भारत में इस्लामिक वास्तुकला की विरासत

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भारत में इस्लाम का आगमन करीब 7वीं शताब्दी में हुआ था और तब से यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है। हिंदू राष्ट्र भारत में इस्लाम के आगमन ने ना सिर्फ भौगोलिक और आर्थिक परिवर्तन किया, बल्कि यहां के वास्तुकला में भी बहुत बड़ा बदलाव लाया। आज इस्लामिक वास्तुकला के कई नमूने हमारे देश में उनकी विरासत के रुप में मौजूद हैं।

हालांकि इस्लामिक वास्तुकला को पूरे दुनिया में देखा जा सकता है। लेकिन भारत एक ऐसा देश है, जहां इस्लामिक वास्तुकला को वास्तव में बड़ी प्रसिद्धि हासिल हुई। साथ ही भारत के आर्थिक उदय और सांस्कृतिक प्रभुत्व में इस्लामिक वास्तुकला ने अपनी महती भूमिका भी निभाई। आइए एक नजर डालते हैं भारत में अब भी मौजूद इस्लामिल वास्तुकला के विरासत पर।

ताजमहल- भारत में इस्लामिक वास्तुकला के विरासत की बात की जाए, तो आगरा के ताजमहल का नाम सबसे पहले आता है। ताजमहल भारत के सबसे प्रतिष्ठित स्मारकों में से एक है। ना सिर्फ भारत बल्कि ताजमहल को दुनिया के सात अजूबों में भी शामिल किया गया है। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है। ताजमहल का निर्माण सन् 1632 से 1653 ई. में किया गया है। 

कुतुब परिसर- कुतुब इमारत समूह एक स्मारक इमारतों एवं अवशेषों का समूह है, जो राजधानी दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। इसकी सर्वाधिक प्रसिद्ध इमारत कुतुब मीनार है।

  • कुतुब मीनार– कुतुब मीनार का निर्माण दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस्लाम फैलाने के लिए सन 1199 में करवाया था। जिसे अंत में इसके दामाद और उत्‍तराधिकारी इल्‍तुतमिश ने सन् 1210-35 में पूरा किया।
  • कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद- कुतुब मीनार के पास स्थित इस मस्जिद का निर्माण गुलाम वंश के प्रथम शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने 1192 में शुरु करवाया था।यह मस्जिद हिन्दू और इस्लामिक कला का अनूठा संगम है। एक ओर इसकी छत और स्तंभ भारतीय मंदिर शैली की याद दिलाते हैं, वहीं दूसरी ओर इसके बुर्ज इस्लामिक शैली में बने हुए हैं। मस्जिद प्रांगण में सिकंदर लोदी (1488-1517) के शासन काल में मस्जिद के इमाम रहे इमाम जमीम का एक छोटा-सा मकबरा भी है।     

बुलन्द दरवाजा- उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी नामक स्थान में मौजूद बुलन्द दरवाजा विश्व का सर्वाधिक उंचा द्वार है। अकबर ने फतेहपुर सीकरी का शाही नगर 1500 में बसाया था। यह लाल बलुआ पत्थर से बना है जिसे सफेद संगमरमर से सजाया गया है। दरवाजे के आगे और स्‍तंभों पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। यह दरवाजा एक बड़े आंगन और जामा मस्जिद की ओर खुलता है।

जामा मस्जिद- राजधानी दिल्ली में स्थित जामा मस्जिद का निर्माण सन् 1656 में सम्राट शाहजहां ने किया था। यह मस्जिद लाल और संगमरमर के पत्थरों का बना हुआ है। ये भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है।

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा– ये राजस्थान के अजमेर नगर में स्थित एक मस्जिद है। इसका निर्माण मोहम्मद ग़ोरी के आदेश पर कुतुब-उद-दीन ऐबक ने साल 1192 में शुरू करवाया था। माना जाता है कि यहां चलने वाले ढाई दिन के उर्श के कारण इसका ये नाम पड़ा। यहां मस्जिद के हर एक कोने में चक्राकार एवं बासुरी के आकार की मीनारे निर्मित है।

हुमांयू का मकबरा– राजधानी दिल्‍ली में हुमायूं का मकबरा महान मुगल वास्‍तुकला का एक उत्‍कृष्‍ट नमूना है। साल 1570 में बना यह मकबरा भारतीय उप महाद्वीप पर प्रथम उद्यान – मकबरा था। कई प्रकार से भव्‍य लाल और सफेद सेंड स्‍टोन से बनी यह इमारत बहुत ही भव्‍य है। यह ऐतिहासिक स्‍मारक हुमायूं की रानी हमीदा बानो बेगम  ने लगभग 1.5 मिलियन की लागत से बनवाया था।  

आगरा का किला- अकबर की कला और वास्तुकला में गहरी रुचि थी और उसकी वास्तुकला में हिंदू और मुस्लिम निर्माण व अलंकरण का अच्छा सम्मिश्रण देखने को मिलता है। आगरा में अकबर ने यमुना के तट पर लाल बलुआ पत्थर से बने अपने प्रसिद्ध किले का सन् 1565 में निर्माण आरंभ करवाया। बलुआ पत्थर की ऊंची दीवारें, विशाल सभा गृह महल, मस्जिद, बाज़ार, स्नानघर, बगीचे वाला ये किला देखने में काफी भव्य लगता है।

गोलगुम्बज- कर्नाटक के बीजापुर का गोल गुंबद मुहम्मद आदिल शाह का मकबरा है। कुल 1600 वर्ग मीटर की भीतरी सतह पर बना यह विश्व का विशालतम गुंबदवाला कक्ष है। यहां ज़मीन के नीचे एक आयताकार कक्ष में एक मकबरा है और ज़मीन के ऊपर एक आयताकार कक्ष है। इसे ऊपर का अर्धगोलाकार गुंबद और कोनों पर बनी सात मंजिला अष्टभुजा विशाल मीनारें इसे अदभुत बनाती हैं। इसे सरगोशी गलियारे के नाम से जाना जाता है क्योंकि गुंबद के नीचे एक हल्की सी फुसफुसाहट भी गूंज उठती है।

सिद्दी सैयद मस्जिद– इस मस्जिद को 1573 में बनवाया गया था और यह गुजरात राज्य के अहमदाबाद में मुगल काल के दौरान बनी आखिरी मस्जिद है। मस्जिद के पश्चिमी ओर की खिड़की पर पत्‍थर पर बनी जाली का काम पाया जाता है जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। बाहर परिसर में पत्‍थर से ही नक्‍काशी और खुदाई करके एक पेड़ का चित्रांकन किया गया है जो उस काल की शिल्‍प कौशल की विशिष्‍टता को दर्शाता है।

पुराना किला- पुराना किला नई दिल्ली में यमुना नदी के किनारे स्थित प्राचीन दीना-पनाह नगर का आंतरिक किला है। इस किले का निर्माण अफगानी शासक शेर शाह सूरी ने अपने शासन काल 1538 से 1545 के बीच करवाया था। किले के तीन बड़े द्वार हैं तथा इसकी विशाल दीवारें हैं। इसके अंदर एक मस्जिद है जिसमें दो तलीय अष्टभुजी स्तंभ है। दुर्घटनावश मृत्यु हो गई।

अतर-किन का दरवाजा- इस दरवाजे का निर्माण शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने करवाया था। वो दिल्ली सल्तनत में ग़ुलाम वंश का एक प्रमुख शासक था। इस दरवाजे का जीर्णोद्धार मुहम्मद तुगलक ने करवाया था। यह दरवाजा राजस्थान के नागौर में स्थित है।

कॉटला फिरोजशाह– दिल्ली में स्थित कोटला फिरोजशाह दुर्ग का निर्माण फिरोज तुगलक ने करवाया था। दुर्ग के अंदर निर्मित जामा मस्जिद के सामने अशोक का टोपरा गांव से लाया गया स्तम्भ गड़ा है।

निष्कर्ष

भारत में इस्लामी वास्तुकला को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष। मस्जिद और मकबरे धार्मिक वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि महल और किले धर्मनिरपेक्ष इस्लामी वास्तुकला के उदाहरण हैं। भारत में मौजूद कई महलें, मस्जिद, सड़कें, बगीचे, किले समेत कई ऐसी चीजें हैं जो इस्लामिक वास्तुकला का परिचय देती हैं।

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