क्या है ‘खुंटकट्टी’ कानून? | What is Khuntkatti Law?

[simplicity-save-for-later]
3318
What is Khuntkatti Law

4 जनवरी 2022 को झारखण्ड राज्य के सिमडेगा जिले के अंतर्गत कोलेबिरा थाना क्षेत्र के बेसराजारा बाजार से मॉबलिंचिंग की एक दर्दनाक घटना सामने आयी , जब भीड़ द्वारा एक स्थानीय युवक संजू प्रधान को पीट-पीटकर जिन्दा आग के हवाले कर दिया गया। मामले की तपतीश करने में पर जो बात सामने निकलकर आयी उसके अनुसार, इलाके में आदिवासी परंपरा का खूंटकट्टी नियम लागू है। कोई भी व्यक्ति खूंटकट्टी पंचायत के बिना पेड़ नहीं काट सकता, संजू बार-बार चेतावनी के बावजूद पेड़ काट रहा था। अतः उसको इसका परिणाम भुगतना पड़ा है। अभी कुछ समय पहले ही झारखण्ड की विधानसभा में एंटी मॉब लिंचिंग बिल पारित हुआ है, बावजूद इसके राज्य में इतनी बड़ी घटना को भीड़ द्वारा अंजाम दे दिया जाता है, जो इस घटना को और भी दुखद बना देता है। आइये जानते हैं, क्या है खुंटकट्टी कानून (Khuntkatti Law)?, और क्यों स्थानीय आदिवासी लोगों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है? 

क्या हैखुंटकट्टी’ कानून?| What is Khuntkatti Law?

खुंटकट्टी’ प्रणाली आदिवासी वंश द्वारा संयुक्त स्वामित्व या भूमि का स्वामित्व है। मुंडा आदिवासी आमतौर पर जंगलों को साफ करते थे और भूमि  को खेती के लिए उपयुक्त बनाते थे, जो तब पूरे कबीले के स्वामित्व में होता था, न कि किसी विशेष व्यक्ति का। 

जानिए खुंटकट्टी का इतिहास | History of Khutkatti     

  • मुंडा जनजाति के बीच विद्रोह की भावना के बीज साल 1789 से पूर्व से ही पड़ गए थे , तब सामंती व्यवस्था के जड़ जमाने के कारण मुंडा समाज की पारम्परिक खुंटकट्टी व्यवस्था, भूमि व्यवस्था और उससे सम्बद्ध प्रशासन की स्वायत्त प्रणालियां टूटने-फूटने लगीं थी।
  • 1764 में बक्सर के युद्ध में पराजय के बाद मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने बंगाल का शासन तंत्र ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंप दिया। अंग्रेजों ने सामंती व्यवस्था पर कब्जा जमा कर उसे ही ‘कानून का राज’ बनाकर ‘जमींदारी प्रथा’ या ‘बधुवा बेगारी प्रथा’ नाम दिया।
  • इस कानून ने आदिवासियों के पारम्परिक संगठनों और संस्थाओं को ध्वस्त किया। साथ ही उसने आदिवासी समाज में लोभ-लाभ के ऐसे तंत्र का निर्माण किया जो आम आदिवासियों में आत्महीनता पैदा करे और कुछ वर्गों को पतन के लिए प्रेरित करे।
  • अंग्रेजों की कोशिशों के खिलाफ 1789 से 1831-32 के बीच झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र में कई आंदोलन हुए। 1831-32 का कोल विद्रोह इन आंदोलनों में प्रमुख रहा था।
  • जमींदारी प्रथा के फलस्वरूप आदिवासी समाज बधुवा मजदूर बन गया और ये उनकी मुंडाओं के शोषण व कर्जदारी जो का कारण बन गयी थी।
  • दासता और कर्ज के बोझ के कारण यह व्यवस्था मुंडा समाज के अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का कारण बनी थी। मुंडा आंदोलन द्वारा इस प्रथा का विरोध बहुत प्रबलता के साथ किया गया था।
  • मुंडा आंदोलन ने मुंडा समाज की समस्याओं के प्रति अंग्रेजी हुकूमत के रव्वैये को जमीनी स्तर पर प्रभावित किया था।
  • इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सरकार ने 1902 और 1910 के दौरान उनके लिए भूमि बंदोबस्त और सर्वेक्षण संचालित किये थे।
  • साल 1903 में ब्रिटिश सरकार ने अनिवार्य रूप से जमींदारी या बधुवा बेगारी प्रथा को समाप्त करने का निर्णय लिया और काश्तकारी अधिनियम पारित किया।
  • 1903 में काश्तकारी अधिनियम के तहत खुटकट्टी कानून को मान्यता दी गयी और साल 1098 में इसे छोटा नागपुर के पठार में लागू किया गया था।

जानिए कौन थे बिरसा मुंडा?

  • बिरसा मुंडा मुंडा समाज में एक भगवान का दर्जा रखते हैं। उन्हें लोग सूर्य का अवतार मानकर पूजते हैं तथा उनके समाज और मुंडा लोगों के लिए किये गए कार्यों के लिए याद करते हैं।
  • बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखण्ड के खुटी जिले के उलीहातु गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम सुगना पुर्ती(मुंडा) और माता-करमी पुर्ती(मुंडाईन) था।
  • बिरसा का जन्म वृहस्पतिवार को हुआ था। मुंडारी भाषा में वृहस्पतिवार को ‘बिरसा’ कहा जाता है, इसके कारण मां-बाप ने उनका नाम बिरसा रखा।
  • बिरसा का परिवार बहुत गरीब पृष्ठ्भूमि से ताल्लुक रखता था। उस समय आदिवासियों को ईसाई मशीनरी द्वारा धर्म परिवर्तन करके ईसाई बनाया जा रहा था।
  • बिरसा के पिता ने अपने भाई समेत ईसाई धर्म अपना लिया था। जिस कारण से उनकी प्रार्थमिक एवं उच्च माध्यमिक शिक्षा ईसाई मिशन स्कूल बुर्जू तथा आगे की शिक्षा चाईबासा के लूथरेन मिशन से पूर्ण की थी।
  • चूँकि बिरसा ने परिवार समेत ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। अतः इतिहासकारों के अनुसार उनका नाम ‘दाउद’ रखा गया।
  • 15 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ कर बिरसा ने आनंद पांडेय नामक एक वैष्णव सन्यासी के सम्पर्क आकर हिन्दू धर्म स्वीकार किया तथा वैष्णव धर्म, नीति, दर्शन आदि की शिक्षा हासिल की।
  • बिरसा का मन हमेशा अपने समाज की यूनाइटेड किंगडम ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी बुरी दशा पर सोचते रहते था । वे हमेशा मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने की युक्ति में रहते थे।
  • इतिहासकारों के अनुसार बिरसा धर्म, नीति, दर्शन आदि के ज्ञान से योगी बन गए थे तथा समाज में व्याप्त अंधविश्वास , भूत-प्रेत, बलि तथा अन्य कुरीतियों पर खुलकर बोलते थे।
  • बिरसा से प्रभावित होकर लोग उन्हें ईश्वर का अवतार मानने लगे थे। इसी कारण से उस समय प्रचलित सरदार आंदोलन तथा वन सम्बन्धी आंदोलनों का नेतृत्व बिरसा के हाथ में आ गया।
  • बिरसा के नेतृत्व में मुंडा समाज ने ब्रिटिश हुकूमत के आदेश मानने से तथा रैयत देने से इंकार कर दिया था। जिसके चलते बिरसा को 9 अगस्त, 1895 की सुबह चलकद से गिरफ्तार किया गया।
  • बिरसा पर शासन के खिलाफ विद्रोह करने और लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया। बिरसा सहित उनके 15 सहयोगियों को दो-दो साल की सजा और 50-50 रु.का जुर्माना लगाया गया।
  • बिरसा ने जेल से छूटने के बाद 1898 में डोम्बारी पहाड़ी से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष का ऐलान किया। 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।
  • जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। यहाँ पर उनके ऊपर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा हमला कर दिया गया जिसमें बहुत सी औरतें व बच्चे मारे गये थे।
  • 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया तथा 9 जून 1900 ई को अंग्रेजों द्वारा उन्हें साजिश के तहत जहर देकर मार दिया गया तथा बाहर लोगों को उनकी हैजा द्वारा मृत्यु की खबर दी गयी।
  • आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।
  • 10 नवंबर 2021 को भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप मनाये जाने की शुरुआत की है।
  • वर्तमान में बिरसा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास है। उनके नाम पर बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट भी है।

जानिए कैसे सम्बंधित है बिरसा मुंडा खुंटकट्टी से?

ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सरदार आंदोलन, कोल आंदोलन और बिरसा आंदोलन की मूल में भूमि-समस्या है। भूमि के स्वामित्व की आदिवासी धारणा वह नहीं है, जो ईस्ट इंडिया कम्पनी और ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्धारित भूमि कानून बताते हैं। आदिवासी पूर्वजों ने जंगल काट कर खेती योग्य जमीन तैयार की थी। इस तरह तैयार की गयी जमीन का मालिक जंगल काटने वाला होता था। चूँकि इस भूमि को तैयार एक व्यक्ति विशेष न करके पूरा आदिवासी समाज करता था अतः इस पर किसी एक का स्वामित्व न होकर पूरे मुंडा समाज का अधिकार होता है, यही खुटकट्टी कानून है। अंग्रेजों ने जब आदिवासी समाज की भूमि को लेकर उसके ऊपर रैयत लगायी तो इसका विरोध सम्पूर्ण आदिवासी समाज ने खुंटकट्टी कानून के आधार पर किया था।

अंत में

खुंटकट्टी’ कानून बिरसा समाज के भूमि स्वामित्व की एक लम्बी लड़ाई का प्रतीक है, यह स्वस्थ समाज में भूमि पर समान अधिकार की अगुवाई करता है , किन्तु वर्तमान समय में इसके उल्लंघन पर भीड़ द्वारा आरोपित व्यक्ति को जिन्दा जला देना, देश में न्यायिक व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह है, भारत संघ में सबसे ऊपर संविधान है उसके बनाये कानून के आधार पर ही हम कार्य करते हैं , तो यहाँ पर रहने वाले सभी समुदायों का यह मौलिक कर्तव्य है कि हम संविधान का आदर करें। सिमडेगा में खुंटकट्टी कानून का सहारा लेकर जिस घटना हो अंजाम दिया गया वह निंदनीय है। बिरसा मुंडा के प्रयासों से एक मजबूत आंदोलन के कारण ब्रिटिश हुकूमत आदिवासियों की भूमि हक़ की समस्या को समझ पायी थी। बिरसा मुंडा की पढ़ाई ईसाई मिशन स्कूल से होने के कारण वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो पाये तथा भूमि हक़ के खिलाफ इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर पाये। आज के लेख से हमें यह सीखने को मिलता है की समाज को जागरूक होने के लिए अच्छी शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। शायद यही कारण रहे की मुंडा समाज आज भी बिरसा मुंडा को “बिरसाईयत” के रूप में फोलो करता है तथा उन्हें भगवान के रूप में पूजता है। दोस्तों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमे बताये तथा अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करे। धन्यवाद !

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.