को मीडिया, सेमिनार, प्रकाशन और अन्य उपलब्ध संसाधनों के जरिए जागरूक बनाने का काम करेगा।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से आमजनों, बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपनी सिफारिशें समय-समय पर सरकार तक पहुंचाई जाती हैं। साथ ही इन सिफारिशों पर अमल करते हुए संविधान में आवश्यक संशोधन भी सरकार की ओर से किए गए हैं। – मानवाधिकार आयोग की ओर से मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध कार्य भी किए जाते हैं, ताकि scope of human rights in India सुनिश्चित किया जा सके।

बड़ी चुनौतियां

मानवाधिकार आयोग के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें आयोग की सिफारिशों को मानने के लिए पूरी तरह से बाध्य नहीं है। ऐसे में राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत जरूरी होती है। केंद्र से जवाब तलब नहीं कर पाने की स्थिति में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दायरे से सशस्त्र बल भी बाहर होते हैं। मुआवजा दिलाने की दिशा में तो यह सक्रिय तौर पर कार्य कर लेता है, लेकिन जब आरोपियों को पकड़ने और जांच-पड़ताल की बात आती है तो यह अधिकार मानवाधिकार आयोग के पास नहीं है। यहां पद भी खाली पड़े रहते हैं। संसाधनों की कमी रहती है। मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी रहती है।

Violation of human rights in India की शिकायतें खूब आती हैं, लेकिन नौकरशाही ढर्रे की कार्यशैली के कारण इनका निस्तारण नहीं हो पाता है। यह सब भारत में मानवाधिकारों से संबंधित बहुत बड़ी चुनौतियां हैं, जिनका समाधान करने की जरूरत है। देश के दूरदराज के इलाकों में जो अशिक्षा फैली है, जो गरीबी व्याप्त है और जो लोग अपने मूलभूत अधिकारों से भी अनजान हैं, उन तक मानवाधिकारों का लाभ पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है।

निष्कर्ष

मानवाधिकार आयोग को और प्रभावी बनाने के लिए द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की ओर से पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें की गई हैं। देश में जिस तरह से भीड़ तंत्र हावी हो रहा है, वैसे में सरकार को गंभीर अपराधों से निपटने के लिए बेहद सक्रियता से कदम उठाने की जरूरत है। सरकार और मीडिया की भी यह जिम्मेदारी है कि मानवाधिकारों के मसलों पर उदासीनता त्यागे। मानवाधिकार आयोग की यह जिम्मेदारी है कि समस्याओं का समाधान खोजने में वह अपनी मौजूदगी जताए, ताकि scope of human rights in India सुनिश्चित हो सके।

1 COMMENT

  1. maulik aur human rights ek dusre ke bina exist nahi kar sakte. aajkal kuch jyda hi iske voilation ke mamle dikhne lage hai. pata nahi govt kya kar rahi hai. bahut dukh hota hai dekh k. article acha likha hai. bahut sahi bat ki hai.

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