गुप्त कालीन सिक्के

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इतिहासकारों का यह मानना है कि अगर किसी देश का इतिहास जानना है तब उसके तत्कालीन सिक्कों का प्रचलन देखना चाहिए । भारत को सोने की चिड़िया का नाम देने वाले गुप्त वंश का इतिहास उसके सिक्कों के रूप में दिखाई देता है। गुप्त वंश के सिक्के बहुमूल्य धातु जैसे सोने और चाँदी के अलावा सीसे के बने होते थे। विदेशी व्यापार की अधिकता के कारण स्वर्ण भंडार में हमेशा वृद्धि होती रहती थी और इस कारण समाज में स्वर्ण एवं रजत सिक्कों का प्रचलन अधिक था।

अनोखी व कलात्मक मुद्रा:

गुप्त वंश में स्वर्ण मुद्रा का प्रचलन अधिक था। इसके अतिरिक्त इस मुद्रा में कलात्मकता का भी आधिक्य था। उस समय जारी की गई स्वर्ण मुद्रा को ‘दिनार’ कहा जाता था। इन मुद्राओं के निर्माण में कुषाण वंश द्वारा प्रयोग की गई स्वर्ण की मात्रा तुलनात्मक रूप से कम थी।

इसके अलावा जब चंद्रगुप्त द्वितीय ने शक शासकों को पराजित करके गुजरात राज्य को अपने अधीन कर लिया तब विजय प्रतीक स्वरूप चाँदी के सिक्के जारी किए गए।

लेकिन यह मुद्रा आम आदमी के दैनिक व्यवहार के लिए उपयुक्त नहीं थी। इसलिए रोज़मर्रा की जिंदगी में उन्हें वस्तुओं के आदान-प्रदान और कौड़ियों के प्रयोग से काम चलाना पड़ता था।

सिक्कों की विशेषता:

गुप्त वंश में चंद्रगुप्त प्रथम ने सबसे पहले सिक्कों का प्रचलन शुरू किया था। इन सिक्कों के एक ओर चन्द्रगुप्त का चित्र अंकित था तो दूसरी ओर रानी कुमार देवी को अंकित किया गया था। अपने पूरे शासन काल में चंद्रगुप्त ने इस प्रकार के छह सिक्कों को जारी किया था। आरंभ में इन सिक्कों का वजन 120 से 121 ग्रेन हुआ करता था।

चन्द्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिक्कों में सबसे अधिक प्रचलित सिक्कों में वह सिक्का था जिसमें उसके बाएँ हाथ में ध्वज धारण किया हुआ था। इस चित्र में भी उसके कुषाण सम्राटों की भांति विदेशी पोशाक धारण किए हुए दिखाया गया है। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त की रानी को भी विदेशी रूप में दिखाया गया था।

समुद्रगुप्त के सिक्के:

चन्द्रगुप्त के पुत्र समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिक्कों में विदेशी पुट नहीं था। समुद्रगुप्त ने अपने सिक्कों में स्वयं को एक धनुर्धर के रूप में प्रदर्शित किया था। इस चित्र को आगे आने वाले गुप्त शासको ने भी पसंद करते हुए अपनाया था।

इसके अलावा समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए सिक्के में उसे एक हाथ में युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले कुल्हाड़े के साथ भी दिखाया गया है और इसके साथ ही उसके सामने एक संदेशवाहक भी खड़ा है। समुद्रगुप्त ने कला प्रेमी व धार्मिक रूप को भी सिक्कों के रूप में देखा जा सकता है। कुछ सिक्कों में उसे वीणा बजाते हुए और यज्ञ करते हुए भी दिखाया गया था।

समुद्रगुप्त ने मुख्य रूप से केवल स्वर्ण सिक्कों को ही जारी किया था। उसके राज्य में तांबे के सिक्के का प्रचलन नाममात्र का ही था।

इस समय जारी किए गए सिक्कों का वजन 144 ग्रेन था। जबकि चाँदी के सिक्कों का भार 30,333 ग्रेन रखा गया था।

कुमार गुप्त:

गुप्त वंश के एक और शासक कुमार गुप्त ने भी कुछ सिक्कों को जारी किया था। यह सिक्के पहले के शासको की तुलना में काफी भिन्न थे। कुमार गुप्त ने अपने शासन काल में लगभग 14 प्रकार के स्वर्ण सिक्कों को जारी किया था। इन सिक्कों में अधिकतर घुड़सवार की आकृति वाले सिक्के देखे जा सकते हैं। इसके अलावा नाचते हुए मोर को भी कुछ स्वर्ण मुद्राओं में अंकित किया गया था। अपने पूर्वजों की परंपरा का पालन करते हुए कुमार गुप्त ने स्वयं को एक अच्छे शिकारी व क्षत्रीय के रूप में भी सिक्कों पर अंकित करवाया था। इसके लिए कहीं चीते का शिकार तो कहीं अश्वमेघ करते हुए आकृति अंकित करवाई गई। इसके अतिरिक्त वीणावादक के रूप में भी कुमारगुप्त को सिक्को पर देखा जा सकता है।

चन्द्रगुप्त की भांति राजा रानी को भी सिक्कों पर अंकित करवाया गया।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्वर्ण सिक्के गुप्त वंश की प्रतिष्ठा के परिचायक रहे हैं।

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