भारत में भवन निर्माण और शिल्प कला में एक बहुत बड़ा और नया मोड़ आया, जब मुग़लों का भारतीय महाद्वीप पर आगमन हुआ | मुग़ल 12वि शताब्दी के अंत में भारत आये थे |मुग़ल अपने साथ भवन निर्माण और शिल्प कला के नए तरीके और तकनीके भी लाये, जैसे विभिन्न आकारों का उपयोग, कुरेद कर पत्थरों और दीवारों को तराशा गया है, संगमरमर और अन्य पत्थरों से भवन निर्माण और आतंरिक सजावट के लिए चमकीली टाइल्स का उपयोग | इस नए तरीके ने भारत में प्रचलित पारंपरिक तरीके में नया योगदान दिया, जो पहले बड़े-बड़े स्तंभों के आड़े और सीधे निर्माण पर केंद्रित थी, वही मुग़लों की तकनीक छापकर थी, जिसमें गुम्मद निर्माण से खाली जगह को भरा जाता था | यह गुम्बद आकर का भवन कला में उपयोग खुद मुग़लों का इज़ाद किया हुआ नहीं हैं, बल्कि यह तकनीक उन्होंने प्राचीन रोम साम्र्याज्य से अपनायी और इसे आगे विकसित किया |
भारत उप महाद्वीप पर एक बाहरी भवन निर्माण की तकनीक लाने वाले सबसे पहले मुग़ल ही थे और धीरे-धीरे भारतीय भवन निर्माण कला और मुग़लों की तकनीक का एक दुसरे पर असर पड़ने लगा और मिलकर एक इंडो-मुग़ल तकनीक का विकास हुआ | इस तरह से यह इंडो- मुग़ल तकनीक से भारत में कई भव्य भवन, मीनारें, धार्मिक स्थानों का निर्माण हुआ जिनमें से कुछ आज भी अपने आप में एक मिसाल हैं | एक बात यहाँ ध्यान देने योग्य है की, इस्लामी भवन निर्माण की तकनीकें कई बार इस्तेमाल और प्रयोग में लायी जा चुकी थी और मिस्त्र, ईरान और इराक में प्रयोग में लाये जाने के बाद, भारत में भारीतय तकनीक के साथ विकसित हुई | और यह बात भी जोर देने यौग्य है की कई शताब्दियों से इस तकनीक को भारतीय कारीगरों से अपने परिश्रम से संजोए रखा और पीढ़ी दर पीढ़ी इसे आगे बढ़ाया |
इस इंडो- इस्लामिक तकनीक से कई महान निर्माण हुए और इन निर्माणों को दो भागों में बांटा जा सकता है – धार्मिक और धर्म निरपेक्ष | धार्मिक निर्माणों में कई मस्जिदों, गुम्बदों और दरगाहों का निर्माण हुआ वहीं दूसरी ओर धर्म निरपेक्ष निर्माणों में भवन, मीनारें, रिहायशी इमारतें ओर अन्य कई भव्य संरचनाओं का निर्माण हुआ | इंडो- इस्मालिक भवन निर्माण ओर शिल्प कला का एक दुसरे पर प्रभाव पड़ने के कारण भारत में आज ताजमहल, क़ुतुब मीनार, लाल किला, हुमायु की दरग़ाह, कई बाग़- बगीचे, नहरों ओर सडकों का निर्माण हुआ, जो आज भी गर्व से इंडो-इस्लामिक तकनीक का परिचय देते हैं |