Gandhi-Nehru Legacy को लेकर आज भी तब-तब बहस हो ही जाती है, जब-जब देश में नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिलते हैं। हालांकि, गौर करने वाली बात यह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जो अपने पीछे विरासत छोड़ गए हैं, राजनीतिक या सामाजिक महत्व से कहीं ज्यादा उनका सांस्कृतिक महत्व है। इस लेख में हम इसी के बारे में विस्तार से जानेंगे।
इस लेख में क्या-क्या है आपके लिए?
- Gandhi and Nehru खुद में विरासत
- हमारे राष्ट्र निर्माता
- महात्मा गांधी की विरासत
- जवाहर लाल नेहरू की विरासत
- Mahatma Gandhi Vs Nehru पर एक नजर
Gandhi and Nehru खुद में विरासत
Gandhi and Nehru दोनों ही हमारे देश के लिए किसी विरासत से कम नहीं रहे हैं। गांधी जी राष्ट्रपिता हैं। गांधी जी बापू हैं। गांधी जी एक विचार हैं, जो न केवल भारत को सही मार्ग दिखा रहे हैं, बल्कि दुनिया को भी एक विचार के रूप में वे ऐसे रास्ते पर ले जा सकते हैं, जहां से कि एक समृद्ध और सुसंस्कृत दुनिया का निर्माण हो सके।
हमारे राष्ट्र निर्माता
Nehru and Gandhi दोनों ही आजादी की लड़ाई के पुरोधा रहे हैं। सत्याग्रह, असहयोग और बलिदान नामक तीन संघर्ष के मंत्र स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों को गांधी जी ने दिए थे। पंडित नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता रहे हैं। आजादी के बाद जो उन्होंने देश की बुनियाद रखी, उसी के बल पर आज हमारा देश विकसित राष्ट्र बनने की ओर बढ़ता नजर आ रहा है।
इससे पहले कि Mahatma Gandhi Vs Nehru पर इस लेख में हम प्रकाश डालें, उससे पहले महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की विरासत की खासियत को हमें अच्छी तरह से समझ लेना जरूरी है।
महात्मा गांधी की विरासत
Gandhi-Nehru history के वे पात्र हैं जो हमेशा जीवंत रहेंगे। जी हां, अपनी विरासत के रूप में। सबसे पहले समझते हैं गांधीजी की विरासत को।
- चाहे वेद हो, पुराण हो या फिर उपनिषद, गांधीजी के लिए उनका ईश्वर इन सभी का सारतत्व ही रहा है। गांधीजी का आदर्श समावेशी समाज के निर्माण की परिकल्पना रही है।
- ऐसा नहीं था कि केवल निजी और सामाजिक जीवन तक ही गांधीजी के आदर्श विचार सीमित रह गए थे। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर जीवन के विभिन्न पक्षों में भी गांधी जी के इन विचारों को आजमाया गया।
- लोग तो कहते थे कि आजादी यदि पानी है तो सत्य और अहिंसा से काम नहीं चलेगा। फिर भी गांधी जी ने यह साबित करके दिखाया कि आजादी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भी हासिल की जा सकती है।
- गांधी जी ने सत्याग्रह का सहारा लिया। उनका कहना था कि हर आदमी सत्य पर पूरी ताकत और निष्ठा के साथ डटा रहे। अन्याय, बुराई और अत्याचार का किसी भी सूरत में समर्थन नहीं करना है। सत्य और न्याय के लिए अपने प्राण भी न्योछावर करने पड़ें तो पीछे नहीं हटना चाहिए।
- गांधी जी कहते थे कि हिंसा और कायरता से भरी लड़ाई में कायरता की जगह हिंसा को मैं पसंद करूंगा। अहिंसा का पाठ किसी कायर को पढ़ाना नामुमकिन है। ठीक उसी तरीके से जैसे कि लुभावने दृश्य दिखाकर किसी अंधे को प्रलोभित नहीं किया जा सकता।
- गांधी जी ने शौर्य के शिखर की संज्ञा अहिंसा को दी थी। उन्होंने कहा था कि ज्ञानपूर्वक कष्ट सहना ही अहिंसा का मतलब है। अन्याय की इच्छा के नीचे दबकर घुटने टेक देना अहिंसा का अर्थ बिल्कुल भी नहीं है।
- दुनिया को गांधी जी ने अहिंसा के जरिए यह संदेश दिया कि जीवन को अहिंसा के नियम के मुताबिक जीकर कोई एक अकेला व्यक्ति भी अपने सम्मान, अपनी आत्मा और अपने धर्म के बचाव के लिए बड़े से बड़े साम्राज्य की पूरी ताकत को चुनौती दे सकता है।
- वर्तमान समय में भी गांधी जी के विचारों से पूरी दुनिया उत्प्रेरित हो रही है। अहिंसा और सविनय अवज्ञा जैसे अहिंसात्मक हथियार जो गांधी जी ने प्रयोग में लाए थे, आज पूरी दुनिया में इन्हें आजमाया जा रहा है।
जवाहर लाल नेहरू की विरासत
Gandhi-Nehru history बनाने के लिए ही इस दुनिया में आए थे। गांधी जी की तरह जवाहर लाल नेहरू की भी समृद्ध विरासत रही है। आइए इसे यूं समझें:-
- देश की आजादी के बाद शिक्षा के साथ सामाजिक सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं औद्योगीकरण के क्षेत्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उल्लेखनीय कार्य किए। वे ऐसा कर पाए, क्योंकि उनके विचार महान थे।
- देश में जो आज बड़े-बड़े उद्योग देखने के लिए मिल रहे हैं, वे पंडित जवाहरलाल नेहरु की विरासत ही तो हैं। उद्योगों को जवाहर लाल नेहरू ने आधुनिक मंदिर माना था।
- लोकतंत्र को मजबूत बनाने में भी पंडित नेहरू की उल्लेखनीय भूमिका रही। संसद में विपक्षी नेताओं की बातों पर भी नेहरू गौर फरमाते थे। वर्ष 1963 में उन्होंने अपनी सरकार के विरुद्ध विपक्ष की तरफ से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा को मंजूर कर दिया था, जबकि उनकी अपनी ही पार्टी के कई सदस्य इसका विरोध कर रहे थे।
- नेहरू की विदेश नीति का हर कोई कायल रहा। पंचशील का सिद्धांत नेहरू की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। इसमें न केवल राष्ट्रीय संप्रभुता बनाए रखने पर जोर दिया गया, बल्कि दूसरे देशों के मामलों में दखल न देने की भी बात की गई।
Mahatma Gandhi Vs Nehru पर एक नजर
Gandhi and Nehru के बीच का संबंध गुरु-शिष्य जैसा भी रहा। फिर भी धर्म के मामले में पंडित नेहरू ने गांधी जी से अपनी अस्वीकार्यता कई बार प्रकट की थी।
- गांधी जी को पंडित नेहरू ने साफ-साफ कई बार कह दिया था कि जमींदारों के प्रति जो उनकी सहानुभूति है, उसे वे समझ नहीं पा रहे हैं।
- पंडित नेहरू ने गांधी जी से यह भी कह दिया था कि भारतीय गांवों के प्रति जो उनके मन में अतिरिक्त मोह है, उसे भी समझ पाने में वे खुद को नाकाम पा रहे हैं।
चलते-चलते
Nehru and Gandhi, इन दोनों की ही विरासत भारत के लिए बेशकीमती है। वह इसलिए कि महात्मा गांधी और पंडित नेहरू दोनों ने अपने विचारों और अपने द्वारा उठाए गए कदमों के जरिए जो विरासत इस देश के लिए छोड़ी है, वही विरासत आज हमारे देश को आगे बढ़ने का मार्ग दिखा रही है। इसी विरासत पर गर्व करके हमने अपनी एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखा है।
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