कौन थे हरित क्रान्ति के जनक?

[simplicity-save-for-later]
12333
father of Green Revolution

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1940-60 के मध्य पूरा विश्व अजीब से अवसाद व तनाव से गुज़र रहा था। इस समय सबसे अधिक नुकसान से गुजरने वाले जापान का जीर्णोद्धार करने की सबसे अधिक ज़रूरत थी। बिखरे जापान को पुनः खड़ा करने के लिए गई अमरीकी सेना में एक कृषि वैज्ञानिक एस सिसिल सेलमेन थे जिन्होनें विकास के लिए कृषि में विकास करने को आधार बनाया। उन्होनें विभिन्न शोधों और तकनीकों का प्रयोग करके एक विशेष प्रकार की गेंहू की किस्म तैयार की जिसका दाना काफी बड़ा था। उन्होनें इस गेंहू को आगे शोध के लिए अमरीका भेजा जहां नॉर्मन ब्लॉग ने मैक्सिको की किस्म के साथ संकरीत करके एक नयी किस्म की खोज की। इसके परिणामस्वरूप पूरे विश्व में कृषि के उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि दिखाई दी। इस प्रकार कृषि क्षेत्र में हुए अभूतपूर्व शोध विकास, तकनीकी परिवर्तन व संबन्धित चरणों को ‘हरित क्रान्ति’ का नाम दिया गया।

इस लेख में आप जानेंगे:

  • हरित क्रान्ति क्या थी?
  • हरित क्रान्ति के जनक कौन थे?
  • नोरमेन बोरलेग
  • एम एस स्वामीनाथन

हरित क्रान्ति क्या थी?

  • विश्व में हरित क्रान्ति के विचार को जन्म देने वाले व्यक्ति के रूप में मैक्सिको के नोरमेन बोरलेग  को माना जाता है। लेकिन शाब्दिक रूप में हरित क्रान्ति शब्द का प्रयोग सबसे पहले संयुक्त राज्य आंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी के डायरेक्टर विलियम गौड़ ने किया था। उन्होनें कृषि क्षेत्र में होने वाले अभूतपूर्व और क्रांतिकारी परिवर्तनों को एक क्रान्ति का नाम दिया और कृषि क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण इसे हरित क्रान्ति का नाम दे दिया।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात भुखमरी से परेशान विभिन्न देशों में अत्यधिक उत्पादन क्षमता वाले प्रोसेस्ड बीजों का उपयोग, कृषि के लिए आधुनिकतम उपकरणों का प्रयोग, सिंचाई के लिए नवीनतम साधन व तकनीक की व्यवस्था, खेती के लिए कृत्रिम रूप से तैयार की गई खाद एवं कीटनाशक आदि का विस्तृत प्रयोग का क्रांतिकारी प्रभाव दिखाई दिया। इसलिए इस क्रांति को हरित क्रांति नाम दिया गया।

हरित क्रान्ति के जनक कौन थे?

विश्व में नोरमेन बोरलेग  को हरित क्रान्ति का जनक माना जाता है। इसी प्रकार भारत में हरित क्रान्ति के जन्मदाता एम एस स्वामीनाथन को माना जाता है। आइये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं:

नोरमेन बोरलेग :

  • 25 मार्च 1914 को जन्मे नोरमेन मेक्सिको के क्रेसको प्रांत के एक किसान के घर में हुआ था। आर्थिक तंगी से जूझते हुए नोरमेन ने 1942 में प्लांट पैथोलॉजी और जेनेटिक्स में डोक्क्ट्रेट की डिग्री हासिल करी।
  • 1944 में जनसंख्या विस्फोट के कारण विश्व के विकससशील देश भारी मंदी और भुखमरी के दौर से गुजर रहे थे। प्रति व्यक्ति के अनुसार कृषि उत्पादन में वृद्धि न हो पाने के कारण इन देशों में विकास की प्रक्रिया बंद होती जा रही थी। इस समस्या से उबरने के लिए नोरमेन ने मेक्सिको में रोक्फ़ेलर फाउंडेशन की आर्थिक मदद से एक परियोजना पर काम करना शुरू किया जिसका उद्देश्य गेहूँ के उत्पादन में वृद्धि करना था। बोरलेग ने जेनेटिक्स, प्लांट ब्रीडिंग, प्लांट पैथोलॉजी, कृषि विज्ञान, मृदा विज्ञान और अनाज प्रौद्योगिकी पर निरंतर शोध करते हुए गेहूँ की दो प्रकार की 62-62 प्रजातियाँ विकसित कर लीं।
  • इस क्रांतिकारी कदम से मेक्सिको ने 19 वर्ष के अंतराल में गेहूँ का उत्पादन छह गुना करने में सफलता प्राप्त की।

एम एस स्वामीनाथन:

  • 1963 में बोरलेग जब अपनी विकसित गेहूँ की किस्म को भारत की जलवायु में आज़माने के लिए भारत आए तब उनकी मुलाक़ात डॉ एम एस स्वामीनाथन से हुई।
  • भारत उस समय भारी सूखे के कारण अन्न के संकट से जूझ रहा था। इस समय स्वामीनाथन ने बोरलेग के भारत आगमन को हाथों हाथ लिया और उनके साथ मिलकर पूसा कृषि शोध संस्थान में उन्नत किस्म की फसलों के विकास का काम शुरू कर दिया गया। दिल्ली के साथ ही यह काम लुधियाना, पंतनगर, कानपुर, पुणे और इंदौर में भी किया गया। सभी शोध संस्थानों में उम्मीद से कहीं अधिक अच्छे परिणाम दिखाई दिये। लेकिन भारतीय कृषक खेती के नए उपकरण व तकनीक को आज़माने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे। इस कारण बोरलेग अपनी खोज के परिणामस्वरूप विकसित गेहूँ की नयी किस्म का रोपण नहीं कर सके। तब भारत में सूखे की समस्या से निपटने के लिए बोरलेग द्वारा विकसित गेहूँ और खेती के नवीनतम साधनों व तकनीकों के उपयोग के लिए सरकार ने स्वयं कदम उठाने शुरू किए।
  • इसके परिणाम क्रांतिकारी दिखाई दिये। यह परिणाम 1965-70 के बीच हुए गेहूँ के उत्पादन में दो गुने से अधिक की वृद्धि दिखाई दी।

इन परिणामों से उत्साहित होकर मेक्सिको से नवीनतम विकसित गेहूँ के बीजों का बड़ी मात्रा में सरकार द्वारा आयात किया गया। जिसके परिणामस्वरूप 1968 में गेहूँ की फसल का उत्पादन इतना अधिक हो गया था कि उसे सम्हालने और लाने-लेजाने के लिए बोरियाँ, बैलगाडियाँ, मजदूर और गोदाम कम पड़ने लगे। यह सफर यहीं नहीं खत्म हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि यदि 1961 से 2001 के बीच भारत में जनसंख्या में दोगुनी से अधिक वृद्धि हुई है तो अनाज उत्पादन में 4 गुने से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।

चलते-चलते

भारत में हरित क्रान्ति के फलस्वरूप न केवल फसल उत्पादन, संसाथ्न व तकनीक में विकास दिखाई दिया है बल्कि कृषि योग्य भूमि में भी निरंतर विकास हो रहा है।

स्वामीनाथन के प्रयासों के पुरस्कार के रूप में भारत सरकार ने उन्हें भारत में हरित क्रांति का जंक मानते हुए 1972 में पद्म भूषण के पदक से सम्मानित किया गया। उनकी दिखाई राह पर चलकर भारत 25 वर्षों के अंतराल में ही खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सका है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.