हरित क्रांति क्या है?

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हरित क्रांति क्या है?
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वैश्विक समुदाय में विकसित देश जहां औध्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप सफलता के सोपान चढ़ते रहे हैं, वहीं विकासशील देश इस काम के लिए कृषि पर निर्भर रहे हैं। पारंपरिक कृषि तकनीक में हरित क्रांति ने बड़े परिवर्तन कर दिये थे, जिनके कारण कृषि एक व्यवसाय से निकल कर उधयोग की श्रेणी में आ गई। भारत में शुरू हुई हरित क्रान्ति ने अन्य विभिन्न क्रांतियों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था। लेकिन वास्तव में हरित क्रांति क्या है और इसका जन्म कहाँ हुआ, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

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आइये हरित क्रांति के बारे में थोड़ा और जानने का प्रयास करते हैं:

इस लेख में आप जानेंगे:

  • हरित क्रांति का अर्थ और इतिहास
  • हरित क्रांति की पृष्ठभूमि
  • हरित क्रान्ति के ध्वजवाहक
  • हरित क्रांति के दौरान
  • हरित क्रान्ति के क्रांतिकारी परिणाम
  • भारत में हरित क्रांति

हरित क्रांति का अर्थ और इतिहास:

हरित क्रांति शब्द का प्रयोग 1940 और 1960 के समयकाल में विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र में किया गया था। इस समय कृषि के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक तकनीक और उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया गया। परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के प्रयास किए गए जिसके चमत्कारिक प्रभाव दिखाई देने लगे। कृषि क्षेत्र में निरंतर शोध के माध्यम से पारंपरिक कृषि तकनीक में परिवर्तन करके आधारभूत परिवर्तन किए जाने लगे। मूलतः हरित क्रान्ति के जनक अमरीकी कृषि वैज्ञानिक नौरमन बोरलॉग माने जाते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उन्होनें विकास की ओर कदम बढ़ाते हुए जापान को कृषि तकनीक में परिवर्तन के माध्यम से ही उन्होनें पुनर्निर्माण की राह पर खड़ा कर दिया था। इसके लिए उन्होनें न केवल फसलों के लिए नए और विकसित व संसाधित बीजों के साथ नवीनतम तकनीक का भी इस्तेमाल किया। सिंचाई के लिए आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था, कृत्रिम खाद एवं विकसित कीट नाशक तथा बीज से लेकर अंतिम उत्पाद तक विभिन्न नवीनतम उपकरण व मशीनों की व्यवस्था, हरित क्रान्ति का ही परिणाम माना जाता है।

हरित क्रांति की पृष्ठभूमि

  • यह बात तो सही है कि अंग्रेजों की दासता से भारत को आजादी मिल गई थी, लेकिन आजाद होने के बाद भी देश के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी थीं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती खाद्यान्न संकट था। खाद्यान्न की भारी कमी से उस वक्त देश जूझ रहा था। कृषि उत्पाद भी देश में इतने नहीं थे कि पूरी जनसंख्या की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
  • देश को जब आजादी मिली, तो उससे पहले बंगाल भीषण अकाल की चपेट में रहा था। यह अकाल कितना भयावह था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें 20 लाख लोगों की जानें चली गई थीं। अकाल ने गंभीर रूप इसलिए लिया, क्योंकि औपनिवेशिक शासन ने कृषि को लेकर बड़ी ही कमजोर नीतियां बनाई थीं।
  • हालात उस वक्त ऐसे थे कि मुश्किल से 10 फीसदी कृषि भूमि की ही सिंचाई हो पा रही थी। प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन-फास्फोरस-पोटैशियम उर्वरकों का औसत इस्तेमाल 1 किलोग्राम से भी उस वक्त कम हो रहा था। प्रति हेक्टेयर गेहूं और धान की भी औसत पैदावार तब मुश्किल से 8 किलोग्राम हुआ करती थी।
  • देश की जनसंख्या आजादी के वक्त लगभग 30 करोड़ की थी। आज की जनसंख्या की यह करीब एक चौथाई थी। फिर भी अनाज की उस वक्त इतनी ज्यादा कमी थी कि इतने लोगों का भी पेट भरना मुश्किल हो रहा था। किसान जो खाद्यन्न फसलें उपजा रहे थे, उनमें वे गोबर से बनी हुई खाद को इस्तेमाल में लाते थे। ज्यादातर रोपण फसलों में रासायनिक उर्वरक तब इस्तेमाल में लाए जाते थे।
  • यही वजह रही कि पहली जो दो पंचवर्षीय योजनाएं 1950 से 1960 तक चलीं उनमें सिंचाई वाले क्षेत्र के विस्तार पर और उर्वरकों का उत्पादन बढ़ाने पर अधिक बल दिया गया। इतना सब कुछ होने के बाद भी खाद्यान्न संकट का समाधान पूरी तरीके से नहीं निकल पा रहा था।
  • दूसरा विश्वयुद्ध जब समाप्त हो गया था तो अनाज और कृषि उत्पादन दुनियाभर में बढ़ाना एक बड़ी चुनौती थी। यही वजह थी कि इसे लेकर शोध और अनुसंधान खूब हो रहे थे। बहुत से वैज्ञानिक इस काम में लगे हुए थे, जिनमें नॉर्मन बोरलॉग का नाम प्रमुखता से सामने आता है। गेहूं की हाइब्रिड प्रजाति को विकसित करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। हालांकि, भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में एमएस स्वामीनाथन की पहचान है।

हरित क्रान्ति के ध्वजवाहक:

नौरमन बोरलॉग जिन्हें हरित क्रांति का जनक भी कहा जाता है के प्रयासों को आगे ले जाने वालों में विभिन्न संस्थाएं व शोधकर्ता शामिल हैं। 1960 में फिलीपींस की अंतर्राष्ट्रीय धान शोध संस्थान जिसका गठन सयुंक्त रूप से रोकफिलर एवं फोर्ड फाउंडेशन के साथ हुआ था, इस काम में सबसे आगे मानी जाती हैं। इनके प्रयासों के परिणामस्वरूप फिलीपींस के साथ ही इन्डोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका के साथ अमरीका में फैले गैर-सोवियत देश, एशिया, उत्तरी अफ्रीका आदि में उन्नत किस्म की  फसल आसानी से पैदा करी जा सकी।

हरित क्रांति के दौरान

  • जो खाद्यान्न संकट आजादी के समय से ही चला आ रहा था, वर्ष 1960 के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते यह और भी गहरा गया था। यहां तक कि चीन से युद्ध के दौरान भी भारत के कई हिस्से भयानक अकाल से जूझ रहे थे। पूरा देश अब अकाल की चपेट में आ चुका था और स्थिति एकदम जब विकट होने लगी थी, तो ऐसे में विदेशों से हाइब्रिड प्रजाति के बीजों को भारत सरकार ने मंगाना शुरू कर दिया था।
  • इन बीजों से बड़े पैमाने पर उत्पादन हो सकता था। इसी वजह से यह बीजें उच्च उत्पादकता किस्में के नाम से जानी जाती थीं। इन उच्च उत्पादकता किस्में वाली बीजों के इस्तेमाल के लिए सबसे पहले वर्ष 1960 से 1963 के दौरान 7 जिलों का चयन किया गया, जो कि 7 राज्यों में फैले हुए थे। यह प्रयोग के तौर पर किया गया था और इसे नाम दिया गया था गहन कृषि जिला कार्यक्रम।
  • यह प्रयोग पूरी तरह से कामयाब रहा था। इसी को आधार बनाते हुए वर्ष 1966 से 1967 के दौरान औपचारिक रूप से भारत में हरित क्रांति की शुरुआत हो गई।
  • अब पारंपरिक बीजों की जगह इन उच्च उत्पादकता किस्में वाली बीजों ने ले ली थी। ऐसे में इन्हें न केवल अधिक उर्वरक की आवश्यकता होती थी, बल्कि इन्हें कीटनाशक भी ज्यादा चाहिए होते थे। यहां तक कि सिंचाई के लिए भी इन्हें ज्यादा पानी की जरूरत होती थी।
  • यही वजह रही कि सिंचाई परियोजनाओं का सरकार की तरफ से विस्तार शुरू कर दिया गया। यही नहीं, उर्वरकों आदि पर सरकार की ओर से सब्सिडी भी दी जाने लगी।
  • उच्च उत्पादकता किस्में वाली बीजों का इस्तेमाल जब शुरू हुआ, तो सबसे पहले चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा और ज्वार के उत्पादन के लिए इन्हें इस्तेमाल में लाया गया। जो गैर खाद्यान फसलें थीं, वे शुरू में इनमें शामिल नहीं थीं।
  • यह प्रयास रंग लाया। भारत में धीरे-धीरे अनाज उत्पादन में बढ़ोतरी होनी शुरू हो गई।

हरित क्रान्ति के क्रांतिकारी परिणाम:

विश्व के बड़े हिस्से में हरित क्रान्ति ने नामानुरूप क्रांतिकारी परिणाम दिखाने शुरू कर दिये। विकासशील देशों ने कम स्थान पर अधितकम और उच्चतम फसल के उत्पादन को सफल बना दिया। नए और विकसित बीजों का निर्माण आरंभ हुआ जो स्वयं कीटों से अपनी रक्षा करने में सक्षम सिद्ध हुए। समन्यृप में ज़मीन की उर्वरता को बनाए रखने के लिए उसमें एक वर्ष में दो अलग-अलग फसलों की खेती करी जाती थी। लेकिन हरित क्रांति के परिणामस्वरूप इस परंपरा को भी नया रूप दिया गया और के वर्ष में एक ही ज़मीन और एक फसल दो बार की प्रक्रिया को संभव कर दिया गया।

भारत में हरित क्रांति:

1965 में भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री श्री सी. सुब्रह्मण्यम ने हरित क्रांति का बिगुल उन्नत तकनीक के गहूँ के बीजों का आयात करके किया था। इसके अतिरिक्त उन्होनें कृषि क्षेत्र को उधयोग का दर्जा देते हुए उसे औध्योगिक तकनीक व उपकरणों का समन्वय कर दिया। सिंचाई के लिए पर्याप्त नहरें और कुओं का निर्माण, किसानों को फसल के उचित दाम के साथ ही उनके उत्पादन के सही संग्रहण की व्यवस्था करने का भी पूरा इंतेजाम कर दिया।

भारत में हरित क्रांति के परिणाम

देश में हरित क्रांति के परिणाम को हम तीन भागों में बांट कर देख सकते हैं। इनमें से पहला आर्थिक परिणाम, दूसरा सामाजिक परिणाम और तीसरा राजनीतिक परिणाम हैं।

आर्थिक परिणाम

  • हरित क्रांति की वजह से भारत अनाज उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बन सका और गेहूं का उत्पादन वर्ष 1968 में 170 लाख टन तक पहुंच गया था। इसके बाद से तो यह उत्पादन बढ़ता ही चला गया।
  • हरित क्रांति के कारण ही विकास के लिए जरूरी बाकी चीजें जैसे कि ट्यूबवेल के जरिए सिंचाई, भंडारण केंद्रों का विकास, परिवहन के लिए सड़कें, अनाज मंडियों का विकास और गांव-गांव में बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित होने लगी।
  • किसानों को वित्तीय मदद मुहैया कराने के लिए सहकारी बैंक, कोऑपरेटिव सोसाइटी और अलग-अलग वाणिज्यिक बैंकों ने उन्हें ऋण प्रदान करना शुरू कर दिया।
  • हरित क्रांति के कारण भारत में कई तरह की आधुनिक मशीनें जैसे कि हार्वेस्टर, ट्रैक्टर, पंप और ट्यूबवेल आदि इस्तेमाल में लाए जाने लगे। इससे एक तो कृषि के स्तर में सुधार हुआ। कम समय में उत्पादन अधिक होने लगा। साथ ही कम श्रम में भी उत्पादन में बढ़ोतरी होने लगी।
  • इन सबके अलावा रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, हाइब्रिड बीजों और खरपतवारनाशी की मांग में भी बढ़ोतरी होने लगी।
  • इसमें कोई दो राय नहीं कि हरित क्रांति की वजह से जो मशीनीकरण के कारण उत्पादन में बढ़ोतरी हुई, उसके कारण रोजगार के नए अवसर भी ग्रामीण क्षेत्रों में सृजित होने लगे।
  • यह हरित क्रांति का ही परिणाम रहा है कि पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश से लाखों की तादाद में मजदूर काम की तलाश में पहुंचने लगे।

सामाजिक परिणाम

  • हरित क्रांति की वजह से किसानों की आमदनी में इजाफा होने लगा। इससे उनका सामाजिक स्तर तो सुधरा ही, साथ ही उनके शैक्षिक स्तर में भी सुधार आया।
  • हरित क्रांति की वजह से वस्तु विनिमय और जजमानी जैसी जो प्रथाएं पारंपरिक रूप से ग्रामीण समाज में चली आ रही थीं, उन पर भी अंकुश लगाया जाना मुमकिन हो पाया।
  • हरित क्रांति का एक सबसे बड़ा सामाजिक परिणाम यह भी रहा कि अब खेती केवल जीविकोपार्जन का साधन मात्र नहीं रह गई थी। ग्रामीण समाज के लिए तो कृषि आय का एक प्रमुख स्रोत बन गई।
  • वैसे हरित क्रांति की वजह से यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि छोटे एवं सीमांत किसानों की बजाय बड़े किसानों को इसका अधिक लाभ मिल पाया है। वह इसलिए कि नई तकनीकें अधिक लागत ढूंढ रही थीं और इसे केवल बड़े किसान ही वहन कर सकते थे।
  • पहले खेतों में महिलाएं भी बड़ी संख्या में काम करती थीं, लेकिन मशीनों का आगमन हो जाने की वजह से पुरुषों ने ही ज्यादातर कृषि का काम अपने हाथों में ले लिया। ऐसे में इसमें महिलाओं की भागीदारी कम हुई। साथ ही उनकी स्वतंत्रता भी कुछ हद तक कम हो गई।

राजनीतिक परिणाम

  • हरित क्रांति का एक बड़ा राजनीतिक परिणाम यह हुआ कि पहले केवल ऊंची जातियों के लोगों का राजनीति में बोलबाला हुआ करता था, लेकिन हरित क्रांति के परिणामस्वरूप अब समाज के छोटे तबके के लोगों की भी हिस्सेदारी राजनीति में बढ़नी शुरू हो गई।
  • हरित क्रांति के कारण न केवल जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो पाया, बल्कि भूमि सुधार भी तेजी से होने लगे, जिससे कि मध्यम और छोटे स्तर के किसानों की सामाजिक और आर्थिक दशा में काफी हद तक सुधार आया।
  • हरित क्रांति का ही यह परिणाम रहा है कि किसानों से जुड़े जो भी मुद्दे थे, वे अब सिर्फ स्थानीय न रहकर राष्ट्रीय महत्व के बनने लगे। किसानों के ढेरों संगठनों का भी विकास हुआ, जिन्होंने कि उनके हितों के लिए लड़ना शुरू किया।
  • चुनाव में भी अब किसानों से संबंधित मुद्दे अहम बन गए और चुनाव की दिशा और दशा भी ये तय करने लगे।

निष्कर्ष

हरित क्रांति की वजह से ही भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के समकक्ष जाकर खड़ा हो गया है, यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। हरित क्रांति ने न केवल देश को खाद्यान्न संकट से बाहर निकाला है, बल्कि आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होकर पूरी दुनिया का नेतृत्व करने के पथ पर इसके अग्रसर होने का मार्ग भी प्रशस्त किया है।

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