Indian Army, Navy और Air Force के important battles में भाग लेकर इसमें अपनी शहादत देने वाले जवानों के सम्मान में नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट के समीप National War Memorial का उद्घाटन हुए बीते 25 फरवरी को एक साल हो गये, जिसके उपलक्ष्य में इसकी पहली वर्षगांठ भी मनाई गई। इससे पहले भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1971 में इंडिया गेट के पास अमर ज्योति जलाई गई थी जो कि शहीद जवानों को श्रद्धांजलि स्वरुप 24 घंटे जलती रहती है। यहां हम आपको राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के बारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं, जो कि युद्ध के नायकों को समर्पित है।
राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का इतिहास
सबसे पहली राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाए जाने की बात सबसे पहले 1960 में सामने आई थी। इस दौरान सशस्त्र बलों की ओर से सरकार से अनुरोध किया गया था कि युद्ध में जिन सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की है, उनकी स्मृति में एक युद्ध स्मारक बनाया जाए, मगर उस वक्त की सरकार के द्वारा इस अनुरोध को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया।
लगातार उठ रही मांग के बाद वर्ष 2006 में तत्कालीन यूपीए सरकार की ओर से सशस्त्र बलों की मांगों पर विचार करने एवं इसकी जांच करने के उद्देश्य से एक समिति बना दी गई थी, जिसकी अध्यक्षता प्रणब मुखर्जी कर रहे थे। इंडिया गेट के नजदीक ही युद्ध स्मारक बनाये जाने का निर्णय रक्षा मंत्रालय की ओर से वर्ष 2006 में जरूर ले लिया गया था, मगर शहरी विकास मंत्रालय के इंडिया गेट के आसपास के इलाके को धरोहर क्षेत्र बताते हुए इसे नामंजूर कर दिया गया था।
यूपीए सरकार ने वर्ष 2012 में 1962 के युद्ध के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में सशस्त्र बलों की मांग को मानते हुए युद्ध स्मारक के निर्माण को काफी विरोध के बाद भी अनुमति दे दी, जिसके बाद 2015 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इंडिया गेट के समीप युद्ध स्मारक के साथ संग्रहालय के निर्माण की भी स्वीकृति दे दी गई। केंद्र सरकार की ओर से वर्ष 2016 में युद्ध स्मारक के साथ युद्ध संग्रहालय के डिजाइन के लिए एक प्रतियोगिता विश्व स्तर पर शुरू की गई, जिसका विजेता युद्ध संग्रहालय के डिजाइन के लिए मुंबई का स्टूडियो एसपी प्लस बना, जबकि युद्ध स्मारक के डिजाइन के लिए चेन्नई के एक वेब डिजाइन लैब को विजेता घोषित किया गया। जनवरी, 2019 में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ।
National War Memorial की शुरुआत
Indian Army, Navy और Air Force के important battles में हिस्सा लेने के दौरान युद्धभूमि में अपने प्राणों का उत्सर्ग इस मातृभूमि के लिए करने वाले शहीदों के सम्मान में निर्मित National War Memorial का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 फरवरी, 2019 को किया, जिसमें तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ जल, थल और वायु सेना के प्रमुख भी मौजूद थे। पहले तो उद्घाटन इसका 2018 में ही होना था, मगर निर्माण कार्य पूरा न होने पाने की वजह से तब यह संभव नहीं हो पाया था।
National War Memorial की विशेषताएं
- जिन सैनिकों ने 1962 में भारत व चीन के बीच के युद्ध, 1947, 1965 व 1971 में भारत व पाकिस्तान के बीच के युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध के साथ श्रीलंका में भारत की ओर से शांति मिशन के दौरान अपना बलिदान दिया, उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए इंडिया गेट के नजदीक इस स्मारक को बनाया गया है, जिसे कि अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के तौर पर भी जाना जा रहा है।
- एक स्मारक स्तंभ इस युद्ध स्मारक में बनाया गया है, जिसमें कि ठीक उसी तरह से एक लौ 24 घंटे जल रही है, जैसे कि वर्ष 1971 से अमर ज्योति की लौ 24 घंटे जलती आ रही है। यह इस बात का सूचक है कि जिन वीर सैनिकों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी है, देश एक पल के लिए भी उन्हें भुला नहीं पायेगा।
- 15.5 मीटर ऊंचा यह स्तंभ स्मारक में दाखिल होने से पूर्व ही दिख जाता है। युद्ध की चक्रव्यूह संरचना के आधार पर डिजाइन किये गये युद्ध स्मारक में चार सर्किल देखने को मिलते हैं, जो सशस्त्र बलों के अलग-अलग मूल्यों के द्योतक हैं और जिनमें से पहले को अमर चक्र के नाम से जाना जाता है।
- दूसरा चक्र जो पहले चक्र को घेर रहा है, इसमें छ: युद्धों को छ: कांस्य मुरल चित्रों जरिये दर्शाया गया है, जिनमें से हर मुरल 600 से एक हजर किग्रा का वजन लिये हुए है।
- दो मीटर लंबी ग्रेनाइट ईंटों की 16 दीवारों से तीसरा यानी कि त्याग चक्र बनाया गया है, जिन पर अब तक शहीद हुए युद्ध के नायकों के नाम लिखे गये हैं। इनमें नाम जुड़ते चले जाएंगे।
- अंतिम चक्र, जो कि रक्षा चक्र है, वह तीनों चक्र को घेर रहा है और इसमें 600 से भी ज्यादा पेड़ लगाये गये हैं, जो उन सैनिकों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जो देश की रक्षा के लिए डटे हुए हैं।
- युद्ध स्मारक में प्रवेश के लिए कोई भी शुल्क निर्धारित नहीं किया गया है। युद्ध स्मारक के चारों ओर कृत्रिम लाइट लगा दिये जाने की वजह से रात के वक्त इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।
अंत में
माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा था- मुझे तोड़ लेना वनमाली। उस पथ पर देना तुम फेंक। मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएं वीर अनेक। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक भी एक ऐसा ही पथ है, जो देशप्रेम का पावन संदेश हमें देता है।