4 जनवरी – विश्व ब्रेल दिवस

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World Braille Day

4 जनवरी का दिन हमारे देश के व विश्व के सभी दृष्टिबाधित अर्थात् नेत्रहीन भाई-बहनो के लिए बेहद खास महत्व रखता हैं क्योंकि इसी दिन ब्रेल लिपि के जनक अर्थात् लुई ब्रेल का जन्म हुआ था जिन्होने ब्रेल लिपि का ना केवल आविष्कार किया बल्कि इसमें समय-समय पर संशोधन भी करते रहे ताकि हमारे नेत्रहीनो के लिए शिक्षा असंभव ना हो और वे ब्रेल लिपि में, शिक्षा ग्रहण कर सकें और अपना विकास कर सकें।

कौन थे लुई ब्रेल?

लुई ब्रेल का जन्म साइमन ब्रेल के घर में, हुआ था जो कि, घोडो की जिन बनाने वाले कारखानो को चलाते थे। उनका घर फ्रांस की राजधानी पेरिस से 40 किलोमीटर दूर कोपरे नामक एक गांव में, था और इसी घर में, 4 जनवरी, 1809 को मोनिक ब्रेल ने, लुई ब्रेल को जन्म दिया था लेकिन दुर्भाग्यवश एक दिन खेलते हुए उनकी गें फट गई जिसे लेकर वे अपने पिता के पास गये और कहा कि, इसे सील दीजिए। पिता जरुरी काम में, व्यस्त थे तभी लुई ने, उनसे नजरें बचाकर सूआ उठाया और खुद ही गेंद सीलने की कोशिश की और कोशिश में, वे सुये को अपनी दोनो आंखो में मार बैठे व जीवन भर के लिए नेत्रहीन हो गये।

लुई ब्रेल बेहद आत्मविश्वासी व जुझारु स्वभाव के थे इसीलिए जब उन्हें मालूम हुआ कि, कैप्टन चार्लस बार्बर ने, एक ऐसी लिपि का निर्माण किया हैं जिसे सोनोग्राफी व नाइट रिडिंग तकनीक की मदद से छूकर अंधेरे में, भी पढ़ा जा सकता हैं तो उन्होने उनसे मुलाकात की और उसी लिपि में, सुधार करके ब्रेल लिपि का आविष्कार किया।

ब्रेल लिपि क्या हैं?

हम, आपको कुछ बिंदुओ की मदद से बताते हैं कि, ब्रेल लिपि क्या हैं जो कि, इस प्रकार से हैं –

  • 1821 में हुई थी ब्रेल लिपि की खोज

ब्रेल लिपि की खोज लुई ब्रेल द्धारा सन् 1821 में, की गई थी जिसमें प्रमुखत स्पर्श प्रणाली का प्रयोग किया गया था ताकि हमारे नेत्रहीन आसानी से अपनी ऊंगलियो के स्पर्श से अक्षरो को पढ सकें।

  • 1825 में, लुई ब्रेल ने, 6 बिंदुओ की मदद से 64 अक्षरो व चिन्हो वाली लिपि का निर्माण किया

लुई ब्रेल जो कि, ब्रेल लिपि के जनक हैं उन्होने 1825 में, कुल 6 बिंदुओ अर्थात् डॉट्स की मदद से 64 अक्षरो व चिन्हो वाली लिपि का निर्माण किया था जिसका उपयोग करके गणित, संगीत व विराम चिन्हो को लिखा जा सकता था।

  • ब्रेल, एक कूट भाषा है

ब्रेल भाषा को हम, एक कूट भाषा के तौर पर मानते है जिसमें वर्णो व अक्षरों को प्रस्तुत करने के लिए सतह पर 0.02 की ऊंचाई वाले उभार के साथ अंकित किया जाता हैं जिसे हमारे नेत्रहीन पाठक, छू कर अर्थात् स्पर्श करके पढ पाते हैं जो कि, एक जटिल क्रिया हैं क्योंकि ब्रेल लिपि एक जटिल भाषा हैं।   

  • ब्रेल लिपि अर्थात् स्पर्श लिपि

यदि हम, सरल शब्दो में, कह तो ब्रेल लिपि, स्पर्श लिपि हैं जिसमें हमारे सभी नेत्रहीन दिव्यांग अपनी ऊगंलियो से शब्दो के उभारो को स्पर्श करके पढते हैं और उसके अर्थ को ग्रहण करते हैं जिसकें लिए उन्हें नेत्रो की जरुरत नहीं होती हैं।

  • 6 डॉट्स का संग्रह होता हैं ब्रेल लिपि में

हम, अपने पाठको को बताना चाहते हैं कि, ब्रेल लिपि में, प्रत्येक अक्षर को 6 डॉट्स की मदद से प्रदर्शित व अंकित किया जाता हैं जिसके तहत प्रत्येक अक्षर, संगीत, गणितीय, वैज्ञानिक व संख्यात्मक प्रतीको को अंकित करते हैं जिसे हमारे नेत्रहीन अपनी ऊंगलियो के स्पर्श से पढ पाते और उनके सही अर्थो का ज्ञान प्राप्त कर पाते हैं।

  • कैसी होती थी पारम्परिक ब्रेल लिपि?

पारम्परिक ब्रेल लिपि एक आयताकार स्लेट के रुप में, होती थी जिसमें कुल 6 बिंदु या डॉट्स होते थे जो कि, थोडे उभरे होते थे जिनकी ऊंचाई 0.02 होती थी जिसे सहजता के साथ स्लेट या फिर ब्रेल टाइपराइटर पर प्रस्तुत किया जा सकता हैं।

उपरोक्त सभी बिंदुओ के माध्यम से हमने आपको ब्रेल लिपि के बारे में, बताया ताकि आप इसकी उचित जानकारी प्राप्त कर सकें।

कैप्टन चार्लस बार्बर थे ब्रेल लिपि के वास्तविक जनक

ब्रेल लिपि का विकास एक लुई ब्रेल द्धारा किया लेकिन इस लिपि को सबसे पहले कैप्टन चार्लस बार्बर ने सोनोग्राफी व नाइट रिडिंग की तकनीक की मदद से विकसित किया था ताकि युद्ध के दौरान सिपाही आसानी से अंधेरे में, भी अक्षरो को स्पर्ष करके पढ सकें और संदेशो को आगे अधिकारीयो तक पहुंचा सकें। उनकी इसी लिपि से मौलिक प्रेरणा लेते हुए लुई ब्रेल ने, पादरी बैलेन्टाइन से कैप्टन चार्लस बार्बर से मिलने की इच्छा जताई और जब उनकी मुलाकात हुई तब लुई ब्रेल ने, उन्हें अपनी लिपि में, कुछ ऐसे सुधार करने के लिए कहा जिसकी मदद से नेत्रहीन आसानी से पढ सकें और साथ ही साथ सिपाही भी। उनके इन सुधारो को कैप्टन नें, स्वीकार कर लिया और फलस्वरुप हमें व हमारे नेत्रहीनो को ब्रेल लिपि प्राप्त हुई।

सरकारी व गैर-सरकारी संगठनो की मदद से होता हैं नेत्रहीनो का विकास

4 जनवरी, जिसे हम व पूरा विश्व ’’ ब्रेल दिवस ’’ के रुप में, मनाता हैं ताकि हम, अपने सभी नेत्रहीन व्यक्तियो को समाज में, मान्यता और उनका स्थान दे सकें। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए सरकारी व गैर-सरकारी संगठन आपस मे मिलकर हमारे नेत्रहीनो को समाज में, उनका स्थान दिलाने की कोशिश करते हैं जिसके तहत कई कल्याणकारी व प्रभावी कदमो को उठाया जाता हैं।

सरकारी व गैर-सरकारी संगठनो द्धारा उठाये गये इन कदमो के पीछे मूल कारण हमारे नेत्रहीनो का पिछडापन होता हैं जो कि, समाज के हाशिये पर जीवन जीते हैं लेकिन उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडने के लिए ही सरकारी व गैर-सरकारी संगठन आपस में, मिलकर नेत्रहीनो के लिए कल्याणकारी अभियानो व योजनाओ की शुरुआत करते हैं ताकि हमारे नेत्रहीन शिक्षित हो सकें और अपना विकास कर सकें।

8 बिंदुओ वाली आधुनिक ब्रेल लिपि

पारम्परिक ब्रेल लिपि में, हमें, 6 बिंदु या डॉट्स देखने को मिलते है जिसे विकसित करके अर्थात् आधुनिक ब्रेल लिपि का रुप दिया गया हैं जिसके तहत 6 बिंदुओ की जगह कुल 8 बिंदुओ का प्रयोग किया जाता हैं। 6 बिंदु वाली प्रणाली की मदद से केवल 64 अक्षर लिखे व पढे जा सकते थे जबकि 8 बिंदुओ की मदद से 256 अक्षरो व विराम चिन्हो को लिखा व पढा जा सकता हैं जिससे हमारे नेत्रहीनो की पूर्ण शैक्षणिक विकास होता हैं।

क्या हैं ब्रेल लिपि का संवैधानिक महत्व?

ब्रेल लिपि कोई सामान्य लिपि नहीं हैं क्योंकि ब्रेल लिपि का अपना एक संवैधानिक महत्व हैं। दिव्यांग लोगो के अधिकारी के कन्वर्शन की धारा -2 के तहत ब्रेल लिपि, नेत्रहीनो के लिए संचार का एक बेहद सशक्त और प्रभावी माध्मय हैं जो कि, नेत्रहीनो द्धारा भावनाओ की अभिव्यक्ति, विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता व लिखित संचार के लिए अनिवार्य मानी जाती हैं जिसकी पूर्ति करके हमारे नेत्रहीनो का सामाजिक-आर्थिक विकास तय किया जाता हैं जैसा कि, कन्वर्शन की धारा 21 व 24 में, उल्लेख किया गया हैं।

लुई ब्रेल ने, 12 बिंदुओ की जगह 6 बिंदुओ वाली तकनीक क्यूं अपनाई?

लुई ब्रेल ने, नेत्रहीनो के लिए पढने व लिखने की सुविधा के कारण 12 बिंदुओ वाली तकनीक की जगह 6 बिंदुओ वाली तकनीक को अपनाया ताकि हमारे नेत्रहीन आसानी से इस लिपि का प्रयोग करके लिख सकें और पढ सकें जबकि 12 बिंदुओ वाली तकनीक में, कई तरह की जटिलतायें थी जिससे बचने के लिए लुई ब्रेल ने, 6 बिंदुओ वाली तकनीक का चयन किया और ब्रेल लिपि का आविष्कार किया।

43 वर्ष की आयु में, हुआ था लुई ब्रेल का निधन

लुई ब्रेल, 1852 में, टी.बी की बिमारी सें ग्रसित हुए और यही उनकी मृत्यु का कारण बनी जिसकी वजह से उन्हें 43 वर्ष की आयु में, दुनिया छोडनी पडी लेकिन उनके प्रयास को मान्यता देते हुए 1868 में, रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ ने, ब्रेल लिपि को आधिकारीक मान्यता दे दी।

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